अल-मोमिनून

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सूरा संख्या 23
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सूरा अल-मोमिनून (इंग्लिश: Al-Mu'minoon) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 23 वां सूरा या अध्याय है। इसमें 118 आयतें हैं।

नाम

सूरा अल्-मोमिनून[१] या सूरा अल्-मुमिनून [२] का नाम पहली आयत “निश्चय ही सफलता पाई है ईमानवालों (मोमिनून) ने" से उद्धृत है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्कन सूरा अर्थात मक्की सूरह पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय अवतरित हुई।
वर्णन-शैली और विषय-वस्तु दोनों से ही मालूम होता है कि सूरा के अवतरण का प्रारंभकाल मक्का का मध्यकाल है । आयत 75.76 से सष्टतः यह साक्ष्य मिलता है कि यह मक्का के उस अकाल के कठिन समय में अवतरित हुई है जो विश्वस्त उल्लेखों के अनुसार इसी मध्यकाल में पड़ा था।

विषय और वार्ताएँ

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा का विषय और वार्ताएँ रसूल के आमंत्रण का अनुसरण इस सूरा का केन्द्रीय विषय है और समय अभिभाषण इसी केन्द्र के चनुर्विक घूमता है। वणी का आरम्भ इस प्रकार होता है कि जिन लोगों ने इस पैगम्बर की बात मान ली है उनमें ये और ये गुण पैदा हो रहे हैं, और निक्षय ही ऐसे ही लोग लोक और परलोक की सफलता के अधिकारी हैं। इसके पक्षात् मानव के जन्म, आकाश और धरती की रचना, वनस्पति और जीवधारियों की सृष्टि और दूसरे जगत् के लक्षणों (से एकेश्वरवाद और परलोकवाद के सत्य होने के प्रमाण बिए गए हैं।) फिर नबियों (अले.) और उनके समुदायों के वृत्तान्त (प्रस्तुत करके) कुछ बातें सुननेवालों को समझाई गई हैं।

प्रथम यह कि आज तुम लोग मुहम्मद (सल्ल.) के आमंत्रण पर जो संदेह और आक्षेप कर रहे हो वे कुछ नवीन नहीं है । पहले भी जो नबी दुनिया में आए थे उन सबपर उनके समकालीन अज्ञानियों ने बाही आक्षेप किए थे। अब देख लो कि इतिहास की शिक्षा क्या बता रही है। आक्षेप करनेवाले सत्य पर थे या नबीगण? द्वितीय यह कि एकेश्वरवाद और परलोकवाद के सम्बन्ध में जो शिक्षा मुहम्मद (सल्ल.) दे रहे हैं यही शिक्षा हर युग के नबियों ने दी है । तृतीय यह कि जिन क्रीमों ने नबियों। बात अस्वीकार कर बी , वे अन्ततः विनाष्ट होकर रही। चतुर्थ यह कि अल्लाह की और से हर युग में एक की धर्म आता रहा है और समस्त नबी एक ही समुदाय के लोग थे। उस एक धर्म के सिवा जो विभिन्न धर्म तुम लोग दुनिया में देख रहे हों , ये सब लोगों के मनगढन्त हैं। इन वृत्तान्तों के पक्षात् लोगों को यह बताया गया है कि मूल चीज़ जिसपर अल्लाह के यहाँ प्रिय या प्रकोप का पात्र होना निर्भर करता है, वह आदमी का ईमान और उसका ईशभय और सत्यवादिता है । ये बातें इसलिए कही गई हैं कि नबी (सल्ल.) के आमंत्रण के मुकाबले में उस समय जो रुकावटें खड़ी की जा रही थी उसके बजवाहक सब के सब मक्का के श्रेष्ठ और बड़े - बड़े सवार थे। वे अपनी जगह स्वयं भी इस घमंड में वे और उनके प्रभावाधीन लोग भी इस भ्रम में पड़े हुए वे कि सुख सामग्री की वर्षा जिन लोगों पर हो रही है उनपर अवश्य ईश्वर और देवताओं की कृपा है । रहे ये टूटे - मारे लोग जो मुहम्मद (सल्ल.) के साथ हैं . इनकी तो दशा स्वयं ही यह बता रही है कि ईश्वर इन के साथ नहीं है और देवताओं की मार इन पर पड़ी हुई हैं । इसके पश्चात् मक्कावालों को विभिन्न पहलुओं से नबी (सल्ल.) की पैग़म्बरी पर निश्चिन्त करने की कोशिश की गई है । फिर उनको बताया गया है कि यह अकाल जो तुम पर उता है यह एक बेतावनी है । अच्छा होगा कि इसको देखकर संभलो और सीधे मार्ग पर आ जाओ । फिर नए सिरे से उन प्राकृतिक चिह्नों एवं लक्षणों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट किया गया है. जो जगत् में और स्वयं उनके अपने अस्तित्व में विद्यमान हैं। (और मुबा के एकत्व और मृत्यु के पञ्चात् जीवन के स्पष्ट साक्ष्य दे रहे हैं । फिर नबी (सल्ल.) को आदेश दिया गया है कि चाहे ये लोग तुम्हारे मुकाबले में कैसी ही बुरी नीति क्यो न अपनाएँ , तुम भले तरीकों ही से अपना बचाव करना। शैतान कभी तुमको जोश में लाकर बुराई का प्रत्युत्तर बुराई से बेने पर उन न करने पाए । वार्ता के अन्त में सत्य के विरोधियों को परलोक की पूछताछ से डराया गया है और उन्हें सावधान किया गया है कि जो कुछ तुम सत्य - संदेश और उसके अनुयायियों के साथ कर रहे हो , उसका सन्न हिसाब तुमसे लिया जाएगा।

सुरह अल-मोमिनून का अनुवाद

अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

23|1|सफल हो गए ईमानवाले,[३] 23|2|जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता अपनाते है;

23|3|और जो व्यर्थ बातों से पहलू बचाते है;

23|4|और जो ज़कात अदा करते है;

23|5|और जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करते है-

23|6|सिवाय इस सूरत के कि अपनी पत्नि यों या लौंडियों के पास जाएँ कि इसपर वे निन्दनीय नहीं है

23|7|परन्तु जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा उल्लंघन करनेवाले है।-

23|8|और जो अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान रखते है;

23|9|और जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं;

23|10|वही वारिस होने वाले है

23|11|जो फ़िरदौस की विरासत पाएँगे। वे उसमें सदैव रहेंगे

23|12|हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया

23|13|फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा

23|14|फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा!

23|15|फिर तुम अवश्य मरनेवाले हो

23|16|फिर क़ियामत के दिन तुम निश्चय ही उठाए जाओगे

23|17|और हमने तुम्हारे ऊपर सात रास्ते बनाए है। और हम सृष्टि-कार्य से ग़ाफ़िल नहीं

23|18|और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है

23|19|फिर हमने उसके द्वारा तुम्हारे लिए खजूरो और अंगूरों के बाग़ पैदा किए। तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फल है (जिनमें तुम्हारे लिए कितने ही लाभ है) और उनमें से तुम खाते हो

23|20|और वह वृक्ष भी जो सैना पर्वत से निकलता है, जो तेल और खानेवालों के लिए सालन लिए हुए उगता है

23|21|और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते है। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो

23|22|और उनपर और नौकाओं पर तुम सवार होते हो 23|23|हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा तो उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा और कोई इष्ट-पूज्य नहीं है तो क्या तुम डर नहीं रखते?"

23|24|इसपर उनकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। चाहता है कि तुमपर श्रेष्ठता प्राप्त करे।""अल्लाह यदि चाहता तो फ़रिश्ते उतार देता। यह बात तो हमने अपने अगले बाप-दादा के समयों से सुनी ही नहीं

23|25|यह तो बस एक उन्मादग्रस्त व्यक्ति है। अतः एक समय तक इसकी प्रतीक्षा कर लो।"

23|26|उसने कहा, "ऐ मेरे रब! इन्होंने मुझे जो झुठलाया है, इसपर तू मेरी सहायता कर।"

23|27|तब हमने उसकी ओर प्रकाशना की कि "हमारी आँखों के सामने और हमारी प्रकाशना के अनुसार नौका बना और फिर जब हमारा आदेश आ जाए और तूफ़ान उमड़ पड़े तो प्रत्येक प्रजाति में से एक-एक जोड़ा उसमें रख ले और अपने लोगों को भी, सिवाय उनके जिनके विरुद्ध पहले फ़ैसला हो चुका है। और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करना। वे तो डूबकर रहेंगे

23|28|फिर जब तू नौका पर सवार हो जाए और तेरे साथी भी तो कह, प्रशंसा है अल्लाह की, जिसने हमें ज़ालिम लोगों से छुटकारा दिया

23|29|और कह, ऐ मेरे रब! मुझे बरकतवाली जगह उतार। और तू सबसे अच्छा मेज़बान है।"

23|30|निस्संदेह इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं और परीक्षा तो हम करते ही है

23|31|फिर उनके पश्चात हमने एक दूसरी नस्ल को उठाया;

23|32|और उनमें हमने स्वयं उन्हीं में से एक रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई इष्ट-पूज्य नहीं। तो क्या तुम डर नहीं रखते?"

23|33|उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया और आख़िरत के मिलन को झूठलाया और जिन्हें हमने सांसारिक जीवन में सुख प्रदान किया था, कहने लगे, "यह तो बस तुम्हीं जैसा एक मनुष्य है। जो कुछ तुम खाते हो, वही यह भी खाता है और जो कुछ तुम पीते हो, वही यह भी पीता है

23|34|यदि तुम अपने ही जैसे एक मनुष्य के आज्ञाकारी हुए तो निश्चय ही तुम घाटे में पड़ गए

23|35|क्या यह तुमसे वादा करता है कि जब तुम मरकर मिट्टी और हड़्डियाँ होकर रह जाओगे तो तुम निकाले जाओगे?

23|36|दूर की बात है, बहुत दूर की, जिसका तुमसे वादा किया जा रहा है!

23|37|वह तो बस हमारा सांसारिक जीवन ही है। (यहीं) हम मरते और जीते है। हम कोई दोबारा उठाए जानेवाले नहीं है

23|38|वह तो बस एक ऐसा व्यक्ति है जिसने अल्लाह पर झूठ घड़ा है। हम उसे कदापि माननेवाले नहीं।"

23|39|उसने कहा, "ऐ मेरे रब! उन्होंने जो मुझे झुठलाया, उसपर तू मेरी सहायता कर।"

23|40|कहा, "शीघ्र ही वे पछताकर रहेंगे।"

23|41|फिर घटित होनेवाली बात के अनुसार उन्हें एक प्रचंड आवाज़ ने आ लिया और हमने उन्हें कूड़ा-कर्कट बनाकर रख दिया। अतः फिटकार है, ऐसे अत्याचारी लोगों पर!

23|42|फिर हमने उनके पश्चात दूसरी नस्लों को उठाया

23|43|कोई समुदाय न तो अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ सकता है और न पीछे रह सकता है

23|44|फिर हमने निरन्तर अपने रसूल भेजे। जब भी किसी समुदाय के पास उसका रसूल आया, तो उसके लोगों ने उसे झुठला दिया। अतः हम एक दूसरे के पीछे (विनाश के लिए) लगाते चले गए और हमने उन्हें ऐसा कर दिया कि वे कहानियाँ होकर रह गए। फिटकार हो उन लोगों पर जो ईमान न लाएँ

23|45|फिर हमने मूसा और उसके भाई हारून को अपनी निशानियों और खुले प्रमाण के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों की ओर भेजा।

23|46|किन्तु उन्होंने अहंकार किया। वे थे ही सरकश लोग

23|47|तो व कहने लगे, "क्या हम अपने ही जैसे दो मनुष्यों की बात मान लें, जबकि उनकी क़ौम हमारी ग़ुलाम भी है?"

23|48|अतः उन्होंने उन दोनों को झुठला दिया और विनष्ट होनेवालों में सम्मिलित होकर रहे

23|49|और हमने मूसा को किताब प्रदान की, ताकि वे लोग मार्ग पा सकें

23|50|और मरयम के बेटे और उसकी माँ को हमने एक निशानी बनाया। और हमने उन्हें रहने योग्य स्रोतबाली ऊँची जगह शरण दी,

23|51|"ऐ पैग़म्बरो! अच्छी पाक चीज़े खाओ और अच्छा कर्म करो। जो कुछ तुम करते हो उसे मैं जानता हूँ

23|52|और निश्चय ही यह तुम्हारा समुदाय, एक ही समुदाय है और मैं तुम्हारा रब हूँ। अतः मेरा डर रखो।"

23|53|किन्तु उन्होंने स्वयं अपने मामले (धर्म) को परस्पर टुकड़े-टुकड़े कर डाला। हर गिरोह उसी पर खुश है, जो कुछ उसके पास है

23|54|अच्छा तो उन्हें उनकी अपनी बेहोशी में डूबे हुए ही एक समय तक छोड़ दो

23|55|क्या वे समझते है कि हम जो उनकी धन और सन्तान से सहायता किए जा रहे है,

23|56|तो यह उनके भलाइयों में कोई जल्दी कर रहे है?

23|57|नहीं, बल्कि उन्हें इसका एहसास नहीं है। निश्चय ही जो लोग अपने रब के भय से काँपते रहते हैं;

23|58|और जो लोग अपने रब की आयतों पर ईमान लाते है;

23|59|और जो लोग अपने रब के साथ किसी को साझी नहीं ठहराते;

23|60|और जो लोग देते है, जो कुछ देते है और हाल यह होता है कि दिल उनके काँप रहे होते है, इसलिए कि उन्हें अपने रब की ओर पलटना है;

23|61|यही वे लोग है, जो भलाइयों में जल्दी करते है और यही उनके लिए अग्रसर रहनेवाले है।

23|62|हम किसी व्यक्ति पर उसकी समाई (क्षमता) से बढ़कर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं डालते और हमारे पास एक किताब है, जो ठीक-ठीक बोलती है, और उनपर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा

23|63|बल्कि उनके दिल इसकी (सत्य धर्म की) ओर से हटकर (वसवसों और गफ़लतों आदि के) भँवर में पडे हुए है और उससे (ईमानवालों की नीति से) हटकर उनके कुछ और ही काम है। वे उन्हीं को करते रहेंगे;

23|64|यहाँ तक कि जब हम उनके खुशहाल लोगों को यातना में पकड़ेगे तो क्या देखते है कि वे विलाप और फ़रियाद कर रहे है

23|65|(कहा जाएगा,) "आज चिल्लाओ मत, तुम्हें हमारी ओर से कोई सहायता मिलनेवाली नहीं

23|66|तुम्हें मेरी आयतें सुनाई जाती थीं, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाते थे।

23|67|हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे

23|68|क्या उन्होंने इस वाणी पर विचार नहीं किया या उनके पास वह चीज़ आ गई जो उनके पहले बाप-दादा के पास न आई थी?

23|69|या उन्होंने अपने रसूल को पहचाना नहीं, इसलिए उसका इनकार कर रहे है?

23|70|या वे कहते है, "उसे उन्माद हो गया है।" नहीं, बल्कि वह उनके पास सत्य लेकर आया है। किन्तु उनमें अधिकांश को सत्य अप्रिय है

23|71|और यदि सत्य कहीं उनकी इच्छाओं के पीछे चलता तो समस्त आकाश और धरती और जो भी उनमें है, सबमें बिगाड़ पैदा हो जाता। नहीं, बल्कि हम उनके पास उनके हिस्से की अनुस्मृति लाए है। किन्तु वे अपनी अनुस्मृति से कतरा रहे है

23|72|या तुम उनसे कुथ शुल्क माँग रहे हो? तुम्हारे रब का दिया ही उत्तम है। और वह सबसे अच्छी रोज़ी देनेवाला है

23|73|और वास्तव में तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुला रहे हो

23|74|किन्तु जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वे इस मार्ग से हटकर चलना चाहते है

23|75|यदि हम (किसी आज़माइश में डालने के पश्चात) उनपर दया करते और जिस तकलीफ़ में वे होते उसे दूर कर देते तो भी वे अपनी सरकशी में हठात बहकते रहते

23|76|यद्यपि हमने उन्हें यातना में पकड़ा, फिर भी वे अपने रब के आगे न तो झुके और न वे गिड़गिड़ाते ही थे

23|77|यहाँ तक कि जब हम उनपर कठोर यातना का द्वार खोल दें तो क्या देखेंगे कि वे उसमें निराश होकर रह गए है

23|78|और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो!

23|79|वही है जिसने तुम्हें धरती में पैदा करके फैलाया और उसी की ओर तुम इकट्ठे होकर जाओगे

23|80|और वही है जो जीवन प्रदान करता और मृत्यु देता है और रात और दिन का उलट-फेर उसी के अधिकार में है। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?

23|81|नहीं, बल्कि वे लोग वहीं कुछ करते है जो उनके पहले के लोग कह चुके है

23|82|उन्होंने कहा, "क्या जब हम मरकर मिट्टी और हड्डियाँ होकर रह जाएँगे , तो क्या हमें दोबारा जीवित करके उठाया जाएगा?

23|83|यह वादा तो हमसे और इससे पहले हमारे बाप-दादा से होता आ रहा है। कुछ नहीं, यह तो बस अगलों की कहानियाँ है।"

23|84|कहो, "यह धरती और जो भी इसमें आबाद है, वे किसके है, बताओ यदि तुम जानते हो?"

23|85|वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह के!" कहो, "फिर तुम होश में क्यों नहीं आते?"

23|86|कहो, "सातों आकाशों का मालिक और महान राजासन का स्वामीकौन है?"

23|87|वे कहेंगे, "सब अल्लाह के है।" कहो, "फिर डर क्यों नहीं रखते?"

23|88|कहो, "हर चीज़ की बादशाही किसके हाथ में है, वह जो शरण देता है औऱ जिसके मुक़ाबले में कोई शरण नहीं मिल सकती, बताओ यजि तुम जानते हो?"

23|89|वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह की।" कहो, "फिर कहाँ से तुमपर जादू चल जाता है?"

23|90|नहीं, बल्कि हम उनके पास सत्य लेकर आए है और निश्चय ही वे झूठे है

23|91|अल्लाह ने अपना कोई बेटा नहीं बनाया और न उसके साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु है। ऐसा होता तो प्रत्येक पूज्य-प्रभु अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और उनमें से एक-दूसरे पर चढ़ाई कर देता। महान और उच्च है अल्लाह उन बातों से, जो वे बयान करते है;

23|92|जाननेवाला है छुपे और खुले का। सो वह उच्चतर है वह शिर्क से जो वे करते है!

23|93|कहो, "ऐ मेरे रब! जिस चीज़ का वादा उनसे किया जा रहा है, वह यदि तू मुझे दिखाए

23|94|तो मेरे रब! मुझे उन अत्याचारी लोगों में सम्मिलित न करना।"

23|95|निश्चय ही हमें इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि हम उनसे जो वादा कर रहे है, वह तुम्हें दिखा दें।

23|96|बुराई को उस ढंग से दूर करो, जो सबसे उत्तम हो। हम भली-भाँति जानते है जो कुछ बातें वे बनाते है

23|97|और कहो, "ऐ मेरे रब! मैं शैतान की उकसाहटों से तेरी शरण चाहता हूँ

23|98|और मेरे रब! मैं इससे भी तेरी शरण चाहता हूँ कि वे मेरे पास आएँ।" -

23|99|यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु आ गई तो वह कहेगा, "ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे। - ताकि जिस (संसार) को मैं छोड़ आया हूँ

23|100|उसमें अच्छा कर्म करूँ।" कुछ नहीं, यह तो बस एक (व्यर्थ) बात है जो वह कहेगा और उनके पीछे से लेकर उस दिन तक एक रोक लगी हुई है, जब वे दोबारा उठाए जाएँगे

23|101|फिर जब सूर (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी तो उस दिन उनके बीच रिश्ते-नाते शेष न रहेंगे, और न वे एक-दूसरे को पूछेंगे

23|102|फिर जिनके पलड़े भारी हुए तॊ वही हैं जो सफल।

23|103|रहे वे लोग जिनके पलड़े हल्के हुए, तो वही है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला। वे सदैव जहन्नम में रहेंगे

23|104|आग उनके चेहरों को झुलसा देगी और उसमें उनके मुँह विकृत हो रहे होंगे

23|105|(कहा जाएगा,) "क्या तुम्हें मेरी आयातें सुनाई नहीं जाती थी, तो तुम उन्हें झुठलाते थे?"

23|106|वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! हमारा दुर्भाग्य हमपर प्रभावी हुआ और हम भटके हुए लोग थे

23|107|हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे! फिर हम दोबारा ऐसा करें तो निश्चय ही हम अत्याचारी होंगे।"

23|108|वह कहेगा, "फिटकारे हुए तिरस्कृत, इसी में पड़े रहो और मुझसे बात न करो

23|109|मेरे बन्दों में कुछ लोग थे, जो कहते थे, हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हमपर दया कर। तू सबसे अच्छा दया करनेवाला है

23|110|तो तुमने उनका उपहास किया, यहाँ तक कि उनके कारण तुम मेरी याद को भुला बैठे और तुम उनपर हँसते रहे

23|111|आज मैंने उनके धैर्य का यह बदला प्रदान किया कि वही है जो सफलता को प्राप्त हुए।"

23|112|वह कहेगाः “तुम धरती में कितने वर्ष रहे”?

23|113|वॆ कहेंगेः , "एक दिन या एक दिन का कुछ भाग। गणना करनेवालों से पूछ लीजिए।?"

23|114|वह कहेगा, "तुम ठहरे थोड़े ही, क्या अच्छा होता तुम जानते होते!

23|115|तो क्या तुमने यह समझा था कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और यह कि तुम्हें हमारी और लौटना नहीं है?"

23|116|तो सर्वोच्च है अल्लाह, सच्चा सम्राट! उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, स्वामी है महिमाशाली सिंहासन का

23|117|और जो कोई अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को पुकारे, जिसके लिए उसके पास कोई प्रमाम नहीं, तो बस उसका हिसाब उसके रब के पास है। निश्चय ही इनकार करनेवाले कभी सफल नहीं होगे

23|118|और कहो, "मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और दया कर। तू तो सबसे अच्छा दया करनेवाला है।"

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इन्हें भी देखें

सन्दर्भ:

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite web
  3. Al-Mu'minun सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/23:1 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।