बागेश्वर

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बागेश्वर
—  नगर  —
बागेश्वर नगर एक विहंगम दृश्य
बागेश्वर नगर एक विहंगम दृश्य
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश साँचा:flag
राज्य उत्तराखण्ड
नगर पालिका अध्यक्ष श्री सुरेश सिंह खेतवाल (निर्दलीय)
विधायक श्री चंदन राम दास (भाजपा)
जनसंख्या ७,८०३ (साँचा:as of)
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साँचा:coord

बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। यह बागेश्वर जनपद का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। यहाँ बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे स्थानीय जनता "बागनाथ" या "बाघनाथ" के नाम से जानती है। मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा मेला लगता है। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान है। कुली-बेगार प्रथा के रजिस्टरों को सरयू की धारा में बहाकर यहाँ के लोगों ने अपने अंचल में गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन शुरवात सन १९२० ई. में की।

सरयू एवं गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर मूलतः एक ठेठ पहाड़ी कस्बा है। परगना दानपुर के 473, खरही के 66, कमस्यार के 166, पुँगराऊ के 87 गाँवों का समेकन केन्द्र होने के कारण यह प्रशासनिक केन्द्र बन गया। मकर संक्रान्ति के दौरान लगभग महीने भर चलने वाले उत्तरायणी मेले की व्यापारिक गतिविधियों, स्थानीय लकड़ी के उत्पाद, चटाइयाँ एवं शौका तथा भोटिया व्यापारियों द्वारा तिब्बती ऊन, सुहागा, खाल तथा अन्यान्य उत्पादों के विनिमय ने इसको एक बड़ी मण्डी के रूप में प्रतिष्ठापित किया। 1950-60 के दशक तक लाल इमली तथा धारीवाल जैसी प्रतिष्ठित वस्त्र कम्पनियों द्वारा बागेश्वर मण्डी से कच्चा ऊन क्रय किया जाता था।

नाम की उत्पत्ति

एक पौराणिक कथा के अनुसार अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे।[१]साँचा:rp जैसे ही सरयू कत्यूर घाटी में गोमती से अपने संगम के समीप पहुंची, वहां ब्रह्मकपाली के समीप ऋषि मार्कण्डेय तपस्या में लीन थे।[१]साँचा:rp ऋषि मार्कण्डेय की तपस्या भंग ना हो, इसलिए सरयू वहां ही रुक गयी, और देखते देखते वहां जल भराव होने लगा।[१]साँचा:rp

मुनि वशिष्ठ ने तुरंत शिवजी की आराधना की।[२] मुनि वशिष्ठ की तपस्या से प्रसन्न शिवजी ने बाघ का रूप धारण कर पार्वती को गाय बना दिया, और ब्रह्मकपाली के समीप गाय पर झपटने का प्रयास किया।[१]साँचा:rp गाय के रंभाने से मार्कण्डेय मुनि की आंखें खुल गई। व्याघ्र को गाय को मुक्त करने के लिए जैसे ही वह दौड़े तो व्याघ्र ने शिव और गाय ने पार्वती का रूप धरकर मार्कण्डेय को दर्शन देकर इच्छित वर दिया, और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद दिया।[१]साँचा:rp इसके बाद ही सरयू आगे बढ़ सकी।

भगवान शिव के व्याघ्र का रूप लेने के कारण इस स्थान को व्याघ्रेश्वर कहा जाने लगा, जो कालान्तर में बदलकर बागीश्वर तथा फिर बागेश्वर हो गया।[३]

इतिहास

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

बागनाथ मंदिर का मुख्य भवन।
इस मंदिर का निर्माण कुमाऊँ के राजा लक्ष्मी चन्द ने सन १६०२ में करवाया था।
बागेश्वर सरयू तथा गोमती नदियों के संगम पर स्थित है।

शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था।[४][५] ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सन् १६०२ मे राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण कर इसके वर्तमान रूप को अक्षुण्ण रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।[६]

१९वीं सदी के प्रारम्भ में बागेश्वर आठ-दस घरों की एक छोटी सी बस्ती थी। मुख्य बस्ती मन्दिर से संलग्न थी। सरयू नदी के पार दुग बाजार और सरकारी डाक बंगले का भी विवरण मिलता है। सन् १८६० के आसपास यह स्थान २००-३०० दुकानों एवं घरों वाले एक कस्बे का रूप धारण कर चुका था। एटकिन्सन के हिमालय गजेटियर में वर्ष १८८६ में इस स्थान की स्थायी आबादी ५०० बतायी गई है।[७] प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व, सन् १९०५ में अंग्रेजी शासकों द्वारा टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन का सर्वेक्षण किया गया, जिसके साक्ष्य आज भी यत्र-तत्र बिखरे मिलते हैं।[८]

वर्ष १९२१ के उत्तरायणी मेले के अवसर पर कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पाण्डेय, हरगोविंद पंत, श्याम लाल साह, विक्टर मोहन जोशी, राम लाल साह, मोहन सिह मेहता, ईश्वरी लाल साह आदि के नेतृत्व में सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने कुली बेगार के रजिस्टर बहा कर इस कलंकपूर्ण प्रथा को समाप्त करने की कसम इसी सरयू तट पर ली थी।[९] पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों का राष्ट्रीय आन्दोलन में यह योगदान था, जिससे प्रभावित हो कर सन् १९२९ में महात्मा गांधी स्वयं बागेश्वर पहुँचे।[१०]

१९४७ में भारत की स्वतंत्रता के समय बागेश्वर नाम बागनाथ मंदिर के समीप स्थित बाजार तथा उसके आसपास के क्षेत्र के लिए प्रयोग किया जाता था। १९४८ में बाजार से सटे ९ ग्रामों को मिलाकर बागेश्वर ग्रामसभा का गठन किया गया। १९५२ में बागेश्वर को टाउन एरिया बना दिया गया, जिसके बाद वर्ष १९५२ से १९५५ तक टाउन एरिया रहा।[११] १९५५ में इसे नोटीफाइड एरिया घोषित किया गया।[११] १९५७ में ईश्वरी लाल साह स्थानीय निकाय के पहले अध्यक्ष बने।[११] १९६८ में बागेश्वर की नगर पालिका का गठन कर दिया गया।[११] उस समय नगर की जनसंख्या लगभग तीन हजार थी।[११]

भूगोल

बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर जनपद में साँचा:coord पर स्थित है।[१२] यह नई दिल्ली के ४७० किमी उत्तर-पूर्व में और देहरादून के ५०२ किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह कुमाऊँ मण्डल में स्थित है और कुमाऊँ के मुख्यालय, नैनीताल के १५३ किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई १,००४ मीटर (३,२९४ फीट) है। बागेश्वर नगर सरयू तथा गोमती नदियों के संगम पर स्थित है। इसके पश्चिम में नीलेश्वर पर्वत, पूर्व में भीलेश्वर पर्वत, उत्तर में सूर्यकुण्ड तथा दक्षिण में अग्निकुण्ड स्थित है।

बागेश्वर में वर्ष के औसत तापमान २०.४ डिग्री सेल्सियस है।[१३] इस जलवायु के लिए कोपेन जलवायु वर्गीकरण उपप्रकार "सीएफए" है।[१३] २७.३ डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान के साथ जून साल का सबसे गर्म महीना होता है।[१३] ५ जून २०१७ को ३८ डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जो इतिहास में सबसे अधिक था।[१४] ११ डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान के साथ जनवरी साल में सबसे ठंडा महीना होता है।[१३] साल भर में वर्षा की औसत मात्रा १२२१.७ मिमी है।[१३] सबसे अधिक वर्षा जुलाई में (औसत ३३०.२ मिमी) और सबसे कम वर्षा नवंबर में (औसत ५.१ मिमी) होती है।

[छुपाएँ]बागेश्वर के जलवायु आँकड़ें
माह जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल मई जून जुलाई अगस्त सितम्बर अक्टूबर नवम्बर दिसम्बर वर्ष
औसत उच्च तापमान °C (°F) १७.२ १९.५ २५ ३०.७ ३३.७ ३२.९ २९.४ २८.९ २८.७ २७.४ २३.६ १९.१ २६.४
दैनिक माध्य तापमान °C (°F) ११.० १३.१ १८.१ २३.६ २६.८ २७.४ २५.४ २६.८ २४.२ २१.३ १६.८ १२.७ २०.५
औसत निम्न तापमान °C (°F) ४.९ ६.७ ११.२ १६.५ १९.८ २१.८ २१.५ २१.३ १९.८ १५.२ १०.० ६.३ १४.६
औसत वर्षा मिमी (inches) ३२.९ ३५.१ ३०.१ २४.४ ४३.७ १५७.० ३२८.९ ३२८.२ १७८.४ ४२.५ ६.० १३.६ १२२०.८
स्रोत: वेदरबेस[१३]

जनसांख्यिकी

[छुपाएँ]बागेश्वर में जनसंख्या
जनगणना जनसंख्या
१९५११,७४०
१९६१२,१८९25.8%
१९७१४,३१४97.1%
१९८१४,२२५-2.1%
१९९१५,७७२36.6%
२००१७,८०३35.2%
२०११९,०७९16.4%
स्त्रोत: [१५]

भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार, बागेश्वर की आबादी ९,०७९ है जिसमें ४,७११ पुरुष और ४,३६८ महिलाएं की शामिल है।[१६] बागेश्वर का लिंग अनुपात प्रति १००० पुरुषों के लिए १०९० महिलाएं है, जो राष्ट्रीय औसत (९४० महिलाएं प्रति १००० पुरुष) की तुलना में अधिक है।[१७] लिंग अनुपात के मामले में बागेश्वर उत्तराखंड में चौथे स्थान पर है।[१८] बागेश्वर की औसत साक्षरता दर ८०% है, जो राष्ट्रीय औसत ७२.१% से अधिक है; ८४% पुरुष और ७६% महिलाएं साक्षर हैं। जनसंख्या का ११% ६ साल से कम उम्र के हैं। २,२१९ लोग अनुसूचित जाति से संबंधित हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के लोगों की आबादी १,०८५ है। बागेश्वर की जनसंख्या २००१ की जनगणना के अनुसार ७८०३ थी और १९९१ की जनगणना के अनुसार ५,७७२ थी।[१६]

कुल आबादी में, २,७७१ कार्य या व्यवसाय गतिविधि में लगे हुए थे। इनमें २,२३६ पुरुष थे जबकि ५३५ महिलाएं थीं। कुल २७७१ कामकाजी आबादी में, ७८.०६% मुख्य कार्य में लगे हुए थे जबकि कुल कर्मचारियों की २१.९४% सीमांत कार्य में लगे हुए थे। कुल आबादी का ९३.३४% हिंदू धर्म का अभ्यास करता है और यह बागेश्वर में बहुमत का धर्म है। अन्य धर्मों में इस्लाम (५.९३%), सिख धर्म (०.२५%), ईसाई धर्म (०.२6%), बौद्ध धर्म (०.०१%) और जैन धर्म (०.०२%) शामिल हैं। कुमाऊँनी बहुमत की मातृभाषा है, हालांकि, हिंदी और संस्कृत राज्य की आधिकारिक भाषाएं हैं।[१९] गढ़वाली और अंग्रेजी भी छोटी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती हैं।

अर्थव्यवस्था

बागेश्वर पिंडारी, काफनी तथा सुन्दरढूंगा हिमनदों के आधार कैंप के रूप में जाना जाता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग ३०९-ए बागेश्वर को अल्मोड़ा, बेरीनाग और गंगोलीहाट से जोड़ता है।

बागेश्वर एक समय में कुमाऊँ की प्रमुख सुहागा मंडी हुआ करती थी। तिब्बत के ज्ञानमा और गढ़तोक से होते हुए भोटिया व्यापारी बागेश्वर आकर अल्मोड़ा के बनियों से सुहागे का क्रय-विक्रय करते थे।[२०] इसके अतिरिक्त मुनस्‍यारी तथा मीलम के शौका आदिवासी यहां ऊन तथा उससे बने कम्बल तथा पंखियाँ बेचने आते थे।[२१] जनवरी माह में लगने वाले उत्तरायणी मेले में उत्तर से चटाइयाँ, तिब्बती ऊन, सुहागा तथा खाल; दक्षिण से बर्तन तथा कपड़े; तथा स्थानीय क्षेत्रों के संतरे तथा अनाज का व्यापर होता था।[२२]

कालान्तर में अल्मोड़ा के पतन, कुमाऊँ में ब्रिटिश शासन के आगमन, तथा पूरे क्षेत्र में बेहतर सड़क मार्ग बन जाने के कारण बागेश्वर मंडी का ह्रास होता चला गया, और यह क्रय विक्रय केवल उत्तरायणी मेले तक ही सीमित रह गया। १९वीं शताब्दी के अंत तक बागेश्वर में सुहागे का व्यापार लगभग समाप्त हो चुका था, क्योंकि तिब्बत के व्यापारी अपना सामान सीधे रामनगर और टनकपुर के मैदानी बाजारों में जाकर बेचने लगे थे।[२२] १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद तिब्बती व्यापारियों ने उत्तरायणी मेले में आना बंद कर दिया, तथा यह व्यापर पूरी तरह से समाप्त हो गया।

आवागमन

पंतनगर हवाई अड्डा, जो कि पूरे कुमाऊं क्षेत्र का प्राथमिक हवाई अड्डा है, सड़क मार्ग से लगभग २०० किमी दूर पंतनगर में स्थित है। उत्तराखंड सरकार पिथौरागढ़ में नैनी सैनी हवाई अड्डे को विकसित करने की योजना बना रही है,[२३] जो विकसित होने के बाद अधिक करीब होगा। दिल्ली में स्थित इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा, निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

काठगोदाम रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है। काठगोदाम उत्तर पूर्व रेलवे का अंतिम टर्मिनल है, जो कुमाऊं को दिल्ली, देहरादून और हावड़ा से जोड़ता है। टनकपुर से बागेश्वर को जोड़ने वाली एक नई रेल लाइन इस क्षेत्र के लोगों की लंबे समय से मांग है।[२४][२५] टनकपुर-बागेश्वर रेल लिंक को ब्रिटिश सरकार द्वारा पहली बार सन १९०५ में तैयार किया गया था। हालांकि रेलवे मंत्रालय ने २०१६ में इस परियोजना को वाणिज्यिक व्यवहार्यता का हवाला देते हुए स्थगित कर दिया।[८][२६]

उत्तराखण्ड परिवहन निगम बागेश्वर स्थित बस स्टेशन से दिल्ली, देहरादून और बरेली तक बसों का संचालन करता है; जबकि केमू (कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन) द्वारा हल्द्वानी, अल्मोड़ा, ताकुला, बेरीनाग, पिथौरागढ़, डीडीहाट, गंगोलीहाट के लिए विभिन्न मार्गों पर ५५ बसें चलाई जाती हैं।[२७] बागेश्वर से गुजरने वाली प्रमुख सड़कों में राष्ट्रीय राजमार्ग ३०९-ए, बरेली-बागेश्वर हाईवे,[२८] बागेश्वर-गरुड़-ग्वालदाम रोड, बागेश्वर-गिरेछीना-सोमेश्वर रोड[२९] और बागेश्वर-कपकोट-तेज़म रोड शामिल हैं। टैक्सी और निजी बसें, जो ज्यादातर केमू द्वारा संचालित की जाती हैं, बागेश्वर को कुमाऊं क्षेत्र के अन्य प्रमुख स्थलों से जोड़ती हैं। एक उप क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय बागेश्वर में स्थित है जहां वाहन यूके-०२ संख्या द्वारा पंजीकृत किये जाते हैं।[३०]

पर्यटन स्थल

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बागनाथ मंदिर

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। बागनाथ मंदिर शिव जी को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। अल्मोड़ा के राजा लक्ष्मी चंद ने १४५० ईस्वी में इसका निर्माण कराया था।

सूर्यकुण्ड तथा अग्निकुण्ड

बागेश्वर नगर के उत्तर में सूर्यकुण्ड जबकि दक्षिण में अग्निकुण्ड स्थित है। ये दोनों सरयू नदी के विषर्प से जनित प्राकर्तिक कुंड हैं।

चण्डिका मन्दिर

चण्डिका मन्दिर नगर केंद्र से ५०० मीटर की दूरी पर स्थित है। नवरात्र के समय यहां काफी चहल पहल रहती है।

श्रीहरु मन्दिर

श्रीहरु मन्दिर नगर केंद्र से ५ किमी दूर स्थित है। विजय दशमी के दिन प्रत्येक वर्ष यहां एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

गौरी उड्यार

गौरी उड्यार २०x९५ वर्ग मीटर में फैली एक गुफा है, जिसमें भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर स्थित है। यह नगर केंद्र से ८ किमी की दूरी पर स्थित है।

सन्दर्भ

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