अस-साफ़्फ़ा

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सूरा 'अस-सफ़्फ़ (इंग्लिश: As-Saff) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 61 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 14 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अस-सफ़्फ़ [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अस्-सफ़्फ़[२] नाम दिया गया है।

नाम चौथी आयत के वाक्यांश “जो उसके मार्ग में इस तरह पंक्तिबद्ध होकर ( सफ़्फ़न ) लड़ते हैं" से उद्धृत है। अभिप्राय यह है कि यह वह सूरा है जिसमें ‘सफ़्फ़' शब्दा आया है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मदनी सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत के पश्चात अवतरित हुई।

इसकी वार्ताओं पर विचार करने पर अनुमान होता है कि यह सूरा सम्भवतः उहूद के युद्ध के सांसार्गिक समय में अवतरित हुई होगी, क्योंकि इसमें सूक्ष्मतः जिन स्थितियों की ओर संकेत का आभास होता है वे स्थितियाँ उसी कालखण्ड की हैं।

विषय और वार्ताएँ

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका विषय है मुसलमानों को ईमान में विशुद्धता को अंगीकार करने और अल्लाह के मार्ग में लाने पर उभारना। इसमें कमज़ोर ईमानवाले मुसलमानों को भी सम्बोधित किया गया है, और उन लोगों को भी जो ईमान का झूठा दावा करके इस्लाम में दाख़िल हो गए थे और उनको भी जो निष्ठावान एवं निश्छल थे। वर्णन-शैली से स्वयं ज्ञात हो जाता है कि कहाँ किसको सम्बोधित किया गया है। आरम्भ में समस्त ईमानवालों को सचेत किया गया है अल्लाह की दृष्टि में अत्यन्त घृणित और वैरी हैं वे लोग जो कहें कुछ और करें कुछ, और अत्यन्त प्रिय हैं वे लोग जो सत्य मार्ग में लड़ने के लिए सीसा पिलाई हुई दीवार की तरह डटकर खड़े हों।

फिर आयत 5-7 तक अल्लाह के रसूल (सल्ल.) के समुदाय के लोगों को सावधान किया गया है कि अपने रसूल और अपने धर्म के साथ तुम्हारी नीति वह नहीं होनी चाहिए , जो मूसा (अलै.) और ईसा (अलै.) के साथ बनी इसराईल (इसराईल की सन्तान) ने अपनाई थी। (और जिसका) परिणाम यह हुआ कि उस जाति का मनोदशा - सांचा भी टेढ़ा होकर रह गया। और वह उस मार्गदर्शन पाने में दैवयोग से वंचित हो गया।

फिर आयत 8-9 में पूरी चुनौती के साथ उद्घोषित किया गया कि यहूदी और ईसाई और उनसे साँठ - गाँठ रखनेवाले कपटाचारी अल्लाह के इस प्रकाश को बुझाने का चाहे कितना ही प्रयास कर लें, ये पूर्ण तेजस्विता के साथ संसार में फैलकर रहेगा और बहुदेववादियों को चाहे कितना ही अप्रिय हो, सच्चे रसूल (सल्ल.) का लाया हुआ धर्म हरेक अन्य धर्म पर प्रभावी होकर रहेगा।

तदन्तर आयत 10-13 तक में ईमानवालों को बताया गया है कि लोक और परलोक में सफलता का मार्ग केवल एक है और वह यह है कि अल्लाह और उसके रसूल (सल्ल.) पर सच्चे दिल से ईमान लाओ और अल्लाह के मार्ग में प्राण और धन से जिहाद (जान-तोड़ कोशिश) करो। अन्त में ईमानवालों को शिक्षा दी गई है कि जिस प्रकार हज़रत ईसा (अलै.) के हवारियों ने अल्लाह की राह में उनका साथ दिया था, उसी प्रकार वे भी “अल्लाह के सहायक बनें" ताकि काफ़िरों के मुक़ाबले में उनको भी उसी प्रकार अल्लाह की सहायता और समर्थन प्राप्त हो जिस प्रकार पहले ईमान लानेवालों को प्राप्त था ।

सुरह "अस-सफ़्फ़ का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें As-Saff 61:1

पिछला सूरा:
अल-मुम्तहिना]]
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-जुमुआ
सूरा 61 - अस-साफ़्फ़ा

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सन्दर्भ

इन्हें भी देखें