साद (सूरा)

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सूरा साद (इंग्लिश: Ṣād (surah) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 38 वां सूरा या अध्याय है। इसमें 88 आयतें हैं।

नाम

सूरा सॉद.[१] या सूरा साद[२] सूरा के आरम्भ ही के अक्षर सॉद को इस सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्कन सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय, हिजरत से पहले अवतरित हुई।

यह सूरा उस समय अवतरित हुई थी जब नबी (सल्ल.) ने मक्का मुअज्जमा में खुले तौर पर आह्वान का आरम्भ किया था। कुछ दूसरे उल्लेख इसके अवतरण को हज़रत उमर (रजि.) के ईमान लाने के पश्चात् की घटना बताते हैं। एक और उल्लेखों के सिलसिले से ज्ञात होता है कि इसका अवतरणकाल नुबूवत का दसवाँ या ग्यारहवाँ वर्ष है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इमाम अहमद , नसई और तिरमिज़ी आदि ने जो उल्लेख उद्धृत किए हैं उनका सारांश यह है कि जब अबू तालिब बीमार हुए और कुरैश के सरदारों ने महसूस किया कि अब यह इनका अन्तिम समय है, तो उन्होंने आपस में परामर्श किया कि चलकर महाशय से बात करनी चाहिए। वे हमारा और भतीजे का झगड़ा चुका जाएँ तो अच्छा है। इस पर सब सहमत हो गए और कुरैश के लगभग 25 सरदार, जिनमें अबू जहल, अबू सुफ़ियान, उमैया बिन ख़ल्फ, आस बिन वाइल, अस्वद बिन मुत्तलिब, उक़बा बिन अबी मुऐत, उतबा और शैबा सम्मिलित थे, अबू तालिब के पास पहुँचे। इन लोगों ने पहले तो अपनी सामान्य नीति के अनुसार नबी (सल्ल.) के विरुद्ध अपनी शिकायतें बयान की, फिर कहा कि हम आपके सामने एक न्याय की बात रखने आए हैं। आपका भतीजा हमें हमारे धर्म पर छोड़ दे और हम उसे उसके धर्म पर छोड़ देते हैं। किन्तु वह हमारे उपास्यों का विरोध और उनकी निन्दा न करे। इस शर्त पर आप हमसे उसका समझौता करा दें । अबू तालिब ने नबी (सल्ल.) को बुलाया और आप (को वह बात बताई जो कुरैश के सरदारों ने उनसे कही थी।) नबी (सल्ल.) ने जवाब में कहा: चचा जान, मैं तो इनके सामने एक ऐसी बात पेश करता हूँ जिसे अगर ये मान लें तो अरब इनके अधीन हो जाएँ और गैर-अरब इन्हें कर (Tax ) देने लग जाएँ। उन्होंने पूछा: "वह बात क्या है?" आपने कहा : “ ला इला-ह इल्लल्लाह" (अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं।) इसपर वे सब एक साथ उठ खड़े हुए और वे बातें कहते हुए निकल गए जो इस सूरा के आरम्भिक भाग में अल्लाह ने उद्धृत की है।

इब्न साद के उल्लेख के अनुसार , यह अबू तालिब के मरण-रोग की नहीं, बल्कि उस समय की घटना है जब नबी (सल्ल.) ने सामान्य रूप से लोगों को सत्य की ओर बुलाना शुरू कर दिया था और मक्का में निरन्तर ये ख़बरे फैलनी शुरू हो गई थी कि आज अमुक व्यक्ति मुसलमान हो गया और कल अमुक । ज़मखु़सरी, राज़ी, नेसाबूरी और कुछ दूसरे टीकाकार कहते है कि ये प्रतिनिधि-मंडल अबू तालिब के पास उस समय गया था जब हज़रत उमर (रजि.) के ईमान लाने पर कुरैश के सरदार बौखला गए थे। (मानो ये हबशा की हिजरत के पश्चात् की घटना है।)

विषय और वार्ताएँ

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि ऊपर जिस मजलिस का उल्लेख किया गया है उसकी समीक्षा करते हुए इस सूरा का आरम्भ हुआ। काफ़िरों और नबी (सल्ल.) की बातचीत को आधार बनाकर अल्लाह ने बतायाहै कि उन लोगों के इनकार का वास्तविक कारण इस्लामी आह्वान की कोई त्रुटि नहीं है , बल्कि उनका अपना अहंकार और ईर्ष्या और अंधानुसरण परदुराग्रह है। इसके बात अल्लाह ने सूरा के आरम्भिक भाग में भी और अन्तिम वाक्यों में भी काफ़िरों को साफ़-साफ़ चेतावनी दी है कि जिस व्यक्ति का तुम आज मज़ाक़ उड़ा रहे हो, निकट समय में वही विजयी होकर रहेगा और वह समय दूर नहीं जब उसके आगे तुम सब नतमस्तक दिखाई दोगे। फिर निरन्तर नौ पैग़म्बरों का उल्लेख करके , जिनमें हज़रत दाऊद (अलै.) और सुलैमान (अलै.) का वृत्तान्त अत्यन् विस्तृत है। अल्लाह ने यह बात सुननेवालों के हृदयांकित कराई है कि उसका न्याय-विधान बिलकुल निष्पक्ष है। अनुचित बात चाहे कोई भी करे वह उसपर पकड़ता है और उसके यहाँ वही लोग पसन्द किए जाते हैं जो ग़लती पर हठ न करें, बल्कि उससे सचेत होते ही तौबा कर लें। इसके पश्चात् आज्ञाकारी बन्दों और सरकश बन्दों के उस परिणाम का चित्रणकिया गया है जो वे परलोक में देखनेवाले हैं। अन्त में आदम (अलै.) और इबलीस के किस्से का उल्लेख किया गया है और इससे अभीष्ट कुरैश के काफ़िरों को यह बताना है कि मुहम्मद (सल्ल.) के आगे झुकने से जो अहंकार तुम्हें रोक रहा है उसी अहंकार ने आदम के आगे झुकने से इबलीस को रोका था। अतः जो परिणाम इबलीस का होना है वही अन्ततः तुम्हारी भी होना है।

सुरह साद का अनुवाद

अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

38|1|साद। क़सम है, याददिहानी-वाले क़ुरआन की (जिसमें कोई कमी नहीं कि धर्मविरोधी सत्य को न समझ सकें)[३]


38|2|बल्कि जिन्होंने इनकार किया वे गर्व और विरोध में पड़े हुए है

38|3|उनसे पहले हमने कितनी ही पीढ़ियों को विनष्ट किया, तो वे लगे पुकारने। किन्तु वह समय हटने-बचने का न था

38|4|उन्होंने आश्चर्य किया इसपर कि उनके पास उन्हीं में से एक सचेतकर्ता आया और इनकार करनेवाले कहने लगे, "यह जादूगर है बड़ा झूठा

38|5|क्या उसने सारे उपास्यों को अकेला एक उपास्य ठहरा दिया? निस्संदेह यह तो बहुत अचम्भेवाली चीज़ है!"

38|6|और उनके सरदार (यह कहते हुए) चल खड़े हुए कि "चलते रहो और अपने उपास्यों पर जमें रहो। निस्संदेह यह वांछिच चीज़ है

38|7|यह बात तो हमने पिछले धर्म में सुनी ही नहीं। यह तो बस मनघड़त है

38|8|क्या हम सबमें से (चुनकर) इसी पर अनुस्मृति अवतरित हुई है?" नहीं, बल्कि वे मेरी अनुस्मृति के विषय में संदेह में है, बल्कि उन्होंने अभी तक मेरी यातना का मज़ा चखा ही नहीं है

38|9|या, तेरे प्रभुत्वशाली, बड़े दाता रब की दयालुता के ख़ज़ाने उनके पास है?

38|10|या, आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, उन सबकी बादशाही उन्हीं की है? फिर तो चाहिए कि वे रस्सियों द्वारा ऊपर चढ़ जाए

38|11|वह एक साधारण सेना है (विनष्ट होनेवाले) दलों में से, वहाँ मात खाना जिसकी नियति है

38|12|उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और मेखोंवाले फ़िरऔन ने झुठलाया

38|13|और समूद और लूत की क़ौम और 'ऐकावाले' भी, ये है वे दल

38|14|उनमें से प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया, तो मेरी ओर से दंड अवश्यम्भावी होकर रहा

38|15|इन्हें बस एक चीख की प्रतीक्षा है जिसमें तनिक भी अवकाश न होगा

38|16|वे कहते है, "ऐ हमारे रब! हिसाब के दिन से पहले ही शीघ्र हमारा हिस्सा दे दे।"

38|17|वे जो कुछ कहते है उसपर धैर्य से काम लो और ज़ोर व शक्तिवाले हमारे बन्दे दाऊद को याद करो। निश्चय ही वह (अल्लाह की ओर) बहुत रुजू करनेवाला था

38|18|हमने पर्वतों को उसके साथ वशीभूत कर दिया था कि प्रातःकाल और सन्ध्य समय तसबीह करते रहे।

38|19|और पक्षियों को भी, जो एकत्र हो जाते थे। प्रत्येक उसके आगे रुजू रहता

38|20|हमने उसका राज्य सुदृढ़ कर दिया था और उसे तत्वदर्शिता प्रदान की थी और निर्णायक बात कहने की क्षमता प्रदान की थी

38|21|और क्या तुम्हें उन विवादियों की ख़बर पहुँची है? जब वे दीवार पर चढ़कर मेहराब (एकान्त कक्ष) मे आ पहुँचे

38|22|जब वे दाऊद के पास पहुँचे तो वह उनसे सहम गया। वे बोले, "डरिए नहीं, हम दो विवादी हैं। हममें से एक ने दूसरे पर ज़्यादती की है; तो आप हमारे बीच ठीक-ठीक फ़ैसला कर दीजिए। और बात को दूर न डालिए और हमें ठीक मार्ग बता दीजिए

38|23|यह मेरा भाई है। इसके पास निन्यानबे दुंबियाँ है और मेरे पास एक दुंबी है। अब इसका कहना है कि इसे भी मुझे सौप दे और बातचीत में इसने मुझे दबा लिया।"

38|24|उसने कहा, "इसने अपनी दुंबियों के साथ तेरी दुंबी को मिला लेने की माँग करके निश्चय ही तुझपर ज़ुल्म किया है। और निस्संदेह बहुत-से साथ मिलकर रहनेवाले एक-दूसरे पर ज़्यादती करते है, सिवाय उन लोगों के जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए। किन्तु ऐसे लोग थोड़े ही है।" अब दाऊद समझ गया कि यह तो हमने उसे परीक्षा में डाला है। अतः उसने अपने रब से क्षमा-याचना की और झुककर (सीधे सजदे में) गिर पड़ा और रुजू हुआ

38|25|तो हमने उसका वह क़सूर माफ़ कर दिया। और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः सामीप्य और उत्तम ठिकाना है

38|26|"ऐ दाऊद! हमने धरती में तुझे ख़लीफ़ा (उत्तराधिकारी) बनाया है। अतः तू लोगों के बीच हक़ के साथ फ़ैसला करना और अपनी इच्छा का अनुपालन न करना कि वह तुझे अल्लाह के मार्ग से भटका दे। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटकते है, निश्चय ही उनके लिए कठोर यातना है, क्योंकि वे हिसाब के दिन को भूले रहे।-

38|27|हमने आकाश और धरती को और जो कुछ उनके बीच है, व्यर्थ नहीं पैदा किया। यह तो उन लोगों का गुमान है जिन्होंने इनकार किया। अतः आग में झोंके जाने के कारण इनकार करनेवालों की बड़ी दुर्गति है

38|28|(क्या हम उनको जो समझते है कि जगत की संरचना व्यर्थ नहीं है, उनके समान कर देंगे जो जगत को निरर्थक मानते है।) या हम उन लोगों को जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनके समान कर देंगे जो धरती में बिगाड़ पैदा करते है; या डर रखनेवालों को हम दुराचारियों जैसा कर देंगे?

38|29|यह एक इसकी आयतों पर सोच-विचार करें और ताकि बुद्धि और समझवाले इससे शिक्षा ग्रहण करें।-

38|30|और हमने दाऊद को सुलैमान प्रदान किया। वह कितना अच्छा बन्दा था! निश्चय ही वह बहुत ही रुजू रहनेवाला था।

38|31|याद करो, जबकि सन्ध्या समय उसके सामने सधे हुए द्रुतगामी घोड़े हाज़िर किए गए

38|32|तो उसने कहा, "मैंने इनके प्रति प्रेम अपने रब की याद के कारण अपनाया है।" यहाँ तक कि वे (घोड़े) ओट में छिप गए

38|33|"उन्हें मेरे पास वापस लाओ!" फिर वह उनकी पिंडलियों और गरदनों पर हाथ फेरने लगा

38|34|निश्चय ही हमने सुलैमान को भी परीक्षा में डाला। और हमने उसके तख़्त पर एक धड़ डाल दिया। फिर वह रुजू हुआ

38|35|उसने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे क्षमा कर दे और मुझे वह राज्य प्रदान कर, जो मेरे पश्चात किसी के लिए शोभनीय न हो। निश्चय ही तू बड़ा दाता है।"

38|36|तब हमने वायु को उसके लिए वशीभूत कर दिया, जो उसके आदेश से, जहाँ वह पहुँचना चाहता, सरलतापूर्वक चलती थी

38|37|और शैतानों को भी (वशीभुत कर दिया), प्रत्येक निर्माता और ग़ोताख़ोर को

38|38|और दूसरों को भी जो ज़जीरों में जकड़े हुए रहत

38|39|"यह हमारी बेहिसाब देन है। अब एहसान करो या रोको।"

38|40|और निश्चय ही हमारे यहाँ उसके लिए अनिवार्यतः समीप्य और उत्तम ठिकाना है

38|41|हमारे बन्दे अय्यूब को भी याद करो, जब उसने अपने रब को पुकारा कि "शैतान ने मुझे दुख और पीड़ा पहुँचा रखी है।"

38|42|"अपना पाँव (धरती पर) मार, यह है ठंडा (पानी) नहाने को और पीने को।"

38|43|और हमने उसे उसके परिजन दिए और उनके साथ वैसे ही और भी; अपनी ओर से दयालुता के रूप में और बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए शिक्षा के रूप में।

38|44|"और अपने हाथ में तिनकों का एक मुट्ठा ले और उससे मार और अपनी क़सम न तोड़।" निश्चय ही हमने उसे धैर्यवान पाया, क्या ही अच्छा बन्दा! निस्संदेह वह बड़ा ही रुजू रहनेवाला था

38|45|हमारे बन्दों, इबराहीम और इसहाक़ और याक़ूब को भी याद करो, जो हाथों (शक्ति) और निगाहोंवाले (ज्ञान-चक्षुवाले) थे

38|46|निस्संदेह हमने उन्हें एक विशिष्ट बात के लिए चुन लिया था और वह वास्तविक घर (आख़िरत) की याद थी

38|47|और निश्चय ही वे हमारे यहाँ चुने हुए नेक लोगों में से है

38|48|इसमाईल और अल-यसअ और ज़ुलकिफ़्ल को भी याद करो। इनमें से प्रत्येक ही अच्छा रहा है

38|49|यह एक अनुस्मृति है। और निश्चय ही डर रखनेवालों के लिए अच्छा ठिकाना है

38|50|सदैव रहने के बाग़ है, जिनके द्वार उनके लिए खुले होंगे

38|51|उनमें वे तकिया लगाए हुए होंगे। वहाँ वे बहुत-से मेवे और पेय मँगवाते होंगे

38|52|और उनके पास निगाहें बचाए रखनेवाली स्त्रियाँ होंगी, जो समान अवस्था की होंगी

38|53|यह है वह चीज़, जिसका हिसाब के दिन के लिए तुमसे वादा किया जाता है

38|54|यह हमारा दिया है, जो कभी समाप्त न होगा

38|55|एक और यह है, किन्तु सरकशों के लिए बहुत बुरा ठिकाना है;

38|56|जहन्नम, जिसमें वे प्रवेश करेंगे। तो वह बहुत ही बुरा विश्राम-स्थल है!

38|57|यह है, अब उन्हें इसे चखना है - खौलता हुआ पानी और रक्तयुक्त पीप

38|58|और इसी प्रकार की दूसरी और भी चीज़ें

38|59|"यह एक भीड़ है जो तुम्हारे साथ घुसी चली आ रही है। कोई आवभगत उनके लिए नहीं। वे तो आग में पड़नेवाले है।"

38|60|वे कहेंगे, "नहीं, तुम नहीं। तुम्हारे लिए कोई आवभगत नहीं। तुम्ही यह हमारे आगे लाए हो। तो बहुत ही बुरी है यह ठहरने की जगह!"

38|61|वे कहेंगे, "ऐ हमारे रब! जो हमारे आगे यह (मुसीबत) लाया उसे आग में दोहरी यातना दे!"

38|62|और वे कहेंगे, "क्या बात है कि हम उन लोगों को नहीं देखते जिनकी गणना हम बुरों में करते थे?

38|63|क्या हमने यूँ ही उनका मज़ाक बनाया था, यह उनसे निगाहें चूक गई हैं?"

38|64|निस्संदेह आग में पड़नेवालों का यह आपस का झगड़ा तो अवश्य होना है

38|65|कह दो, "मैं तो बस एक सचेत करनेवाला हूँ। कोई पूज्य-प्रभु नहीं सिवाय अल्लाह के, जो अकेला है, सबपर क़ाबू रखनेवाला;

38|66|आकाशों और धरती का रब है, और जो कुछ इन दोनों के बीच है उसका भी, अत्यन्त प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील।"

38|67|कह दो, "वह एक बड़ी ख़बर है,

38|68|जिसे तुम ध्यान में नहीं ला रहे हो

38|69|मुझे 'मलए आला' (ऊपरी लोक के फ़रिश्तों) का कोई ज्ञान नहीं था, जब वे वाद-विवाद कर रहे थे

38|70|मेरी ओर तो बस इसलिए प्रकाशना की जाती है कि मैं खुल्लम-खुल्ला सचेत करनेवाला हूँ।"

38|71|याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा कि "मैं मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ

38|72|तो जब मैं उसको ठीक-ठाक कर दूँ औऱ उसमें अपनी रूह फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना।"

38|73|तो सभी फ़रिश्तों ने सजदा किया, सिवाय इबलीस के।

38|74|उसने घमंड किया और इनकार करनेवालों में से हो गया

38|75|कहा, "ऐ इबलीस! तूझे किस चीज़ ने उसको सजदा करने से रोका जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से बनाया? क्या तूने घमंड किया, या तू कोई ऊँची हस्ती है?"

38|76|उसने कहा, "मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से पैदा किया।"

38|77|कहा, "अच्छा, निकल जा यहाँ से, क्योंकि तू धुत्कारा हुआ है

38|78|और निश्चय ही बदला दिए जाने के दिन तक तुझपर मेरी लानत है।"

38|79|उसने कहा, "ऐ मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहल्लत दे, जबकि लोग (जीवित करके) उठाए जाएँगे।"

38|80|कहा, "अच्छा, तुझे निश्चित एवं

38|81|ज्ञात समय तक मुहलत है।"

38|82|उसने कहा, "तेरे प्रताप की सौगन्ध! मैं अवश्य उन सबको बहकाकर रहूँगा,

38|83|सिवाय उनमें से तेरे उन बन्दों के, जो चुने हुए है।"

38|84|कहा, "तो यह सत्य है और मैं सत्य ही कहता हूँ

38|85|कि मैं जहन्नम को तुझसे और उन सबसे भर दूँगा, जिन्होंने उनमें से तेरा अनुसरण किया होगा।"

38|86|कह दो, "मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता और न मैं बनानट करनेवालों में से हूँ।"

38|87|वह तो एक अनुस्मृति है सारे संसारवालों के लिए

38|88|और थोड़ी ही अवधि के पश्चात उसकी दी हुई ख़बर तुम्हे मालूम हो जाएगी

पिछला सूरा:
अस-साफ्फात
क़ुरआन अगला सूरा:
अज़-जु़मार
सूरा 38

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इन्हें भी देखें

सन्दर्भ:

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite web
  3. Sad सूरा का हिंदी अनुवाद http://tanzil.net/#trans/hi.farooq/38:1 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।