बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा

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बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा
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धर्म संबंधी जानकारी
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देवतात्रिशक्ति बगलामुखी देवी
अवस्थिति जानकारी
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भौगोलिक निर्देशांकसाँचा:coord
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू मन्दिर वास्तु कला
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स्थापितमहाभारत काल
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माता बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा कस्बे में लखुन्दर नदी के किनारे स्थित है। यह मन्दिर तीन मुखों वाली त्रिशक्ति बगलामुखी देवी को समर्पित है। मान्यता है कि द्वापर युग से चला आ रहा यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक भी है। इस मन्दिर में विभिन्न राज्यों से तथा स्थानीय लोग भी एवं शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। यहाँ बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं।[१] कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय के उद्देश्य से[२] भगवान कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने की थी।[३] मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।[४] प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख है जिनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मन्दिर उन्हीं से एक बताया जाता है।

इतिहास

मंदिर के बाहर सोलह स्त्म्भों वाला एक सभामंडप है जो आज से लगभग २५२ वर्षों से संवत १८१६ में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्रीतुलाराम ने बनवाया था।[२] इसी सभामंड़प में एक कछुआ भी स्थित है जो देवी की मूर्ति की ओर मुख करता हुआ है। यहाम पुरातन काल से देवी को बलि चढ़ाई जाती थी। मंदिर के सामने लगभग ८० फीट ऊँची एक दीप मालिका बनी हुई है, जिसका निर्माण राजा विक्रमादित्य द्वारा ही करवाया गया था। प्रांगन में ही एक दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर, एक उत्तरमुखी गोपाल मंदिर तथा पूर्वर्मुखी भैरवजी का मंदिर भी स्थित है।[१] यहां के सिंहमुखी मुख्य द्वार का निर्माण १८ वर्ष पूर्व कराया गया था।[३]

स्थानीय पंडित कैलाश नारायण शर्मा के अनुसार यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर पुजारी अपनी दसवीं पीढ़ी से भी पहले से पूजा-पाठ करते आए हैं। १८१५ में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु एवं विभिन्न क्षेत्रों में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं। एक अन्य पंडित गोपालजी पंडा, मनोहरलाल पंडा आदि के अनुसार यह मंदिर श्मशान क्षेत्र में स्थित है। बगलामुखी माता तंत्र की देवी हैं, अतः यहाँ पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है[४]। इस मंदिर की मान्यता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यहाँ की मूर्ति स्वयंभू और जागृत है तथा इस मंदिर की स्थापना स्वयं महाराज युधिष्ठिर ने की थी।

मंदिर में बहुत से वृक्ष हैं, जिनमें बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आँकड़ा, आँवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं। इसके आसपास सुंदर और हरा-भरा बगीचा भी बना हुआ है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ भक्तों का ताँता लगा रहता है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण वर्षभर यहाँ पर कम ही लोग आते हैं। मंदिर के पीछे लखुन्दर नदी (जिसका पुराना नाम लक्ष्मणा था) के तट पर संत व मुनियो की कई समाधियाँ जीर्ण अवस्था में स्थित है, जो आज भी इस मंदिर में संत मुनियों का रहने का प्रमाण है।[३]

आवागमन

सड़क मार्ग द्वारा इंदौर से लगभग १६५ किमी की दूरी पर स्थित नलखेड़ा पहुँचने के लिए देवास या उज्जैन के रास्ते से जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध हैं।

वायु मार्ग से पहुंचने हेतु नलखेड़ा के निकटतम इंदौर का विमानक्षेत्र है।

रेल मार्ग द्वारा इंदौर से ३० किमी पर स्थित देवास या लगभग ६० किमी मक्सी पहुँचकर भी आगर मालवा जिले के कस्बे नलखेड़ा पहुँच सकते हैं।

सन्दर्भ

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इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

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