अल-मआरिज

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>SM7Bot द्वारा परिवर्तित १९:२७, १७ नवम्बर २०२१ का अवतरण (→‎इन्हें भी देखें: clean up)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सूरा अल-मआरिज (इंग्लिश: Al-Maarij) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 70 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 44 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-मआ़रिज [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-मआ़रिज[२] नाम दिया गया है।

नाम तीसरी आयत के शब्द “उत्थान की सीढ़ियों का मालिक” (ज़िल-मआरिज) से उद्धृत है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इसकी वार्ताएँ इसकी साक्षी है कि इसका अवतरण भी लगभग उन्हीं परिस्थितियों में हुआ है जिनमें सूरा 69 (अल-हाक़्क़ा) अवतरित हुई थी।

विषय और वार्ताएँ

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि

इसमें उन काफ़िरों (इनकार करनेवालों) को चेतावनी दी गई है और उन्हें उपदेश किया गया है जो क़ियामत और आख़िरत (प्रलय एवं परलोक) की ख़बरों का उपहास करते थे और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को चुनौती देते थे कि यदि तुम सच्चे हो तो वह क़ियामत ले आओ जिससे हमें डराते हो। इस सूरा का समग्र अभिभाषण इस चुनौती के प्रत्युत्तर में है। आरम्भ में कहा गया है कि माँगनेवाला यातना माँगता है! वह यातना इनकार करनेवालों पर अवश्य ही घटित होकर रहेगी। किन्तु वह अपने समय पर घटित होगी।

अतः इसके उपहास करने पर धैर्य से काम लो। ये उसे दूर देख रहे हैं और हम उसे निकट देख रहे हैं। फिर बताया गया है कि क़ियामत , जिसके शीघ्र आने की माँग ये लोग हँसी और खेल समझकर कर रहे हैं, कैसी कष्टदायक वस्तु है और जब वह आएगी तो इन अपराधियों की कैसी बुरी गत होगी। तदन्तर लोगों को अवगत कराया गया है कि उस दिन मानवों के भाग्य का निर्णय सर्वथा उनकी धारणा और नैतिक स्वभाव और कर्म के आधार पर किया जाएगा। जिन लोगों ने संसार में सत्य की ओर से मुँह मोड़ा है, वे नरक के भागी होंगे और जो यहाँ ईश्वरीय यातना से डरे हैं, परलोक को माना है (अच्छे कर्म और अच्छे नैतिक स्वभाव से अपने को सुसज्जित रखा है , ) उनका जन्नत (स्वर्ग) में प्रतिष्ठित स्थान होगा। अन्त में मक्का के उन काफ़िरों को , जो अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को देखकर आपका परिहास करने के लिए चारों ओर से टूट पड़ते थे, सावधान किया गया है कि यदि तुम न मानोंगे तो सर्वोच्च ईश्वर तुम्हारे स्थान पर दूसरे लोगों को ले आएगा और अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को सुझाव दिया गया है कि परिहास की परवाह न करें। ये लोग यदि क़ियामत का अपमान देखने का हठ कर रहे हैं तो इन्हें इनके अपने अशिष्ट कार्यों में व्यस्त रहने दें, अपना बुरा परिणाम ये स्वयं देख लेंगे ।

सुरह "अल-मआरिज का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [३]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
अल-हाक़्क़ा
क़ुरआन अगला सूरा:
अन-नूह
सूरा 70 - अल-मआरिज

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114


इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें