गीतरामायणम्
गीतरामायणम् | |
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गीतरामायणम् (प्रथम संस्करण) का आवरण पृष्ठ | |
लेखक | जगद्गुरु रामभद्राचार्य |
मूल शीर्षक | गीतरामायणम् |
देश | भारत |
भाषा | संस्कृत, हिन्दी |
प्रकार | महाकाव्य |
प्रकाशक | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय |
प्रकाशन तिथि | जनवरी १४, २०११ |
मीडिया प्रकार | मुद्रित (सजिल्द) |
पृष्ठ | ९९८ पृष्ठ (प्रथम संस्करण) |
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गीतरामायणम् (२०११), शब्दार्थ: गीतों में रामायण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००९ और २०१० ई में रचित गीतकाव्य शैली का एक संस्कृत महाकाव्य है। इसमें संस्कृत के १००८ गीत हैं जो कि सात कांडों में विभाजित हैं - प्रत्येक कांड एक अथवा अधिक सर्गों में पुनः विभाजित है। कुल मिलाकर काव्य में २८ सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग में ३६-३६ गीत हैं। इस महाकाव्य के गीत भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गीतों की ढाल, लय, धुन अथवा राग पर आधारित हैं। प्रत्येक गीत रामायण के एक या एकाधिक पात्र अथवा कवि द्वारा गाया गया है। गीत एकालाप और संवादों के माध्यम से क्रमानुसार रामायण की कथा सुनाते हैं। गीतों के बीच में कुछ संस्कृत छंद हैं, जो कथा को आगे ले जाते हैं।
काव्य की एक प्रतिलिपि कवि की हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन संस्कृत कवि अभिराज राजेंद्र मिश्र द्वारा जनवरी १४, २०११ को मकर संक्रांति के दिन किया गया था।[१]
संरचना
काव्य का प्रारम्भ चार श्लोकों में रचित मंगलाचरण द्वारा हुआ है। कवि ने प्रथम दो श्लोकों में राम की और तीसरे श्लोक में हनुमान की कृपा का आह्वान किया है। अन्तिम श्लोक में गीतरामायणम् का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
बालकाण्डम्
सर्ग १. गीतस्तुतसीतारामचन्द्रः शब्दार्थ सीताराम की स्तुतियों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१,२,८–२९ | रामभद्राचार्य | सीता और राम की स्तुति |
३ | रामभद्राचार्य | राम की मानस पूजा |
४ | रामभद्राचार्य | गीतगोविन्द के दशावतारकीर्तिधवलम् के समान राम के दशावतार की स्तुति |
५–७ | रामभद्राचार्य | राम से प्रार्थनाएँ |
३०–३६ | रामभद्राचार्य | क्रमशः भरत, लक्ष्मण, हनुमान, वाल्मीकि, तुलसीदास, अयोध्या और चित्रकूट की स्तुति |
सर्ग २. गीतराघवाविर्भावः शब्दार्थ रामजन्म के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१ | नारद | राम चरित की स्तुति |
२–३ | शिव, विष्णु और देवता, राम | राम से अवतार लेने की प्रार्थना, राम द्वारा रघुवंश में अवतार लेने का आश्वासन |
४ | गंधर्व | शिव का हनुमान रूप में जन्म, अंजना को बधाई |
५ | अग्निदेव | दशरथ को खीर प्रदान करते हुए तीनों रानियों में बाँटने का आदेश |
६,१०,१७,१९ | रामभद्राचार्य | रामनवमी के दिन राम जन्म, शिशु की रूप माधुरी, अयोध्या में हर्षोल्लास |
७–९ | कौशल्या | शिशु राम को सम्बोधन और उनकी स्तुति |
११-१३ | अयोध्यावासी | भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न का जन्म, बधाई गीत |
१४,१५ | देवांगनाएँ | कौशल्या, दशरथ के सौभाग्य की सराहना, राम के दर्शन और नृत्य करने के लिए परस्पर कथन |
१६ | दशरथ | प्रजा से आनन्द मनाने का कथन |
१८ | नापिती (नाईन) | शिशु राम के नख काटने के नेग में नाईन द्वारा कौशल्या से कंगन की माँग |
२०,२१ | अयोध्या की एक बहू | अपनी सासु-माँ को रामनवमी की महत्ता समझाना |
२२,२३,२६–३०,३५–३६ | रामभद्राचार्य | रामनवमी दिन, बधाई गीत, बाल राम का वर्णन |
२४–२५ | सरस्वती | सरस्वती द्वारा दाई के वेष में राम का नाल-छेदन एवं कौशल्या से उपहार के रूप में साड़ी की माँग |
३१–३४ | सखी | चारों भाईयों का जातकर्म संस्कार, छठी एवं द्वादशी |
सर्ग ३. गीतराघवशिशुकेलिः शब्दार्थ शिशु राम की क्रीड़ाओं के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१,३–८,११ | रामभद्राचार्य | मुनि वशिष्ठ द्वारा चारों भाईयों का नामकरण संस्कार, कौशल्या के संग राम का वर्णन |
२ | वशिष्ठ | राम से प्रार्थना |
९,१०,१६ | कौशल्या, सुमित्रा | माताओं की राम के शीघ्र बड़ा होने की कामना |
१२,१३,२३ | सखी | चारों भाईयों का बहिर्निष्क्रमण संस्कार, दशरथ की गोद में राम |
१४,१५,३० | दशरथ (स्वगत) | दशरथ द्वारा अपने सौभाग्य के सम्बन्ध में एकालाप |
१७,१८ | किन्नर, रामभद्राचार्य | झूले पर झूलते राम का वर्णन करती कजरी |
१९,२० | कौशल्या | सखियों से झूला धीरे-धीरे झुलाने का अनुरोध |
२१,२२,२४–२६,३१ | रामभद्राचार्य | झूले पर, दशरथ के आँगन में और कौशल्या के संरक्षण में राम |
२७–२९,३२ | कौशल्या | दशरथ से आँगन में बैठे राम को निहारने का अनुरोध, धूल में खेलते राम की झाँकी का वर्णन |
३३–३५ | कौशल्या | अन्नप्राशन संस्कार के समय कौशल्या द्वारा एक ही समय दो स्थानों पर राम के दर्शन, राम को समर्पण |
३६ | राम | राम द्वारा कौशल्या को विराट् रूप के दर्शन कराना और उनसे भयभीत न होने और इस रूप का ध्यान करने को कहना |
सर्ग ४. गीतराघवबाललीलः शब्दार्थ बाल राम की लीलाओं के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१,३,४ | रामभद्राचार्य | राम का ठुमुक-ठुमुक कर चलना, तीनों माताओं द्वारा राम को स्नान कराने और आभूषण पहनाने की झाँकी |
२ | कैकेयी | खेलते हुए चारों भाईयों की झाँकी के दर्शन का सखी से अनुरोध |
५ | नारद | दशरथ और तीनों रानियों का सौभाग्य |
६,७ | कौशल्या, राम, कैकेयी | राम द्वारा चन्द्रखिलौने का हठ |
८–१३ | कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा | राम को सुलाने के लिए माताओं द्वारा लोरी गाना, प्रातःकाल के समय कौशल्या द्वारा राम को गीत गाकर जगाना |
१४,१६,१७,२० | रामभद्राचार्य | अरुंधती द्वारा राम के मस्तक पर तिलक लगाना, खेलते और भोजन करते हुए राम की झाँकी |
१५,२२ | सखी | अपने भाईयों के संग बाहर खेलने जाते राम की छवि |
१८ | लक्ष्मण | राम को बाहर खेलने के लिए बुलाना |
१९,२१ | कैकेयी | राम से दूर न जाने को कहना, चारों भाईयों की क्रीडा का वर्णन |
२३,२५ | वशिष्ठ | चारों भाईयों का कर्णवेध संस्कार और चूड़ाकरण संस्कार |
२४,२८ | रामभद्राचार्य | कर्णवेध संस्कार के पश्चात राम की छवि, सरस्वती, शेषनाग, शिव एवं श्रुति द्वारा माहेश्वर सूत्र से राम को अक्षर-ज्ञान कराना |
२६,२७ | कौशल्या | राम को भोजन कराने हेतु पकड़ने के लिए उनके पीछे दौड़ना |
२९ | राम | माता-पिता से यज्ञोपवीत की याचना |
३० | कौशल्या | राम के यज्ञोपवीत हेतु दशरथ से अनुनय |
३१,३२ | सरस्वती | चारों भाईयों का यज्ञोपवीत संस्कार |
३३ | वशिष्ठ के शिष्य | वशिष्ठ के आश्रम पर राम का स्वागत |
३४,३५ | रामभद्राचार्य | राम का भाईयों सहित गुरु वशिष्ठ से विद्याध्ययन, अरुन्धती का राम के प्रति स्नेह |
३६ | वशिष्ठ | विद्याध्ययन सम्पन्न होने पर राम को घर लौटने की अनुमति |
सर्ग ५. गीतसीताविर्भावः शब्दार्थ सीता जन्म के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१–४,९ | रामभद्राचार्य | मिथिला की स्तुति, पुण्यारण्य (पुनौरा, सीतामढी) में जनक द्वारा भूमि जोतते समय सीतानवमी के दिन सीता का प्राकट्य, मिथिला में उत्सव |
५ | मिथिला की बालिका | अपनी माँ के समक्ष सीता के प्राकट्य महोत्सव का वर्णन |
६–८ | नारद | सीता स्तुति और उनसे शिशु रूप धारण करने का अनुरोध, जनक की प्रशंसा |
१०,११ | मिथिला के ब्राह्मण | सीता जन्म की बधाई |
१२,१८ | रामभद्राचार्य | सुनयना का सीता के प्रति वात्सल्य प्रेम |
१३ | सुनयना की सखी | आँगन में खेलती सीता |
१४,१५ | सुनयना, मैत्रेयी | सीता का गुणगान |
१६ | रामभद्राचार्य | सीता का सौन्दर्य, क्रीडा एवं राम प्रेम |
१७ | सुनयना | बड़ी होती सीता के लिए राम वर की कामना |
१९,२० | रामभद्राचार्य | तीनों बहिनों माण्डवी, उर्मिला, श्रुतिकीर्ति और आठों सखियों के संग सीता की क्रीडा |
२१–२८ | याज्ञवल्क्य | जनक का सौभाग्य, सीता का नामकरण और गुणगान, उनके आदि शक्ति एवं जगदम्बा होने के रहस्य का उद्घाटन |
२९,३० | सीता | सीता द्वारा मैना और तोते से सीताराम- सीताराम नाम रटन कराना |
३१ | सीता | स्वप्न में एक किशोर (राम) के दर्शन की बात सुनयना के समक्ष प्रकट करना |
३२ | रामभद्राचार्य | सुनयना के कहने पर सीता द्वारा स्वप्न में देखे किशोर (राम) का चित्रांकन |
३३,३४ | सुनयना | सीता को बताना कि चित्र राम का है और राम प्राप्ति हेतु उन्हें पार्वती पूजा का निर्देश |
३५ | रामभद्राचार्य | रामप्रेम विह्वल सीता का सौन्दर्य |
३६ | सीता | राम से प्रार्थना |
सर्ग ६. गीतयुगलकैशोरकः शब्दार्थ किशोरयुगल सीताराम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१–५ | सीता | सीता का राम विरह, राम से दर्शन के लिए निवेदन |
६ | सीता | नारद जी से अपने मनोभिलाषित वर के गुणों का कथन |
७ | नारद | सीता के समक्ष उनके वर रूप में राम का गुण गान |
८–१० | सीता | राम मिलन हेतु नारद से प्रश्न और राम के अवतारी होने के सम्बन्ध में जिज्ञासा |
११–१७ | नारद | अवतारवाद, सगुण और निर्गुण अवधारणाओं का स्पष्टीकरण, कथन कि सीता राम की भक्ति हैं, राम द्वारा मिथिला आकर शिवधनुष भंग करने की भविष्यवाणी |
१८,१९ | सीता | चारुशीला सखी के समक्ष अपने ह्रदय की राम विरह की वेदना का प्रकटन |
२० | सीता | ज्योतिषी वेश में पधारे शिव से राम मिलन के सम्बन्ध में प्रश्न |
२१–२८ | सीता | राम के समीप तोते के रूप में उपस्थित शुकदेव द्वारा पत्र भेजना, पत्र में राम से मिथिला आने के लिए अनुनय |
२९–३५ | राम | सीता को शीघ्र मिथिला आने का आश्वासन देते हुए राम द्वारा प्रत्युत्तर में पत्र भेजना |
३६ | रामभद्राचार्य | राम का पत्र प्राप्त करने पर और उसे पढ़ने के पश्चात सीता की मनोदशा |
सर्ग ७. गीतसीतास्वयंवरोपक्रमः शब्दार्थ सीता स्वयंवर की प्रस्तावना के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१ | सीता | जनक से शिवधनुष के सम्बन्ध में प्रश्न |
२ | रामभद्राचार्य | शिवधनुष खींचकर ले जाती सीता की छवि |
३ | रामभद्राचार्य | ऋषि विश्वामित्र द्वारा सरयू तट पर खेलते चारों भाईयों के दर्शन |
४,६,७ | विश्वामित्र | राम प्रेम, राजसभा में राम दर्शन, दशरथ से राम, लक्ष्मण की माँग |
५ | चारण | राजसभा में विराजमान राम का यश गान |
८,९ | दशरथ | विश्वामित्र को राम, लक्ष्मण देने से मना करना |
१० | वशिष्ठ, अन्य ब्राह्मण | राम और लक्ष्मण को विदा |
११,१२ | देवता | विश्वामित्र के संग चलते राम, लक्ष्मण की झाँकी, प्रकृति से राम को आनन्द पहुँचाने का अनुरोध |
१३ | रामभद्राचार्य | ताड़का, सुबाहु के संहारक और यज्ञ रक्षक राम का जय गान |
१४,१६ | अहल्या | राम से आने की प्रार्थना, उद्धार के पश्चात राम स्तुति |
१५ | विश्वामित्र | राम से गौतम पत्नी अहिल्या के उद्धार की प्रार्थना |
१७ | मिथिलावासी | राम लक्ष्मण की प्रशंसा |
१८ | रामभद्राचार्य | मिथिलावासियों द्वारा राम दर्शन |
१९–२१ | जनक, विश्वामित्र | विश्वामित्र से राम, लक्ष्मण के सम्बन्ध में जिज्ञासा, विश्वामित्र द्वारा परिचय |
२२ | जनक के सभासद | राम लक्ष्मण का जय गान |
२३,२५ | लक्ष्मण, राम | राम से जनकपुर दर्शन की अभिलाषा, राम द्वारा जनकपुर प्रशंसा |
२४,३६ | मिथिला के बालक | राम लक्ष्मण को मिथिला भ्रमण कराना, जीजा के भाव में प्रेम और विदा |
२६–३४ | सीता की आठ सखियाँ | राम लक्ष्मण के सौन्दर्य और गुणों का गान, सीताराम विवाह की कामना, राम से पुष्प वाटिका में आने का अनुरोध |
३५ | ब्राह्मण, सभासद | धनुषयज्ञशाला में राम का स्वागत |
सर्ग ८. गीतसीतानिकेतकः शब्दार्थ सीताप्रिय राम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१,४ | रामभद्राचार्य | राम, लक्ष्मण पुष्प वाटिका में पधारते, सीता भी गौरी पूजन हेतु पधारती |
२ | वृक्ष देवी | वृक्षों से राम का स्वागत करने और उन्हें सुख पहुँचाने का अनुरोध |
३ | सखियाँ | राम को सीता आगमन की सूचना |
५ | सीता | पार्वती से राम प्राप्ति की प्रार्थना |
६–११ | सखी, सीता | सीता को राम लक्ष्मण के आगमन की सूचना, उनके निष्काम सौन्दर्य के दर्शन का आग्रह, सीता को नारद वचन स्मरण |
१२,१३ | सरस्वती, सीता | रोमांचित एवं रामप्रेम में विकल सीता की दशा, सीता प्रकृति से राम का पता पूछतीं |
१४,१५ | सीता, तुलसी | सीता की तुलसी से राम दर्शन की प्रार्थना, तुलसी का आश्वासन |
१६,१९–२५ | राम | लक्ष्मण को सीता आगमन के सम्बन्ध में बताना, सीता के सौन्दर्य की प्रशंसा, विश्वास व्यक्त करना कि सीता पत्नी बनेंगी क्योंकि उनका मन परस्त्रीगामी नहीं |
१७,१८,२६–३१ | रामभद्राचार्य | सीता और राम का परस्पर एक दूसरे को निहारना, सीता द्वारा राम को पतिभाव, लक्ष्मण को वात्सल्य भाव से देखना |
३२–३५ | राम, सीता | राम द्वारा सीता से कुशल पूछना, सीता द्वारा अपनी विरह-पीड़ा व्यक्त करना, राम का आश्वासन और पार्वती के माध्यम से शिव धनुष भंग की आज्ञा दिलाने का अनुरोध |
३६ | रामभद्राचार्य | सखियों द्वारा सीता से कल पुनः आने का हास्य, सीता का नाटकीय कोप |
सर्ग ९. गीतसीतास्वयंवरः शब्दार्थ सीतास्वयंवर के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१–३ | सीता, पार्वती | पार्वती से राम वर की प्रार्थना, पार्वती का आशीर्वचन |
४,५ | राम, विश्वामित्र | गुरु को सीता दर्शन की बात बताना, विश्वामित्र द्वारा सीता से विवाह का आशीर्वाद |
६ | ब्राह्मण | सीता राम विवाह की कामना सहित स्वयंवर देखने के लिए गमन |
७,१० | रामभद्राचार्य | रंगभूमि में पधारते राम, लक्ष्मण एवं तत्पश्चात सीता की छवि |
८,९ | राजागण | दुष्ट राजा राम को देखकर निराश और युद्ध हेतु तत्पर, साधु राजाओं द्वारा राम का गुणगान |
११,१२ | मिथिला की नारियाँ | सीताराम के युगलरूप की झाँकी का वर्णन |
१३ | जनक के वन्दी | जनकप्रतिज्ञा की उद्घोषणा |
१४,१५ | जनक | शिव धनुष तोड़ने में असमर्थ राजाओं के पौरुष को धिक्कार |
१६,१७,१९ | लक्ष्मण, राम | जनक पर क्रोध, राम द्वारा लक्ष्मण को शान्त कराना |
१८ | सीता (स्वगत) | लक्ष्मण की मन ही मन प्रशंसा |
२०,२१,२३,२४ | विश्वामित्र, जनक, | राम को शिव धनुष तोड़ने का आदेश, जनक द्वारा राम की कोमलता का वर्णन, विश्वामित्र द्वारा राम के समक्ष जनक का प्रेम और जनक के समक्ष राम के परब्रह्म रूप का वर्णन |
२२,२५ | सरस्वती, रामभद्राचार्य | धनुष तोड़ने हेतु रंगमंच से नीचे आते राम की छवि |
२६ | सीता | गणेश, पार्वती एवं शिव की स्तुति |
२७ | शिव | धनुष भंग कर सीता से विवाह करने का राम से अनुरोध |
२८–३३,३५,३६ | रामभद्राचार्य | राम द्वारा शिव धनुष भंजन, सीता का जयमाल लेकर पधारना, राम के वक्ष:स्थल में अपनी छवि देखकर चकित होना, भौंरों से भय, जयमाल पहनाना, मिथिला में उत्सव |
३४ | सखी | सीताराम की अनन्यता का वर्णन और सीता से जयमाल पहनने का अनुरोध |
सर्ग १०. गीतसीतारामपरिणयः शब्दार्थ सीताराम विवाह के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१ | तीनों माताएँ | बारात सजाने और उसके स्वागत के लिए निर्देश |
२ | रामभद्राचार्य | राम द्वारा मालिनी से स्वप्न में सीता के चित्र से युक्त मौरी बनाने का अनुरोध |
३,४ | रामभद्राचार्य | बहिन शान्ता राम को तेल-हल्दी लगातीं और कैकेयी से नेग में राम को मांगतीं |
५ | माताएँ, सीता | माताएँ वृक्ष, लता के व्याज से सीताराम प्रशंसा करतीं, सीता उत्तर में राम से अपनी अभिन्नता बतातीं |
६ | रामभद्राचार्य | राम विवाह हेतु तत्पर दशरथ, सुमन्त्र, भरत एवं शत्रुघ्न के साथ |
७–१० | देवांगनाएँ, मिथिलानियाँ | विवाह पंचमी के गीतों का गान, घोड़े पर विराजमान राम के दर्शन |
११,१२ | रामभद्राचार्य | जनक के द्वार पर दूल्हा राम की झाँकी, सुनयना द्वारा परिछन |
१३–१८ | सखियाँ, रामभद्राचार्य | मण्डप में विराजमान दूल्हा राम की छवि, सखियाँ राम से धीरे-धीरे चलने का आग्रह करतीं, युगल सरकार की झाँकी, बारातियों द्वारा सीता दर्शन |
१९–२४ | सरस्वती, रामभद्राचार्य, सखियाँ | सीताराम द्वारा गणेश, गौरीपूजन, सुनयना-जनक राम के चरण पखारते, जनक कन्यादान करते |
२५–२७,२९,३० | रामभद्राचार्य | सीताराम अग्नि की भाँवरी देते, राम सीता की माँग में सिंदूर भरते, सीताराम की छवि |
२८ | वशिष्ठ | राम को सिंदूरदान का आदेश |
३१–३३ | सखियाँ | चारों दूल्हों की चाल पर हास्य, दूल्हों द्वारा भोजन एवं मिथिला की मीठी गालियों का रसास्वादन |
३४–३६ | रामभद्राचार्य | जनकपुर में होली खेलते राम |
सर्ग ११. गीतसीतारामप्रत्युद्गमोत्सवः शब्दार्थ सीताराम के अयोध्या आगमन पर आयोजित उत्सव के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१ | रामभद्राचार्य | राम की प्रशंसा |
२ | जनक | सीता विदाई पर रुदन |
३–४ | सीता | पालकी में जातीं सीता द्वारा वृक्ष-लताओं, पशु-पक्षियों से करुण विदा |
५ | सुनयना | राम से सीता की उचित देखभाल करने की विनय |
६–१२ | देवांगना, अयोध्यावासी, सखियाँ | अयोध्या में पधार रहीं सीता बहूरानी की झाँकी, सीता का स्वागत |
१३–१५ | रामभद्राचार्य, कैकेयी | पालकी में विराजमान सीता का सौन्दर्य देख कैकेयी चकित होतीं, सीता का स्वागत, सखियों को सीता के दर्शन हेतु बुलातीं |
१६,१७ | कैकेयी | पालकी से उतरतीं सीता की झाँकी, सीता द्वारा फेंकी गईं आटे की गोलियों को दौड़कर उठाते राम |
१८,१९ | अरुंधती | सीता से पालकी से उतरने का अनुरोध, प्रणाम करतीं सीता को आशीर्वचन |
२०,२१ | माताएँ | दुलहिन-दूल्हा की मंगल आरती |
२२,२३ | रामभद्राचार्य | सीता की राम दर्शन की विकलता देख सखियों का मुस्कुराना, सीता दर्शन से रोमांचित कौशल्या |
२४,२५ | सरस्वती | अरुंधती को राजभवन के द्वार पर पधारतीं सीता के दर्शन कराना |
२६–२८ | रामभद्राचार्य | राजद्वार पर विराजमान चारों जोड़ियों को निहारतीं तीनों माताएँ, कौशल्या द्वारा सीताराम की परिछन |
२९,३० | सात सौ माताएँ | सीताराम की परिछन |
३१,३२ | कौशल्या | सीता को मुँहदिखाई के नेग में राम को सौंपतीं |
३३,३४ | रामभद्राचार्य | कौशल्या राम की कोमल भुजाएँ देख उनके वीर कार्यों पर आश्चर्य करतीं |
३५,३६ | रामभद्राचार्य | सीताराम का सरयू तट पर विहार |
अयोध्याकाण्डम्
सर्ग १२. गीतसीतारामवनविहार: शब्दार्थ सीताराम के वनविहार के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१–५ | सखियाँ | सीताराम विहार |
६ | राम | सीता से परस्पर अभिन्नता का वर्णन |
७–१६,३१–३६ | रामभद्राचार्य | सीताराम विहार |
१७–२० | सीता | राम पर प्रणयकोप |
२१–३० | राम | कुपित सीता को मनाते राम, अपने एकपत्नीव्रत का प्रकटन |
सर्ग १३. गीतसीतारामहोलीविहार: शब्दार्थ सीताराम द्वारा होली खेलने के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१,२,४,९ | रामभद्राचार्य | सरयू तट पर होली खेलते राम |
३,५,७,८ | राम | सीता से होली खेलने के लिए अनुरोध करते राम |
६ | सखी | राम से गुलाल फेंकने को मना करना |
११ | सीता | राम से पिचकारी माँगतीं सीता |
१०,१२ | रामभद्राचार्य | सीता राम को रंगतीं, नारी वेश पहनातीं |
१३,१४ | रामभद्राचार्य | राम सखा एवं सीता सखियों के मध्य होली, सखी द्वारा लक्ष्मण को रंगकर नारी बनाना |
१५ | मिथिला की सखियाँ | नारी वेश धारी लक्ष्मण से हास्य |
१६,१७,२२–२४,२९,३३,३५,३६ | रामभद्राचार्य | राम द्वारा सीता को रंगना |
१८–२१,३४ | सीता, राम | राम संग होली खेलने को मना करतीं सीता, राम द्वारा कुपित सीता को मनाना |
२५,२६ | रामभद्राचार्य | सीता के कहने पर माण्डवी भरत को रंगतीं और नारी वेश धारण करातीं |
२७,२८ | सीता, राम | सीता राम से महिला वेश पहने भरत को निहारने को कहतीं, राम द्वारा सीता से भरत को छोड़ने का अनुरोध |
३०–३२ | सीता, सखियाँ | सीता सखियों से लक्ष्मण को पकड़ने को कहतीं, लक्ष्मण की चंचलता से कुपित होकर सखियाँ सीता से कहतीं, सीता उन्हें मनातीं |
सर्ग १४. गीतसीतारामदोलोत्सव: शब्दार्थ सीताराम के झूला उत्सव के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१,२,४,६,७,९,३३,३४,३६ | रामभद्राचार्य | मणिपर्वत पर झूला झूलते सीताराम |
३ | सखी | राम से अनुरोध कि लक्ष्मण झूला धीरे-धीरे झुलाएं |
५ | राम | सीता से प्रकृति का वर्णन |
८ | राम | लक्ष्मण से झूला धीरे-धीरे झुलाने को कहते |
१०,११,१७,१९,२० | सखी | अन्य सखियों से राम को झुलाने को कहती |
१२,२८ | सीता | लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न से झूला धीरे-धीरे झुलाने को कहतीं, राम से अनुरोध |
१३,१४,१८,३०,३१,३५ | सीता, सखी | राम से झूला झूलने की विनती |
१५,१६,२९,३२ | सखियाँ | झूला झूलते सीताराम की झाँकी |
२१–२५ | चारुशीला सखी | सीता राम से झूला झूलने की प्रार्थना, सखियों से झूला धीरे-धीरे झुलाने को कहतीं |
२६,२७ | सखियाँ | राम से झूला धीरे-धीरे झुलाने को कहतीं |
सर्ग १५. गीतसीतारामषड्ऋतुविहार: शब्दार्थ सीताराम द्वारा छः ऋतुओं में विहार के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
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१,२,४ | राम, सीता | सीता से उनके सौन्दर्य और शरद ऋतु का वर्णन, सीता द्वारा राम के सौन्दर्य की प्रशंसा |
३,५,६, | रामभद्राचार्य | शरद ऋतु में सीताराम विहार |
७–११ | राम | सीता के समक्ष हेमन्त ऋतु का वर्णन |
१२ | रामभद्राचार्य | हेमन्त ऋतु में सीताराम विहार |
१३–१६ | राम | सीता से शिशिर ऋतु का वर्णन |
१७,१८ | सीताराम | वसंत पंचमी पर सरस्वती से प्रार्थना |
१९–२३ | राम | सीता से वसंत ऋतु का वर्णन |
२४ | सीता | राम के काम विजयी गुण का गान |
२५–२८ | राम, सीता | ग्रीष्म ऋतु का वर्णन |
२९,३० | रामभद्राचार्य | सीता द्वारा राम का शृंगार |
३१ | सखियाँ | मणिपर्वत पर सीताराम विहार |
३२–३४ | राम, सीता | वर्षा ऋतु का वर्णन |
३५,३६ | सीता | राम से बादलों का वर्णन, बादलों से राम के ऊपर वर्षा करने का अनुरोध |
सर्ग १६. गीतराष्ट्रदैवता शब्दार्थ राष्ट्र रूपी देवता के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–३६ | नारद | राम के समक्ष भारतमाता के अनेक संकटों से घिरे होने का वर्णन, यथा-गौहत्या, राजनीति का अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, राष्ट्र का विखंडन, प्रकृति से छेड़छाड़, गंगा प्रदूषण, उत्तराखंड में गंगा का दोहन, नारियों और बच्चों पर अत्याचार, पश्चिमी अंधानुकरण, विदेशी विनिवेश, विदेशी वस्तुओं का प्रयोग, महँगाई, भौतिकवाद, छद्म धर्मनिरपेक्षता, संतों का अपमान, विदेशी घुसपैठ, कश्मीर समस्या, निर्धनता, भूखमरी, अकाल, नारी द्वारा रूप विक्रय, कुलटाओं का सम्मान इत्यादि। राम से राष्ट्र का उद्धार करने हेतु वन गमन की प्रार्थना |
सर्ग १७. गीतराघववनवास: शब्दार्थ रामवनवास के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–६ | राम | सीता के समक्ष भारत दुर्दशा का वर्णन, वन गमन हेतु सीता से मंत्रणा |
७–१२ | सीता | राष्ट्र एवं राम की सेवा हेतु वनवास का कष्ट सहने की तत्परता |
१३–१६ | दशरथ | वशिष्ठ के समक्ष राम राज्याभिषेक की इच्छा प्रकट करना, राम को सूचना |
१७ | राम (स्वगत) | भाईयों के बिना राज्य ग्रहण करने की अनिच्छा |
१८ | देवता | सरस्वती से मन्थरा की बुद्धि बिगाड़ने की प्रार्थना |
१९–२७ | दशरथ | कोपभवन में कुपित कैकेयी से विनती |
२८–३० | राम, कैकेयी | कैकेयी से पिता की व्याकुलता का कारण पूछना, कैकेयी द्वारा दो वरदानों के बारे में बताने पर राम की वन गमन की प्रतिज्ञा |
३१ | राम | राज्याभिषेक के उपकरणों की प्रदक्षिणा |
३२,३३ | राम, कौशल्या | कौशल्या से आज्ञा माँगना, कौशल्या द्वारा अनुमति |
३४ | लक्ष्मण | राम के संग वन चलने की विनती |
३५ | सुमित्रा | सीताराम को माता-पिता मानकर सेवा करने की आज्ञा |
३६ | रामभद्राचार्य | दशरथ से अनुमति लेकर राम द्वारा सीता, लक्ष्मण सहित वन प्रस्थान |
सर्ग १८. गीतपथिकाभिराम: शब्दार्थ सुंदर पथिकों के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१,२ | रामभद्राचार्य | सीता, लक्ष्मण सहित वन की ओर जा रहे राम की झाँकी और जयगान |
३ | पथिक | पथिकों का रामप्रेम |
४–६ | वनदेवियाँ | प्रकृति से राम का स्वागत, दर्शन और सेवा करने की प्रार्थना |
७,८ | सीता | राम से वन की दूरी पूछना |
९,१० | केवट | राम से चरण प्रक्षालन का आग्रह |
११ | रामभद्राचार्य | केवट राम के चरणों को पखारता |
१२ | केवट | गंगा मैया से धीरे-धीरे बहने की प्रार्थना |
१३–१५ | ग्रामीण | राम से अमराई में विश्राम का निवेदन, तीनों पथिकों की झाँकी |
१६–२१,२३,२४ | ग्राम वधुएँ | पथिकों के परिचय की उत्सुकता, तीनों के सौंदर्य और चलने की रीति का वर्णन |
२२ | ग्राम वधू | सासु माँ से सीता के सौंदर्य के दर्शन का अनुरोध |
२५–३० | ग्रामपुरुष | पथिकों से परिचय पूछना और विश्राम करने को कहना |
३१,३२ | ग्राम वधुएँ, सीता | सीता से राम लक्ष्मण का परिचय पूछना, सीता द्वारा बताना |
३३–३५ | ग्राम वधुएँ | ब्रह्मा और प्रकृति को कोसना |
३६ | ग्राम वधुएँ | राम द्वारा चित्रकूट में कुटी बनाकर रहने का वर्णन |
सर्ग १९. गीतायोध्यकविरहालम्बन: शब्दार्थ राम विरहमग्न अयोध्या से सम्बन्धित गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१ | अयोध्यावासी | राम विरह में शोक, राम से अयोध्या लौटकर आने की प्रार्थना |
२,३ | सुमन्त्र (स्वगत) | सीताराम लक्ष्मण बिना अयोध्या न जाने की इच्छा |
४–६ | माताएँ | राम लक्ष्मण विरह, ब्रह्मा को कोसना |
७–९,१३ | कौशल्या | सखी, अरुंधती के समक्ष राम विरह |
१०,११ | कौशल्या | राम से अयोध्या लौटने की करुण विनती |
१२ | रामभद्राचार्य | बाल राम के छोटे-छोटे तीर धनुहियों को निहारकर कौशल्या का रुदन |
१४ | सुमित्रा | राम विरहा कौशल्या को सांत्वना |
१५,१६ | उर्मिला (स्वगत) | पति लक्ष्मण की राम सेवा में बाधक न बनने का निश्चय |
१७ | रामभद्राचार्य | सुमन्त्र की विकल दशा का अयोध्यावासियों द्वारा अवलोकन |
१८ | दशरथ | सुमन्त्र से राम की कुशल पूछना |
१९,२० | राम, सीता | सुमन्त्र के माध्यम से राम का पिता को और सीता का सासु माँ को सन्देश |
२१,२२ | दशरथ | राम विरह में शोक |
२३ | अयोध्यावासी | दशरथ के निधन के पश्चात भरत की प्रतीक्षा |
२४–२८ | भरत, कैकेयी | भरत द्वारा राम के बारे में पूछने पर कैकेयी का उद्घाटन, भरत द्वारा कैकेयी को धिक्कारना, प्रकृति को राम को न रोकने के लिए कोसना |
२९,३० | भरत | अयोध्यावासियों के समक्ष चित्रकूट जाकर राम को लौटाने का निश्चय |
३१,३२ | भरत, कोल-किरात | पथिकों से राम के सम्बन्ध में पूछना, कोल-किरातों द्वारा सांत्वना |
३३–३५ | भरत, राम | राम से अयोध्या लौटने का आग्रह, राम द्वारा चरण पादुका प्रदान, भरत द्वारा चौदह वर्ष पश्चात न लौटने पर अग्निप्रवेश का प्रण |
३६ | माण्डवी (स्वगत) | विधि की विडम्बना पर शोक, पति भरत द्वारा नन्दीग्राम में राम पादुका पूजन का वर्णन |
सर्ग २०. गीतचित्रकूटमण्डन: शब्दार्थ चित्रकूट को शोभित करने वाले सीताराम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–६ | रामभद्राचार्य | चित्रकूट में मंदाकिनी नदी तट पर सीताराम विहार |
७,८ | सीता, लक्ष्मण (स्वगत) | कामदगिरी, अनसूया अत्रि आश्रम, स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी, जानकी कुण्ड युक्त चित्रकूट राम के साथ अतिप्रिय लगता |
९ | लक्ष्मण | सीता (लता), राम (वृक्ष) के सान्निध्य में विश्राम करते स्वयं (पथिक) का सौभाग्य |
१०,१४ | रामभद्राचार्य | चित्रकूट, पयस्विनी नदी का वर्णन |
११–१३,२५ | वासन्ती सखी | सीताराम विहार |
१५–१९ | सीता, राम | एक-दूसरे के साथ चित्रकूट भी साकेत के समान, चित्रकूट में निरंतर रमने का कथन |
२०–२४,३६ | रामभद्राचार्य | चित्रकूट में सीताराम की झाँकी, उनका जयगान |
२६–३० | सीता | राम के रूप, गुण और परमतत्त्व का गान |
३१–३३ | राम | सीता का स्वागत और सौन्दर्य |
३४,३५ | वनदेवियाँ | सीता, राम, लक्ष्मण द्वारा चित्रकूट में विविध क्रिया-कलाप |
अरण्यकाण्डम्
सर्ग २१. गीतललितनरलीला शब्दार्थ सीताराम की सुन्दर नरलीला से सम्बन्धित गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–६ | देवांगनाएँ | चित्रकूट में रमण करते सीता राम, राम के एकपत्नीव्रत की प्रशंसा |
७–१५ | जयंत पत्नी | सीताराम के सौंवे महारास के दर्शन हेतु जयंत से चित्रकूट चलने का अनुरोध |
१६,१७ | राम | सीता से चरण से रक्त बहने का कारण पूछना, जयंत पर ब्रह्मास्त्र संधान |
१८–२० | शची, इंद्र | ब्रह्मास्त्र से रक्षा हेतु आए जयंत को धिक्कारना |
२१,२२ | नारद | जयंत को राम शरण में जाने का उपदेश |
२३,२४ | जयंत | राम से क्षमा याचना |
२५,२६ | राम | अपूर्ण आधा रास द्वापर युग में कृष्ण-राधा के रूप में करने का सीता से कथन, राक्षस-संहार हेतु दण्डक वन जाने का निश्चय |
२७ | कोल-किरात | राम से चित्रकूट छोड़कर न जाने का अनुरोध |
२८ | रामभद्राचार्य | समासोक्ति अलंकार द्वारा विविध रामलीलाओं का वर्णन यथा- अत्रि, शरभंग, सुतीक्ष्ण, अगस्त्य से भेंट, शूर्पणखा को कुरूप बनाना, खर-दूषण त्रिशिरा संहार, मारीचवध, सीताहरण, जटायु को गति, शबरी के फल, नारद से भेंट |
२९ | राम | सीता से अग्नि में निवास करने का अनुरोध |
३० | मारीच | रावण को सीताहरण न करने को समझाना |
३१ | सीता | राम से स्वर्णमृग की माँग |
३२ | रामभद्राचार्य | सीता हरण |
३३ | सीता | रावण से रक्षा हेतु जटायु से विनती |
३४ | जटायु | रावण द्वारा सीता हरण की राम को सूचना |
३५ | राम | विरही राम द्वारा जड़चेतन प्रकृति से सीता का पता पूछना |
३६ | रामभद्राचार्य | पम्पा सरोवर के तट पर कुटिया में राम की प्रतीक्षा करती शबरी |
किष्किन्धाकाण्डम्
सर्ग २२. गीतमारुतिजय: शब्दार्थ हनुमान के ह्रदय को जीतने वाले राम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–३ | सुग्रीव | हनुमान को राम, लक्ष्मण के परिचय हेतु भेजना |
४–९ | हनुमान | राम, लक्ष्मण से परिचय पूछना |
१०,११ | राम | लक्ष्मण से हनुमान की वाक्पटुता, ब्रह्मचारी रूप की प्रशंसा |
१२–१४,१६–१९ | राम, हनुमान | राम द्वारा परिचय देने पर प्रेम विह्वल हनुमान का चरणों में गिरना, राम द्वारा आलिंगन, राम को सुग्रीव मैत्री का परामर्श |
१५ | हनुमान | पंचमुखी हनुमान का प्रण |
२०,२१ | रामभद्राचार्य | उड़ते हनुमान की पीठ पर विराजमान राम, लक्ष्मण की झाँकी, सुग्रीव द्वारा दर्शन |
२२ | सुग्रीव | राम को स्वयं का परिचय एवं उनसे मैत्री |
२३–२६ | हनुमान | राम से बालि वध की प्रार्थना, श्रुति में सखा भाव का प्रतिपादन |
२७ | हनुमान | बालि वध एवं चातुर्मास के पश्चात सुग्रीव को रामकार्य हेतु प्रेरणा |
२८ | सुग्रीव | राम से विषयसुखों से रक्षा की प्रार्थना |
२९ | वानर | राम को सीता खोजकर लाने का वचन |
३०,३१ | राम | हनुमान को मुद्रिका प्रदान |
३२ | रामभद्राचार्य | वन पर्वतों में सीता खोज, स्वयंप्रभा द्वारा सागर तट पर भेजना, सम्पाति से भेंट, जाम्बवान द्वारा हनुमान को उनके पराक्रम का स्मरण कराना |
३३ | वानर | वन्य प्राणियों से सीता का पता पूछना |
३४–३६ | जाम्बवान, हनुमान | हनुमान के मौन पर प्रश्न, हनुमान का रौद्ररूप, जाम्बवान का आह्वान |
सुन्दरकाण्डम्
सर्ग २३. गीतहनुमत्पराक्रम: शब्दार्थ हनुमान के पराक्रम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१,२ | किन्नर | लंका प्रस्थान करते हनुमान का जयगान |
३,४ | मैनाक, हनुमान | हनुमान से विश्राम का अनुरोध, हनुमान की विनम्र अस्वीकृति |
५ | हनुमान | सुरसा से राम कार्य हेतु जाने देने का अनुरोध |
६ | रामभद्राचार्य | हनुमान द्वारा सुरसा के मुख में प्रवेश |
७ | सुरसा | हनुमान को जाने की आज्ञा |
८,९ | हनुमान (स्वगत) | राष्ट्र रक्षार्थ स्त्री सिंहिका के वध का निश्चय, लंका प्रवेश की योजना |
१०,११ | हनुमान, लंकिनी | लंकिनी से प्रवेश की प्रार्थना, मुक्का खाने के बाद लंकिनी की विनती |
१२–१४ | हनुमान (स्वगत) | राम स्मरण करते हुए लंका प्रवेश, राक्षसियों को देखते हुए भी ब्रह्मचर्य पालन का विश्वास, विभीषण का गृह देखकर, राम नाम सुनकर उनसे मिलने का निश्चय |
१५–१८ | हनुमान, विभीषण | विभीषण को पुकारना, पूछने पर परिचय देना, विभीषण द्वारा राम मिलन की कामना, हनुमान द्वारा राम शरण में जाने का उपदेश |
१९,२० | रामभद्राचार्य | हनुमान द्वारा अशोकवाटिका में राम-विरहा सीता के दर्शन |
२१–२५ | हनुमान, सीता | सीता को रामकथा सुनाना और मुद्रिका प्रदान, पूछने पर परिचय देकर स्वयं के रामदूत होने का विश्वास दिलाना |
२६–२९ | सीता | हनुमान को वरदान, प्रकट करना कि शिव ही हनुमान हैं |
३० | देवांगना | हनुमान द्वारा लंका-दहन |
३१,३२ | रामभद्राचार्य | लंका दहन की होली खेलते हनुमान, सीता से चूड़ामणि लेकर प्रस्थान और राम को सीता का संदेश |
३३–३६ | राम, हनुमान | हनुमान को आलिंगन, सीता का सन्देश श्रवण, हनुमान द्वारा सीता की विरह दशा का वर्णन |
सर्ग २४. गीतशरणागतवत्सल: शब्दार्थ शरणागतवत्सल राम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–३ | रामभद्राचार्य | राम की वानरसेना का लंका की ओर प्रस्थान |
५–९ | विभीषण (स्वगत) | सीताराम नाम जप, अपने मन को राम भजन की सीख, राम से दर्शन की प्रार्थना |
१०–१५ | विभीषण | राम का गुणगान कर रावण से सीता को लौटाने का आग्रह |
१६–२७ | विभीषण (स्वगत) | रावण द्वारा अपमान करने के बाद राम शरण में जाने का निश्चय, राम से प्रार्थना, राम के चरणों के दर्शन का मनोरथ |
२८,२९ | विभीषण, वानर | वानरों के द्वारा राम को विभीषण की शरणागति का संदेश |
३०,३१ | हनुमान | राम से विभीषण को शरण में लेने की प्रार्थना |
३२,३३ | राम | राम द्वारा शरणागतवत्सलता का परिचय देते हुए सुग्रीव से विभीषण को बुलाने के लिए कहना |
३४,३५ | विभीषण | राम की झाँकी के दर्शन, शरणागति की प्रार्थना |
३६ | राम | विभीषण को तिलक कर लंका प्रदान, एक कल्प की आयु एवं साम्राज्य भोग का वरदान |
युद्धकाण्डम्
सर्ग २५. गीतरणकर्कश: शब्दार्थ भीषण युद्ध करने वाले राम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–४ | राम | सागर सुखाने के लिए लक्ष्मण से धनुष-बाण की माँग |
५,६ | सागर | राम स्तुति एवं सेतु बंधन की प्रार्थना |
७–९ | देवांगना | नल-नील एवं वानर सेना द्वारा रामसेतु बंधन |
१०–१३ | राम | रामेश्वर स्थापना एवं स्तुति |
१४,२२,२३ | मंदोदरी | रावण से सीता को लौटाने का अनुरोध |
१५ | राक्षसियाँ | अंगद को देखकर भय |
१६,२० | रामभद्राचार्य | रामदूत अंगद का रावण को लज्जित कर लौटना |
१७–१९,२१ | अंगद | रावण के दरबार में राम गुणगान, चरण जमाना, सीता लौटाने की सलाह |
२४–२७ | रामभद्राचार्य | युद्ध प्रारंभ, हनुमान का पराक्रम, शक्तिबाण से लक्ष्मण मूर्च्छा, राम रुदन |
२८–३१ | राम | लक्ष्मण को मूर्च्छित देख विलाप |
३२ | हनुमान | राम से निर्देश माँगना |
३३ | जाम्बवान | द्रोणाचल से संजीवनी औषधि लाने का आदेश |
३४ | सुमित्रा | राम सेवार्थ शत्रुघ्न को हनुमान के संग लंका जाने की आज्ञा |
३५ | कौशल्या | हनुमान के द्वारा राम को लक्ष्मण के साथ ही अयोध्या लौटने का संदेश |
३६ | रामभद्राचार्य | लक्ष्मण को पुनर्जीवन |
सर्ग २६. गीतरावणारि शब्दार्थ रावण के शत्रु राम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१, २ | कुम्भकर्ण | राम शरण में जाने का रावण, विभीषण के समक्ष कथन |
३–६ | कुम्भकर्ण (स्वगत) | युद्धभूमि में राम के सौन्दर्य को देखकर मुग्ध, विधाता को धिक्कारना, राम बाणों से मरने का निश्चय |
७ | रामभद्राचार्य | रणवेश में राम की सुन्दर छवि |
८,९ | नारद | कुम्भकर्ण संहारक राम का विजय गान एवं सौंदर्य |
१० | गरुड़ (स्वगत) | मेघनाथ के नागपाश में बंधे राम के रूद्र रूप में दर्शन |
११ | लक्ष्मण | राम के समक्ष मेघनाथ वध की प्रतिज्ञा |
१२,१३ | देवता, राम | मेघनाथ संहारक लक्ष्मण की प्रशंसा |
१४,१५ | विभीषण, राम | राम को रथ रहित देख विभीषण की विकलता, राम द्वारा धर्मरथ का वर्णन |
१६ | देवता | राम से रावण वध की प्रार्थना |
१७–२१ | त्रिजटा, सीता | सीता का त्रिजटा से रावण के न मरने का कारण पूछना, त्रिजटा का कारण सहित आश्वासन |
२२,२४ | रामभद्राचार्य, देवता | राम रावण युद्ध |
२३ | रावण | राम से उनकी श्रेष्ठता का कारण पूछते हुए उनके चरित्र की प्रशंसा करना |
२५ | विभीषण | रावण की नाभि में अमृत कुंड के रहस्य का उद्घाटन |
२६–२८ | रामभद्राचार्य | राम का शार्ंग पर आग्नेय बाण संधान, रावण वध, राम स्तुति |
२९ | राम | सीता को लाने हेतु विभीषण को निर्देश |
३० | विभीषण | सीता को राम विजय की सूचना, राम के समीप चलने का अनुरोध |
३१,३२ | सीता | लक्ष्मण से अग्नि-परीक्षा हेतु चिता बनाने का अनुरोध, पातिव्रत धर्म के पालन के आधार पर अग्निदेव से रक्षा की प्रार्थना |
३३–३५ | रामभद्राचार्य | सीता की जयकार, सीताराम की छवि |
३६ | रामभद्राचार्य | आकाश में उड़ते पुष्पकविमान पर वानरों से घिरे सीताराम लक्ष्मण की झाँकी |
उत्तरकाण्डम्
सर्ग २७. गीतसीतारामपट्टाभिषेक: शब्दार्थ सीताराम राज्याभिषेक के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१,२ | अयोध्या के बालक, वधुएँ | बालकों द्वारा माताओं, वधुओं द्वारा सासुओं से राम के आने के सम्बन्ध में प्रश्न |
३ | माताएँ | विकल माताओं की द्वार पर प्रतीक्षा |
४,५ | भरत (स्वगत) | विरह में डूबे भरत का राम के न आने पर चिंता, प्राण त्याग का निश्चय, राम की दीन वत्सलता पर विश्वास |
६–८ | हनुमान, भरत | भरत को राम के आगमन का शुभ समाचार, भरत हनुमान के ऋणी |
९ | भरत | माताओं को राम के आने की सूचना |
१०,११ | माताएँ | अयोध्या की नारियों को स्वागत, बधाई के लिए ले चलना, भाग्य की अटलता |
१२,१३ | राम | सुग्रीव, विभीषण के समक्ष अयोध्या, सरयू, जन्मभूमि और भारत देश की प्रशंसा |
१४ | रामभद्राचार्य | राम लक्ष्मण सीता का गुरु वशिष्ठ को प्रणाम |
१५ | अरुन्धती | सीता को आशीर्वाद |
१६–१९,२१ | रामभद्राचार्य | राम भरत मिलन, भरत का सीता के चरणों में नमन, राम का माताओं को प्रणाम |
२० | राम | कैकेयी की लज्जा का निवारण |
२२,२३ | वशिष्ठ, ब्राह्मण | राम राज्याभिषेक हेतु ब्राह्मणों से आज्ञा माँगना, ब्राह्मणों द्वारा अनुमति |
२४–३१ | रामभद्राचार्य | राम पट्टाभिषेक की बधाई, राजा राम और सीता रानी की मनोहर झाँकी, सीताराम जयगान |
३२–३४ | हनुमान, शिव, ब्रह्मा | सीताराम स्तुति |
३५,३६ | राम, सीता | राम द्वारा प्रदत्त हार सीता हनुमान को देतीं, सीताराम द्वारा हनुमान की प्रशंसा |
सर्ग २८. गीतराजाधिराज: शब्दार्थ राजाधिराज राम के गीतों से युक्त सर्ग
गीत | गायक | विषय |
---|---|---|
१–६,८ | रामभद्राचार्य | रामराज्य, अयोध्या का वर्णन |
७ | रामभद्राचार्य | राम द्वारा अश्वमेध यज्ञ |
९ | रामभद्राचार्य | महारानी सीता का वर्णन |
१० | राम | वंशवृद्धि हेतु स्वयं लवकुश रूप में प्रकट होने का सीता से कथन |
११-१४ | रामभद्राचार्य | लव-कुश जन्म, तीनों दादी और काकाओं द्वारा दान, अयोध्या में बधाई |
१५,१६ | शान्ता | भतीजों के जन्मोत्सव में पधारतीं, नेग के रूप में राम भैया से सीता भाभी सहित मन में निवास करने और उनकी भक्ति की माँग |
१७,१८ | शान्ता, सीता | नेग के रूप में सीता से उनके हाथ के कंगन की माँग, सीता द्वारा शान्ता से भक्तों के मन में शान्ति बनकर निवास करने का अनुरोध |
१९-२१ | रामभद्राचार्य | राम के द्वार पर बधाई, लवकुश की षष्ठी, द्वादशी |
२२ | रामभद्राचार्य | सीता लव-कुश को पालने में झुलातीं, दादियाँ अंगुली पकड़कर चलना सिखातीं, राम लिखना और सीता बोलना सिखातीं, उन्हें झुलाते हुए वैदिक सिद्धान्त सिखातीं |
२३ | रामभद्राचार्य | वशिष्ठ से यज्ञोपवीत संस्कार एवं विद्याध्ययन, अरुन्धती का पौत्रवत दुलार |
२४ | रामभद्राचार्य | भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न के पुत्रों का वर्णन |
२५-२९,३४ | रामभद्राचार्य | राम के गुणों का गान |
३०-३३,३५ | रामभद्राचार्य | राम से विनय |
३६ | रामभद्राचार्य | मन को सीताराम भजन की सीख |
गीत उदाहरण
नीचे प्रस्तुत गीत (१.४.६) में शिशु राम कौशल्या से पूछते हैं कि चन्द्रमा में कालिमा क्यों दिखाई देती है?[२]
शशांके कुतः श्यामता जाता।
पृच्छति जननीमतिकुतूहलाद्बालस्त्रिभुवनत्राता ॥
कृष्णमृगस्तव शरभयाद्विधुं यातो नैतन्मातः।
कपटमृगं प्रणिहन्मि नापरं तस्य विमोहख्यातः ॥
दशमुखभयाद्भुवो याता या विधुं श्यामता दृष्टा।
कथं राहुभीतोऽसौ पायान्मही मूढतास्पृष्टा ॥
त्वमथ वीक्ष्य चन्द्रमसं निजदयिताननरूपसमानम्।
शशिनि गतो श्यामः किल दृष्टः कर्तुं तदधरपानम् ॥
नहि मातः पीये तव स्तनं श्रुत्वा मनुजेन्द्राणी।
सस्मितमुखी विस्मिता जाता चकिता गिरिधरवाणी ॥
“ तीनों लोकों का भरण-पोषण करने वाले भगवान श्रीराम बाललीला करते हुए अत्यन्त कौतूहल से माता कौशल्या जी से पूछते हैं कि माताश्री! चन्द्रमा में कालिमा कहाँ से आ गई? माता कौशल्या जी ने उत्तर दिया- आपके बाण के भय से भयभीत हुआ कृष्णसार मृग चन्द्रमा में प्रवेश कर गया है। उसी की यह श्यामता दिख रही है। श्रीराघव ने उत्तर दिया नहीं माँ-ऐसा नहीं है। मैं केवल कपटमृग (मारीच) को ही मारता हूँ और किसी को नहीं, क्योंकि उसका मोह प्रसिद्ध है और मृग मुझसे क्यों डरेंगे। फिर माँ ने उत्तर दिया रावण के भय से पृथ्वी चन्द्रमा के पास चली गई। अतः पृथ्वी की श्यामता चन्द्रमा में दिख रही है। पुनः श्रीराघव ने प्रत्युत्तर दिया- माँ, चन्द्रमा स्वयं राहु से भयभीत रहता है, अतः वह पृथ्वी की रक्षा कैसे कर सकेगा? इसलिए अपनी रक्षा के लिए पृथ्वी का चन्द्रमा के पास जाने की इच्छा का क्रम पृथ्वी की बहुत बड़ी मूर्खता होगी जबकि पृथ्वी मूर्ख नहीं है। तब कौशल्या जी ने कहा कि हे राघव! चन्द्रमा आपकी दुलहिन के समान है, अतः आप इसे देखकर अपनी दुलहिन का अधरामृत पीने के लिए इसमें प्रवेश कर गए हैं, इससे आपकी श्यामता ही चन्द्रमा में दिख रही है। राघव ने कहा-नहीं-नहीं माँ, अभी तो मैं केवल आपका स्तनपान करता हूँ। अतएव अभी न कोई दुलहिन है और न ही मैंने चन्द्रमा में प्रवेश किया है। फिर चन्द्रमा में श्यामता कैसी? इस प्रकार प्रभु के वचनों से निरुत्तर होकर महारानी कौशल्या मुस्कराती हुई विस्मित हो गईं और गिरिधर कवि की वाणी चकित हो गई।॥१.४.६॥ ”
सन्दर्भ
उद्धृत कार्य
इन्हें भी देखें
- गीतरामायण - रामायण के प्रसंगों पर आधारित ५६ मराठी गीतों का संग्रह जो आकाशवाणी पुणे से प्रसारित किया गया।
- गीति रामायण - असमिया भाषा में रचित गीतपरक रामकाव्य
- ↑ साँचा:cite journal
- ↑ रामभद्राचार्य २०११, पृ.९६