अल-हज

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सूरा अल-हज (इंग्लिश: Al-Hajj) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 22 वां सूरा या अध्याय है। इसमें 78 आयतें हैं।

नाम

सूरा अल्-हज[१] या सूरा अल्-ह़ज्ज [२] सूरा की आयत 27 “और लोगों को हज के लिए सामान्य रूप से घोषित कर दो,” से उद्धृत है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्कन सूरा और मदीनन सूरा

इस सूरा में मक्की और मदनी सूरतों की विशेषताएँ मिली-जुली पाई जाती हैं।
इसी कारण टीकाकारों में इस सम्बन्ध में मतभेद हुआ है कि यह मक्की है या मदनी। लेकिन हमारी दृष्टि में इसकी विषय-वस्तु और वर्णन-शैली का यह रंग इस कारण है कि इसका एक भाग मक्कीकाल के अंत में और दूसरा भाग मदनीकाल के आरंभ में अवतरित हुआ है। इसलिए दोनों कालों की विशेषताएँ इसमें एकत्र हो गई हैं।

प्रारम्भिक भाग का विषय और वर्णन-शैली से साफ़ पता चलता है कि यह मक्का में अवतरित हुआ है और अधिक संभावना इसकी है कि मक्की जीवन के अन्तिम चरण में हिजरत के कुछ पहले अवतरित हुआ है। यह भाग आयत 24 पर समाप्त होता है।

इसके पश्चात् “जिन लोगों ने कुन (इनकार) किया और जो (आज) अल्लाह के मार्ग से रोक रहे हैं' से सहसा विषय का रंग बदल जाता है और साफ़ महसूस होता है कि यहाँ से अन्त तक का भाग मदीना तय्यबा में अवतरित हुआ है। असम्भव नहीं कि यह हिजरत के पश्चात् पहले ही वर्ष ज़िलहिज्जा में अवतरित हुआ हो , क्योंकि आयत 25 41 तक का विषय इसी बात का पता देता है, और आयत 39-40 के अवतरण से सम्बद्ध उल्लेख से भी इसका समर्थन होता है । उस समय मुहाजिर (मक्का त्यागनेवाले मुसलमान) अभी ताज़ा - ताज़ा ही अपने घर-बार छोड़कर मदीना में आए थे । हज के समय में उनको अपना नगर और हज का सम्मेलन याद आ रहा होगा और यह बात बुरी तरह खल रही होगी कि कुरैश के बहुदेववादियों ने उनपर मस्जिदे - हराम ( काबा) का रास्ता तक बन्द कर दिया है। उस समय वे इस बात की प्रतीक्षा में होंगे कि जिन ज़ालिमों ने उनको घर से निकाला , मस्जिदे-हराम के दर्शन से वंचित किया और अल्लाह का मार्ग ग्रहण करने पर उनके जीवन तक को दुष्कर कर उनके विरुद्ध युद्ध करने की अनुमति मिल जाए। यह ठीक मनोवांछित अवसर था इन आयतों के अवतरण का। इसमें पहले तो हज का उल्लेख करते बताया गया है कि यह मस्जिदे-हराम इसलिए बनाई गई थी और यह हज का तरीक़ा इसलिए शुरू किया गया था कि संसार में एक ख़ुदा की बन्दगी की जाए, किन्तु आज वहां बहुदेववादी प्रथा प्रचलित है और एक ख़ुदा की बन्दगी करनेवालों के लिए उसके मार्ग बन्द कर दिये गए हैं । इसके बाद मुसलमानों को अनुज्ञा दे दी गई है कि वे उन ज़ालिमों के विरुद्ध युद्ध करें और उन्हें बहिष्कृत करके देश में वह ठीक व्यवस्था स्थापित करें , जिसमें बुराइयाँ दबे और नेकियाँ विकसित हों। इब्ने - अब्बास , मुजाहिद , उरवह - बिन - जुबैर , ज़ैद - बिन - असलम , मुक़ातिल - बिन - हैयान, क़तादह और दूसरे प्रकाण्ड टीकाकारों का बयान है कि यह पहली आयत है जिसमें मुसलमानों को युद्ध की अनुज्ञा दी गई। और हदीस और सीरत ( नबी सल्ल . की जीवनी ) के उल्लेखों से सिद्ध है कि इस अनुज्ञा के पश्चात तुरन्त ही कुरैश के विरुद्ध व्यवहारतः गतिविधियाँ आरम्भ कर दी गई और पहला अभियान सफ़र सन् 2 हिजरी में लालसागर के तट की ओर अभिमुख हुआ, जो वद्दान के ग़ज़वा या ग़ज़व - ए - अबवा (वद्दान या अबवा के युद्ध) के नाम से प्रसिद्ध है।

विषय और वार्ता

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस सूरा में तीन गिरोहों को सम्बोधित किया गया है। मक्का के बहुदेववादी, दुविधा और संकोच में पड़े हुए मुसलमान और सच्चे ईमानवाले। बहुदेववादियों से संबोधन का आरम्भ मक्का में किया गया और मदीना में उनका क्रम पूरा किया गया । इस संबोधन में उनको बल-पूर्वक सावधान किया गया है कि तुमने दुराग्रह और हठधर्मी के साथ अपने आधारहीन अज्ञानयुक्त विचारों पर आग्रह किया , अल्लाह को छोड़कर उन आराध्यों पर भरोसा किया जिनके पास कोई शक्ति नहीं है और अल्लाह के रसूल को झुठला दिया । अब तुम्हारा परिणाम वही कुछ होकर रहेगा जो तुमसे पहले इस नीति के ग्रहण करनेवालों का हो चुका है । नबी को झुठलाकर और अपनी जाति के स्वस्थतम तत्त्व पर अत्याचार करके तुमने अपना ही कुछ बिगाड़ा है । इसके परिणामस्वरूप ईश्वर का जो प्रकोप तुमपर उतरेगा , उससे तुम्हारे कृत्रिम आराध्य तुम्हें न बचा सकेंगे । इस चेतावनी और डरावे के साथ समझाने - बुझाने का पहलू बिलकुल खाली नहीं छोड़ दिया गया है । पूरी सूरा में जगह - जगह याददियानी और नसीहत भी है और बहुदेववाद के विरूद्ध और एकेश्वरवाद और परलोकवाद के पक्ष में प्रभाव - पूर्ण प्रणाम भी प्रस्तुत किए गए हैं । संकोचग्रस्त मुसलमान जो अल्लाह की बन्दगी स्वीकार तो कर चुके थे , किन्तु इस राह में किसी ख़तरे को सहन करने के लिए तैयार न थे , उनको संबोदित करते हुए कड़ी ताड़ना की गई है । उनसे कहा गया है कि आख़िर कैसा ईमान है कि आराम , खुशी , विलास प्राप्त हो तो ईश्वर तुम्हारा ईश्वर और तुम उसके दास । किन्तु जहाँ ईश्वर के मार्ग में कष्ट आया और कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी , फिर न ईश्वर तुम्हारा ईश्वर रहा और न तुम उसके दास रहे। जबकि तुम अपनी इस नीति से किसी ऐसी आपदा और हानि और कष्ट को नहीं टाल सकते जो ईश्वर ने तुम्हारे भाग्य में लिख दी हो । ईमानवालों से संबोधन दो तरीक़े पर किया गया है। एक संबोधन ऐसा है जिसमें वे स्वयं भी संबोधित हैं और अरब का सामान्य मत भी । और दूसरे संबोधन में केवल ईमानवाले ही संबोधित हैं ।

पहले संबोधन में मक्का के बहुदेववादियों को इस नीति पर पकड़ की गई है कि उन्होंने मुसलमानों के लिए मस्जिदे - हराम का रास्ता बन्द कर दिया है , जबकि मस्जिदे - हराम उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति नहीं है और वे किसी को हज से रोकने का अधिकार नहीं रखते। यह आक्षेप न केवल यह कि अपनी जगह सत्यानुकूल था , बल्कि राजनीति की हैसियत से यह कुरैश के विरूद्ध एक बहुत बड़ा हथियार भी था । इससे अरब के दूसरे सभी क़बीलों के मन में यह प्रश्न उत्पन्न कर दिया गया कि क्या कुरैश हरम (काबा) के प्रबंधक हैं या मालिक ? अगर आज अपनी व्यक्तिगत शत्रुता के कारण वे एक गिरोह को हज से रोक देते हैं और इसे सहन कर लिया जाता है तो क्या वह असंभव है कि कल जिससे भी उनके संबंध बिगड़ जाएंगे , उसको वे हरम की सीमा में प्रवेश करने से रोक देंगे और उसका उमरा और हज बन्द कर देंगे । इस सिलसिले में मस्जिदे - हराम का इतिहास प्रस्तुत करते हुए एक ओर यह बताया गया है कि इबराहीम (अलै . ) ने जब अल्लाह के आदेश से इसका निर्माण किया था तो सब लोगों के लिए हज की सामान्य उद्घोषणा की थी और वहाँ प्रथम दिन से स्थानीय निवासियों और बाहर से आनेवाले के अधिकार समान निर्धारित किए गए थे । दूसरी ओर यह बताया गया है कि यह घर बहुदेववाद के लिए नहीं , बल्कि एक अल्लाह की बन्दगी के लिए निर्मित हुआ था। अब यह क्या घोर अन्याय है कि वहाँ एक ईश्वर की बन्दगी तो हो वर्जित और बुतों की पूजा के लिए हो पूर्ण स्वतंत्रता।

दूसरे संबोधन में मुसलमानों को क़ुरैश के अत्याचार का उत्तर शक्ति द्वारा देने की अनुज्ञा प्रदान की गई है और साथ-साथ उनको यह भी बताया गया है कि जब तुम्हें सत्ता प्राप्त हो तो तुम्हारी नीति क्या होनी चाहिए और अपने शासन में तुमको किस उद्देश्य के लिए काम करना चाहिए । यह विषय सूरा के मध्य में भी है और अन्त में भी । अन्त में ईमानवालों के गिरोह के लिए ' मुस्लिम ' (आज्ञाकारी ) के नाम की विधिवत रूप से घोषणा करते हुए यह कहा गया कि इबराहीम (अलै . ) के वास्तविक उत्तराधिकारी तुम लोग हो , तुम्हारा निर्वाचन इस सेवा के लिए किया गया है कि संसार में लोगों के समक्ष सत्य की गवाही देने के पद पर खड़े हो। अब तुम्हें नमाज़ क़ायम करके , ज़कात देकर और नेकियाँ करके अपने जीवन को उत्तम आदर्श जीवन बनाना चाहिए और अल्लाह पर भरोसा करते हुए अल्लाह का बोल बाला करने के लिए जिहाद ( जानतोड़ प्रयास ) करना चाहिए । इस अवसर पर सूरा 2 ( बक़रा ) और सूरा 8 (अनफ़ाल) के परिचयात्मक लेखों पर दृष्टि डाल ली जाए , तो समझने में ज़्यादा आसानी होगी ।

सुरह अल-हज का अनुवाद

अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

22|1|ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो! निश्चय ही क़ियामत की घड़ी का भूकम्प बड़ी भयानक चीज़ है [३]

22|2|जिस जिन तुम उसे देखोगे, हाल यह होगा कि प्रत्येक दूध पिलानेवाली अपने दूध पीते बच्चे को भूल जाएगी और प्रत्येक गर्भवती अपना गर्भभार रख देगी। और लोगों को तुम नशे में देखोगे, हालाँकि वे नशे में न होंगे, बल्कि अल्लाह की यातना है ही बड़ी कठोर चीज़

22|3|लोगों में कोई ऐसा भी है, जो ज्ञान के बिना अल्लाह के विषय में झगड़ता है और प्रत्येक सरकश शैतान का अनुसरण करता है

22|4|जबकि उसके लिए लिख दिया गया है कि जो उससे मित्रता का सम्बन्ध रखेगा उसे वह पथभ्रष्ट करके रहेगा और उसे दहकती अग्नि की यातना की ओर ले जाएगा

22|5|ऐ लोगो! यदि तुम्हें दोबारा जी उठने के विषय में कोई सन्देह हो तो देखो, हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर लोथड़े से, फिर माँस की बोटी से जो बनावट में पूर्ण दशा में भी होती है और अपूर्ण दशा में भी, ताकि हम तुमपर स्पष्ट कर दें और हम जिसे चाहते है एक नियत समय तक गर्भाशयों में ठहराए रखते है। फिर तुम्हें एक बच्चे के रूप में निकाल लाते है। फिर (तुम्हारा पालन-पोषण होता है) ताकि तुम अपनी युवावस्था को प्राप्त हो और तुममें से कोई तो पहले मर जाता है और कोई बुढ़ापे की जीर्ण अवस्था की ओर फेर दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप, जानने के पश्चात वह कुछ भी नहीं जानता। और तुम भूमि को देखते हो कि सूखी पड़ी है। फिर जहाँ हमने उसपर पानी बरसाया कि वह फबक उठी और वह उभर आई और उसने हर प्रकार की शोभायमान चीज़े उगाई

22|6|यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और वह मुर्दों को जीवित करता है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्ती है

22|7|और यह कि क़ियामत की घड़ी आनेवाली है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। और यह कि अल्लाह उन्हें उठाएगा जो क़ब्रों में है

22|8|और लोगों मे कोई ऐसा है जो किसी ज्ञान, मार्गदर्शन और प्रकाशमान किताब के बिना अल्लाह के विषय में (घमंड से) अपने पहलू मोड़ते हुए झगड़ता है,

22|9|ताकि अल्लाह के मार्ग से भटका दे। उसके लिए दुनिया में भी रुसवाई है और क़ियामत के दिन हम उसे जलने की यातना का मज़ा चखाएँगे

22|10|(कहा जाएगा,) यह उसके कारण है जो तेरे हाथों ने आगे भेजा था और इसलिए कि अल्लाह बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म करनेवाला नहीं

22|11|और लोगों में कोई ऐसा है, जो एक किनारे पर रहकर अल्लाह की बन्दगी करता है। यदि उसे लाभ पहुँचा तो उससे सन्तुष्ट हो गया और यदि उसे कोई आज़माइश पेश आ गई तो औंधा होकर पलट गया। दुनिया भी खोई और आख़िरत भी। यही है खुला घाटा

22|12|वह अल्लाह को छोड़कर उसे पुकारता है, जो न उसे हानि पहुँचा सके और न उसे लाभ पहुँचा सके। यही हैं परले दर्जे की गुमराही

22|13|वह उसको पुकारता है जिससे पहुँचनेवाली हानि उससे अपेक्षित लाभ की अपेक्षा अधिक निकट है। बहुत ही बुरा संरक्षक है वह और बहुत ही बुरा साथी!

22|14|निश्चय ही अल्लाह उन लोगों को, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, ऐसे बाग़ों में दाखिल करेगा, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। निस्संदेह अल्लाह जो चाहे करे

22|15|जो कोई यह समझता है कि अल्लाह दुनिया औऱ आख़िरत में उसकी (रसूल की) कदापि कोई सहायता न करेगा तो उसे चाहिए कि वह आकाश की ओर एक रस्सी ताने, फिर (अल्लाह की सहायता के सिलसिले को) काट दे। फिर देख ले कि क्या उसका उपाय उस चीज़ को दूर कर सकता है जो उसे क्रोध में डाले हुए है

22|16|इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को स्पष्ट आयतों के रूप में अवतरित किया। और बात यह है कि अल्लाह जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है

22|17|जो लोग ईमान लाए और जो यहूदी हुए और साबिई और ईसाई और मजूस और जिन लोगों ने शिर्क किया - इस सबके बीच अल्लाह क़ियामत के दिन फ़ैसला कर देगा। निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में हर चीज़ है

22|18|क्या तुमनें देखा नहीं कि अल्लाह ही को सजदा करते है वे सब जो आकाशों में है और जो धरती में है, और सूर्य, चन्द्रमा, तारे पहाड़, वृक्ष, जानवर और बहुत-से मनुष्य? और बहुत-से ऐसे है जिनपर यातना का औचित्य सिद्ध हो चुका है, और जिसे अल्लाह अपमानित करे उस सम्मानित करनेवाला कोई नहीं। निस्संदेह अल्लाह जो चाहे करता है

22|19|ये दो विवादी हैं, जो अपने रब के विषय में आपस में झगड़े। अतः जिन लोगों ने कुफ्र किया उनके लिए आग के वस्त्र काटे जा चुके है। उनके सिरों पर खौलता हुआ पानी डाला जाएगा

22|20|इससे जो कुछ उनके पेटों में है, वह पिघल जाएगा और खालें भी

22|21|और उनके लिए (दंड देने को) लोहे के गुर्ज़ होंगे

22|22|जब कभी भी घबराकर उससे निकलना चाहेंगे तो उसी में लौटा दिए जाएँगे और (कहा जाएगा,) "चखो दहकती आग की यातना का मज़ा!"

22|23|निस्संदेह अल्लाह उन लोगों को, जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, ऐसे बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचें नहरें बह रही होंगी। वहाँ वे सोने के कंगनों और मोती से आभूषित किए जाएँगे और वहाँ उनका परिधान रेशमी होगा

22|24|निर्देशित किया गया उन्हें अच्छे पाक बोल की ओर और उनको प्रशंसित अल्लाह का मार्ग दिखाया गया

22|25|जिन लोगों ने इनकार किया और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते हैं और प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से, जिसे हमने सब लोगों के लिए ऐसा बनाया है कि उसमें बराबर है वहाँ का रहनेवाला और बाहर से आया हुआ। और जो व्यक्ति उस (प्रतिष्ठित मस्जिद) में कुटिलता अर्थात ज़ूल्म के साथ कुछ करना चाहेगा, उसे हम दुखद यातना का मज़ा चखाएँगे

22|26|याद करो जब कि हमने इबराहीम के लिए अल्लाह के घर को ठिकाना बनाया, इस आदेश के साथ कि "मेरे साथ किसी चीज़ को साझी न ठहराना और मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) करनेवालों और खड़े होने और झुकने और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखना।"

22|27|और लोगों में हज के लिए उद्घोषणा कर दो कि "वे प्रत्येक गहरे मार्ग से, पैदल भी और दुबली-दुबली ऊँटनियों पर, तेरे पास आएँ

22|28|ताकि वे उन लाभों को देखें जो वहाँ उनके लिए रखे गए है। और कुछ ज्ञात और निश्चित दिनों में उन चौपाए अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें दिए है। फिर उसमें से स्वयं भी खाओ और तंगहाल मुहताज को भी खिलाओ।"

22|29|फिर उन्हें चाहिए कि अपना मैल-कुचैल दूर करें और अपनी मन्नतें पूरी करें और इस पुरातन घर का तवाफ़ (परिक्रमा) करें

22|30|इन बातों का ध्यान रखों और जो कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित मर्यादाओं का आदर करे, तो यह उसके रब के यहाँ उसी के लिए अच्छा है। और तुम्हारे लिए चौपाए हलाल है, सिवाय उनके जो तुम्हें बताए गए हैं। तो मूर्तियों की गन्दगी से बचो और बचो झूठी बातों से

22|31|इस तरह कि अल्लाह ही की ओर के होकर रहो। उसके साथ किसी को साझी न ठहराओ, क्योंकि जो कोई अल्लाह के साथ साझी ठहराता है तो मानो वह आकाश से गिर पड़ा। फिर चाहे उसे पक्षी उचक ले जाएँ या वायु उसे किसी दूरवर्ती स्थान पर फेंक दे

22|32|इन बातों का ख़याल रखो। और जो कोई अल्लाह के नाम लगी चीज़ों का आदर करे, तो निस्संदेह वे (चीज़ें) दिलों के तक़वा (धर्मपरायणता) से सम्बन्ध रखती है

22|33|उनमें एक निश्चित समय तक तुम्हारे लिए फ़ायदे है। फिर उनको उस पुरातन घर तक (क़ुरबानी के लिए) पहुँचना है

22|34|और प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुरबानी का विधान किया, ताकि वे उन जानवरों अर्थात मवेशियों पर अल्लाह का नाम लें, जो उसने उन्हें प्रदान किए हैं। अतः तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है। तो उसी के आज्ञाकारी बनकर रहो और विनम्रता अपनानेवालों को शुभ सूचना दे दो

22|35|ये वे लोग है कि जब अल्लाह को याद किया जाता है तो उनके दिल दहल जाते है और जो मुसीबत उनपर आती है उसपर धैर्य से काम लेते है और नमाज़ को क़ायम करते है, और जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसमें से ख़र्च करते है

22|36|(क़ुरबानी के) ऊँटों को हमने तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में से बनाया है। तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः खड़ा करके उनपर अल्लाह का नाम लो। फिर जब उनके पहलू भूमि से आ लगें तो उनमें से स्वयं भी खाओ औऱ संतोष से बैठनेवालों को भी खिलाओ और माँगनेवालों को भी। ऐसी ही करो। हमने उनको तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ

22|37|न उनके माँस अल्लाह को पहुँचते है और न उनके रक्त। किन्तु उसे तुम्हारा तक़वा (धर्मपरायणता) पहुँचता है। इस प्रकार उसने उन्हें तुम्हारे लिए वशीभूत किया है, ताकि तुम अल्लाह की बड़ाई बयान करो, इसपर कि उसने तुम्हारा मार्गदर्शन किया और सुकर्मियों को शुभ सूचना दे दो

22|38|निश्चय ही अल्लाह उन लोगों की ओर से प्रतिरक्षा करता है, जो ईमान लाए। निस्संदेह अल्लाह किसी विश्वासघाती, अकृतज्ञ को पसन्द नहीं करता

22|39|अनुमति दी गई उन लोगों को जिनके विरुद्ध युद्ध किया जा रहा है, क्योंकि उनपर ज़ुल्म किया गया - और निश्चय ही अल्लाह उनकी सहायता की पूरी सामर्थ्य रखता है। -

22|40|ये वे लोग है जो अपने घरों से नाहक़ निकाले गए, केवल इसलिए कि वे कहते है कि "हमारा रब अल्लाह है।" यदि अल्लाह लोगों को एक-दूसरे के द्वारा हटाता न रहता तो मठ और गिरजा और यहूदी प्रार्थना भवन और मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का अधिक नाम लिया जाता है, सब ढा दी जातीं। अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उसकी सहायता करेगा - निश्चय ही अल्लाह बड़ा बलवान, प्रभुत्वशाली है

22|41|ये वे लोग है कि यदि धरती में हम उन्हें सत्ता प्रदान करें तो वे नमाज़ का आयोजन करेंगे और ज़कात देंगे और भलाई का आदेश करेंगे और बुराई से रोकेंगे। और सब मामलों का अन्तिम परिणाम अल्लाह ही के हाथ में है

22|42|यदि वे तुम्हें झुठलाते है तो उनसे पहले नूह की क़ौम, आद और समूद

22|43|और इबराहीम की क़ौम और लूत की क़ौम

22|44|और मदयनवाले भी झुठला चुके है और मूसा को भी झूठलाया जा चुका है। किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी, फिर उन्हें पकड़ लिया। तो कैसी रही मेरी यंत्रणा!

22|45|कितनी ही बस्तियाँ है जिन्हें हमने विनष्ट कर दिया इस दशा में कि वे ज़ालिम थी, तो वे अपनी छतों के बल गिरी पड़ी है। और कितने ही परित्यक्त (उजाड़) कुएँ पड़े है और कितने ही पक्के महल भी!

22|46|क्या वे धरती में चले फिरे नहीं है कि उनके दिल होते जिनसे वे समझते या (कम से कम) कान होते जिनसे वे सुनते? बात यह है कि आँखें अंधी नहीं हो जातीं, बल्कि वे दिल अंधे हो जाते है जो सीनों में होते है

22|47|और वे तुमसे यातना के लिए जल्दी मचा रहे है! अल्लाह कदापि अपने वादे के विरुद्ध न करेंगा। किन्तु तुम्हारे रब के यहाँ एक दिन, तुम्हारी गणना के अनुसार, एक हजार वर्ष जैसा है

22|48|कितनी ही बस्तियाँ है जिनको मैंने मुहलत दी इस दशा में कि वे ज़ालिम थीं। फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और अन्ततः आना तो मेरी ही ओर है

22|49|कह दो, "ऐ लोगों! मैं तो तुम्हारे लिए बस एक साफ़-साफ़ सचेत करनेवाला हूँ।"

22|50|फिर जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए क्षमादान और सम्मानपूर्वक आजीविका है

22|51|किन्तु जिन लोगों ने हमारी आयतों को नीचा दिखाने की कोशिश की, वही भड़कती आगवाले है

22|52|तुमसे पहले जो रसूल और नबी भी हमने भेजा, तो जब भी उसने कोई कामना की तो शैतान ने उसकी कामना में विघ्न डालता है, अल्लाह उसे मिटा देता है। फिर अल्लाह अपनी आयतों को सुदृढ़ कर देता है। - अल्लाह सर्वज्ञ, बड़ा तत्वदर्शी है

22|53|ताकि शैतान के डाले हुए विघ्न को उन लोगों के लिए आज़माइश बना दे जिनके दिलों में रोग है और जिनके दिल कठोर है। निस्संदेह ज़ालिम परले दर्ज के विरोध में ग्रस्त है। -

22|54|और ताकि वे लोग जिन्हें ज्ञान मिला है, जान लें कि यह तुम्हारे रब की ओर से सत्य है। अतः वे इसपर ईमान लाएँ और उसके सामने उनके दिल झुक जाएँ और निश्चय ही अल्लाह ईमान लानेवालों को अवश्य सीधा मार्ग दिखाता है

22|55|जिन लोगों ने इनकार किया वे सदैव इसकी ओर से सन्देह में पड़े रहेंगे, यहाँ तक कि क़ियामत की घड़ी अचानक उनपर आ जाए या एक अशुभ दिन की यातना उनपर आ पहुँचे

22|56|उस दिन बादशाही अल्लाह ही की होगी। वह उनके बीच फ़ैसला कर देगा। अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे नेमत भरी जन्नतों में होंगे

22|57|और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, उनके लिए अपमानजनक यातना है

22|58|और जिन लोगों ने अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़ा, फिर मारे गए या मर गए, अल्लाह अवश्य उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान करेगा। और निस्संदेह अल्लाह ही उत्तम आजीविका प्रदान करनेवाला है

22|59|वह उन्हें ऐसी जगह प्रवेश कराएगा जिससे वे प्रसन्न हो जाएँगे। और निश्चय ही अल्लाह सर्वज्ञ, अत्यन्त सहनशील है

22|60|यह बात तो सुन ली। और जो कोई बदला लें, वैसा ही जैसा उसके साथ किया गया और फिर उसपर ज़्यादती की गई, तो अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा। निश्चय ही अल्लाह दरगुज़र करनेवाला (छोड़ देनेवाला), बहुत क्षमाशील है

22|61|यह इसलिए कि अल्लाह ही है जो रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में पिरोता हुआ ले आता है। और यह कि अल्लाह सुनता, देखता है

22|62|यह इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे उसको छोड़कर पुकारते है, वे सब असत्य है, और यह कि अल्लाह ही सर्वोच्च, महान है

22|63|क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह आकाश से पानी बरसाता है, तो धरती हरी-भरी हो जाती है? निस्संदेह अल्लाह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखनेवाला है

22|64|उसी का है जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है। निस्संदेह अल्लाह ही निस्पृह प्रशंसनीय है

22|65|क्या तुमने देखा नहीं कि धरती में जो कुछ भी है उसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए वशीभूत कर रखा है और नौका को भी कि उसके आदेश से दरिया में चलती है, और उसने आकाश को धरती पर गिरने से रोक रखा है। उसकी अनुज्ञा हो तो बात दूसरी है। निस्संदेह अल्लाह लोगों के हक़ में बड़ा करुणाशील, दयावान है

22|66|और वही है जिसने तुम्हें जीवन प्रदान किया। फिर वही तुम्हें मृत्यु देता है और फिर वही तुम्हें जीवित करनेवाला है। निस्संदेह मानव बड़ा ही अकृतज्ञ है

22|67|प्रत्येक समुदाय के लिए हमने बन्दगी की एक रीति निर्धारित कर दी है, जिसका पालन उसके लोग करते है। अतः इस मामले में वे तुमसे झगड़ने की राह न पाएँ। तुम तो अपने रब की ओर बुलाए जाओ। निस्संदेह तुम सीधे मार्ग पर हो

22|68|और यदि वे तुमसे झगड़ा करें तो कह दो कि "तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है

22|69|अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा, जिसमें तुम विभेद करते हो।"

22|70|क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाश और धरती मैं हैं? निश्चय ही वह (लोगों का कर्म) एक किताब में अंकित है। निस्संदेह वह (फ़ैसला करना) अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है

22|71|और वे अल्लाह से इतर उनकी बन्दगी करते है जिनके लिए न तो उसने कोई प्रमाण उतारा और न उन्हें उनके विषय में कोई ज्ञान ही है। और इन ज़ालिमों को कोई सहायक नहीं

22|72|और जब उन्हें हमारी स्पष्ट आयतें सुनाई जाती है, तो इनकार करनेवालों के चेहरों पर तुम्हें नागवारी प्रतीत होती है। लगता है कि अभी वे उन लोगों पर टूट पड़ेगे जो उन्हें हमारी आयतें सुनाते है। कह दो, "क्या मैं तुम्हे इससे बुरी चीज़ की ख़बर दूँ? आग है वह - अल्लाह ने इनकार करनेवालों से उसी का वादा कर रखा है - और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।"

22|73|ऐ लोगों! एक मिसाल पेश की जाती है। उसे ध्यान से सुनो, अल्लाह से हटकर तुम जिन्हें पुकारते हो वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते। यद्यपि इसके लिए वे सब इकट्ठे हो जाएँ और यदि मक्खी उनसे कोई चीज़ छीन ले जाए तो उससे वे उसको छुड़ा भी नहीं सकते। बेबस और असहाय रहा चाहनेवाला भी (उपासक) और उसका अभीष्ट (उपास्य) भी

22|74|उन्होंने अल्लाह की क़द्र ही नहीं पहचानी जैसी कि उसकी क़द्र पहचाननी चाहिए थी। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त बलवान, प्रभुत्वशाली है

22|75|अल्लाह फ़रिश्तों में से संदेशवाहक चुनता और मनुष्यों में से भी। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है

22|76|वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते है

22|77|ऐ ईमान लानेवालो! झुको और सजदा करो और अपने रब की बन्दही करो और भलाई करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो

22|78|और परस्पर मिलकर जिहाद करो अल्लाह के मार्ग में, जैसा कि जिहाद का हक़ है। उसने तुम्हें चुन लिया है - और धर्म के मामले में तुमपर कोई तंगी और कठिनाई नहीं रखी। तुम्हारे बाप इबराहीम के पंथ को तुम्हारे लिए पसन्द किया। उसने इससे पहले तुम्हारा नाम मुस्लिम (आज्ञाकारी) रखा था और इस ध्येय से - ताकि रसूल तुमपर गवाह हो और तुम लोगों पर गवाह हो। अतः नमाज़ का आयोजन करो और ज़कात दो और अल्लाह को मज़बूती से पकड़े रहो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो क्या ही अच्छा संरक्षक है और क्या ही अच्छा सहायक!

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इन्हें भी देखें

सन्दर्भ:

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite web
  3. Al-Hajj सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/22:1 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।