अन-नाज़िआत
क़ुरआन |
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सूरा अन-नाज़िआत (इंग्लिश: An-Naziat) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 79 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 46 आयतें हैं।
नाम
इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अन-नाज़िआत [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अन्-नाज़िआ़त[२] नाम दिया गया है।
नाम सूरा का नाम सूरा के पहले ही शब्द "वन-नाज़िआत" (सौगन्ध है उनकी जो डूबकर खींचते हैं) से उद्धृत है।
अवतरणकाल
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि.) का बयान है कि यह सूरा, सूरा 'नबा' के पश्चात् अवतरित हुई है। इसका विषय भी यही बता रहा है कि यह आरम्भिक काल की सूरतों में से है।
विषय और वार्ता
इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका विषय क़ियामत और मृत्यु के पश्चात् के जीवन की पुष्टि है और साथ-साथ इस बात की चेतावनी भी कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को झुठलाने का परिणाम क्या होता है। वार्ता के आरम्भ में मृत्यु के समय प्राण निकालने वाले और अल्लाह के आदेश का बिना किसी विलम्ब के पालन करनेवाले और ईश्वरीय आदेशों के अनुसार सम्पूर्ण जगत् का प्रबन्ध करनेवाले फ़रिश्तों की क़सम खाकर यह विश्वास दिलाया गया है कि क़ियामत अवश्य घटित होगी और मृत्यु के पश्चात् दूसरा जीवन अवश्य सामने आकर रहेगा, क्योंकि जिन फ़रिश्तों के हाथों आज प्राण निकाले जाते हैं, उन्हीं के हाथों पुनः प्राण डाले भी जा सकते हैं और जो फ़रिश्ते आज अल्लाह के आदेश का पालन बिना किसी विलम्ब के करते और जगत् का प्रबन्ध करते हैं, वही फ़रिश्ते कल उसी ईश्वर के आदेश से जगत् की वर्तमान व्यवस्था को छिन्न-भिन्न भी कर सकते हैं और एक अन्य व्यवस्था की स्थापना भी कर सकते हैं। इसके बाद लोगों को बताया गया है कि यह कार्य जिसे तुम बिलकुल असम्भव समझते हो, अल्लाह के लिए सिरे से कोई कठिन कार्य नहीं है जिसके लिए किसी बड़ी तैयारी की आवश्यकता हो। बस एक झटका संसार की इस व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर देगा और एक दूसरा झटका इसके लिए बिलकुल पर्याप्त होगा कि दूसरे लोक में सहसा तुम अपने आपको जीवित उपस्थित पाओ। फिर हज़रत मूसा (अलै.) और फ़िरऔन का क़िस्सा संक्षिप्त रूप से वर्णित करके लोगों को सावधान किया गया है कि रसूल को झुठलाने और चालबाज़ियों से उसको पराजित करने के प्रयास का क्या परिणाम फ़िरऔन देख चुका है। उससे शिक्षा ग्रहण करके इस नीति से बाज़ न आओगे तो वही परिणाम तुम्हें भी देखना पड़ेगा। तदन्तर आयत 27 से 33 तक परलोक और मृत्यु के बाद के जीवन के प्रमाणों का उल्लेख किया गया है। आयत ३४ से ४१ में बताया गया है कि जब जीवन की स्थापना होती है, तो मनुष्य के अनन्त और शाश्वत भविष्य का निर्णय इस आधार पर किया जाएगा कि किसने दुनिया में गुलामी की सीमाओं को परिवर्तित किया और अपने भगवान के खिलाफ विद्रोह किया। और दुनिया के लाभों और स्वादों को अपना उद्देश्य बनाया और जो अपने रब के सामने खड़े होने का डर था और जो मन की नाजायज इच्छाओं को पूरा करने से बचते थे। अंत में, मक्का के काफिरों के सवाल का जवाब दिया गया है कि पुनरुत्थान कब आएगा? जवाब में कहता है कि अल्लाह के अलावा किसी को भी अपने समय का ज्ञान नहीं है। रसूल का काम केवल यह चेतावनी देना है कि समय निश्चित रूप से आएगा। अब, जो कोई भी अपने आने के डर को ध्यान में रखते हुए अपनी नीति को सही बनाना चाहता है और जो कोई भी निडर होना चाहता है, उसे ऊंट की तरह चलना चाहिए। जब वह समय आता है, तो वही लोग जो इस सांसारिक जीवन पर मर गए और इससे सब कुछ समझ गए, उन्हें यह आभास होगा कि वे केवल एक घंटे के लिए दुनिया में रहे। उस समय उन्हें पता चलेगा कि कैसे उन्होंने इस छोटे जीवन के लिए अपने भविष्य को हमेशा के लिए बर्बाद कर दिया।
सुरह "अन-नाज़िआत का अनुवाद
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:
क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।
बाहरी कडियाँ
इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें
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सन्दर्भ