कुमाऊँनी भाषा
कुमाऊँनी | |||
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साँचा:lang | |||
देवनागरी में लिखा नाम | |||
बोलने का स्थान | भारत | ||
तिथि / काल | 2011 जनगणना | ||
क्षेत्र | कुमाऊँ | ||
समुदाय | कुमाऊँनी | ||
मातृभाषी वक्ता | 20 लाख | ||
भाषा परिवार | |||
लिपि |
देवनागरी शारदा लिपि (ऐतिहासिक) | ||
भाषा कोड | |||
आइएसओ 639-3 | kfy | ||
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कुमांऊँनी भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ क्षेत्र में बोली जाने वाली एक बोली है। इस बोली को हिन्दी की सहायक पहाड़ी भाषाओं की श्रेणी में रखा जाता है। कुमांऊँनी भारत की ३२५ मान्यता प्राप्त भाषाओं में से एक है और २६,६०,००० (१९९८) से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। उत्तराखण्ड के निम्नलिखित जिलों - अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत, ऊधमसिंह नगर के अतिरिक्त असम, बिहार, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब, तथा हिमाचल प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में भी बोली जाती है। इसका आईएसओ कोड: kfy है।[१]
कुमांऊँनी बोली का स्वरूप
कुमांऊँनी बोली एक अर्वचीन बोली है। लिपिबद्ध न हो सकने के कारण आज भी जस की तस आपसी वार्तालाप के माध्यम तक ही सीमित है। मध्य पीढ़ी के लोग कुमांऊँनी और हिन्दी दोनो भाषाओं में संवाद करते हैं। कुमांऊँनी, देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। लिपिबद्ध न हो सकने के कारण कुमांऊँनी भाषा का कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है।
कुमांऊँनी बोली के प्रकार तथा भेद
कुमांऊँनी भाषा यानि बोली, कुमांऊँ क्षेत्र में विभिन्न रुपांतरणों में बोली जाती है जैसे:-
- अल्मोड़ा और उत्तरी नैनीताल में मध्य कुमांऊँनी।
- पिथौरागढ़ में उत्तर पूर्वी कुमांऊँनी।
- दक्षिण पूर्वी नैनीताल में दक्षिण पूर्वी कुमांऊँनी।
- पश्चिमी अल्मोड़ा और नैनीताल में पश्चिमी कुमांऊँनी।
कुमांऊँ क्षेत्र में लगभगग २० प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:- जोहारी, मझ कुमारिया, दानपुरिया, अस्कोटि, सिराली, सोरयाली, चुगरख्यैली, कमईया, गंगोला, खसपरजिया, फल्दकोटि, पछाइ, रौचभैसि.
कुमांऊँनी बोली की उपबोलियाँ
- काली कुमांऊँनी, केन्द्रीय कुमांऊँनी।
- उत्तर पूर्वी कुमांऊँनी।
- दक्षिण पूर्वी कुमांऊँनी।
- अस्कोटि।
- भाभरी (रामपुर में)।
- चुगरख्यैली।
- दनपुरिया।
- गंगोला।
- जोहारी
- खसपरजिया
- कुमइयाॅं
- पछाइ (पछे)
- पाली पछांऊॅं की कुमांऊॅंनी
- पश्चिमी कुमाऊँनी
- फल्दकोटि
- रहू चौभैसी
- सिराली (सिरौय्लि)
- सोरयाली
- बैतडा
- डोटियाली
कुमांऊँनी बोली का लुप्त होता स्वरूप
कुमांऊँनी बोली शनै-शनै लगभग लुप्त होने के कगार पर है। जिसके कई कारण है। पलायन, शहरीकरण, लिपिबद्ध न हो पाना इत्यादि। कुमांऊँनी जानने वाले लगभग सभी लोग हिन्दी समझ सकते हैं। हिन्दी भाषा के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव के कारण यह भाषा तेजी़ से लुप्त होने की स्थिति में पहुँच चुकी है। नगरीय क्षेत्रों में बहुत कम लोग यह भाषा बोलते हैं और बहुत से मामलों में यदि माता पिता कुमांऊँनी या गढ़वाली जानते भी हैं तो उनके बच्चे इन भाषाओं को नहीं जानते हैं। बहुत से अन्य मामलों में बच्चे कुमांऊँनी समझ तो सकते हैं लेकिन बोल नहीं सकते। बहुत से कुमाऊँनी परिवारों में पुरानी दो पीढ़ी के लोग जब नई पीढ़ी के लोगों से कुमांऊँनी में संवाद करते हैं तो उन्हें उत्तर हिन्दी में मिलता है।
कुमांऊँ के प्रमुख लेखक व साहित्यकार
- सुमित्रानंदन पंत
- शैलेश मटियानी)
- शिवानी
- हिमांशु जोशी
- पंकज बिष्ट
- श्याम जोशी
- ईला चन्द्र जोशी