हेलिओडोरस स्तंभ
हेलिओडोरस स्तंभ (Heliodorus Pillar) भारत के मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में आधुनिक बेसनगर के पास स्थित पत्थर से निर्मित प्राचीन स्तम्भ है। इसका निर्माण ११० ईसा पूर्व हेलिओडोरस (Heliodorus) ने कराया था जो भारतीय-यूनानी राजा अंतलिखित (Antialcidas) के शुंग राजा भागभद्र के दरबार में दूत थे। यह साँची के स्तूप से ५ मील की दूरी पर स्थित है।
यह स्तंभ लोकभाषा में खाम बाबा के रूप में जाना जाता है। एक ही पत्थर को काटकर बनाया गया, यह स्तंभ ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। स्तंभ पर पाली भाषा में ब्राम्ही लिपि का प्रयोग करते हुए एक अभिलेख मिलता है। यह अभिलेख स्तंभ इतिहास बताता है। नवें शुंग शासक महाराज भागभद्र के दरबार में तक्षशिला के यवन राजा अंतलिखित की ओर से दूसरी सदी ई. पू. हेलिओडोरस नाम का राजदूत नियुक्त हुआ। इस राजदूत ने वैदिक धर्म की व्यापकता से प्रभावित होकर भागवत धर्म स्वीकार कर लिया। उसी ने भक्तिभाव से एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया तथा उसके सामने गरुड़ ध्वज स्तंभ बनवाया। इस स्तंभ से प्राप्त अभिलेख इस प्रकार है :-
- देव देवस वासुदेवस गरुड़ध्वजे अयं
- कारिते इष्य हेलियो दरेण भाग
- वतेन दियस पुत्रेण नखसिला केन
- योन दूतेन आगतेन महाराज स
- अन्तलिकितस उपता सकारु रजो
- कासी पु (त्र)(भा) ग (भ) द्रस त्रातारस
- वसेन (चतु) दसेन राजेन वधमानस।
- (अर्थ : देवाधिदेव वासुदेव का यह गरुड़ध्वज (स्तंभ) तक्षशिला निवासी दिय के पुत्र भागवत हेलिओवर ने बनवाया, जो महाराज अंतिलिकित के यवन राजदूत होकर विदिशा में काशी (माता) पुत्र (प्रजा) पालक भागभद्र के समीप उनके राज्यकाल के चौदहवें वर्ष में आये थे।)
वर्तमान में स्तंभ के पास निर्मित मंदिर अस्तित्व में नहीं रहा। पर पुरातात्विक प्रमाण इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राचीन काल में यहाँ एक वृत्तायत मंदिर था, जिसकी नींव २२ सेंटीमीटर चौड़ी तथा १५ से २० सेंटीमीटर गहरी मिली है। गर्भगृह का क्षेत्रफल ८.१ ३ मीटर है। प्रदक्षिणापथ की चौड़ाई २.५ मी. है। इसका बाहरी दीवाल भी वृत्तायत है। पूर्व की ओर स्थित सभामंडप .७ ४.८५ मीटर आयताकार है। यहीं से मंदिर का द्वार था। नींव में लकड़ी के खम्भे होने का प्रमाण मिला है। पुरातात्विक प्रमाण यह भी बताते हैं कि यहाँ पहले कुछ ८ स्तंभ थे, जिसमें पहले गरुड़, ताड़पत्र, मकर आदि के चिंह बने हुए थे। इन स्तंभों में सात स्तंभ एक ही कतार में मंदिर के पूर्व भाग में उत्तर- दक्षिण की तरफ लगे थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। आठवां स्तंभ ही हेलिओडोरस स्तंभ के रूप में जाना जाता है।
पहले के मंदिर के भग्नावशेष पर ही दूसरी सदी ई. पू. में तथा नया मंदिर बनाया गया। यह मंदिर लगभग पहली शताब्दी ईसा पूर्व में बाढ़ में बह गया। इस स्थान पर बना यह मंदिर, वासुदेव का संसार प्राचीनतम माना जाता है।
वैसनगर के पूर्व में, ईसापूर्व तीसरी शताब्दी के स्तूप भी मिले है। विद्धान इन बचे हुए स्तूपों को साँची के भी पूर्व का मानते हैं।