अद-दुख़ान

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>SM7Bot द्वारा परिवर्तित १६:४६, १७ नवम्बर २०२१ का अवतरण (→‎सन्दर्भ:: clean up)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सूरा अद-दुख़ान (इंग्लिश: Ad-Dukhan) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 44 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 37 आयतें हैं।

नाम

सूरा 'अद-दुख़ान[१]या सूरा अद्-दुख़ान[२] का नाम आयत 10 “जब आकाश प्रत्यक्ष दुआँ (दुख़ान) लिए हुए आएगा" के दुख़ान शब्द को इस सूरा का शीर्षक बनाया गया है , अर्थात् यह वह सूरा है जिसमें दुख़ान शब्द आया है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्कन सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई। इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि सूरा की विषय-वस्तुओं के आन्तरिक साक्ष्य से पता चलता है कि यह भी उसी समय अवतरित हुई है जिस समय सूरा 43 (जुख़रुफ़) और उससे पहले की कुछ सूरतें अवतरित हुई थीं, अलबत्ता यह उनसे कुछ बाद की है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (वह भयंकर अकाल है जो सम्पूर्ण क्षेत्र में पड़ा था।)

विषय और वार्ताएँ

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा की भूमिका कुछ महत्त्वपूर्ण वार्ताओं पर आधरित है: एक यह कि यह किताब अपने आप में स्वयं इस बात का स्पष्ट सुबूत है कि यह किसी मानव की नहीं , बल्कि जगत्-प्रभु की किताब है। दूसरे यह कि तुम्हारी दृष्टि में यह एक आपदा है जो तुमपर उतरी है, हालाँकि वास्तव में वह घड़ी अत्यन्त शुभ घड़ी थी जब सर्वोच्च अल्लाह ने सर्वथा अपनी दयालुता के कारण तुम्हारे यहाँ अपना रसूल भेजने और अपनी किताब अवतरित करने का फैसला किया। तीसरे यह कि इस रसूल का उठाया जाना और इस किताब का अवतरण उस विशिष्ट घड़ी में हुआ जब अल्लाह भाग्यों के फ़ैसले किया करता है और अल्लाह के फ़ैसले बोदे नहीं होते कि, जिसका जी चाहे उन्हें बदल डाले, न वे किसी अज्ञान और नादानी पर आधारित होते हैं कि उनमें ग़लती और और स्वामी की कोई आशंका हो। वे तो उस जगत्-शासक के पक्के और अटल फैसले होते हैं जो सुननेवाला, सर्वज्ञ और तत्त्वदर्शी है। उनसे लड़ना कोई खेल नहीं है। चौथे यह कि अल्लाह को तुम ख़ुद भी जगत् की हर चीज़ का मालिक और पालनकर्ता मानते हो। किन्तु इसके बावजूद तुम दूसरों को उपास्य बनाने पर आग्रह करते हो और इसके लिए तर्क तुम्हारे पास इसके सिवा कुछ नहीं है कि बाप-दादा के वक्तों से यही काम होता चला आ रहा है। हालाँकि तुम्हारे बाप-दादा ने यदि यह मूर्खता की थी तो कोई कारण नहीं कि तुम भी आँखें बन्द करके वही (मूर्खता) करते चले जाओ। पाँचवें यह कि अल्लाह की पालन-क्रिया और दयालुता को केवल यही अपेक्षित नहीं है कि तुम्हारा पेट पाले, बल्कि यह भी है कि तुम्हारे मार्गदर्शन का प्रबन्ध करे। इस मार्गदर्शन के लिए उसने रसूल भेजा है और किताब उतारी है। इस भूमिका के बाद उस अकाल के मामले को लिया गया है उस समय पड़ा हुआ था। (और बताया गया है कि यह अकाल-रूपी चेतावनी भी इन सत्य के शत्रुओं की ग़फ़लत (बेसुध अवस्था) दूर न कर सकेगी। इस सम्बन्ध में आगे चलकर फ़िरऔन और उसकी क़ौम का हवाला दिया गया है कि उन लोगों की ठीक इसी प्रकार परीक्षा ली गई थी जो परीक्षा कुरैश के काफ़िर सरदारों की ली जा रही है। उनके पास भी ऐसा ही एक प्रतिष्ठित रसूल आया था। वे भी निशानी-पर-निशानी देखते चले गए, किन्तु अपने दुराग्रह को त्याग न सके। यहाँ तक कि अन्त में रसूल के प्राण लेने पर त्तपर हो गए और परिणाम वह कुछ देखा जो सदैव के लिए शिक्षाप्रद बनकर रह गया। इसके पश्चात् दूसरा विषय परलोक का लिया गया है जिससे मक्का के काफ़िरों को पूर्णतः इनकार था। इसके जवाब में परलोकवाद की धारणा के पक्ष में दो प्रमाण संक्षिप्त रूप में दिए गए हैं। एक यह कि इस धारणा का इनकार सदैव नैतिकता के लिए विनाशकारी सिद्ध होता रहा है। दूसरे यह कि जगत् किसी खिलवाड़ करनेवालों का खेल नहीं है, बल्कि यह एक तत्त्वदर्शिता पर आधारित व्यवस्था है, और तत्त्वदर्शी का कोई कार्य निरर्थक नहीं होता। फिर यह कहकर बात समाप्त कर दी गई है कि तुम लोगों को समझाने के लिए साफ़-सीधी भाषा में और तुम्हारी अपनी भाषा में सत्य अवतरित कर दिया गया है। अब तुम समझाने से नहीं समझते तो प्रतीक्षा करो, हमारा नबी भी प्रतीक्षा कर रहा है। जो कुछ होता है, वह अपने समय पर सामने आ जाएगा।

सुरह "अद-दुख़ान का अनुवाद

अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद" [३] ने किया।

पिछला सूरा:
अज़-ज़ुख़रुफ़
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-जासिया
सूरा 44

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114


इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Ad-Dukhan 44:1

सन्दर्भ:

इन्हें भी देखें