भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ
भारत अनादि काल से संस्कृति, आस्था, आस्तिकता और धर्म का महादेश रहा है। इसके हर भाग और प्रान्त में विभिन्न देवी-देवताओं से सम्बद्ध कुछ ऐसे अनेकानेक प्राचीन और (अपेक्षाकृत नए) धार्मिक स्थान (तीर्थ) हैं, जिनकी यात्रा के प्रति एक आम भारतीय नागरिक पर्यटन और धर्म-अध्यात्म दोनों ही आकर्षणों से बंधा इन तीर्थस्थलों की यात्रा [१] के लिए सदैव से उत्सुक रहा है। [२][३]
तीर्थ की परिभाषा
यों तो तीर्थ की परिभाषाएँ अनेक हैं, पर शायद सबसे संक्षिप्त है- तीर्थी कुर्वन्ति तीर्थानि (जो स्थान मन-प्राण-शरीर को निर्मल कर दे, वही तीर्थ है। )" तीन प्रकारों के तीर्थ भारतीय मनीषा में उल्लिखित हैं- नित्य तीर्थ, भगवदीय तीर्थ और संत तीर्थ|[१]
स्कंद्पुराण में तीर्थ
महाभारत, श्रीमद्भागवत वायु पुराणके तीर्थ-खंड आदि कई ग्रंथों और पुराणों में तीर्थ-महिमा वर्णित है[२] किन्तु स्कन्द पुराण के काशी-खंड में बहुत विस्तारपूर्वक तीर्थों की मर्यादा और उनकी यात्रा के दौरान तीर्थयात्री के आचार-व्यवहार से सम्बद्ध कुछ नीति-निर्देश स्पष्टतः उल्लिखित हैं। स्कंद पुराण में मुख्य तीर्थों का वर्णन है उत्तर भारत के सरस्वती उद्गम स्थल, शतकुम्भा, पंचपक्षा, सुवर्ण तीर्थ, शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि मुख्य तीर्थ स्थलों का वर्णन है|
भारतीय क्षेत्रवार तीर्थों की सूची और उनका विवरण
यद्यपि स्थानाभाव और जानकारी के अभाव में भारत के सब तीर्थ स्थलों का विवरण दिया जा सकना असम्भव है, यहां भारत के प्रमुख तीर्थस्थलो की सूची दी गई है, जिनमे से कई तीर्थस्थल किसी एक ही देवी या देवता को समर्पित होते है।
चार धाम
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। भारत के चारो कोनो में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारधाम हिन्दुओ के प्रमुख तीर्थ स्थल है
- बद्रीनाथ मन्दिर, उत्तराखंड
- द्वारका, द्वारका, गुजरात
- जगन्नाथ पुरी, पुरी, ओड़िसा
- रामेश्वरम, तमिल नाडू
उत्तराखंड के तीर्थ
हरिद्वार
कनखल
ऋषिकेश
यमुनोत्री
गंगोत्री
गोमुख
केदारनाथ
बद्रीनाथ मन्दिर
देवप्रयाग
जोशीमठ
तपोवन
हेम कुंड | हेमकुंड
वैष्णो देवी
श्रीनगर
अमरनाथ
मणिकर्ण
उत्तर भारत के तीर्थ
कांगड़ा
शाकम्भरी
रिबालसर
नैना देवी
शुक ताल
कुरुक्षेत्र
दिल्ली
मथुरा
वृन्दावन
गोकुल
गोवर्धन
नंदगांव
बरसाना
कामवन
गढ़मुक्तेश्वर
कर्णवास
कर्णक्षेत्र कर्णवास :- गायन्ति देवाः किलागीतकानिधन्यास्तुते भारतभूमि भागे । स्वर्गा पवार्गा स्पद मार्ग भूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात ।
देवभूमि भारत में, प्रभु लीलावतार स्थल उत्तरप्रदेश में मेरठ मंडल के बुलंदशहर जनपद की डिबाई तहसील में उत्तर रेलवे की बरेली लाइन पर राजघाट नरोरा स्टेशन से ४ किलोमीटर दूर पश्चिम में पुण्य सलिला सुरसरि के पवित्र दक्षिण पार्श्व पर स्थित सिद्ध तीर्थ स्थल कर्णवास है । प्रकृति की सुरम्य एकांत गोदासी पवित्र इस तपोभूमि की सिद्धता आज भी सुविस्तृत सघन अम्रइयो के मध्य स्थित आश्रमों के रूम में अक्षुण है । यहाँ पुण्य सलिल गंगा का विस्तार है साथ ही दानवीर कर्ण की आराध्या माँ कल्याणी का मंदिर है । इस तीर्थ की सिद्धमाता के कारण ही यहाँ प्रतिवर्ष उत्तरप्रदेह के अतिरिक्त वड़ोदा, इंदौर, ग्वालियर, उदयपुर, भरतपुर, भुज, गुजरात, मुंबई, कलकत्ता आदि के श्रद्धालु परंपरा से आते है और यहाँ माँ की चमत्कारिक शक्तिमत्ता - सिद्धिमत्ता की जय कार करते है ।
कर्णवास पौराणिक तीर्थ है अनेक ग्रंथो एवं अध्यात्मिल प्रसंगों में इसका उल्लेख मिलता है। भगवान श्री कृष्णा के कुलगुर श्री गंगाचार्य द्वारा लिखित " गर्ग संहिता " में कर्णवास का उल्लेख मिलता है । गर्ग संहित के अध्याय ४ एवं मथुरा खंड अध्याय २४ में कर्णवास का वर्णन मिलता है ।
तदनुसार रजा वहुलाश्व को व्रह्म ऋषि नारद जी रामतीर्थ रामघाट का परिचय करते हुए कहते है : यत्र रामेण गंगाया कृत्य स्नानं विदेहराट । तत्र तीर्थ महा पुण्यं राम तीर्थ विदुर्बुधाः
राम घाट
सम्भल
सोरों शूकरक्षेत्र
सोरों शूकरक्षेत्र उत्तर प्रदेश में भागीरथी गंगा के तट पर बसा एक प्रमुख प्राचीन तीर्थस्थल है, जोकि विष्णु के तृतीयावतार भगवान् श्री वराह की पवित्र मोक्षभूमि एवम् श्रीरामचरितमानस के रचनाकार महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी व अष्टछाप के जड़िया कवि नंददास की पावन जन्मभूमि के रूप में विख्यात है। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी की २३वीं बैठक यहाँ स्थित है। वराहपुराण में वर्णित गृद्धवट, आदित्यतीर्थ, वैवस्वततीर्थ, सोमतीर्थ, रूपतीर्थ, चक्रतीर्थ आदि शूकरक्षेत्र के अन्तर्वेदी तीर्थ हैं।
गोला गोकर्णनाथ
नेमिषारण्य
मिश्रिख
धौतपाप
ब्रह्मावर्त (बिठूर)
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना के पूर्व यहं तपस्या की थी। उसी को स्मरण दिलाता यहाँ का ब्रह्मावर्त घाट है। ये भी वर्णन मिलता है कि यहीं पर ध्रुव ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि बिठूर को प्राचीन काल में ब्रह्मावर्त नाम से जाना जाता था। शहरी शोर शराबे से उकता चुके लोगों को कुछ समय बिठूर में गुजारना काफी रास आता है। बिठूर में ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व के अनेक पर्यटन स्थल देखे जा सकते हैं। गंगा किनार बसे इस नगर का उल्लेख प्राचीन भारत के इतिहास में मिलता है। अनेक कथाएं और किवदंतियां यहां से जुड़ी हुईं हैं। इसी स्थान पर भगवान राम ने सीता का त्याग किया था और यहीं संत वाल्मीकि ने तपस्या करने के बाद पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना की थी। कहा जाता है कि बिठूर में ही बालक ध्रुव ने सबसे पहले ध्यान लगाया था। 1857 के संग्राम के केन्द्र के रूप में भी बिठूर को जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी के किनार लगने वाला कार्तिक अथवा कतिकी मेला पूर भारतवर्ष के लोगों का ध्यान खींचता है।
कानपुर
=चित्रकूट
प्रयाग
अयोध्या
नंदीग्राम
वाराणसी
पूर्वी भारत के तीर्थ
जनकपुर (मिथिला)
सोनपुर (हरिहर-क्षेत्र)
पटना
गया
राजगृह
वैद्यनाथ मंदिर, देवघर
वासुकिनाथ
कोलकाता
गंगासागर
तारकेश्वर महादेव, मिर्जापुर
नवद्वीप
कामाख्या
याजपुर
भुवनेश्वर
जगन्नाथ पुरी
साक्षी गोपाल
दक्षिण भारत के तीर्थ
मल्लिकार्जुन (श्रीशैल)
अहोबिल
अहोबिल हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक है। नन्दपाल स्टेशन से 22 मील अल्लागड्डा तक मोटर बस और फिर 12 मील पैदल या बैलगाड़ी का मार्ग है। मसलीपट्टम- हुबली रेलमार्ग पर नंदयाल स्टेशन से लगभग 34 मील दूर है। इस प्राचीन तीर्थ का संबंध श्री राम तथा अर्जुन से बताया जाता है। यह रामानुज संप्रदाय का एक आचार्य पीठ है। यहाँ के आचार्य शठकोपाचार्य कहे जाते हैं। कहा जाता है कि यहीं प्रगट होकर नृसिंह भगवान ने प्रह्लाद की रक्षा की। यह दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राजधानी थी। यहाँ शृंगवेलकुंड है। उसके समीप ही नृसिंह मंदिर है। वस्ती के समीप पहाड़ी है। उसके मध्य में तथा शिखर पर भी एक एक मंदिर है। यहीं भवनाशिनी नदी है। यह नव नृसिंह क्षेत्र है। यहाँ नृसिंह भगवान के नौ विग्रह हैं- ज्वालानृसिंह अहोविल नृसिंह मालोल नृसिंह कोड नृसिंह कारञ्च नृसिंह भार्गव नृसिंह योगानन्द नृसिंह छत्रवट नृसिंह पावन नृसिंह
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आरसाबिल्ली
श्रीकूर्मम
सिंघचालम
पीठापुरम
द्राक्षारामम
कोटिपल्ली
कोटिपल्ली को कोटि थीर्थम के नाम से भी जाना जाता है , यह भारत के आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में रामचंद्रपुरम राजस्व मंडल के के। गंगावरम मंडल में स्थित एक गाँव है । [१] [२] मंदिर शहर को पंचराम क्षेत्रों के कुमाररामा के रूप में भी जाना जाता है , और अमलापुरम से १५ किमी दूर स्थित है । [३] इस गांव में हर साल महा शिवरात्रि, वैशाख शुद्ध एकादशी, अस्वायुजा शुद्ध पद्यमी से द्वादशी और क्षीरब्दी द्वादशी तपोत्सवम जैसे त्योहार मनाए जाते हैं। [४]
कोटिपल्ली गाँव कोटिपल्ली शिव मंदिर कोटिपल्ली शिव मंदिर कोटिपल्ली आंध्र प्रदेश में स्थित हैकोटिपल्लीकोटिपल्ली निर्देशांक: 16.7014°N 82.0394°Eनिर्देशांक : 16.7014°N 82.0394°E जिला पूर्वी गोदावरी बोली • आधिकारिक तेलुगू समय क्षेत्र यूटीसी+5:30 ( आईएसटी ) वाहन पंजीकरण एपी
भगवान शिव को यहां सोमेश्वरस्वामी और कोटेश्वरस्वामी के साथ उनकी पत्नी पार्वती के साथ राजराजेश्वरी देवी के रूप में पूजा जाता है। [5] Kotipalli नदी गौतमी गोदावरी नदी के दो शाखाओं में से एक के तट पर स्थित है गोदावरी । [१] गोदावरी दो शाखाओं में विभाजित होती है - वृद्धा गौतमी (गौतमी गोदावरी) और वशिष्ठ गोदावरी। पुनः गौतमी शाखा दो शाखाओं अर्थात् गौतमी और निलारेवु में विभाजित हो जाती है। पूर्वी चालुक्यों के वेंगी राजाओं, जिन्होंने 7 वीं और 12 वीं शताब्दी सीई के बीच इस क्षेत्र पर शासन किया, ने अपने शासन के दौरान इस मंदिर और तालाब को सोमागुंडम या सोमा पुष्करिणी कहा। आंतरिक गर्भगृह में अन्नपूर्णा की मूर्ति के साथ एक छाया सोमेश्वर स्वामी का शिव लिंगम देखा जा सकता है। छाया सोमेश्वर का मुख्य शिव लिंग भगवान चंद्र द्वारा स्थापित किया गया था जिन्होंने अपनी चमक (छाया) खो दी थी। देवी राजराजेश्वरी के लिए एक अलग मंदिर है। अपनी पूर्व चमक वापस पाने के लिए विष्णु ने चंद्र को राजा राजेश्वरी के साथ शिव लिंग स्थापित करने और उनकी पूजा करने के लिए कहा था। मुख्य मंदिर के ठीक बगल में सिद्धि जनार्दन स्वामी का मंदिर है जिसके दोनों ओर श्री देवी और भू देवी हैं। वह इस मंदिर के संरक्षक या क्षेत्रपालक हैं। सिद्धि जनार्दन स्वामी को कश्यप महर्षि ने पवित्र स्थान पर स्थापित किया था जहाँ भगवान विष्णु ने देवताओं को बचाने के लिए बाली को पाताल (निचली दुनिया) में भेजने के बाद तपस्या की थी। सुंदर नक्काशीदार 8' नंदी बैल और 6' गरुकमंथ को ध्वजस्तंभ के ठीक सामने बैठे देखा जा सकता है। यह स्थान इन दोनों देवताओं की एकता दिखाते हुए शिव और विष्णु दोनों द्वारा सुशोभित है। मंदिर के एक तरफ भगवान कोटेश्वर को देख सकते हैं, एक शिव लिंगम पानी में डूबा हुआ (जला लिंगम) - भगवान इंद्र द्वारा गौतम मुनि द्वारा दिए गए श्राप के लिए तपस्या के रूप में स्थापित, उत्तरी मंडप में कालभैरव और नव के मंदिर को देख सकते हैं -मृत्युंजय लिंगम और उनकी पत्नी उमा के साथ गृह मंदिर। थोड़ा आगे चंद्रमौलेश्वर लिंगम के साथ शंकराचार्य मंदिरम है। कहा जाता है कि एक बार श्री शंकराचार्य ने इस मंदिर का दौरा किया था। इस स्थान का नाम कोटिपल्ली रखा गया है क्योंकि यहां की गई पूजा से अन्यत्र किए गए एक करोड़ गुना के बराबर पुण्य मिलता है।
ऐतिहासिक रूप से, कोटिपल्ली हिंदू शिक्षा और दर्शन का एक महान केंद्र रहा है। श्रौत शैव सिद्धांत दर्शन से द्वादसारध्याओं के आचार्यों में से एक, कोटिपल्ली विश्वराध्या ( कश्यप गोत्रम) का जन्म 12 वीं शताब्दी ईस्वी में कोटिपल्ली में सोमेश्वर और भवानी के घर हुआ था। उन्होंने चतुर्वेदसाराम, वृषभाधिप सातकम और बसवराजयम जैसी महान पुस्तकें लिखीं और शैव धर्मों का प्रचार किया। यह भी कहा जाता है कि वह पामिदिमुक्कला और फिर पलकुरकी गाँव में रहा और इसलिए उसे पलकुर्ती विश्वराध्या के नाम से जाना जाता है। [6]
Kotipalli तीन महत्वपूर्ण में से एक है नौका Kotipalli- के लिए अंक Mukteswaram और अन्य दो की जा रही Bodasakurru-Pasarlapudi और में Sakhinetipalli-नरसापुरम कोनासीमा क्षेत्र। [१] [७]
संदर्भ ^ ए बी सी भास्कर, बीवीएस; भास्कर, बीवीएस (25 मई 2012)। "गोदावरी पर घाटों का खराब रखरखाव चिंता का कारण" - www.thehindu.com के माध्यम से। ^ "पंचराम क्षेत्र - वैदिक यज्ञ केंद्र" । vedicyagyacenter.com । ^ "गोदावरी नदी को पार करने वाले नाव यात्रियों को खतरा है" । 26 नवंबर 2014। ^ "काकीनाडा पर शीर्ष कहानियां" । inkakinada.com । ^ "काकीनाडा पर शीर्ष कहानियां" । inkakinada.com । ^ "स्रौता शैव सिद्धांत में आपका स्वागत है" । www.sroutasaivasiddhanta.com । 18 जनवरी 2021 को लिया गया । ^ "कोटिपल्ली में पेंटी (नौका) पर गोदावरी नदी को पार करना" । www.fizzflyer.com ।
राजमहेंद्री
भद्राचलम
विजयवाड़ा
पना नृसिंह
चेन्नई
तिरुवत्तियूर
तिरुवल्लूर
श्रीपेरुम्बदूर (भूतपुरी)
तिरुक्कुलूकुन्नम (पक्षी-तीर्थ)
महाबलीपुरम
तिरुपति बालाजी
कालहस्ती
अरुणाचलम(तिरुवन्नमले)
पांडिचेरी
कांची
चिदंबरम
मायूरम
तिरुवारूर
मन्नारगुडी
कुम्भ्कोणम
तंजावूर
तिरुवाडी
तिरूचरापल्ली
पलणी
रामेश्वरम
मदुरै
श्रीविल्लीपुत्तूर
तेनकाशी
तिरुनेलवेली
तोताद्री
कन्याकुमारी
शुचीन्द्रम
त्रिवेंद्रम (तिरुवंतपुरम)
जनार्दन
कालडी
त्रिचूर
गुरुवायूर
मेलचिदंबरम
सुब्रमण्य क्षेत्र
बंगलुरू
शिवसमुद्रम
सोमनाथपुर
श्रीरंगपट्टन
मैसूर
नंजनगुड
मेलुकोटे
बाणावर
वेल्लूर
हालेविद
हरिहर
श्रृंगेरी
उदीपी
शालिग्राम क्षेत्र
पंचाप्सरस-क्षेत्र
मूकाम्बिका
अम्बुतीर्थ
हम्पी (किष्किन्धा)
दक्षिण-मध्य भारत के तीर्थ
वाई
महाबलेश्वर
पंढरपुर
नरसिंहपुर
वार्सी
कोल्हापुर
गोरेगांव (मुम्बई)
घृष्णेश्वर
एलोरा
दौलताबाद
अजंता
पेठन
अवढा नागनाथ (नागेश)
पुरली बैजनाथ
पुणे
आलंदी
देहू
भीमशंकर (भीमाशंकर)
नासिक पंचवटी
शिरडी
त्रयम्बकेश्वर
मुंबई
सूरत
भरूच
वड़ोदरा | बडौदा
चांपानेर
चाणोद
महीसागर
खम्भात
डाकोर
अहमदाबाद
द्वारका
नारायणसर
द्वारिका धाम
पोरबंदर
वेरावल (प्रभास पाटन) सोमनाथ
गिरनार (जूनागढ़)
वडनगर
अम्बाजी
पश्चिम भारत/ उत्तर-मध्य भारत के तीर्थ
नाथद्वारा
कांकरोली
चारभुजा
एकलिंग जी
चित्तौडगढ़
उदयपुर
ओंकारेश्वर
अवंतिका (उज्जैन)
पुष्कर
करौली
जयपुर
करणी माता
केशवराय पाटन
झालावाड
कोटा
लोहार्गल
अमरकंटक
मैहर
राम वन
विदेशों के तीर्थस्थल
पशुपतिनाथ
प्रमुख बौद्ध तीर्थ
विवरण के लिए देखिये- [४]
प्रमुख जैन तीर्थ
विवरण के लिए देखिये- [६], [७], [८],[९]
सन्दर्भ
'हिन्दुओं के तीर्थस्थान' : सुदर्शन सिंह 'चक्र' : प्रकाशक: 'श्रीकृष्ण-जन्मस्थान-सेवा संस्थान', मथुरा (उत्तर प्रदेश) सन २०००
'हमारे प्रसिद्ध तीर्थस्थान': इलपावुलुरी पांडुरंग राव : नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली
India : 'लोनली प्लेनेट' (Lonely Planet) प्रकाशन :[११]
'मध्यप्रदेश में भ्रमण' : बालकृष्ण राव :
'राजस्थान में भ्रमण' : बालकृष्ण राव :
'भारत' : प्रकाशन विभाग, नई दिल्ली :
'मनोरमा ईयर बुक' : मनोरमा प्रकाशन :
'राजस्थान वार्षिकी' : सीताराम झालानी :
'राजस्थान वार्षिकी' : राजस्थान पत्रिका समूह प्रकाशन :
विभिन्न राज्यों के पर्यटन/ जनसंपर्क विभागों द्वारा जारी पर्यटन-साहित्य के ब्रोशर आदि
बाहरी कड़ियाँ
इन्हें भी देखें
साँचा:asbox केवल उन्हीं तीर्थों का विवरण दिया जाना है जो अक्षर लाल रंग में हैं अर्थात् पहले से जिनके पेज बने नहीं हैं! [१५]