अल-आदियात
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क़ुरआन |
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सूरा अल-आदियात (इंग्लिश: Al-Adiyat) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 100 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 11 आयतें हैं।
नाम
इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-आ़दियात [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-आ़दियात [२] नाम दिया गया है।
नाम पहले ही शब्द “अल-आदियात" (दौड़ने वाले) को इसका नाम दिया गया है।
अवतरणकाल
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।
इसके मक्की और मदनी होने में मतभेद है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रजि.) , जाबिर , हसन बसर , इक्रमा और अता कहते हैं कि यह मक्की है। हज़रत अनस बिन मालिक और क़तादा कहते हैं कि यह मदनी है और हज़रत इब्ने अब्बास के दो कथन उल्लिखित हुए हैं। एक , यह कि यह मक्की है और दूसरा यह कि मदनी है। लेकिन सूरा की वार्ता और वर्णन-शैली साफ़ बता रही है कि यह न केवल मक्की है, बल्कि मक्का के भी आरम्भिक काल में अवतरित हुई है।
विषय और वार्ता
इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका उद्देश्य लोगों को यह समझाना । है कि मनुष्य परलोक का इनकार करके या उससे ग़ाफ़िल होकर कैसी नैतिक अक्षमता में गिर जाता है, और साथ-साथ लोगों को इस बात से सावधान भी करना है कि परलोक में केवल उनके बाह्यकर्मों ही की नहीं, बल्कि उनके दिलों में छिपे भेदी तक की जाँच - पड़ताल होगी। इस उद्देश्य के लिए अरब में फैली हुई उस सामान्य अशान्ति को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे सारा देश तंग आ चुका था। हर तरफ़ रक्तपात होता था और लूटमार का बाज़ार गर्म था। क़बीलों पर क़बीले छापे मार रहे थे और कोई व्यक्ति भी रात चैन से नहीं व्यतीत कर सकता था, क्योंकि हर समय यह खटका लगा रहता था कि कब कोई शत्रु प्रातः में उसकी बस्ती पर टूट पड़े। यह एक ऐसी स्थिति थी जिसे अरब के सारे ही लोग जानते थे और इसकी बुराई को महसूस करते थे। यद्यपि लुटने वाला इस पर विलाप करता था और लूटनेवाला इसपर खुश होता था। लेकिन जब किसी समय लूटने वाले की अपनी शामत आ जाती थी तो उसे भी इसकी अनुभूति हो जाती थी कि यह कैसी बुरी दया है, जिसमें हम लोग ग्रस्त हैं । सि स्थिति की ओर संकेत करके यह बताया गया है कि मृत्यु के पश्चात् दूसरा जीवन और उसमें ईश्वर के समक्ष उत्तरदायित्व से अनभिज्ञ होकर मनुष्य अपने प्रभु का कृतघ्न हो गया है। वह ईश्वर की दी हुई शक्तियों को अत्याचार और लूट तथा विनाश के लिए प्रयोग में लाए जा रहा है । वह धन - दौलत के मोह से अन्धा होकर हर तरह से उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है, चाहे वह कैसा ही गन्दा और घिनौना तरीक़ा हो और उसकी हालत स्वयं इस बात की गवाही दे रही है कि वह अपने प्रभु की दी हुई शक्तियों का अनुचित प्रयोग करके उसके आगे अकृतज्ञता दिखा रहा है। उसकी यह नीति कदापि न होती यदि वह उस समय को जानता होता जब क़ब्रों से जीवित होकर उठना होगा और जब वे इरादे और प्रयोजन तथा उद्देश्य तक दिलों से निकाल कर सामने रख दिए जाएंगे, जिसकी प्रेरणा से उसने संसार में तरह - तरह के कार्य किए थे। उस समय मानवों के प्रभु को भली-भांति मालूम होगा कि कौन क्या करके आया है और किसके साथ क्या बरताव किया जाना चाहिए।
सुरह "अल-आदियात का अनुवाद
बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:
क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया:
بسم الله الرحمن الرحيم
साक्षी है जो हाँफते-फुँकार मारते हुए दौड़ते है, (100:1) फिर ठोकरों से चिनगारियाँ निकालते है, (100:2) फिर सुबह सवेरे धावा मारते होते है, (100:3) उसमें उठाया उन्होंने गर्द-गुबार (100:4) और इसी हाल में वे दल में जा घुसे (100:5) निस्संदेह मनुष्य अपने रब का बड़ा अकृतज्ञ हैं, (100:6) और निश्चय ही वह स्वयं इसपर गवाह है! (100:7) और निश्चय ही वह धन के मोह में बड़ा दृढ़ है(100:8) तो क्या वह जानता नहीं जब उगवला लिया जाएगा तो क़ब्रों में है (100:9) और स्पष्ट अनावृत्त कर दिया जाएगा तो कुछ सीनों में है (100:10)निस्संदेह उनका रब उस दिन उनकी पूरी ख़बर रखता होगा(100:11)
बाहरी कडियाँ
इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें
पिछला सूरा: अल-ज़लज़ला |
क़ुरआन | अगला सूरा: अल-क़ारिया |
सूरा 100 - अल-आदियात | ||
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सन्दर्भ