कुश
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम के छोटे कुश पुत्र हुए और लव बड़े हुए थे ।कुश से वर्तमान कछवाहा कुश वंशी अर्थात् कुशवाहा का वंश चला ।
लव व कुश ने राम के अश्वमेघ घोड़े को पकड़ कर राम को युद्ध के लिये चुनौती दे डाली थी।अयोध्या के सभी वीरों को छोटे से बालक ने हराकर यह सिद्ध कर दिया था; शक्ति का गुरूर खतरनाक होता है।लव के भाई होने के कारण कुश ने अपनी माँ सीता को न्याय दिलाने के लिये अयोध्या राजा सह पिता से भरी सभा में संवाद किया और माँ सीता को पवित्र और सत्य सावित किया। बार बार अग्नि परीक्षा से व्यथित होकर सीता माता ने अपनी पवित्रता सिद्ध करते हुवे धरती माँ से खुद को अपनी गोद मे स्थान देने का निवेदन किया तब धरती माता ने प्रकट होकर सीतामाता को अपनी गोद मे बिठाकर धरती में समा लिया
कुरु वंश - महाभारत पर्यान्त वंशावली
- परीक्षित २ |हर्णदेव (कुरु वंश)
- जनमेजय ३ | शतानीक १ | अश्वमेधदत्त
- अधिसीमकृष्ण | निचक्षु | उष्ण | चित्ररथ | शुचिद्रथ
- वृष्णिमत् | सुषेण | सुनीथ | रुच | नृचक्षुस्
- सुखीबल | परिप्लव | सुनय | मेधाविन् | नृपञ्जय | ध्रुव, मधु|तिग्म्ज्योती
- बृहद्रथ | वसुदान |शत्निक (बुद्ध कालीन )|
- उदयन | अहेनर | निरमित्र (खान्दपनी ) |क्षेमक
ब्रहाद्रथ वंश
यह वंश मगध में स्थापित था।
- सोमाधि | श्रुतश्रव | अयुतायु | निरमित्र | सुकृत्त
- बृहत्कर्मन् | सेनाजित् | विभु | शुचि
- क्षेम | सुव्रत | निवृति | महासेन
- सुमति | अचल | सुनेत्र | सत्यजित् | वीरजित् | अरिञ्जय
मगध वंश
- क्षेमधर्म ६३९-६०३
- क्षेमजित् ६०३-५७९
- बिम्बसार ५७९-५५१
- अजात्शत्रु ५५१-५२४
- दर्शक ५२४-५००
- उदायि ५००-४६७
- शिशुनाग ४६७-४४४
- काकवर्ण ४४४-४२४ ईपू