यश चोपड़ा
यश चोपड़ा | |
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जन्म |
27 सितम्बर 1932 लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु |
21 अक्टूबर 2012 मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
व्यवसाय | फिल्म निर्देशक, फिल्म निर्माता व पटकथा लेखक |
कार्यकाल | 1959–2012 |
जीवनसाथी | पामेला चोपड़ा (1970–2012) |
बच्चे |
आदित्य चोपड़ा उदय चोपड़ा |
संबंधी | बी० आर० चोपड़ा एवं यश चोपड़ा (भाई) |
यश चोपड़ा (अंग्रेजी: Yash Chopra जन्म: 27 सितम्बर 1932 – मृत्यु: 21 अक्टूबर 2012[१]) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध निर्देशक थे। बाद में उन्होंने कुछ अच्छी फिल्मों का निर्माण भी किया। उन्होंने अपने भाई बी० आर० चोपड़ा और आई० एस० जौहर के साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म जगत में प्रवेश किया। 1959 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म धूल का फूल बनायी थी। उसके बाद 1961 में धर्मपुत्र आयी। 1965 में बनी फिल्म वक़्त से उन्हें अपार शोहरत हासिल हुई। उन्हें फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कई पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए। बालीवुड जगत से फिल्म फेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के अतिरिक्त भारत सरकार ने उन्हें 2005 में भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया।
व्यक्तिगत जीवन
यश चोपड़ा का जन्म 27 सितम्बर 1932 को ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रान्त के ऐतिहासिक नगर लाहौर में हुआ था। उनका पूरा नाम यश राज था जिसमें से उन्होंने यश अपना लिया और राज को राज़ ही रहने दिया। यशराज ने बम्बई आकर एक सहायक निर्देशक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। यह काम उन्होंने आई० एस० जौहर के साथ बतौर उनके सहायक बनकर किया था। बाद में उनके बड़े भाई बी० आर० चोपड़ा ने, जो बम्बई में पहले ही से स्थापित हो चुके थे, उन्हें 1959 में अवैध सम्बन्धों के भावों को आगृत करने वाले नाटक पर आधारित फिल्म "धूल का फूल" के निर्देशन के साथ स्वतन्त्र रूप से फिल्मी कैरियर की शुरुआत करने में सहायता की। इसके पश्चात एक अन्य सामाजिक नाटक "धर्मपुत्र" पर आधारित फिल्म का निर्माण 1961 में करके एक और धमाका किया। इन दोनों फिल्मों की सफलता से प्रोत्साहित चोपड़ा भाइयों ने अन्य भी कई फिल्में उन्नीस सौ साठ के दशक में बनायीं। 1965 में "वक़्त" की अपार लोकप्रियता से उत्साहित होकर उन्होंने स्वयं की फिल्म निर्माण कम्पनी "यश राज फिल्म्स" की स्थापना 1973 में कर डाली।
1973 में "दाग" फिल्म बनाने के दो साल बाद ही 1975 में "दीवार", 1976 में "कभी कभी" और 1978 में "त्रिशूल" जैसी फिल्में बनाकर अभिनेता के रूप में उन्होंने अमिताभ बच्चन को बालीवुड में स्थापित किया। 1981 में "सिलसिला", 1984 में "मशाल" और 1988 में बनी "विजय" उनकी यादगार फिल्मों के रूप में चिह्नित हैं। 1989 में उन्होंने वाणिज्यिक और समीक्षकों की दृष्टि में सफल फिल्म "चाँदनी" का निर्माण किया जिसने बॉलीवुड में हिंसा के युग के अन्त और हिन्दी फिल्मों में संगीत की वापसी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
1991 में उन्होंने क्लासिकल फिल्म "लम्हे" बनायी जिसे फिल्म जगत के समस्त आलोचकों द्वारा और स्वयं चोपड़ा की दृष्टि में उनके सबसे अच्छे काम के रूप में स्वीकार किया गया। 1993 में नवोदित कलाकार शाहरुख खान को लेकर बनायी गयी फिल्म "डर" ने उनका सारा डर दूर कर दिया। 1997 में "दिल तो पागल है", 2004 में "वीरजारा" और 2012 में "जब तक है जान" का निर्माण करके 2012 में ही उन्होंने फिल्म-निर्देशन से अपने संन्यास की घोषणा भी कर दी थी। चलचित्र निर्माण और वितरण कम्पनी के रूप में यश राज फिल्म्स 2006 से लगातार भारत की सबसे बड़ी फिल्म-कम्पनी है। यही नहीं, यश चोपड़ा जी "यश राज स्टूडियो" के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में भी जब तक बालीवुड रहेगा, जाने जायेंगे।
उनका फिल्मी कैरियर पाँच दशकों से भी अधिक का रहा है जिसमें उन्होंने 50 से अधिक फिल्में बालीवुड को दीं। उन्हें हिन्दी सिनेमा के इतिहास में एक ऐसे फिल्म निर्माता के रूप में जाना जाता है जिन्होंने छह बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और कुल मिलाकर ग्यारह बार में से चार बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिये फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने उन्हें 2001 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया और 2005 में भारतीय सिनेमा के प्रति उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया।
प्रमुख फिल्में
बतौर निर्माता
वर्ष | फ़िल्म | टिप्पणी |
---|---|---|
2007 | लागा चुनरी में दाग | |
2000 | मोहब्बतें | |
1982 | सवाल |
बतौर निर्देशक
वर्ष | फ़िल्म | टिप्पणी |
---|---|---|
2004 | वीर-ज़ारा | |
1997 | दिल तो पागल है | |
1993 | डर | |
1992 | परम्परा | |
1991 | लम्हे | |
1989 | चाँदनी | |
1988 | विजय | |
1981 | सिलसिला | |
1975 | दीवार | |
1973 | जोशीला | |
1965 | वक्त | |
1961 | धर्मपुत्र | |
1959 | धूल का फूल |
यश चोपड़ा के योगदान पर टिप्पणी
यश चोपड़ा जी के फिल्मी योगदान को लेकर किसी व्यक्ति ने उनकी फिल्मों के नाम का उपयोग करते हुए लम्हा-लम्हा शीर्षक से एक काव्यात्मक टिप्पणी की है:
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले।
फूल, धूल की दीवारों पर नये खिले॥
वक्त के त्रिशूलों से पड़ा जब कभी साहस ढीला,
बढ़ा तुरत लेकर मशाल जीवन जोशीला,
कभी-कभी तो इत्तफ़ाक़ से दाग़ भी मिले।
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले।।
कभी राह में टकराये जब काले पत्थर,
छोड़ दिया तब परम्परा का सारा ही डर,
कोशिश रण में इतनी, ऐसी ज़ोर की बनी,
मिली विजय फिर बिखर गयी हर जगह चाँदनी,
मिटे आदमी-इंसानों के सभी फ़ासले।
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले।।
लम्हा-लम्हा चला किये बस यही सिलसिले...
नामांकन और पुरस्कार
यश चोपड़ा मेमोरियल अवार्ड 2016 :- रेखा
2017:-शाहरुख खान 2018:-आशा भोसले
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
- 1990 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म, "चांदनी" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1994 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म, "डर" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1996 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म, "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" (निर्माता) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1998 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म "दिल तो पागल है" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 2005 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म "वीर - जारा" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1990 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म, "चांदनी" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1994 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म, "डर" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1996 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म, "दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे" (निर्माता) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 1998 में सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म "दिल तो पागल है" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
- 2005 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म "वीर - जारा" के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार |
Filmfare Awards
- 1965, Filmfare Best Director Award, Waqt
- 1969, Filmfare Best Director Award, Ittefaq
- 1973, Filmfare Best Director Award, Daag
- 1975, Filmfare Best Director Award, Deewar
- 1991, Filmfare Best Movie Award, Lamhe
- 1995, Filmfare Best Movie Award, Dilwale Dulhania Le Jayenge
- 1997, Filmfare Best Movie Award, Dil To Pagal Hai
- 2004, Filmfare Best Movie Award, Veer-Zaara
- 2006, Filmfare Power Award
- 2007, Filmfare Power Award
- 2008, Filmfare Power Award
Honours and recognitions
In addition to France's highest civilian honour, Legion of Honour,[२] he is the first Indian to be honored at BAFTA in 59-year history of the academy.[३]
Other honors:
Handpicked by the British Film Institute for a book written by Rachel Dwyer in their ‘World Directors Series’. This book showcases the glorious five-decade career of Yash Chopra.[४]
- Padma Bhushan in 2005.
- Pusan International Film Festival - Asian Filmmaker of the Year, 2009[५]
- Honoured along with the Egyptian comedy superstar Adel Imam and the Oscar-winning actor Morgan Freeman as the Asian, Arab and Hollywood honorees in the Dubai International Film Festival "In the Spotlight", which honors the work of eminent actors, producers and directors from around the world for their distinguished service to the film industry.[६]
- Honoured by the Swiss Government for rediscovering Switzerland and recently, he was presented a Special Award by Ursula Andress on behalf of the Swiss Government.[७]
- Currently on the Advisory Board of the Information & Broadcasting Ministry of the भारत सरकार.[४]
- Founder Trustee of Film Industry Welfare Trust established in the year 1996.[४]
- Vice President of the Film Producers’ Guild of India for the last 10 years.[७]
- Received the BBC Asia Awards twice – in 1998 and 2001 for his outstanding contribution in films.[४]
- Dr. Dadabhai Naoroji Millennium Lifetime Achievement award in 2001.[४]
- Certificate of Recognition from the British Tourist Authority and British Film Commission for promoting tourism in the UK through his films.[४]
- Vocational Excellence Award by the Rotary Club[४]
- Outstanding Achievement Awards by the apex bodies of Indian Industry – like the CII (Confederation of Indian Industry).[४]
- He was honoured by the International Indian Film Academy (IIFA) at Malaysia for his outstanding contribution to Indian cinema.[४]
- Honoured by NAASCOM (National Association of Software and Service Companies) and AIAI (All India Association of Industries) for his outstanding achievements.[७]
- He has also been awarded the Priyadarshini Award for his outstanding contribution to Indian cinema.[४]
- Dadasaheb Phalke Award for 2001, the topmost and the highest honour given in the Indian film industry.[४]
- He had been given the Maharastra state government’s Raj Kapoor and V. Shantaram’ Awards, in recognition of his impressive contributions to the Hindi film industry.[८]
- Lifetime Achievement Award at the 4th Pune International Film Festival 2006 [P.I.F.F.][९]
- A lifetime membership to BAFTA for his contribution to the Indian film industry. He is the first Indian to be honored at BAFTA in 59-year history of the academy.[३]
- Honorary Doctorate in Art by the Leeds Metropolitan University in Yorkshire[१०]
- FIAPF Award for Outstanding Achievement in Film at the 2008 Asia Pacific Screen Awards.
- Honorary Doctorate from the School of Oriental and African Studies, July 2010.[११]
- National Kishore Kumar Award by the Government of Madhya Pradesh[१२]
- Swiss Ambassador's Award 2010 for his contribution in promoting 'Brand Switzerland' through his movies.[१३]
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite news
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