धार

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Dhar
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ज़िलाधार ज़िला
प्रान्तमध्य प्रदेश
देशसाँचा:flag/core
जनसंख्या (2011)
 • कुल९३,९१७
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भाषा
 • प्रचलित भाषाएँहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

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धार (Dhar) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के धार ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। प्राचीन काल में इस शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी।[१][२]

विवरण

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से यह मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। यह मध्यकालीन शहर पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है। बेरन पहाड़ियों से घिर इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। धार के प्राचीन शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार किला, फड़के स्टूडियों, नित्यानंद आश्रम,भोज शोध संस्थान, गढ़ कालिका मंदिर,भोजशाला, छतरियों और कमाल मौलाना मस्जिद की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है। साथ ही इसके आसपास अनेक ऐसे दर्शनीय स्थल हैं जो पर्यटकों को रिझाने में कामयाब होते हैं।

धार ज़िला तीन भौगोलिक खंडों में फैला हुआ है जो क्रमशः उत्तर में मालवा, विंध्यांचल रेंज मध्य क्षेत्र में तथा दक्षिण में नर्मदा घाटी। हालांकि घाटी पुनः दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों द्वारा बंद होती है। धार जिला भारत के सांस्कृतिक मानचित्र में प्रारंभ से ही रहा है। लोगों ने अपने आपको ललित कला, चित्रकारी, नक्काशी, संगीत व नृत्य इत्यादि में संलिप्त रखा था। इस संपूर्ण जिले में बहुत से धार्मिक स्थल हैं, जहां वार्षिक मेलों के आयोजन में हजारों लोग एकत्र होते हैं।

धार जिला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पहले यह धार नगरी के नाम से जाना जाता था। 1857 स्वतंत्रता की लड़ाई में भी धार महत्वपूर्ण केंद्र था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने धार के किले पर अपना कब्जा कर लिया था। दूसरी ओर बाग भी राष्ट्रीय महत्व का स्थान है। बाग नदी के किनारे स्थित गुफाएं ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। यहां पर 5वीं और 6वीं शताब्दी की चित्रकला भी है। यहां भारतीय चित्रकला का अनूठा नजारा देखने को मिलता है। यहां की बौद्धकला भारत ही नहीं एशिया में भी प्रसिद्ध है। बाज बहादुर और रानी रूपमती की कथा कहानियों से चर्चित आनंद नगरी मांडू,जल महल सादलपुर के कारण उल्लेखनीय है।

इतिहास

विध्वम्सित धार लौह स्तम्भ

प्राचीन काल में धार शहर की स्थापना परमार राजा भोज ने की थी। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से धार मध्य प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण शहर है। बेरन पहाड़ियों से घिरे इस शहर को झीलों और हरे-भरे वृक्षों ने आच्छादित कर रखा है। इस शहर में अनेक हिन्दू और मुस्लिम स्मारकों के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक जमाने में मालवा की राजधानी रहा यह शहर धार किला और भोजशाला मन्‍दीर की वजह से पर्याप्त संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करने में सफल रहता है।[1]

यह एक प्राचीन नगर है, जिसकी उत्पत्ति राजा मुंज वाक्पति से जुड़ी है। दसवीं और तेरहवीं सदी के भारतीय इतिहास में धार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। नौवीं से चौदहवीं सदी में यह परमार राजपूतों के अधीन मालवा की राजधानी था। प्रसिद्ध राजा भोज (लगभग 1010-55) के शासनकाल में यह अध्ययन का विशिष्ट केंद्र था। उन्होंने इसे अत्यधिक प्रसिद्धि दिलाई। 14वीं सदी में इसे मुग़लों ने जीत लिया और 1730 में यह मराठों के कब्जे में चला गया, इसके बाद 1742 में यह मराठा सामंत आनंदराव पवार द्वारा स्थापित धार रियासत की राजधानी बना। धार की लाट मस्जिद या मीनार मस्जिद (1405) जैन मंदिरों के खंडहर पर निर्मित है। इसके नाम की उत्पत्ति एक विध्वंसित लौह स्तंभ (13वीं सदी) के आधार पर हुई। इस स्तंभ पर एक अभिलेख है जिसमें यहाँ 1598 में अकबर के आगमन का वर्णन है।

धार में कमाल मौलाना की भव्य समाधि और 14वीं या 15वीं शताब्दी में निर्मित एक मस्जिद भी है जो कमाल मौलाना की मस्जिद के नाम से विख्यात है। इसके नाम की उत्पत्ति यहाँ लगे हुए संस्कृत व्याकरण के नियम संबंधी उत्कीर्णित पत्थरों से हुई। इसके ठीक उत्तर में एक 14वीं सदी का किला है। कहा जाता है कि इसे मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने बनवाया था। इसमें राजा का महल भी था। 'मालवा की रानी' के रूप में वर्णित धार महलों, मंदिरों, महाविद्यालयों, रंगशालाओं और बगीचों के लिये प्रसिद्ध है। लाल बाग परिसर स्थित विक्रम ज्ञान मंदिर में भोज शोध संस्थान है। संस्थान में भोजकालीन साहित्य संकलित है। संस्थान के आयोजनों में पद्मश्री फड़के संगीत समारोह, बाल फ़िल्म समारोह, श्रेष्ठ नारी सम्मान समारोह, बुजुर्गों की स्वास्थ्य सेवा आधारित सुपर 60 प्लस विशेष उल्लेखनीय है। शहर में तीन पुस्तकालय, अस्पताल, संगीत महाविद्यालय और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से सम्बद्ध दो शासकीय महाविद्यालय भी है।

कृषि और खनिज

यह एक प्रमुख कृषि केंद्र है। ज्वार-बाजरा, मक्का, दालें और कपास यहाँ की प्रमुख फ़सलें है। माही, नर्मदा व चंबल नदी प्रणाली से सिंचाई की जाती है।

मुख्य आकर्षण

धार किला

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। नगर के उत्तर में स्थित यह किला एक छोटी पहाड़ी पर बना हुआ है। लाल बलुआ पत्थर से बना यह विशाल किला समृद्ध इतिहास के आइने का झरोखा है, जो अनेक उतार-चढ़ावों को देख चुका है। 14वीं शताब्दी के (1344 ) आसपास सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने यह किला बनवाया था। 1857 के विद्रोह दौरान इस किले का महत्व बढ़ गया था। क्रांतिकारियों ने विद्रोह के दौरान इस किले पर अधिकार कर लिया था। बाद में ब्रिटिश सेना ने किले पर पुन: अधिकार कर लिया और यहां के लोगों पर अनेक प्रकार के अत्याचार किए। हिन्दु, मुस्लिम और अफगान शैली में बना यह किला पर्यटकों को लुभाने में सफल होता है।धार के किले में खरबूजा महल है जहां पर पेशवा बाजीराव द्वितीय का जन्म हुआ था ।किले के पास बंदी छोड़ बाबा की दरगाह है ऐसी मान्यता है कि यहां पर मनौती लेने से कोर्ट कचहरी से मुक्ति मिलती है।

भोजशाला मंदिर

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धार से ब्रिटिश संग्रहालय ले जायी गयी देवी अम्बिका की मूर्ति

भोजशाला मूल रूप से एक मंदिर हैं जिसे राजा भोज ने बनवाया था। लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना तो यह क्षेत्र उसके साम्राज्य में मिल गया। उसने इस मंदिर को मस्जिद में तब्दील करवा दिया। भोजशाला मंदिर में संस्कृत में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं जो इसके इसके मंदिर होने की पुष्टि करते हैं।

अमझेरा

धार से लगभग 40 किलोमीटर दूर सरदारपुर तहसील में अमझेरा गांव स्थित है। इस गांव में शैव और वैष्णव संप्रदाय के अनेक प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। यहां के अधिकांश शैव मंदिर महादेव, चामुंडा, अंबिका को समर्पित हैं। लक्ष्मीनारायण और चतुभरुजंता मंदिर वैष्णव संप्रदाय के लोकप्रिय मंदिर हैं। गांव के निकट ही ब्रह्म कुंड और सूर्य कुंड नामक दो टैंक हैं। गांव के पास ही राजपूत सरदारों को समर्पित तीन स्मारक बने हुए हैं। जोधपुर के राजा राम सिंह राठौर ने 18-19वीं शताब्दी के बीच यहां एक किला भी बनवाया था। किले में इस काल के तीन शानदार महल भी बने हुए हैं। किले के रंगमहल में बनें भिति‍चित्रों से दरबारी जीवन की झलक देखने को मिलती है। कहा जाता है कि यहीं श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण किया था। यहाँ पूर्व-उत्तर में अमका-झमका का मन्दिर है जहाँ रुक्मिणी प्रतिदिन पूजन के लिए जाती थी। कानवन धार से 35 कीमी दूर कण्व ऋषि की पावन भूमी कानवन लेबड़ नयागांव 4 लेन पर है यहाँ का माँ कालिका का मन्दिर नागेश्वर महादेव का मन्दिर नीलकंठेश्वर मन्दिर माँ संतोषी का मन्दिर चामुंडा का मन्दिर गांगी नदी व गांग माता का मन्दिर प्रशिद्ध

1857 की क्रांति के दौरान धार के अमझरा की ओर से राव बख्तावर जिन्हें क्रांति का नेतृत्व किया। उन्हें लालगढ़ के किले के पास से पकड़कर10 फरवरी को 1858 में इंदौर छावनी में फांसी दी गई थी।

बाघ गुफाएं

साँचा:main इन गुफाओं का संबंध बौद्ध मत से है। यहां अनेक बौद्ध मठ और मंदिर देखे जा सकते हैं। अजंता और एलोरा गुफाओं की तर्ज पर ही बाघ गुफाएं बनी हुई हैं। इन गुफाओं में बनी प्राचीन चित्रकारी मनुष्य को हैरत में डाल देती है। इन गुफाओं की खोज 1818 में की गई थी। माना जाता है कि दसवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के पतन के बाद इन गुफाओं को मनुष्य ने भुला दिया था और यहां बाघ निवास करने लगे। इसीलिए इन्हें बाघ गुफाओं के नाम से जाना जाता है। बाघ गुफा के कारण ही यहां बसे गांव को बाघ गांव और यहां से बहने वाली नदी को बाघ नदी के नाम से जाना जाता है।

मोहनखेडा

मोहनखेडा एक पवित्र जैन तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है जो धार से लगभग 47 किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर-अहमदाबाद हाइवे पर स्थित इस तीर्थस्थल की स्थापना पूज्य गुरुदेव श्री राजेन्द्र सुरीशस्वामी महाराज साहब ने 1940 के आसपास की थी। आचार्य देव श्री विद्याचन्द्र सुरीशश्‍वरजी महाराज ने इसे नया और कलात्मक रूप प्रदान किया। भगवान आदिनाथ की 16 फीट ऊँची प्रतिमा यहाँ के शोध शिखरी जिनालय में स्थापित है। यहाँ बना समाधि मंदिर भी लोकप्रिय है। यह मंदिर राजेन्द्र सुरीशश्‍वरजी, यतीन्द्र सुरीशश्‍वरजी और श्री विद्याचन्द्र सुरीशश्‍वरजी को समर्पित है।

आवागमन

  • वायु मार्ग - धार का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, मुम्बई, भोपाल और ग्वालियर आदि शहरों से नियमित फ्लाइटों के माध्यम से जुड़ा है।
  • रेल मार्ग- रतलाम और इंदौर यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है। देश के प्रमुख शहरों से यह रेलवे स्टेशन अनेक रेलगाड़ियों के माध्यम से नियमित रूप से जुड़ा हुआ है।
  • सड़क मार्ग- धार मध्य प्रदेश के अनेक शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इंदौर, मांडू, मऊ, रतलाम, उज्‍जैन और भोपाल से मध्य प्रदेश परिवहन निगम की नियमित बसें धार के लिए चलती हैं।

इन्हें भी देखें

मानतुंग गिरी अतिशय क्षेत्र

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
  2. "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293