सिंहगढ़

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(कोंढाणा किला से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
Sinhagad Fort
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
सिंहगढ़ दुर्ग
उच्चतम बिंदु
शिखरलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
ऊँचाईसाँचा:convert
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
उदग्रतालुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
एकाकी अवस्थितिलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
to लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
निर्देशांकसाँचा:if emptyसाँचा:if empty
नामकरण
हिन्दी अनुवादसिंहगड
भाषा का नाममराठी
भूगोल
स्थानपुणे, महाराष्ट्र, भारत
देशसाँचा:enum
राज्यसाँचा:enum
राज्य/प्रांतसाँचा:enum
जिलासाँचा:enum
बस्तीसाँचा:enum
मातृ श्रेणीसह्याद्री
सीमा निर्माणसाँचा:enum
उपविभागसाँचा:enum
टोपोग्राफिक नक्शासाँचा:if empty
चट्टान पुरातनतासाँचा:if empty
चट्टान प्रकारसाँचा:enum
साँचा:if empty

साँचा:template otherसाँचा:main otherसाँचा:main other

सिंहगढ़ का प्रवेशद्वार

सिंहगढ़, सिंहगड, (अर्थ : सिंह का दुर्ग) ,भारत [१] के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित एक दुर्ग है जो पुणे से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दुर्ग को पहले कोंढाना के नाम से भी जाना जाता था। यह दुर्ग समुदतल से लगभग ४४०० फूट ऊँचाई पर स्थित हेेै। सह्याद्री के पूर्व शाखा पर फैला भुलेश्वर की 'रांगेवर' यह दुर्ग बना है।दो सीढ़ियों जैसा दिखाई देनेवाला पहाडी सा भाग और दूरदर्शन के लिए खडा किया 'मनोरा' इस कारण पुणे से कही भी वो सबको आकर्षित करता है। पुरंदर, राजगड, तोरणा, लोहगड, विसापूर, तुंग ऐसा प्रचंड मुलुख इस दुर्ग से दिखाई देता है।

किले का पहले का नाम 'कोंढाणा' है। पूरा किला आदिलशाही में था।दादोजी कोंडदेव ये आदिलशहा की ओर से सुभेदार पद पर चुने गए। आगे इ.स. १६४७ में किलेपर अपना लष्करी केंद्र बनाया। आगे इ.स. १६४९ में शहाजी राजा को छुड़ाने के लिए शिवाजी राजा ने यह किला फिर से आदिलशह को सुपुर्द किया। पुरंदर के तह में जो किले मुगल को दिए उसमें कोंडाना किला भी था। मुगलोंकी तरफ से उदेभान राठोड यह कोंडाना का अधिकारी था। यह राजपूत था पर बाद में मुसलमान बन गया था।

शिवाजी महाराज का कालखंड में उनके विश्वास के सरदार और बालमित्र तानाजी मालुसरे और उनके मावले इस गाँव के सैनिकों ने (मावळ प्रांत से भरती हुए सैनिको का समूह) यह किला एक चढाई में जीता। इस लढाई में तानाजी को वीरमरण आया और प्राणो का बलीदान देकर किला जीता इसलिए शिवाजी महाराजा ने "गड आला पण सिंह गेला"(मतलब दुर्ग मिला पर सिंह गया) ये वाक्य उच्चारे थे । आगे उन्होंने कोंढाणा यह नाम बदलकर "सिंहगड" ऐसा नाम रखा। सिंहगड यह मुख्यतः तानाजी मालुसरे इनके बलिदान के कारण प्रसिद्ध है। सिंहगढ़ का युद्ध, देखें

तानाजी मालुसरे नाम का हजारी सैनिक का था। उसने कबूल किया कि, 'कोंडाणा अपन लेंगे', ऐसा कबूल करके वस्त्रे, पान लेकर किले के यत्नास ५०० आदमी लेकर किले के नीचे गया और दोनो सैनिक मर्दाने चुनकर रात को किले की दिवार पर चढाए। किले पर उदेभान रजपूत था। उसे पता चला कि गनिमाके लोग आए और ये खबर पता चलने पर कुल रजपूत कंबरकस्ता होकर, हाती तोहा बार लेकर, हिलाल (मशाल), चंद्रज्योती लगाकर बारासौ आदमी तोफवाले और तिरंदाज, बरचीवाले, चलकर आए, तब सैनिक लोगोने फौजपर रजपुत के भी चलकर आऐ, बडा युद्ध एक प्रहर हुआ। पाच सौ रजपूत मारे गए,उदेभान किल्लेदार खाशा की और तानाजी मालुसरा इनकी मुठभेड़ हुई। दोघे बड़े योद्धे, महशूर, एक एक से बढचढ पडे, तानाजीचे बाँए हाथ की ढाल टुटी, दूसरी ढाल समयास आई नहीं, फिर तानाजीने अपना बाँए हाथ की ढाल करके उसे खींच कर , दोनो महरागास भडके। दोनो की मौत हुई। फिर सूर्याजी मालुसरा (तानाजीचा भाई), इसने हिंमत कर के किला कुल लोग समेटते हुए बचे राजपूत मारे। किला काबीज किया। शिवाजी महाराज को दुर्ग जीतने की और तानाजी गिरने का समाचार मिला तब शिवाजी महाराज ने दुर्ग मिला पर सिंह गया एसा कहा। माघ वद्य नवमी दि. ४ फरवरी १६७२ को यह युद्ध हुआ था।

सिंहगड पर लगे फलक के अनुसार

सिंहगड का नाम कोंढाणा, इसामी नाम के कवीने फुतुह्स्सलातीन या शाहनामा-इ-हिंद इस फार्शी काव्य में (इ. १३५०) मुछ्म्द तुघलक ने इ.१६२८ में कुंधीयाना किले को लिया। उस समय यह किला नागनायक नाव के कोली के पास था। अहमदनगर के निजामशाही काल में कोंढाणा का उल्लेख इ.१४८२, १५५३, १५५४ व १५६९ के समय के हैं इ.१६३५ के लगभग कोंढाणा पर सीडी अवर किलेदार थे मोगल व आदिलशाहा इऩ्होने मिलकर कोंढाणा लिया । इस समय(इ.१६३६) आदिलशाह का खजाना डोणज्याच्या खिंड में निजाम का सरदार मुधाजी मायदे ने लुटा। शहाजी राज्य के काल में सुभेदार दादोजी कोंडदेव मालवणकर इनके संरक्षण में कोंढाणा था ऐसा उल्लेख आदिलशाही फर्मानात है। दादोजी कोंडदेव आदिलशाही के नोकर थे फिर भी वो शहाजी राजा से एक निष्ठ थे।एकनिष्ठ होने के कारण शिवाजी राजा ने मृत्यूपर्यंत (इ.१६४७) कोंढाणा लेने का प्रयत्‍न नही किया। पर उनके बाद जल्द ही राजा ने यह दुर्ग अपने कब्जे में लिया। इतिहासकार श्री.ग.ह. खरे इनके मतानुसार तानाजी प्रसंग होने के पहले कोंढाणा का नाम 'सिहगड' किया गया इसके प्रमाण है। कै.ह.ना. आपटे इनके उपन्यास में तानाजी प्रसंग के बाद किले का नाम सिंहगड किया ऐसा उल्लेख है। शिवाजी राजा के समय और उसके बाद यह किला कभी मराठो के पास तो कभी मुगलाे के अधीन था।

गडावरील ठिकाणे बारूद के कोठार: दरवाजे से अंदर आने पर जो पत्थरों की इमारत दिखती है वही ये बारूद के कोठार दि. ११ सितंबर १७५१ में इन कोठारों पर बिजली गिरी इस दुर्घटना में उस समय दुर्ग पर स्थित फडणिस का घर उद्‌ध्वस्त हुआ और घर के सभी सदस्य मारे गए। टिलक बंगला : रामलाल नंदराम नाईक इनसे खरीदी गई जगह पर बने इस बंगलें में बाल गंगाधर तिलक आते रहते थे। १९१५ साल में महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक इनकी मुलाकात इसी बंगले में हुई थी।

कोंढाणेश्वर : यह मंदिर शंकरजी का है और वे यादव के कुलदैवता थे। अंदर एक पिंडी और सांब है और यह मंदिर यादवकालीन है।

श्री अमृतेश्वर भैरव मंदिर' : कोंढाणेश्वर के मंदिर से थोडा आगे गए तो यह अमृतेश्वर का प्राचीन मंदिर लगता है। भैरव यह कोली लोगों के देवता है। यादवो के पहले इस दुर्ग पर कोली की बस्ती थी। मंदिर में भैरव व भैरवी ऐसी दो मूर्ती दिखती है। भैरव के हाथ में राक्षस की मुंडी है।

देवटाके : तानाजी स्मारक के पीछे बाँए हाथ के छोटे तालाब के बाजू से बाई ओर जाने पर यह प्रसिद्ध ऐसा देवटाके लगता है। टंकी का उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता है और आज भी होता है। महात्मा गांधी जब पुणे आते थे तब जानकर इस टंकी का पानी पीने के लिए मंगाते थे।

कल्याण दरवाजा : दुर्ग के पश्चिम दिशा की ओर यह दरवाजा है। कोंढण पूल पर से दुर्ग के शुरूवाती जगह से कल्याण गाव से ऊपर आने पर इस

सन्दर्भ


  1. सिंहगढ़ पहाड़ी दुर्ग स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। अभिगमन तिथि :३० मई २०१६

२. सिंहगढ़ किले के बारे में जानकारी