अत-तलाक़

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सूरा अत-तलाक़ (इंग्लिश: At-Talaq) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 65 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 12 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अत-तलाक़ [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अत्-तलाक़[२] नाम दिया गया है।

इस सूरा का नाम ही अत-तलाक़ नहीं है, बल्कि यह इसकी वार्ता का शीर्षक भी है, क्योंकि इसमें तलाक़ ही के नियमों का उल्लेख हुआ है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मदनी सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत के पश्चात अवतरित हुई।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रजि.) ने स्पष्टतः कहा है और सूरा के विषय के आन्तरिक साक्ष्य से भी यही स्पष्ट होता है कि इसका अवतरण अनिवार्यतः सूरा 2 (बक़रा) की उन आयतों के पश्चात् हुआ है जिनमें तलाक़ के नियम-सम्बन्धी आदेश पहली बार दिए गए हैं। उल्लेखों से मालूम होता है कि जब सूरा बक़रा के आदेशों को समझने में लोग ग़लतियाँ करने लगे और व्यवहारतः भी उनसे ग़लतियाँ होने लगीं, तब अल्लाह ने उनके सुधार के लिए ये नियम-सम्बन्धी आदेश अवतरित किए।

विषय और वार्ता

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा के नियम-सम्बन्धी आदेशों को समझने के लिए आवश्यक है कि उन निर्देशों को पुनः मन में ताज़ा कर लिया जाए जो तलाक़ और इद्दत के सम्बन्ध में इससे पहले सूरा 2 (बक़रा) आयत 228, 229, 230, 234, सूरा 33 (अहज़ाब) आयत 49 वर्णित हो चुके हैं। इन आयतों में जो नियम निर्धारित किए गए थे, वे ये थे :

(1) एक पुरुष अपनी पत्नी को अधिक-से- अधिक तीन तलाक़ दे सकता है।

(2) एक या दो तलाक़ देने की स्थिति में इद्त के अन्दर पति को रुजू (अर्थात् बिना निकाह के पुनः दाम्पत्य - सम्बन्ध स्थापित करने) का अधिकार होता है और इद्दत का समय समाप्त होने के पश्चात् वे पुरुष और स्त्री पुनः निकाह करना चाहें तो कर सकते हैं; इसके लिए हलाला की कोई शर्त नहीं है, किन्तु यदि पुरुष तीन तलाक़ दे दे तो इद्दत के भीतर रुजू करने का अधिकार समाप्त हो जाता है और पुनः निकाह भी उस समय तक नहीं हो सकता, जब तक स्त्री का विवाह किसी और पुरुष से न हो जाए और वह अपनी मरज़ी से उसको तलाक़ न दे दे।

(3) वह स्त्री जिसका पति से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित हो चुका हो और जो रजस्वला हो उसकी इद्दत यह है कि उसे तलाक़ के बाद तीन बार हैज़ (मासिक धर्म) आ जाए। एक तलाक़ या दो तलाक़ की स्थिति में इस इद्दत का अर्थ यह है कि स्त्री का अभी तक उस व्यक्ति (पति) से पत्नीत्व का सम्बन्ध पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ है। और वह इद्दत के भीतर उससे रुजू कर सकता है। किन्तु यदि पुरुष तीन तलाक़ दे चुका हो तो यह इद्दत रुजू की सम्भावना के लिए नहीं है, बल्कि केवल इसलिए है कि इसके समाप्त होने से पूर्व स्त्री किसी और व्यक्ति से निकाह नहीं कर सकती है।

(4) वह स्त्री जिसका पति से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित न हुआ हो, जिसके हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दी जाए, उसके लिए इद्दत नहीं है। वह चाहे तो तलाक़ के बाद तुरन्त निकाह कर सकती है।

(5) जिस स्त्री का पति मर जाए उसकी इद्दत 4 महिने 10 दिन है। अब यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि सूरा तलाक़ इन नियमों में से किसी नियम को निरस्त करने या उसमें संशोधन करने के लिए अवतरित नहीं हुई है, बल्कि दो उद्देश्य के लिए अवतरित हुई है। एक यह कि पुरुष को तलाक़ का जो अधिकार दिया गया है, उसे व्यवहार में लाने के लिए ऐसे बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके बताए जाएँ जिनसे यथासम्भव विलगाव की नौबत न आने पाए , क्योंकि ईश्वरीय धर्म-विधान में तलाक़ की गुंजाइश केवल एक अवश्यम्भावी आवश्यकता के रूप में रखी गई है, अन्यथा अल्लाह को यह बात अत्यन्त अप्रिय है कि एक स्त्री और पुरुष के मध्य में जो दाम्पत्य - सम्बन्ध स्थापित हो चुका है, वह फिर कभी टूट जाए। नबी (सल्ल.) का कथन है कि

“अल्लाह ने किसी ऐसी चीज़ को वैध नहीं किया है जो तलाक़ से बढ़कर उसे अप्रिय हो।" (अबू दाऊद )।

दूसरा उद्देश्य यह है कि सूरा 2 (बक़रा) के नियम-सम्बन्धी आदेशों के बाद तदधिक जो समस्याएँ ऐसी रह गई थीं , जो समाधान की प्रतीक्षा में थीं उनका समाधान प्रस्तुत करके इस्लाम के पारिवारिक क़ानून के इस विभाग को पूर्ण कर दिया।

सुरह "अत-तलाक़ का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


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सन्दर्भ

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