अल-मुज़्ज़म्मिल

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सूरा अल-मुज़्ज़म्मिल (इंग्लिश: Al-Muzzammil) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 73 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 20 आयतें हैं।

नाम

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-मुज़्ज़म्मिल [१]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-मुज़्ज़म्मिल[२] नाम दिया गया है।

नाम पहली ही आयत के शब्द “अल-मुज़्ज़म्मिल" (औढ़-लपेटकर सोनेवाले) को इस सूरा का नाम दिया गया है। यह केवल नाम है, विषय-वस्तु की दृष्टि से इसका शीर्षक नहीं है।

अवतरणकाल

स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। मक्की सूरा अर्थात पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इस सूरा के दो खण्ड हैं (पहला खण्ड आरम्भ से आयत 19 तक और सूरा का शेष भाग दूसरा खण्ड है।) दोनों खण्ड दो अलग-अलग समयों में अवतरित हुए हैं।

पहला खण्ड सर्वसम्मति से मक्की है। रहा यह प्रश्न कि यह मक्की जीवन के किस कालखण्ड में अवतरित हुआ है , तो इस खण्ड की वार्ताओं के आन्तरिक साक्ष्य (से मालूम होता है कि) पहली बात यह कि यह नबी (सल्ल.) की नुबूवत के प्रारम्भिक काल ही में अवतरित हुआ होगा, जबकि अल्लाह की ओर से इस पद के लिए आपको प्रशिक्षित किया जा रहा था। दूसरी बात यह कि उस समय कुरआन मजीद का कम से कम इतना अंश अवतरित हो चुका था कि उसका पाठ करने में अच्छा-ख़ासा समय लग सके । तीसरी बात यह कि (उस समय) अल्लाह के रसूल (सल्ल.) इस्लाम का खुले रूप में प्रचार करना आरम्भ कर चुके थे और मक्का में आपका विरोध ज़ोरों से होने लगा था।

दूसरे खण्ड के सम्बन्ध में यद्यपि बहुत-से टीकाकारों ने यह विचार व्यक्त किया है कि वह भी मक्का ही में अवतरित हुआ है, किन्तु कुछ दूसरे टीकाकारों ने उसे मदनी ठहराया है।

विषय और वार्ताएँ

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि

पहली 7 आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्ल.) को आदेश दिया गया है कि जिस महान कार्य का बोझ आपपर डाला गया है, उसके दायित्वों के निर्वाह के लिए आप अपने को तैयार करें, और उसका व्यावहारिक रूप यह बताया गया है कि रातों को उठकर आप आधी-आधी रात या उससे कुछ कम-ज़्यादा नमाज़ पढ़ा करें . आयत 8 से 14 तक नबी (सल्ल.) को यह शिक्षा दी गई हैं कि सबसे कटकर उस प्रभु के हो रहें जो सारे जगत् का मालिक है। अपने सारे मामले उसी को सौंपकर निश्चिन्त हो जाएँ। विरोधी जो बातें आपके विरुद्ध बना रहे हैं उनपर धैर्य से काम लें, उनके मुँह न लगें और उनका मामला ईश्वर पर छोड़ दें कि वही उनसे निबट लेगा। इसके बाद आयत 15 से 19 तक मक्का के उन लोगों को , जो अल्लाह के रसूल (सल्ल.) का विरोध कर रहे थे , सावधान किया गया है कि हमने उसी तरह तुम्हारी ओर एक रसूल भेजा है , जिस तरह फ़िरऔन की ओर भेजा था। फिर देख लो कि जब फ़िरऔन ने अल्लाह के रसूल की बात न मानी तो उसका क्या परिणा हुआ। यदि मान लो कि दुनिया में तुमपर कोई यातना नहीं आई तो क़ियामत के दिन तुम कुन (इनकार) के दण्ड से कैसे बच निकलोगे? ये पहले खण्ड की वार्ताएँ हैं।

दूसरे खण्ड में तहज्जुद की नमाज़ (अनिवार्य नमाज़ों के अतिरिक्त रात में पढ़ी जानेवाली नमाज़ जो अनिवार्य तो नहीं है किन्तु ईमानवालों के जीवन में इसका महत्व कुछ कम भी नहीं है ) के सम्बन्ध में उस आरम्भिक आदेश के सिलसिले में कुछ छूट दे दी गई जो पहले खण्ड के आरम्भ में दिया गया था। अब यह आदेश दिया गया कि जहाँ तक तहज्जुद की नमाज़ का सम्बन्ध है , वह तो जितनी आसानी से पढ़ी जा सके ₹, पढ़ लिया करो, किन्तु मुसलमानों को मौलिक रूप से जिस चीज़ का पूर्ण रूप से आयोजन करना चाहिए वह यह है कि पाँच वक्तों की अनिवार्य नमाज़ पूरी पाबन्दी के साथ क़ायम रखें , ज़कात (दान) देने के अनिवार्य कर्तव्य का ठीक - ठीक पालन करते रहें और अल्लाह के मार्ग में अपना माल शुद्धहृदयता के साथ ख़र्च करें। अन्त में मुसलमानों को यह शिक्षा दी गई है कि जो भलाई के काम तुम दुनिया में करोगे, वे विनष्ट नहीं होंगे, बल्कि अल्लाह के यहाँ तुम्हें उनका बड़ा प्रतिदान प्राप्त होगा।

हजरत सैय्यिदना इब्न अब्बास (रज़ि) फरमाते हैं कि

एक सहाबी ने एक बार कब्र पर अपना खेमा लगाया । उनको इस बात का इल्म (जानकारी) नहीं था कि यहाँ पर कब्र है । लेकिन बाद में उनको पता चला कि यहाँ पर किसी शख्स की कब्र है जो सूरह मुल्क पढ़ रहा है और उस ने कब्र के अन्दर पूरी सूरह पढ़ी ।

ये सब जानकर वो सहाबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) की बारग़ाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया :-

या रसूलुल्लाह (स.अ.व) मैंने एक कब्र पर अपना खेमा तान लिया था मगर मुझे यह मालूम नहीं था कि वहाँ पर किसी की कब्र है । जबकि वहाँ एक ऐसे शख्स की कब्र है जो रोज़ाना पूरी सूरह मुल्क पढ़ता है ।

फिर हजरत मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व) ने फरमाया : “यही रोकने वाली है, यही निज़ात दिलाने वाली है, जिसने इस आदमी को अज़ाब-ए-कब्र से महफूज़ रखा ।[३]

सुरह "अल-मुज़्ज़म्मिल का अनुवाद

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [४]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

बाहरी कडियाँ

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


पिछला सूरा:
अल-जिन्न
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-मुद्दस्सिर
सूरा 73 - अल-मुज़्ज़म्मिल

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114


इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite web
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. साँचा:cite web
  5. साँचा:cite web

इन्हें भी देखें