अल-ग़ाषियह

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सूरा अल-ग़ाशियह (इंग्लिश: Al-Ghashiyah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 88 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 26 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-ग़ाशियह [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-ग़ाशिया [२] नाम दिया गया है।

अल-ग़ाशियह नाम पहली ही आयत के शब्द “अल-ग़ाशियह" (छा जाने वाली) को इस सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

सूरा का पूरा विषय इस बात को प्रमाणित करता है कि यह भी प्रारम्भिक काल की अवतरित सूरतों में से है, किन्तु यह वह समय था जब नबी (सल्ल.) सामान्य रूप से प्रचार-प्रसार का काम शुरू कर चुके थे और मक्का के लोग साधारणतया सुन-सुनकर उसकी उपेक्षा किए जा रहे थे।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसमें सबसे पहले बेसुध पड़े हुए लोगों को चौकाने के लिए उनके सामने सहसा यह प्रश्न रखा गया है कि तुम्हें उस समय की भी कुछ ख़बर है जब सारे संसार पर छा जानवाली एक आपदा उतरेगी? तदन्तर तुरन्त ही यह विवरण प्रस्तुत करना शुरू कर दिया गया है कि उस समय समस्त मनुष्य दो गिरोहों मे विभक्त होकर दो विभिन्न परिणाम देखेंगे। एक वे जो नरक में जाएँगे। दूसरे, वे जो उच्च जन्नत में प्रवेश करेंगे। इस प्रकार लोगों को चौंकाने के पश्चात् पूर्णतया विषय बदल जाता है और प्रश्न किया जाता है कि ये लोग जो कुरआन के एकेश्वरवाद की शिक्षा और आख़िरत की सूचना को सुनकर नाक-भौं चढ़ा रहे हैं, अपने सामने की उन चीज़ों को नहीं देखते जो हर समय इनके सामने आती रहती हैं? अरब के मरुस्थल में जिन ऊँटों पर इनका सारा जीवन निर्भर करता है कभी ये लोग विचार नहीं करते कि ये कैसे ठीक उन्हीं विशिष्टताओं को लिए हुए बन गए जैसी विशिष्टताओं के जानवर की आवश्यकता इनके मरुस्थलीय जीवन के लिए थी। अपनी यात्राओं में जब ये चलते हैं तो इन्हें या तो आकाश दिखाई देता है या पहाड़ या धरती। इन्हीं तीन चीज़ों पर विचार करें। ऊपर यह आकाश कैसे छा गया? सामने ये पहाड़ कैसे खड़े हो गए? नीचे ये धरती कैसे बिछ गई? क्या यह सब कुछ किसी सर्वशक्तिमान, तत्त्वदर्शी रचनाकार की कारीगरी के बिना हो गया है? यदि ये मानते हैं कि एक स्रष्टा ने बड़ी तत्त्वदर्शीता और बड़ी सामर्थ्य के साध इन चीज़ों को बनाया है और कोई दूसरा इसकी संरचना में साझीदार नहीं है तो उसी को अकेला प्रभु मानने से इन्हें क्यों इनकार है? और यदि ये मानते हैं कि वह ईश्वर सब कुछ पैदा करने की सामर्थ्य रखता था तो आख़िर किस बुद्धिसंगत प्रमाण से इन्हें यह मानने में संकोच है कि वही ईश्वर क़ियामत लाने की सामर्थ्य रखता है? मनुष्य को भी पुनः पैदा करने की भी उसे सामर्थ्य प्राप्त है? जन्नत और नरक बनाने की भी उसे सामर्थ्य है? तदन्त नबी (सल्ल.) को सम्बोधित किया जाता है और आप (सल्ल.) से कहा जाता है कि ये लोग नहीं मानते तो न मानें, आपका काम उपदेश करना है, अतः आप उपदेश किए जाएँ। इन्हें आना हमारे ही पास है उस समय हम इनसे पूरा-पूरा हिसाब ले लेंगे।

सुरह "अल-ग़ाशियह का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
अल-आला
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-फ़ज्र
सूरा 88 - अल-ग़ाषियह

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सन्दर्भ

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