बाहुबली

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:about

बाहुबली
साँचा:larger
The statue of Gommateshvara Bahubali dating 978-993 AD..jpg
गोम्मटेश्वर बाहुबली की मूर्ति (श्रवणबेलगोला)
अन्य नाम गोम्मटेश्वर
संबंध जैन धर्म
जीवनसाथी साँचा:if empty
माता-पिता साँचा:unbulleted list
संतान साँचा:if empty

स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

बाहुबली प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र थे।साँचा:sfn अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती से युद्ध के बाद वह मुनि बन गए। उन्होंने एक वर्ष तक कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान किया जिससे उनके शरीर पर बेले चढ़ गई। एक वर्ष के कठोर तप के पश्चात् उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वह केवली कहलाए।साँचा:sfn अंत में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे जीवन और मरण के चक्र से मुक्त हो गए।

गोम्मटेश्वर प्रतिमा के कारण बाहुबली को गोम्मटेश भी कहा जाता है। यह मूर्ति श्रवणबेलगोला, कर्नाटक, भारत में स्थित है और इसकी ऊँचाई ५७ फुट है।[१] इसका निर्माण वर्ष ९८१ में गंगा मंत्री और सेनापति चामुंडराय ने करवाया था। यह विश्व की चंद स्वतः रूप से खड़ी प्रतिमाओं मेें से एक है।

कथा चित्र

भरत चक्रवर्ती और बाहुबली के बीच हुए युद्ध का चित्रण

बाहुबली का जन्म ऋषभदेव और सुनंदा के यहाँ इक्षवाकु कुल में अयोध्या नगरी में हुआ था। उन्होंने चिकित्सा, तीरंदाज़ी, पुष्पकृषि और रत्नशास्त्र में महारत प्राप्त की। उनके पुत्र का नाम सोमकीर्ति था जिन्हें महाबल भी कहा जाता है। जैन ग्रंथों के अनुसार जब ऋषभदेव ने संन्यास लेने का निश्चय किया तब उन्होंने अपना राज्य अपने १०० पुत्रों में बाँट दिया।साँचा:sfn भरत को विनीता (अयोध्या) का राज्य मिला और बाहुबली को अम्सक का जिसकी राजधानी पोदनपुर थी। भरत चक्रवर्ती जब छ: खंड जीत कर अयोध्या लौटे तब उनका चक्र-रत्न नगरी के द्वार पर रुक गया। जिसका कारण उन्होंने पुरोहित से पूछा। पुरोहित ने बताया की अभी आपके भाइयों ने आपकी आधीनता नहीं स्वीकारी है। भरत चक्रवर्ती ने अपने सभी ९९ भाइयों के यहाँ दूत भेजे। ९८ भाइयों ने अपना राज्य भारत को दे दिया और जिन दीक्षा लेकर जैन मुनि बन गए। बाहुबली के यहाँ जब दूत ने भरत चक्रवर्ती का अधीनता स्वीकारने का सन्देश सुनाया तब बाहुबली को क्रोध आ गया। उन्होंने भरत चक्रवर्ती के दूत को कहा कि भरत युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ।साँचा:sfn

सैनिक-युद्ध न हो इसके लिए मंत्रियों ने तीन युद्ध सुझाए जो भरत और बाहुबली के बीच हुए। यह थे, दृष्टि युद्ध, जल-युद्ध और मल-युद्ध। तीनों युद्धों में बाहुबली की विजय हुई।साँचा:sfn

बाहुबली के ध्यान में रहते समय को दर्शाता एक चित्र

इस युद्ध के बाद बाहुबली को वैराग्य हो गया और वे सर्वस्व त्याग कर दिगम्बर मुनि बन गये। उन्होंने एक वर्ष तक बिना हिले खड़े रहकर कठोर तपस्या की। इस दौरान उनके शरीर पर बेले लिपट गयी। चींटियों और आंधियों से घिरे होने पर भी उन्होंने अपना ध्यान भंग नही किया और बिना कुछ खाये पिये अपनी तपस्या जारी रखी। एक वर्ष के पश्चात भरत उनके पास आये और उन्हें नमन किया। इससे बाहुबली के मन में अपने बड़े भाई को नीचा दिखाने की ग्लानि समाप्त हो गई और उनके चार घातिया कर्मों का नाश हो गया। तब उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे इस अर्ध चक्र के प्रथम केवली बन गए। इसके पश्चात उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

आदिपुराण के अनुसार बाहुबली इस युग के प्रथम कामदेव थे।साँचा:sfn इस ग्रंथ की रचना आचार्य जिनसेन ने ७वी शताब्दी में संस्कृत भाषा में की थी। यह ग्रंथ भगवान ऋषभदेव की दस पर्यायों तथा उनके पुत्र भरत और बाहुबली के जीवन का वर्णन करता है।

प्रतिमाएं

कर्नाटक में बाहुबली की ५ अखंड प्रतिमायें हैं जो २० फुट से ज़्यादा ऊँची है।

  • ५७ फुट ऊँची श्रवणबेलगोला में (वर्ष ९८१ में निर्मित)
  • ४२ फुट ऊँची करकला में (वर्ष १४३० में निर्मित)
  • ३९ फुट ऊँची धर्मस्थल में (वर्ष १९७३ में निर्मित)
  • ३५ फुट ऊँची वनुर में (वर्ष १६०४ में निर्मित)
  • २० फुट ऊँची गोमटगिरी में (बारवी शताब्दी में निर्मित)

श्रवणबेलगोला

ग्रेनाइट के विशाल अखण्ड शिला से तराशी बाहुबली की प्रतिमा बंगलोर से १५८ किलोमीटर की दूरी ओर स्थित श्रवणबेलगोला में है। इसका निर्माण गंगा वंश के मंत्री और सेनापति चामुण्डराय ने वर्ष ९८१ में करवाया था। ५७ फुट ऊँची यह प्रतिमा विश्व की चंद स्वतः खड़ी प्रतिमाओं में से एक है। २५ किलोमीटर की दूरी से भी इस प्रतिमा के दर्शन होते है और श्रवणबेलगोला जैनियों का एक मुख्य तीर्थ स्थल है। हर बारह वर्ष के अंतराल पर इस प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है जिसे महामस्तकाभिषेक नामक त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

कारकल

बाहुबली की मूर्ति, कारकल (१४३२ ईसवीं)

कारकल अपनी १४३२ में बनी बाहुबली की ४२ फुट ऊँची अखण्ड प्रतिमा के लिए जाना जाता है। यह राज्य की दूसरी सबसे ऊँची प्रतिमा है जो एक पर्वत की चोटी पर स्थित है। इसका प्रथमाभिषेक १३ फरवरी १४३२ विजयनगर के जागीरदार और भैररस वंशज वीर पंड्या भैररस वोडेयार द्वारा हुआ था।

धर्मस्थल

धर्मस्थल में बाहुबली की ३९ फुट ऊँची प्रतिमा एक १३ फुट ऊँची वेदी पर विराजमान है। इसका कुल वज़न १७५ टन है।

वेनूर

वेनूर कर्नाटक में गुरुपुर नदी के किनारे बसा एक छोटा शहर है। वर्ष १६०४ में थीमन अजील ने यहाँ बाहुबली की एक ३८ फुट ऊँची प्रतिमा का निर्माण करवाया था। यह प्रतिमा २५० किलोमीटर मैं स्थित तीनों विशाल प्रतिमाओं में से सबसे छोटी है। इसकी रचना भी श्रवणबेलगोला की प्रतिमा की ही तरह है। अजिला वंश ने यहाँ ११५४ से १७८६ तक राज किया था।

गोमटगिरी

गोमटगिरी एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ है।

कुम्भोज बाहुबली

यह जैन क्षेत्र भारत के महाराष्ट्र प्रांत के कोल्हापुर जिले में स्थित है। इस क्षेत्र पर पर्वत पर भगवान बाहुबली की एक प्रतिमा और तलहटी पर बाहुबली भगवान की एक विशाल प्रतिमा विराजमान है और कई जैन मंदिर भी विराजमान हैं|

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

उद्धरण

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

स्त्रोत