आहूखाना

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साँचा:Infobox sanam बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित आहूखाना वह स्थान है जो मध्यकाल में बादशाहों और सुल्तानों के लिए शिकारगाह के साथ पनाहगाह भी था। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक बुरहानपुर में मुगल बादशाह की बेगम मुमताज महल के निधन के बाद उसके शव को इसी जगह पर छह महीने तक सुरक्षित रखा गया था।[१][२]

इतिहास

आहूखाने का इतिहास फारूकी शासनकाल से संबद्ध है। जैनाबाद को इसी काल-खंड में बसाया गया था। फारूकी राजाओं ने अपने शासनकाल में इस विशाल बाड़े का निर्माण करवाया था, जिसमें हिरण रहा करते थे। इसी वजह से इस जगह का नाम आहूखाना रखा गया। आहूखाने का अर्थ ही होता है हिरणों का बाड़ा। फारुकी राजाओं को हराने के बाद अकबर ने अपने पुत्र दानियाल को इस इलाके का सूबेदार नियुक्त किया। दानियाल अक्सर यहां शिकार के लिए आया करता था।

नूरजहाँ का आहूखाना से लगाव

दानियाल की मृत्यु के बाद आहूखाना थोड़े समय के लिए उजाड़ हो गया लेकिन जहांगीर के शासन संभालते ही नूरजहाँ के लिए ये सबसे प्रिय जगह बन गई। जहांगीर के शासनकाल में आहूखाने में एक महल का निर्माण करवाया गया।

शिकारगाह से गुलाब बाग में रुपांतरण

जहांगीर के बाद शाहजहाँ के हाथ में सत्ता आ गई, जो पहले बुरहानपुर का सूबेदार रह चुका था। मुमताज महल को यह जगह बेहद पसंद थी। उसने कश्मीर के निशातबाग की तरह ही आहूखाने को गुलाबबाग में बदल दिया। पूरे मुगलकाल में यह जगह हिंदुस्तान का दूसरा सबसे सुंदर गुलाबबाग कहा जाता था। इस जगह का जिक्र फारसी कवि फिरदौसी ने अपनी किताब शाहनामा में भी किया है। मुमताज महल ने यहां एक बारादरी का निर्माण भी करवाया था, जहाँ अक्सर नृत्य और संगीत के आयोजन हुआ करते थे।[३][४]

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियां

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