कत्यूरी राजवंश

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कार्त्तिकेयपुर (कत्युर) राज्य
डोटी-कुर्मांचल
स्वतंत्र राज्य

 

700 ई–1050 ई
 

 

राजधानी जोशीमठ (बाद में बैजनाथ स्थानान्तरित)[१][२]
भाषाएँ कुमायूँनी, संस्कृत, डोटयाली
धार्मिक समूह बौद्ध धर्म
हिन्दू धर्म
शासन राजतंत्रसाँचा:ns0
राजा
 -  700–849 ई वसुदेव
 -  850–870 ई बसन्तन देव (बैजनाथ मंदिर, उत्तराखंड का निर्माता)
 -  870–880 ई खर्पर देव
 -  955–970 ई भुव देव
 -  1050 ई तक बीर देव
इतिहास
 -  स्थापित 700 ई
 -  राजधानी को कार्त्तिकेयपुर, बैजनाथ ले जाना 850 ई
 -  अंत 1050 ई
आज इन देशों का हिस्सा है: साँचा:flag

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कत्यूरी राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक मध्ययुगीन राजवंश था। इस राजवंश के बारे में में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज हैं और इसलिए वे सूर्यवंशी हैं। किन्तु, बहुत से इतिहासकार उन्हें कुणिन्द शासकों से जोड़ते हैं तथा कुछ इतिहासकार उन्हें खस मूल से भी जोड़ते है, जिनका कुमाऊँ क्षेत्र पर ६ठीं से ११वीं सदी तक शासन था। कत्यूरी राजाओं ने 'गिरीराज चक्रचूड़ामणि' की उपाधि धारण की थी। उनकी पहली राजधानी जोशीमठ में थी, जो जल्द ही कार्तिकेयपुर में स्थानान्तरित कर दी गई थी।

कत्यूरी राजा भी शक वंशावली के माने जाते हैं, जैसे राजा शालिवाहन, को भी शक वंश से माना जाता है। किन्तु, बद्री दत्त पाण्डेय जैसे इतिहासकारों का मानना है कि कत्यूरी, अयोध्या से आए थे।

उन्होंने अपने राज्य को 'कूर्माञ्चल' कहा, अर्थात 'कूर्म की भूमि'। कूर्म भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिससे इस स्थान को इसका वर्तमान नाम, कुमाऊँ मिला। कत्युरी राजा का कुलदेवता स्वामी कार्तिकेय (मोहन्याल) नेपाल के बोगटान राज्य मे विराजमान है। कत्यूरी वंश के संस्थापक वसंतदेव थे.

इतिहास

उत्पत्ति

कत्यूरी वंश की उत्पत्ति के कई अलग-अलग दावे किए जाते रहे हैं। कुछ इतिहासकार उन्हें कुणिंद वंश से संबंधित मानते हैं, जिनके सिक्के आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पाए गए हैं। राहुल सांकृत्यायन ने उनके पूर्वजों को शक वंश से संबंधित माना है, जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पहले भारत में थे; सांकृत्यायन ने आगे इन्हीं शकों की पहचान खस वंश से की है।[३] ई टी एटकिंसन ने भी अपनी पुस्तक हिमालयन गजेटियर के पहले खंड में प्रस्ताव दिया है कि कत्यूरी कुमाऊँ के मूल निवासी हो सकते हैं, जिनकी जड़ें गोमती के तट पर तब खंडहर हो चुके नगर करवीरपुर में थीं।[४]

यह तथ्य, हालांकि, बद्री दत्त पाण्डेय सहित विभिन्न इतिहासकारों द्वारा नकारा गया है। पाण्डेय ने अपनी पुस्तक, कुमाऊँ का इतिहास में, कत्यूरियों को अयोध्या के शालिवाहन शासक घराने का वंशज माना है।[५][६] उन्होंने खस वंश को इन हिमालयी क्षेत्रों का मूल निवासी बताया है, जो वेदों की रचना से पहले ही यहां आकर बस गए थे, जिसके बाद कत्यूरियों ने उन्हें पराजित कर क्षेत्र में अपने राज्य की स्थापना की।[७]

साम्राज्य

पतन

डोटी बोगटान के कत्युरी वंशज के रजवार व उनका देवाताके इतिहास मे ए मान्यता है कि कार्तिकेय देवताका आसन सुनका चादर ,सुनका श्रीपेच, सुनका चम्मर ,सुनका लट्ठी सुनका जनै ,सुनका बाला सुनका मुन्द्रा सुनका थालि था । ये कत्युरी राजा गुप्तराजा बिक्रमदित्यका वंशज है । उज्जैन- पाटालीपुत्र  से कुमाऊ गडवाल आए है । यी राजाके पास सोना चांदी बहुत था यहि सोना चांदी लुट्नेके लिए । क्रचाल्ल ने शाके ११४५ मे कत्युर घाँटी का रणचुला कोट मे आक्रमण किया था । डोटी जिल्ला साना गाउँ मे बि.स १९९९ साल मे ७ धार्नी (३५ के जी ) सोना मिट्टीका अन्दर वर्तनमे रखा हुआ मिला था ।[८] नेपाल (गोर्खा) सरकार इस धनको राज्यकोष मे दाखिल किया था यहि धन (सोना) रणचुलाकोट से लुटा सोना मे से का बचा सोना होनाका मान्यता बि डोटी मे है । क्रचाल्ल राजा खस राजा था । उसका देवता मस्टो था उसिसे उसने रणचुलाकोटका बैदिक देवताका मुर्ति तोडा फोडा था । अब बि टुटा फूटा मुर्ति रणचुला कोट क्षेत्रमे पडा है । बिरदेव राजा का तानासाही होना रैतीको सोषण कर्ना वात झुट है । सोना चांदी लुट्नेको लिए खस राजाने कत्युरी राजा पर शाके ११४५ मे आक्रमण किया इसी आक्रमण से कार्तिकेयापुर राज्य धोस्त हुवा है ।[९]

शासक

बागेश्वर, पांडुकेश्वर इत्यादि से प्राप्त शिलालेखों से निम्न कत्यूरी राजाओं के नाम ज्ञात होते हैं:[१०]

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  • बसन्तदेव
  • खर्परदेव
  • कल्याणराजदेव
  • त्रिभुवनराजदेव
  • निम्बरदेव
  • ईष्टगणदेव
  • ललितशूरदेव
  • भूदेव
  • सलोड़ादित्या
  • इच्छरदेव
  • देशटदेव
  • पद्मत्देव
  • सुभिक्षराजदेव

शिलालेख

कत्यूरी राजाओं के बारे में अधिकांश विवरण उनके शिलालेखों से पाए जाते हैं। ये शिलालेख जागेश्वर, बैजनाथ, बागेश्वर, बद्रीनाथ और पांडुकेश्वर के मंदिरों में पाए गए हैं। इनमें से पांच ताम्रपत्र और उनके समय का एक अभिलेख मुख्य है।[११]

कुमायूँ का ताम्रपत्र

कुमायूँ का यह ताम्रपत्र विजयेश्वर महादेव को एक गाँव का दान करने के प्रमाण पत्र के संबंध में है। इसमें तीन पीढ़ियों के राजाओं के नाम लिखे गए हैं - राजा सलोनादित्यदेव, उनके पुत्र राजा इच्छत्देव और उनके पुत्र राजा देश्टदेव। उनकी राजधानी कार्तिकेयपुर के रूप में लिखी गई है। इस ताम्रपत्र में अंकित संवत ५वां है।[१२]

बागेश्वर का शिलालेख

बागेश्वर में पाया गया एक शिलालेख बागनाथ मंदिर का है, हालाँकि शिलालेख में इस स्थान का नाम व्याघ्रेश्वर लिखा गया है। शिलालेख संस्कृत में लिखा गया है, और यह थोड़ा टूटा हुआ है। यह शिलालेख राजा भूदेव के समय का है। इसमें, उनके नाम के अलावा, सात अन्य राजाओं के नाम हैं जो दानदाता के पूर्वज थे।[१३] साँचा:div col

  1. वासन्तदेव
  2. खड़पाड़देव
  3. कल्याणराजदेव
  4. त्रिभुवनराजदेव
  5. निम्बारतदेव
  6. ईष्टराणादेव
  7. ललितेश्वरदेव
  8. भूदेवदेव

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इस शिलालेख में इन सभी आठों को गिरिराज चक्रचूड़ामणि या हिमालय के चक्रवर्ती राजा कहा गया है। साथ ही इनमें महिलाओं के नाम भी दिए गए हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि तब परदे का कोई रिवाज नहीं था। "काली उनके समीप नहीं आ सकीं", कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि वे उत्साही शिव के अनुयायी थे, और काली की पूजा तथा पशु-बलि के खिलाफ थे।[१४]

पांडुकेश्वर के शिलालेख

बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित पांडुकेश्वर के मंदिर में चार ताम्रपत्र हैं। इनमें से दो में बागेश्वर शिलालेख में उल्लिखित पांचवें, छठे और सातवें राजाओं के नाम हैं। एक ताम्रपत्र में राजाओं की तीन पीढ़ियाँ लिखी हैं। इसमें चौथी पीढ़ी में देश्टदेव के पुत्र पद्मत्देव का उल्लेख किया गया है। ताम्रपत्र में अंकित संवत २५वां है, और राजधानी कार्तिकेयपुर है। दूसरे ताम्रपत्र में एक और पीढ़ी का उल्लेख किया गया है यानी सुभिक्षराजदेव को राजा पद्मदेव का पुत्र कहा गया है। उन्होंने अपने शहर का नाम सुभिक्षपुर बताया है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस शहर की स्थापना इसी राजा ने अपने नाम पर की होगी। इसमें उल्लेखित संवत चौथा है। तीसरे ताम्रपत्र को राजा निम्बारतदेव द्वारा अंकित किया गया है। इसमें उनके बेटे इंगागदेव या ईष्टराणादेव और उसके बेटे ललितेश्वरदेव का भी उल्लेख किया गया है। ये तीनों राजा बागेश्वर शिलालेख से संबंधित आठ राजाओं में से हैं। ताम्रपत्र पर अंकित संवत २२वां है। चौथे ताम्रपत्र में राजाओं के नाम तीसरे ताम्रपत्र के समान ही हैं।[१५]

वास्तुकला

माना जाता है कि कत्युरी शासकों ने अनेक मन्दिर बनवाये जो आज के उत्तराखण्ड में स्थित हैं। वे सनातन हिन्दू धर्म के अनुयायी थे।[१६] Most of the ancient temples in Uttarakhand are architectural contributions by the Katyuri dynasty.[१७] जोशीमठ का वसुदेव मन्दिर, अनेक आश्रय तथा बद्रीनाथ के मार्ग मेम छोटे-छोटे पूजास्थलबनवाये। इसके अलावा लकुलेश मन्दिर, महिषासुरमर्दिनी मन्दिर, जगेश्वर का नवदुर्गा मन्दिर आदि का निर्माण भी कत्युरी राजाओं ने ही कराया। [१६] भुव देव (955-970) ने बैजनाथ और बागेश्वर में अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया। किन्तु सम्प्रति उनके संरचनाएँ नष्ट कर दी गयीं किन्तु उनकी परम्परा अभी तक चली आ रही है। [१६] कटरमाल में एक सूर्य मन्दिर भी है जो बहुत कम देखने को मिलता है। इसका निर्माण कटरमल्ल ने कराया था (सुदूर कोसू गाँव में)। इसके मुख्य मन्दिर के चारों ओर ४४ अन्य छोटे-छोटे मन्दिर हैं। [१८] The Katyuri Kings also build a temple known as Manila Devi near Sainamanur. साँचा:multiple image

सन्दर्भ

उद्धरण

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Handa 2002 24 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; :1 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. Handa 2002, पृष्ठ 22-26
  4. Handa 2002, पृष्ठ 24
  5. Pande 1993, पृष्ठ 154
  6. Handa 2002, पृष्ठ 25
  7. Pande 1993, पृष्ठ 152
  8. धन खोज तलास गरेर कार्वाही गर्ने जिम्मेवारी पाएका डिट्ठा टेकबहादुर रावल(अछाम)का अनुसार प्राचीन मल्लकालीन इतिहास, विभिन्न वंशावली तथा देवी देवताहरुको उत्पति, जीतसिह भण्डारी, पृष्ट ६१४,वि.स.२०६० से उतार )
  9. डोटी बोगटानके कत्युरी वंशजके राजपुत (ठकुरी) शौनक गोत्र के सुर्यवंशी (रघुवंशी) राज्वार लोगो का वंशावली इतिहास वर्णन व प्रा . डा. सुर्यमणि अधिकार खस साम्राज्यको इतिहास पेज ४४ का आधारपर
  10. साँचा:cite web
  11. Pande 1993, पृष्ठ 159
  12. Pande 1993, पृष्ठ 159
  13. Pande 1993, पृष्ठ 160
  14. Pande 1993, पृष्ठ 162
  15. Pande 1993, पृष्ठ 162
  16. Handa 2002, पृष्ठ 34–45
  17. साँचा:cite web
  18. साँचा:cite news

ग्रन्थ सूची

बाहरी कड़ियाँ

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