क़ुरैश (सूरा)

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सूरा क़ुरैश (इंग्लिश: Quraysh (surah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 106 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 4 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा क़ुरैश [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में भी सूरा क़ुरैश [२] नाम दिया गया है।

नाम पहली ही आयत के शब्द “क़ुरैश ” को इस सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

अत्यन्त बहुसंख्या में टीकाकार इसके मक्की होने पर सहमत हैं और इसके मक्की होने की पूरी गवाही इस सूरा के शब्द 'इस घर के रब' में मौजूद है। यदि यह मदीना में अवतरित होती तो 'काबा के घर' के लिए 'इस घर' के शब्द कैसे उपयुक्त हो सकते थे? बल्कि इसकी वार्ता का सूरा फ़ील की वार्ता से इतना गहरा सम्बन्ध है कि सम्भवतः इसका अवतरण इसके पश्चात् संसर्गतः ही हुआ होगा।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा को ठीक-ठीक समझने के लिए आवश्यक है कि उस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखा जाए जिससे इसकी वार्ता और सूरा फ़ील की वार्ता से गहरा सम्बन्ध है। कुरैश का क़बीला नबी (सल्ल.) के प्रमुख पितामह कुसई बिन किलाब के समय तक हिजाज़ में बिखरा हुआ था । सबसे पहले कुसई ने उसको मक्का में एकत्र किया और बैतुल्लाह (काबा ) का प्रबन्ध इस क़बीले के हाथ में आ गया। इसी कारण कुसई को 'मुजम्मा' (एकत्रकर्ता)की उपाधि दी गई। कुसई के बाद उनके बेटे अबदे-मुनाफ़ और अब्दुद्दार के मध्य रियासत के पद विभक्त हो गए। अब्दे-मुनाफ़ के चार बेटे थे: हाशिम, अब्दे-शम्स, मुत्तलिब और नौफ़ल। इनमें से हाशिम, अब्दुल मुत्तलिब के पिता और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के परदादा के मन में सबसे पहले यह विचार आया कि उस अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में हिस्सा लिया जाए जो अरब के मार्ग से पूर्वी देशों और सीरिया और मिस्र के मध्य होता था। और साथ ही, अरबवालों की आवश्यकताओं की सामग्री भीख़रीदकर लाई जाए, ताकि रास्ते में पड़नेवाले क़बीले उनसे माल ख़रीदें और मक्का की मण्डी में देश के भीतरी भाग के व्यापारी ख़रीदारी के लिए आने लगे। दूसरे अरबी क़ाफ़िलों की अपेक्षा कुरैश को यह आसानी प्राप्त थी कि मार्ग के समस्त क़बीले काबा के सेवक होने की हैसियत से उनका आदर करते थे। उन्हें इस बात का कोई ख़तरा न था कि रास्ते में कहीं उनके क़ाफिलों पर डाका मारा जाएगा। रास्ते के क़बीले उनसे पथ के वह भारी कर (Heavy Road Tax) भी वुसूल न कर सकते थे जो दूसरे क़ाफ़िलों से तलब किया जाता था। हाशिम ने इन्हीं समस्त पहलुओं को देखकर व्यापार की योजना बनाई और अपनी इस योजना में अपने शेष तीनों भाइयों को भी सम्मिलित किया। सीरिया के ग़स्सानी बादशाह से हाशिम ने, हबश के बादशाह से अब्दे-शम्स ने, यमन के सरदारों मुत्तलिब ने और इराक़ और फ़ारस की हुकूमतों से नौफ़ल ने व्यापार सम्बन्धी छूटे प्राप्त। इस प्रकार इन लोगों का व्यापार बड़ी तीव्र गति से उन्नति करता चला गया। इसी कारण ये चारों भाई ‘मुत्तजरीन' (व्यापारी) के नाम से प्रसिद्ध हो गए और जो सम्पर्क उन्होंने चतुर्दिक के क़बीलों और रियासतों से स्थापित किए थे उनके कारण इनको ‘असहाबुल ईलाफ़' भी कहा जाता था, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'प्रेम पैदा करनेवाले'। इस कारोबार के कारण कुरैश के लोगों को सीरिया, मिस्र, इराक़, ईरान, यमन और हबश के देशों से सम्बन्ध के उक्त अवसर प्राप्त हुए और विभिन्न देशों की संस्कृति और सभ्यता के प्रत्यक्ष रूप में सम्पर्क में आने के कारण उनके ज्ञान, बुद्धि एवं दृष्टि का मापदण्ड इतना उच्च होता चला गया कि अरब का कोई कबीला उनकी टक्कर का न रहा। धन-दौलत की दृष्टि से भी वे अरब में सबसे ऊपर हो गए और मक्का प्रायद्वीप अरब का सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र बन गया। इन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का बड़ा लाभ यह भी हुआ कि इराक़ से ये लोग वह लिपि लेकर आए जो आगे चलकर कुरआन मजीद लिखने के लिए प्रयोग में आई। अरब के किसी दूसरे क़बीले में इतने पढ़े-लिखे लोग न थे जितने कुरैश में थे। इन्ही कारणों से नबी (सल्ल.) ने कहा था, “कुरैश लोगों के नेता हैं।" (हदीस : मुसनद अहमद अम्र बिन आस की रिवायतें)

कुरैश इस तरह उन्नति पर उन्नति करते चले जा रहे थे कि मक्का पर अबरहा के आक्रमण की घटना घटित हुई। यदि उस समय अबरहा इस पवित्र नगर पर विजय पाने और काबा को ढा में सफल हो जाता तो अरब में कुरैश ही की नहीं, स्वयं काबा की धाक भी समाप्त हो जाती। (किन्तु ईश्वरीय प्रकोप ने जब अबरहा की लाई हुई साठ हज़ार की सेना को विनष्ट कर दिया तो) काबा के 'बैतुल्लाह' (ईशगृह) होने पर तमाम अरबवालों का ईमान पहले से कई गुना ज़्यादा मज़बूत हो गया, और इसके साथ कुरैश की धाक भी देश भर में पहले से अधिक जम गई।

सूक्ति का उद्देश्य

विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि नबी (सल्ल.) के समय में ये वृत्तान्त क्योंकि सभी को मालूम थे इसलिए इनके उल्लेख की आवश्यकता न थी। यही कारण है कि इस सूरा के चार संक्षिप्त वाक्यों में कुरैश से केवल इतनी बात कहने पर बस किया गाया कि जब तुम स्वयं इस घर (काबा) को प्रतिमाओं का नहीं, बल्कि अल्लाह का घर मानते हो और जब तुम्हें अच्छी तरह ज्ञात कि वह अल्लाह ही है जिसने तुम्हें इस घर के कारण यह शान्ति और निश्चिन्तता प्रदान की, तुम्हारे व्यापार को यह उन्नति दी और तुम्हें भुखमरी से बचाकर यह सम्पन्नता प्रदान की तो तुम्हे उसी की उपासना और बन्दगी करनी चाहिए।

सुरह "क़ुरैश का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया:

بسم الله الرحمن الرحيم

۝ कितना है क़ुरैश को लगाए और परचाए रखना, (106:1) 

۝ लगाए और परचाए रखना उन्हें जाड़े और गर्मी की यात्रा से (106:2)

۝ अतः उन्हें चाहिए कि इस घर (काबा) के रब की बन्दगी करे, (106:3)

۝ जिसने उन्हें खिलाकर भूख से बचाया और निश्चिन्तता प्रदान करके भय से बचाया (106:4)

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें

पिछला सूरा:
अल-फ़ील
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-माऊन
सूरा 106 - क़ुरैश

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सन्दर्भ

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