हिन्दू धर्म का इतिहास
हिन्दू समुदाय का इतिहास सबसे प्राचीन है।[१][२][३][४] विवरण - भारत का सर्वप्रमुख धर्म हिन्दू धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। प्रमुख देवता शिव, विष्णु, गणेश, कृष्ण, राम, हनुमान, सूर्य आदि प्रमुख देवियाँ दुर्गा, पार्वती, पृथ्वी, महालक्ष्मी, सरस्वती, काली, गायत्री आदि दस अवतार मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि धर्म प्रवर्तक और संत आदि शंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु, दयानंद सरस्वती, निम्बार्काचार्य, स्वामी रामानंद, समर्थ रामदास, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी हरिदास, रामकृष्ण परमहंस, रामानुज, वल्लभाचार्य आदि धर्मग्रंथ 4 वेद (ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद), 13 उपनिषद, 18 पुराण, रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस आदि। सम्प्रदाय शैव मत, वैष्णव, शाक्त, आर्य समाज, कबीरपंथ, चैतन्य, दादूपन्थ, द्वैतवाद, निम्बार्क, ब्रह्मसमाज, वल्लभ, सखीभाव आदि तीर्थ स्थल हिन्दू मन्दिर, शक्तिपीठ, ज्योतिर्लिंग संबंधित लेख ॐ, स्वस्तिक, वैदिक धर्म, हिन्दू संस्कार, हिन्दू कर्मकाण्ड, आरती स्तुति स्तोत्र अन्य जानकारी हिन्दू धर्म की परम्पराओं का मूल वेद ही हैं। वैदिक धर्म प्रकृति-पूजक, बहुदेववादी तथा अनुष्ठानपरक धर्म था। हिन्दू धर्म (अंग्रेज़ी: Hinduism) भारत का सर्वप्रमुख धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म' भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये। वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है। वास्तव में हिन्दू धर्म लघु एवं महान् परम्पराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है। एक ओर इसमें वैदिक तथा पुराणकालीन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है, तो दूसरी ओर कापलिक और अवधूतों द्वारा भी अत्यंत भयावह कर्मकांडीय आराधना की जाती है। एक ओर भक्ति रस से सराबोर भक्त हैं, तो दूसरी ओर अनीश्वर-अनात्मवादी और यहाँ तक कि नास्तिक भी दिखाई पड़ जाते हैं। देखा जाय, तो हिन्दू धर्म सर्वथा विरोधी सिद्धान्तों का भी उत्तम एवं सहज समन्वय है। यह हिन्दू धर्मावलम्बियों की उदारता, सर्वधर्मसमभाव, समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता की श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम और परिचायक है।
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इस धर्म को वेदकाल से भी पूर्व का माना जाता है, क्योंकि वैदिक काल और वेदों की रचना का काल अलग-अलग माना जाता है। यहां शताब्दियों से मौखिक (तु वेदस्य मुखं) परंपरा चलती रही, जिसके द्वारा इसका इतिहास व ग्रन्थ आगे बढ़ते रहे। उसके बाद इसे लिपिबद्ध (तु वेदस्य हस्तौ) करने का काल भी बहुत लंबा रहा है। हिन्दू धर्म के सर्वपूज्य ग्रन्थ हैं वेद। वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्वानों ने वेदों के रचनाकाल का आरंभ 3000 ई.पू. से माना है। यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था। कहीं कहीं ऋग्यजुस्सामछन्दांसि को वेद ग्रंथ से न जोड़ उसका छंद कहा गया है। मान्यता अनुसार वेद का विभाजन राम के जन्म के पूर्व पुरुंरवा राजर्षि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया। वहीं एक अन्य मान्यता अनुसार कृष्ण के समय में वेद व्यास कृष्णद्वैपायन ऋषि ने वेदों का विभाग कर उन्हें लिपिबद्ध किया था। मान्यतानुसार हर द्वापर युग में कोई न कोई मुनि व्यास बन वेदों को ४ भागों में बाटते हैं।
हिन्दू धर्म का १९६०८५३११० साल का इतिहास हैं। भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) कीसिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्नमिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी कीमूर्तियाँ, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ,लिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं।इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इससभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एकअन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्यकहते थे, और संस्कृत नाम की एक हिन्दयूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण केअनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं हीआर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था।
भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने “हिन्दुस्थान”नाम दिया था जिसका अपभ्रंश “हिन्दुस्तान” है।“बृहस्पति आगम” के अनुसार:हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तंदेवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥अर्थात, हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर(हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देशहिन्दुस्थान कहलाता है।“हिन्दू” शब्द “सिन्धु” से बना माना जाता है।संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं –पहला, सिन्धु नदी जो मानसरोवर के पास सेनिकल कर लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती हुईसमुद्र मे मिलती है, दूसरा – कोई समुद्र याजलराशि। ऋग्वेद की नदीस्तुति के अनुसार वेसात नदियाँ थीं : सिन्धु, सरस्वती, वितस्ता(झेलम), शुतुद्रि (सतलुज), विपाशा (व्यास),परुषिणी (रावी) और अस्किनी (चेनाब)। एकअन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथमअक्षर “हि” एवं इन्दु का अन्तिम अक्षर “न्दु”,इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना “हिन्दु”और यह भूभाग हिन्दुस्थान कहलाया। हिन्दूशब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता केरुप में प्रयुक्त होता था। चूँकि उस समय भारत मेंकेवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग थे,बल्कि तब तक अन्य किसी धर्म का उदय नहींहुआ था इसलिये “हिन्दू” शब्द सभी भारतीयों केलिये प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिकधर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारणकालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म केसन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया।
आम तौर पर हिन्दू शब्द को अनेक विश्लेषकोंद्वारा विदेशियों द्वारा दिया गया शब्द मानाजाता है। इस धारणा के अनुसारहिन्दू एक फ़ारसीशब्द है। हिन्दू धर्म को सनातन धर्म या वैदिकधर्म भी कहा जाता है। ऋग्वेद में सप्त सिन्धु काउल्लेख मिलता है – वो भूमि जहाँ आर्य सबसेपहले बसे थे। भाषाविदों के अनुसार हिन्द आर्यभाषाओं की “स्” ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन“स्”) ईरानी भाषाओं की “ह्” ध्वनि में बदल जातीहै। इसलिये सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा(पारसियों की धर्मभाषा) मे जाकर हफ्त हिन्दु मेपरिवर्तित हो गया (अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द1.18)। इसके बाद ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्वमें रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होने भारतके मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरू करदिया।इन दोनों सिद्धान्तों में से पहले वाले प्राचीनकाल में नामकरण को इस आधार पर सही मानाजा सकता है कि “बृहस्पति आगम” सहित अन्यआगम ईरानी या अरबी सभ्यताओं से बहुत प्राचीन काल में लिखा जा चुके थे। अतः उसमें“हिन्दुस्थान” का उल्लेख होने से स्पष्ट है कि हिन्दू (या हिन्दुस्थान) नाम प्राचीन ऋषियोंद्वारा दिया गया था न कि अरबों/ईरानियोंद्वारा। यह नाम बाद में अरबों/ईरानियों द्वाराप्रयुक्त होने लगा। हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।एक अन्य श्लोक में कहा गया हैॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:। ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकीदृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन कियाहै, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।
चीनी यात्री हुएनसाग् के समय में हिन्दू शब्दप्रचलित था। यह माना जा सकता है कि हिन्दू’शब्द इन्दु’ जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है सेबना है। चीन में भी इन्दु’ को इन्तु’ कहा जाता है।भारतीय ज्योतिष में चन्द्रमा को बहुत महत्त्वदेते हैं। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार परही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों औरपर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोगभारतीयों को ‘इन्तु’ या ‘हिन्दु’ कहने लगे।मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही ‘हिन्दू’ शब्द केप्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाममुसलमानों की देन नहीं है।“ सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवंसुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशेपिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।”—वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारतअर्थातहे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण मेंअपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीपचन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मेपिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश)दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना कोकागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाती है-समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार नौ हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है। इसमें सात कुलपर्वत हैं:महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्यऔर पारियात्र ।यहां के भागभारतवर्ष के नौ भाग हैं: इन्द्रद्वीप, कसेरु,ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य,गन्धर्व और वारुण, तथा यह समुद्र से घिरा हुआद्वीप उनमें नवां है।विस्तारयह द्वीप उत्तर से दक्षिण तक सहस्र योजनहै। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भागमें यवन बसे हुए हैं। मुख्य नदियां चारों वर्णों के लोग मध्य में रहते हैं। शतद्रू और चंद्रभागा आदि नदियां हिमालय से, वेद और स्मृति आदि पारियात्र से, नर्मदा और सुरसा आदि विंध्याचल से, तापी, पयोष्णी औरनिर्विन्ध्या आदि ऋक्ष्यगिरि से निकली हैं। गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, सह्य पर्वत से;कृतमाला और ताम्रपर्णी आदि मलयाचल से,त्रिसामा और आर्यकुल्या आदि महेन्द्रगिरि सेतथा ऋषिकुल्या एवंकुमारी आदि नदियांशुक्तिमान पर्वत से निकलीं हैं। इनकी और सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं। यहां के वासीइन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, मध्याअदि देशों के; पूर्व देश और कामरूप के; पुण्ड्र, कलिंग,मगध और दक्षिणात्य लोग, अपरान्तदेशवासी,सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण,कारूष, मालव और पारियात्र निवासी; सौवीर,सन्धव, हूण; शाल्व, कोशल देश के निवासी तथामद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं।भारतवर्ष में ही चारों युग हैं, अन्यत्र कहीं नहीं।इस जम्बूद्वीप को बाहर से लाख योजन वालेखारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर सेघेरा हुआ है। जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाखयोजन है।जम्बू द्वीप(जम्मू नहीं): इरान से लेकर सिंगापुरतक आर्यावर्त कहलाने वाला भाग हिन्दू विवाहमन्त्रों में आज भी है|
हिंदू धर्म की उत्पत्ति पूर्व आर्यों की अवधारणा में है जो ४५०० ई.पू. मध्य एशिया से हिमालय तक फैले थे, इसमें भी डॉ मुइर जैसे वैज्ञानिकों में मतभेद हैं।[५] कहते हैं कि आर्यों की ही एक शाखा ने अविस्तक धर्म की स्थापना भी की। इसके बाद क्रमशः यहूदी धर्म २००० ई.पू., बौद्ध धर्म और जैन धर्म ५०० ई.पू., ईसाई धर्म सिर्फ २००० वर्ष पूर्व, इस्लाम धर्म आज से 700 वर्ष पूर्व हुआ।
धार्मिक साहित्य अनुसार हिंदू समुदाय की कुछ और भी धारणाएँ हैं। रामायण, महाभारत और पुराणों में सूर्य और चंद्रवंशी राजाओं की वंश परम्परा का उल्लेख उपलब्ध है। इसके अलावा भी अनेक वंशों की उत्पति और परम्परा का वर्णन आता है। उक्त सभी को इतिहास सम्मत क्रमबद्ध लिखना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि पुराणों में उक्त इतिहास को अलग-अलग तरह से व्यक्त किया गया है जिसके कारण इसके सूत्रों में बिखराव और भ्रम निर्मित जान पड़ता है, फिर भी धर्म के ज्ञाताओं के लिए यह भ्रम नहीं है, वो इसे कल्पभेद से सत्य मानते हैं। हिन्दू शास्त्र ग्रंथ याद करके रखे गए थे। यही कारण रहा कि अनेक आक्रमण जैसे नालंदा आदि के प्रकोप से भी अधिकतर बचे रहे। इनकी कुछ मिथ़ॉलजि जैसी बातों को आधुनिक दुनिया नहीं मानती तो कुछ सत्य प्रतीत होने वाली बातों को मानतीं भीं हैं।
हिंदू समुदाय के इतिहास ग्रंथ पढ़ें तो ऋषि-मुनियों की परम्परा के पूर्व मनुओं की परम्परा का उल्लेख मिलता है जिन्हें जैन धर्म में कुलकर कहा गया है। ऐसे क्रमश: १४ मनु माने गए हैं जिन्होंने समाज को सभ्य और तकनीकी सम्पन्न बनाने के लिए अथक प्रयास किए। धरती के प्रथम मानव का नाम स्वयंभू मनु था और प्रथम स्त्री सतरुपा थी महाभारत में आठ मनुओं का उल्लेख है। इस वक्त धरती पर आठवें मनु वैवस्वत की ही संतानें हैं। आठवें मनु वैवस्वत के काल में ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था। हिन्दू समुदाय की कालमापनी सबसे बड़ी है। पुराणों में हिंदू इतिहास का आरंभ सृष्टि उत्पत्ति से ही माना जाता है। ऐसा कहना कि यहाँ से शुरुआत हुई यह शायद उचित न होगा फिर भी हिंदू इतिहास ग्रंथ महाभारत और पुराणों में मनु (प्रथम मानव) से भगवान कृष्ण की पीढ़ी तक का उल्लेख मिलता है।
हालांकि इतिहासकारों की मानें तो हिन्दू समुदाय का प्रारम्भ सिन्धु घाटी की सभ्यता (५००० वर्ष पूर्व) समानांतर/उपरांत से माना जाता है, वहीं ग्रंथों में लिखित दस्तावेज़ इससे कहीं आगे की बात करते हैं। परन्त कोई भी तथ्य सत्यता पर आधारित नहीं माने जाते है इसके साथ ही अनेक साक्ष्य कभी कभी इतिहासवेत्ताओं के पसीेने छुड़ा देते हैं। उदाहरणार्थ सन् २०१९ में प्राप्त श्रीराम के ६००० वर्ष प्राचीन भित्तिचित्र जो ईराक में मिले[६], साथ ही कल्प विग्रह नामक शिव प्रतिमा जिसकी कार्बन डेटिंग आयु २८,४५० (२०१९) वर्ष आंकी गई थी।[७] ये सारे प्रमाण हिन्दू समुदाय को कहीं अधिक प्राचीन बनाते हैं।
इतिहास
हिन्दू धर्म लगभग ५००० साल से व्यवस्थित विकसित हुआ है और सात चरणों के रूप में देखा जा सकता है कि दूरबीन एक-दूसरे में है। कुछ हिंदुत्व के अधिवक्ताओं का मानना होगा कि १२,००० साल पहले हिमयुग के अंत तक हिंदू धर्म को अपने संपूर्ण रूप में ऋषियों के लिए प्रकट किया गया था। हिंदुत्व के इतिहास में, पौराणिक कथाएं सिर्फ समय-समय पर इतिहास है, इतिहासकार गणना नहीं कर सकते। हाल के दिनों में, हिंदू धर्म को "खुला स्रोत धर्म" के रूप में वर्णित किया गया है, अनोखा है कि इसमें कोई परिभाषित संस्थापक या सिद्धांत नहीं है, और ऐतिहासिक और भौगोलिक वास्तविकताओं के जवाब में इसके विचार लगातार विकसित होते हैं। यह कई सहायक नदियों और शाखाओं के साथ एक नदी के रूप में सबसे अच्छा वर्णित है, हिंदुत्व शाखाओं में से एक है, और वर्तमान में बहुत शक्तिशाली है, कई लोग स्वयं को नदी के रूप में मानते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार दिये गए मत निम्न हैं हालांकि इनमें बहुंत मतभेद होते रहते हैं।
पहला चरण
लगभग ५००० साल पहले, कांस्य युग में, जिसे अब हड़प्पा सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है,[८] जो ईंट शहरों की विशेषता है, जो लगभग एक हजार वर्षों से सिंधु नदी घाटी के विशाल क्षेत्र में गंगा के ऊपर तक पहुंचे।[९] समतल इन शहरों में, हम उन चित्रों के साथ मिट्टी की जवानों को खोजते हैं जो वर्तमान हिंदू प्रकृति की बहुत अधिक हिस्सा हैं जैसे पाइपल वृक्ष, बैल, स्वस्तिक, सात दासी, और एक आदमी जो योग मुद्रा में बैठा है। हम इस चरण के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते क्योंकि सिन्धु लिपि को अभी तक समझा नहीं जा पाया है। वैदिक युग हिंदू धर्म के एक उच्च, सैद्धांतिक और शास्त्रवादी संस्करण का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि सिंधु घाटी सभ्यता (कुछ सदियों से वैदिक काल से पहले), हिंदू धर्म के लोक और कर्मकांडीय रूप का एक अच्छा उदाहरण है।[१०]
दूसरा चरण
३५०० साल पहले, लौह युग में, वैदिक भजनों और अनुष्ठानों से पता चला जा सकता है जिसमें हड़प्पा के विचारों के निशान होते हैं, लेकिन एक स्थाई शहरी जीवन शैली की बजाय एक खानाबदोश और ग्रामीण जीवन शैली के लिए डिजाइन किया गया है।[११] कुछ हिंदुत्व के अधिवक्ताओं पूरी तरह असहमत हैं और जोर देते हैं कि दो चरणों वास्तव में एक हैं। इस चरण में, हमें एक विश्वदृष्टि मिलती है जो भौतिक दुनिया का जश्न मनाती है, जहां ईश्वरों को अनुष्ठानों के साथ पेश किया जाता है, और स्वास्थ्य और धन, समृद्धि और शांति प्रदान करने को कहा जाता है। देवताओं को आमंत्रित करने और उनसे अनुग्रह प्राप्त करने का यह पहलू आज भी जारी है, हालांकि ये रस्में अलग-अलग हैं। वेदों ने सिंधु (अब पंजाब) से अपर गंगा (अब आगरा और वाराणसी) और निचले गंगा (अब पटना) मैदानों में एक क्रमिक फैलाव प्रकट किया है। कुछ हिंदुत्व विद्वान इस तरह के भौगोलिक फैलाव का खंडन करते हैं और उपमहाद्वीप पर जोर देते हैं कि प्राचीन समय से पूरी तरह से विकसित, समरूप, शहरी वैदिक संस्कृति, प्लास्टिक की सर्जरी और यहां तक कि हवाई जहाज जैसे उन्नत प्रौद्योगिकी के लिए।
तीसरा चरण
तीसरे चरण में २५०० साल पहले उपनिषद के रूप में जाना जाता ग्रंथों के साथ, जहां अनुष्ठानों की तुलना में आत्मनिरीक्षण और ध्यान पर अधिक महत्व दिया गया था, और हम पुनर्जन्म, मठवाद, जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति जैसे विचारों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। इस चरण में बौद्ध धर्म और जैन धर्म जैसे शमन (मठवासी) परंपराओं का उदय देखा गया, इसके अनुयायियों ने पाली और प्राकृत में बात की और वेदिक रूप और वैदिक भाषा, संस्कृत का भी खारिज कर दिया। इसमें ब्राह्मण पुजारियों ने भी धर्म-शास्त्रों की रचना के माध्यम से वैदिक विचारों को पुनर्गठित किया, किताबें जो कि शादी के माध्यम से सामाजिक जीवन को विनियमित करने और पारित होने के अनुष्ठान पर ध्यान केंद्रित करती हैं, और लोगों के दायित्वों को उनके पूर्वजों, उनकी जाति और विश्व पर निर्भर करता है। विशाल। कई शिक्षाविद वैदिक विचारों के इस संगठन का वर्णन करने के लिए ब्राह्मणवाद का प्रयोग करते हैं और इसे एक मूल रूप से पितृसत्तात्मक और मागासीवादी बल के रूप में देखते हैं जो समतावादी और शांतिवादी मठों के आदेशों के साथ हिंसक रूप से प्रतिस्पर्धा करते हैं। बौद्ध धर्म और जैन धर्म, वैदिक प्रथाओं और विश्वासों के साथ, उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक फैल गया, और अंततः उपमहाद्वीप से मध्य एशिया तक और दक्षिण पूर्व एशिया तक फैल गया। दक्षिण में, तमिल संगम संस्कृति का सामना करना पड़ता था, उस जानकारी के बारे में जो प्रारंभिक कविताओं के संग्रह से आते हैं, जो वैदिक अनुष्ठानों के कुछ ज्ञान और बौद्ध धर्म और जैन धर्म के ज्ञान के साथ बाद में महाकाव्यों का पता चलता है। कुछ हिंदुत्व विद्वानों का कहना है कि कोई अलग तमिल संगम संस्कृति नहीं थी। यह पूरी तरह से विकसित, समरूप, शहरी वैदिक संस्कृति का हिस्सा था, जहां सभी ने संस्कृत को बोला था।
चौथा चरण
चौथे चरण में ६००० साल पहले शुरू हुए रामायण, महाभारत और पुराण जैसे लेखों का उदय हुआ, जहां कहानियों को घरेलू और विश्व सम्बन्धों की विश्वदृष्टि का समाधान करने के लिए उपयोग किया जाता है और अब परिचित हिंदू विश्वदृष्टि का निर्माण किया जाता है। हमें एक पूरी तरह से विकसित पौराणिक कथाओं के लिए पेश किया जाता है जहां विश्व की कोई शुरुआत नहीं है (अंतदी) या अंत (अनंत), कई आकाश और कई कालो के साथ, क्रिया और प्रतिक्रिया (कर्म) द्वारा नियंत्रित, जहां सभी समाज जन्म और मृत्यु के चक्रों के माध्यम से जाते हैं, बस सभी जीवित प्राणियों की तरह इस चरण में मंदिरों और मंदिर अनुष्ठानों का उदय हुआ। हम मठवासी वेदांतिक आदेशों का उदय भी देखते हैं जो शरीर और सबकुछ संवेदनात्मक, साथ ही जाप तन्त्रिक आदेशों से शरीर को भ्रष्ट करते हैं और शरीर और सभी चीजों की खोज करते हैं। हम पुराने निगामा परम्परा के मिंगलिंग भी देख सकते हैं, जहां दिव्यता को नए अग्मा परम्पारा के साथ निराकार माना जाता है, जहां परमात्मा शिव और उसके पुत्रों, विष्णु और उनके अवतार, और देवी और उसके कई रूपों का रूप लेते हैं। नए आदेशों और परंपराओं के उभरने के साथ, हम जाति प्रणाली (या जाति, एक यूरोपीय शब्द) के समेकन को भी देखते हैं, जो व्यवसायों के आधार पर समुदाय समूह नहीं है, जो अंतरिमारी न होने से खुद को अलग करता है। कई शिक्षाविदों ने जाति को हिंदू धर्म की एक आवश्यक विशेषता के रूप में देखा है जो उच्च जातियों के पक्ष में है, जिस पर आरोप है कि हिंदुत्व अस्वीकार करते हैं। कई हिंदुत्व के विद्वानों का कहना है कि जाति के पास एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत आधार है, और उसके पास राजनीति या अर्थशास्त्र के साथ कुछ भी नहीं है।
पांचवां चरण
पांचवां चरण १००० वर्ष पुराना है, और यह एक सिद्धांत के रूप में भक्ति का उदय देखा, जहां भक्त भावुक गीतों के माध्यम से देवताओं से जुड़े हुए हैं, जो क्षेत्रीय भाषाओं में बना है, अक्सर मंदिर प्रणाली को दरकिनार करते हैं। यह वह समय था जब एक कठोर जाति के पदानुक्रम ने खुद को दृढ़तापूर्वक लगाया था, जो पवित्रता के सिद्धांत पर आधारित थी और कुछ जातियों को अशुभ और अयोग्य रूप में देखा जा रहा था। उन्हें भी समुदाय से अच्छी तरह से वंचित नहीं किया जा सकता है यह भी वह समय है जब इस्लाम भारत में प्रवेश करता है, शांतिपूर्वक समुद्र के व्यापारियों के माध्यम से दक्षिण में और मध्य एशियाई सरदारों के माध्यम से हिंसक रूप से उत्तर में जाता है, जो बौद्ध मठों और हिंदू मंदिरों को नष्ट करते हैं, जो राजनीतिक सत्ता के केंद्र भी होते हैं और अंततः उनके शासन की स्थापना करते हैं, अक्सर हिंदू राजाओं जैसे उत्तर में राजपूत, पूरब में अहोम्स, मराठों और दक्कन में विजयनगर साम्राज्य का विरोध करते थे। हिंदुत्व ने इस्लाम के आगमन और दिल्ली और डेक्कानी सल्तनतों के उत्थान को देखते हुए, बाद में मुगल शासन को महान हिंदू संस्कृति के अंत के रूप में चिह्नित किया, यह एक विषय है कि मार्क्सवादी इतिहासकारों ने पागल सांप्रदायिक प्रचार किया है। बाद में केवल हिंदू-इस्लामी सहयोग को उजागर किया गया, जो अन्य चरम पर जा रहा है, गैर-मार्क्सवादी इतिहासकारों का तर्क है
छठी चरण
छठे चरण ३०० वर्ष का है जब हिंदू धर्म उपमहाद्वीप में यूरोपीय शक्ति के उदय को उत्तर देते हैं, और ईसाई मिशनरियों के परिणामस्वरूप आगमन और तर्कसंगत वैज्ञानिक व्याख्यान। कुछ हिंदुत्व विद्वान, दोनों के बीच अंतर नहीं करते हैं। इस युग में यूरोपीय विद्वानों ने वैज्ञानिक विधियों और जूदेव-ईसाई लेंस दोनों का उपयोग करके हिंदू धर्म की भावना बनाने की कोशिश की। उनके लिए, एकेश्वरवाद सच्चा धर्म और वैज्ञानिक था; बहुदेववाद मूर्तिपूजक पौराणिक कथाओं था उन्होंने हिंदू जीवन शैली के अनुवाद और दस्तावेजीकरण का एक विशाल अभ्यास शुरू किया। उन्होंने एक पवित्र किताब, एक नबी, और अधिक महत्वपूर्ण बात, एक उद्देश्य की तलाश की। आखिरकार, जटिलता को व्यवस्थित करने के लिए, उन्होंने हिंदू धर्म को ब्राह्मणवाद के रूप में परिभाषित करना शुरू किया, यह बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म से भिन्न था। यह ओरिएंटलिस्ट ढांचा विद्यालयों, कॉलेजों और मीडिया के माध्यम से पूर्वी धर्मों की वैश्विक समझ को सूचित करता रहा है।
एक तरल मौखिक संस्कृति को १वीं और ९वीं शताब्दी तक तय किया गया था। पश्चिमी तरीकों से पढ़े हुए हिंदुओं ने अपने रिवाज़ और विश्वासों के बारे में पूछे जाने पर उन्हें शर्म की बात और शर्मिंदगी का गहरा असर महसूस किया। कुछ ने औपनिवेशिक देखने के लिए हिंदुत्व को सुधारने का फैसला किया। दूसरों ने हिंदू धर्म के "सच्चे सार" की खोज करने और "बाद में भ्रष्ट" प्रथाओं को खारिज कर दिया। फिर भी दूसरों ने हिंदू धर्म को ही खारिज कर दिया और सभी धर्मों को एक अंधेरे खतरनाक बल के रूप में देखा, जो तर्कसंगतता और वैज्ञानिक रूप से बदल दिया गया। यह इस चरण में है कि हिंदुत्व एक जवाबी शक्ति के रूप में उभरे जो कि उन्होंने यूरोपियन में हिंदुओं की सभी चीजों के अविनाशी और अनुचित मजाक के रूप में देखा और बाद में अमेरिकी और भारतीय विश्वविद्यालयों में चुनौती दी। हिंदुत्व ने मार्क्सवाद और अन्य सभी पश्चिमी प्रवचनों को ईसाई प्रवचन के एक और रूप के रूप में देखा, जो पिछले शताब्दियों में इस्लाम ने मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया में जो किया था, वह हिंदू जीवन शैली के सभी निशानों को मिटा देने की मांग कर रहा था।
सातवें चरण
सातवीं चरण, आजादी के बाद, इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता, भले ही यह केवल पिछले ७० वर्षों तक फैला हो, क्योंकि यह धार्मिक आधार पर हिंसक और रक्त-लथपथ विभाजन से शुरू होता है और मुसलमानों के लिए पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण। क्या यह भारत को मूल रूप से एक हिंदू राज्य बना देता है? या क्या यह "भारत के विचार" को प्रेरित करता है जहां सभी लोगों को समान सम्मान मिलता है, चाहे धर्म और जाति का? अलग-अलग लोग अलग-अलग जवाब देंगे। हिंदुत्व ने अल्पसंख्यक अनुशासनात्मकता के रूप में धर्मनिरपेक्षता को देखा, विशिष्ट जातियों के प्रतिवाद के रूप में सकारात्मक भेदभाव को देखते हुए समाजवाद सिर्फ क्रोधित पूंजीवाद, सामाजिक न्याय के सिद्धांतों और पारंपरिक हिंदू परिवार के मूल्यों की धमकी देकर लैंगिक समानता का निर्माण, और समान नागरिक संहिता की अनुपस्थिति के रूप में भारत को विभाजित करने का एक और तरीका। कई बुद्धिजीवियों ने जब उनका तर्क दिया कि हिंदू धर्म और भारत जैसी अवधारणाएं ब्रिटिश की रचना थीं, तो कोई वास्तविक प्राचीन जड़ों के साथ, आम जनता की आस्था को कल्पित कल्पनाओं के विपरीत के रूप में अस्वीकार कर दिया गया था। यह बदतर हो गया जब दुनिया भर के शिक्षाविदों ने जातिवाद के साथ हिंदू धर्म को समझाते हुए इस्लाम को आतंकवाद से जुड़ा, या आतंकवादी मिशनरी गतिविधि के साथ ईसाई धर्म से इनकार कर दिया। बहुत से लोगों ने मार्क्सवाद, उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बहुसंख्य भारतीयों में विफल कर दिया, जिनमें से ज्यादातर गरीबी गरीबी में रह रहे हैं। उचित या नहीं, पीड़ित महसूस हुआ कि हिंदुत्व को आक्रामक रूप से मर्दाना रुख के बावजूद एक मौका देने का समय था, खासकर जब से यह विकास की भाषा, और आकांक्षाओं की बात करता था।
इन्हें भी देखें
- भारत में हिन्दू धर्म
- सिंधु घाटी सभ्यता
- आर्यन प्रवास सिद्धांत
- आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा
- हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार
सन्दर्भ
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- ↑ पुस्तक: आर्यों का आदिदेश पृ० २६
- ↑ श्रीराम और हनुमान की मूर्ति सिलेमानिया ईराक में प्राप्त स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। पत्रिका समाचार।
- ↑ कल्प विग्रह सबसे पुरानी भगवान शिव की मूर्ति २६४५० बीसी स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। बुक्सफैक्ट।
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
बाहरी कड़ियाँ
- हिन्दू कालक्रम (Hindu Timeline) (अंग्रेजी में)
- हिन्दू धर्म के अद्वितीय सिद्धान्त
- History of Hinduism on MSN Encarta encyclopedia (Archived 2009-10-31)
- Hinduism in Modern Times
- Timeline of Hinduism and its offshoots
- Some Missing Chapters of World History - Chapter 21 - ENTIRE PACIFIC REGION AS HINDU TERRITORY
- Ancient Hinduism in Europe
- ARABIA'S ANCIENT VEDIC PAST
- In Search of an Ancient Hindu Temple in Azerbaijan