शिवानी
गौरा पंत | |
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जन्म | १७ १९२३ राजकोट, गुजरात साँचा:flag/core |
मृत्यु | 21, २००३साँचा:age) नई दिल्ली साँचा:flag/core | (उम्र
उपनाम | शिवानी |
व्यवसाय | उपन्यासकार |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शैली | उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा |
शिवानी हिन्दी की एक कहानीकार एवं उपन्यासकार थीं। शिवानी का वास्तविक नाम 'गौरा पंत' था, किन्तु ये 'शिवानी' नाम से लेखन करती थीं। शिवानी का जन्म १७ अक्टूबर १९२३ को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई। साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्याधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ।
साहित्य क्षेत्र में योगदान
हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी शख्सियत रहीं, जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही। शिवानी अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक-संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। उनकी लिखी कृृृृतियों में कृष्णाकली, भैरवी, आमादेेर शान्तिनिकेतन[१], विषकन्या, चौदह फेेरे आदि प्रमुख है। उन्होंने अपनी कृतियों में नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया है।
कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है। वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा[२] जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था।
उनकी कृतियों से यह झलकता है, कि उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की। शिवानी की कृतियों में चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है। वह चरित्र को शब्दों में कुछ इस तरह पिरोकर पेश करती थीं जैसे पाठकों की आंखों के सामने राजा रवि वर्मा[३] का कोई खूबसूरत चित्र तैर जाए। उन्होंने संस्कृत निष्ठ हिंदी का इस्तेमाल किया। जब शिवानी का उपन्यास कृष्णकली [धर्मयुग] में प्रकाशित हो रहा था तो हर जगह इसकी चर्चा होती थी। मैंने उनके जैसी भाषा शैली और किसी की लेखनी में नहीं देखी। उनके उपन्यास ऐसे हैं जिन्हें पढकर यह एहसास होता था कि वे खत्म ही न हों। उपन्यास का कोई भी अंश उसकी कहानी में पूरी तरह डुबो देता था।
भारतवर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास का बहुत प्यारा पन्ना थीं। अपने समकालीन साहित्यकारों की तुलना में वह काफी सहज और सादगी से भरी थीं। उनका साहित्य के क्षेत्र में योगदान बडा है
रचनाएँ
उपन्यास
कृष्णकली, कालिंदी[४], अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश
कहानी संग्रह
शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी अपराधिनी,पुष्पहार,विषकन्या
लाल हवेली (1965), पुष्पहार (1969), अपराधिनी (1972), रथ्या (1976), स्वयं सिद्ध (1977), रतिविलाप (1977), पुष्पहार (1978)
संस्मरण
अमादेर शांति निकेतन, समृति कलश, वातायन, जालक
अन्य
- यात्रा वृतांत
चरैवैति, यात्रिक
- आत्मकथा
सुनहुँ तात यह अमर कहानी
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- गद्यकोश पर
- A Conservative Rebel: Memories of an Unusual Mother, a Memoir, by Ira Pande
- A conversation with Ira Pande on her mother Shivani
- Didda, My Mother's Voice. Ira Pande, January 2005, Penguin. ISBN 0-14-303346-8.