खंभात
खंभात Khambhat ખંભાત Cambay | |
— नगर — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | साँचा:flag |
राज्य | गुजरात |
जनसंख्या | 93,194 (साँचा:as of) |
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साँचा:coord खंभात नगर, (गुजराती:ખંભાત) पूर्व-मध्य गुजरात के आनन्द जिले की एक नगरपालिका है।[१] यह खंभात की खाड़ी के उत्तर में, माही नदी के मुहाने पर स्थित एक प्राचीन नगर है। टॉलमी नामक विद्वान ने भी इसका उल्लेख किया है। प्रथम शती में यह महत्वपूर्ण सागर पत्तन था। १५वीं शताब्दी में खंभात पश्चिमी भारत के हिंदू राजा की राजधानी था। जेनरल गेडार्ड ने १७०० ई. में इस नगर को अधिकृत कर लिया था, किंतु १७८३ ई. में यह पुन: मराठों को लौटा दिया गया। १८०३ ई. के बाद से यह अंग्रेजी राज्य के अंतर्गत रहा। नगर के दक्षिण-पूर्व में प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष विस्तृत प्रदेश में मिलते हैं।
प्राचीन काल में रेशम, सोने का समान और छींट यहाँ के प्रमुख व्यापार थे। कपास प्रधान निर्यात थी। किन्तु नदियों के निक्षेपण से पत्तन पर पानी छिछला होता गया और अब यह जलयानों के रुकने योग्य नहीं रहा। फलत: निकटवर्ती नगरों का व्यापारिक महत्त्व खंभात की अपेक्षा अधिक बढ़ गया और अब यह एक नगर मात्र रह गया है।
नाम की उत्पत्ति
कुछ विद्वानों का मानना है कि खंभात संस्कृत के शब्द "कंबोज" का अपभ्रंस है,[२]जबकि अरबी लेखकों ने इसकी उत्पत्ति "कांबया" से बताया है। कुछ लोगों का मानना है कि यह शहर "स्तम्भ सिटी" हो सकता है। लेफ्टिनेंट कर्नल जेम्स टॉड ने यह स्वीकार किया है कि खंभात शब्द संस्कृत के "खंभ" और "आयात" से बना है।[३][४]
इतिहास
यह नगर खंभात रियासत की राजधानी था, जिसे 1949 में खैरा (बाद में खेड़ा) जिले में मिला दिया गया।
खंभात पूर्व में एक समृद्ध शहर था और रेशम के विनिर्माण के साथ-साथ छींट और सोने के सामान लिए विख्यात था। अरब यात्री, अल मसुद्दी ने इसका एक बहुत ही सफल बंदरगाह के रूप में वर्णन किया है। उन्होने 915 ई. में इस शहर का दौरा किया था। 1293 ई. में मार्को पोलो ने भी इसका उल्लेख एक व्यस्त बंदरगाह के रूप में किया था, जिनके अनुसार यहाँ एक सचित्र व महत्वपूर्ण भारतीय विनिर्माण और व्यापारिक केंद्र था। एक समकालीन इतालवी यात्री, मैरिनो सानुड़ो ने भी इस शहर का उल्लेख एक व्यस्त बन्दरगाह के रूप में किया है। 1440 ई. में एक और इतालवी निकोलो डे 'कोंटी ने इस शहर का उल्लेख समृद्धि और संपन्नता के रूप में किया है।
पुर्तगाली अन्वेषक ड्यार्टे बारबोसा ने भी सोलहवीं सदी में खंभात का दौरा किया।[५] उनका कहना था कि यह शहर काफी भरा-भरा सा है। उनका कहना था कि खंभात में प्रवेश करते ही एक आंतरिक नदी मिलती है, जो मौरोस (मुसलमान) और हिंदुओं (गेंटिओस) की आबादी को बांटती हुयी एक सुंदर व महान शहर का बोध कराती है।[६] यहाँ खिड्कियों के साथ कई ऊंचे और सुंदर मकान हैं साथ ही अच्छी सड़कें और चौक हैं। व्यापारियों के चारों ओर दुनिया से समुद्र के द्वारा बार बार आने के साथ, बहुत व्यस्त और समृद्ध के रूप में यह शहर दृश्यमान है।
भौगोलिक स्थिति
यह नगर खंभात की खाड़ी के सिरे पर माही नदी के मुहाने पर स्थित है। यह 15 वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक मुस्लिम शासन के अंतर्गत एक समृद्ध बन्दरगाह था, लेकिन खड़ी में गाद जमा होने के साथ बन्दरगाह का महत्त्व समाप्त हो गया। खंभात कपास, अनाज, तंबाकू, वस्त्र, कालीन,नमक और पत्थर के अलंकारणों का वाणिज्यिक और औद्योगिक केंद्र है। इस क्षेत्र में पेट्रोल की खोज हो चुकी है और 1970 से पेट्रो-रसायन उद्योग का विकास किया जा रहा है।[७]
परिवहन
खंभात सड़क और रेलमार्ग द्वारा अन्य जगहों से जुड़ा हुआ है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
- ↑ भारत ज्ञान कोश, खंड-2, पोप्युलर प्रकाशन, पृष्ठ संख्या-1, आई एस बी एन 81-7154-993-4
- ↑ इब्ने बतुता के द्वारा अपने रिसाले में इस बन्दरगाह को एक या दो बार कंबया और कंबयात के रूप में प्रयोग किया गया है
- ↑ ' कुछ संदर्भ देखें ': एपिग्राफिया इंडिका, वॉल्यूम XXIV, पीपी 45-46, वांगर जात्य इतिहास, रजन्य कांडा (बंगाली), नागेन्द्र नाथ वासु, इस्लाम की आत्मा या मोहम्मद के जीवन और शिक्षाओं: या जांच के लिए, या, बंगाल में संस्थापित सोसायटी ट्रांजेक्शन ..., 1801, पृ 129, एशियाटिक सोसाइटी (कलकत्ता, भारत);: एशियाटिक शोध, जीवन और मोहम्मद, 2002, पृष्ठ 359, अमीर अली सैयद की शिक्षाओं मैन 1906 के धर्म या धर्मों के विश्वकोश, 2003 संस्करण, पृष्ठ 282, जे जी आर फोरलोंग, ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, 1990, पृष्ठ 232, ग्रेट ब्रिटेन की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी और आयरलैंड के रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, 1990 में प्रकाशित उत्तर भारत के सांस्कृतिक इतिहास, पूर्व मध्यकालीन आक्रमण, 1988, पृष्ठ 198, कमला चौहान को, प्राचीन कम्बोज, लोग और देश, 1981, पीपी 305, 332, युग के माध्यम से कम्बोज, 2005 रॉयल, एशियाटिक सोसाइटी आदि के लिए प्रेस, पीपी 161, 216, किम (रुडयार्ड किपलिंग द्वारा - 1901), अध्याय XI, पृष्ठ 266, रेखा 23, शरद Keskar द्वारा पाठ पर नोट्स, सीएफ: प्राचीन भारत, 1956, पृष्ठ 383, डॉ॰ आर.के. मुखर्जी.
- ↑ विश्व का एक गजट, भौगोलिक ज्ञान, 1856, पृष्ठ 213, रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी (ग्रेट ब्रिटेन), रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी के सदस्य, रॉयल सोसायटी भौगोलिक ग्रेट ब्रिटेन का एक शब्दकोश - भूगोल.
- ↑ Livro em que dá relação do que viu e ouviu no Oriente. p. 77 sq.
- ↑ यह आंतरिक नदी, कुईंडरिम, नर्मदा है?
- ↑ भारत ज्ञानकोश, खंड-2, प्रकाशक: पापयुलर प्रकाशन मुंबई, पृष्ठ संख्या 1, आई एस बी एन 81-7154-993-4