अल-लैल

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सूरा अल-लैल (इंग्लिश: Al-Lail) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 92 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 21 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-लैल [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-लैल [२] नाम दिया गया है।

नाम पहले ही वाक्यांश के शब्द “क़सम है रात (अल-लैल) की" को सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इस सूरा का विषय सूरा 91(शम्स) से इतना अधिक मिलता-जुलता है कि दोनों सूरतें एक-दूसरे की व्याख्या प्रतीत होती हैं। एक ही बात है जिसे सूरा ‘शम्स' में एक तरीके से समझाया गया है और इस सूरा में दूसरे तरीक़े से। इससे अनुमान होता है कि ये दोनों सूरतें लगभग एक ही समय में अवतरित हुई हैं।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि

इसका विषय जीवन के दो विभिन्न मार्गों का अन्तर और उसके अन्त और परिणामों की भिन्नता बतलाना है। विषय की दृष्टि से यह सूरा दो भागों पर आधारित है।

पहला भाग आरम्भ से आयत 11 तक है और दूसरा भाग आयत 12 से सूरा के अन्त तक है।

पहले भाग में सबसे पहले यह बताया गया है कि मानव-जाति के सभी व्यक्ति, जातियाँ और गिरोह दुनिया में जो भी प्रयास और कर्म कर रहे हैं, वे निश्चय ही अपनी नैतिक जातीयता की दृष्टि से उसी तरह भिन्न है जिस प्रकार दिन, रात से और नर , मादा से भिन्न है। तदन्तर कुरआन की संक्षिप्त सूरतों की सामान्य वर्णन-शैली के अनुसार तीन नैतिक विशिष्टताएँ एक प्रकार की और तीन नैतिक विशिष्टताएँ दूसरे प्रकार के प्रयास एवं कर्म के एक व्यापक संग्रह में से लेकर उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत की गई हैं।

पहले प्रकार की विशिष्टताएँ ये हैं कि आदमी माल दे, ईशभय और संयम अपनाए और भलाई को भलाई माने। दूसरे प्रकार की विशिष्टताएँ ये हैं कि वह कृपणता दिखाए, ईश्वर की प्रसन्नता की चिन्ता से बेपरवाह हो जाए और भली बात को झुठला दे। फिर बताया गया है कि ये दोनों नीतियाँ जो स्पष्टतः एक-दूसरे से भिन्न हैं, अपने परिणामों की दृष्टि से कदापि समान नहीं हैं, बल्कि जितनी अधिक ये जातीयता की दृष्टि से एक-दूसरे के विपरीत हैं, उतने ही अधिक इनके परिणाम भी एक-दूसरे के विपरीत हैं। पहली नीति को जो व्यक्ति या गिरोह अपनाएगा, अल्लाह उसके लिए जीवन के स्वच्छ और सीधे मार्ग को सहज कर देगा, यहाँ तक कि उसके लिए भलाई करना सरल और बुराई करना दुष्कर हो जाएगा। और दूसरी नीति को जो भी अपनाएगा, अल्लाह उसके लिए जीवन के बिकट और कठिन मार्ग को सहज कर देगा, यहाँ तक कि उसके लिए बुराई करना सहज और भलाई करना दुष्कर हो जाएगा।

सूरा के दूसरे भाग में भी इसी प्रकार संक्षिप्त रूप से तीन तथ्यों का उद्घाटन किया गया है। एक, यह कि अल्लाह ने दुनिया के इस परीक्षास्थल में मनुष्य को बेखबर नहीं छोड़ा है बल्कि उसने यह बता देना अपने ज़िम्मे लिया है कि जीवन विभिन्न मार्गों में से सीधा मार्ग कौन-सा है। दूसरा तथ्य, जिसका उद्घाटन किया गया है, यह है कि लोक और परलोक दोनों का मालिक अल्लाह ही है। दुनिया माँगोगे तो वह भी उससे ही मिलेगी और आख़िरत (परलोक) माँगोगे तो उसका देनेवाला भी वही है। यह निर्णय करना तुम्हारा अपना काम है कि तुम उससे क्या माँगते हो। तीसरा तथ्य यह उद्घाटित किया गया है कि जो दुर्भाग्यग्रस्त उस भलाई को झुठलाएगा, जिसे रसूल (सल्ल.) और (ईश्वरीय) किताब के द्वारा प्रस्तुत किया जा रहा है उसके लिए भड़कती हुई आग तैयार है और जो ईश्वर से डरनेवाला मनुष्य पूर्णतः निस्स्वार्थता के साथ केवल अपने प्रभु की प्रशंसा के लिए अपना धन भलाई के मार्ग में खर्च करेगा, उसका प्रभु उससे राज़ी होगा और उसे इतना कुछ देगा कि वह प्रसन्न हो जाएगा।

सुरह "अल-लैल का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
अश-शम्स
क़ुरआन अगला सूरा:
अद-धुहा
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सन्दर्भ

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