भरत चक्रवर्ती
भरत चक्रवर्ती | |
---|---|
श्रवणबेलगोला के चन्द्रगिरि नामक पहाड़ी पर भरत की प्रतिमा | |
जीवनसाथी | साँचा:if empty |
माता-पिता | साँचा:unbulleted list |
संतान | साँचा:if empty |
स्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
भरत चक्रवर्ती, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। जैन और हिन्दू पुराणों के अनुसार वह चक्रवर्ती सम्राट थे और उन्ही के नाम पर भारत का नाम "भारतवर्ष" पड़ा।साँचा:sfn
जैन ग्रंथ "आदिपुराण" जिसके रचयिता आचार्य श्री जिनसेन स्वामी है ने सातवीं शताब्दी में लिखें गए आदिपुराण में प्रथम चक्रवर्ती भरत का विस्तार से वर्णन किया है ; प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और यशावती के पुत्र चक्रवर्ती भरत एक महान शासक थे जिनके नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा|
इनके बाहुबली, वृषभसेन, अनंतविजय, अनंतवीर्य, अच्युत, बरवीर आदि 99 भाई और ब्राह्मी एवं सुंदरी नाम की दो बहनें थी|
अनेकों वर्ष राजपाठ करने के उपरांत भरत चक्रवर्ती ने अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज पाठ सौंपकर दिगंबर जैन मुनि की दीक्षा ली और केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त किया|- आदिपुराण( आचार्य जिनसेन)
हिन्दू ग्रन्थ, स्कन्द पुराण (अध्याय ३७) के अनुसार: "ऋषभदेव नाभिराज के पुत्र थे, ऋषभ के पुत्र भरत थे, और इनके ही नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा"|साँचा:sfn
- ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात भरतो भवेत् ।
- भरताद भारतं वर्षं, भरतात सुमतिस्त्वभूत् ॥ — विष्णु पुराण (2, 1, 31)
- ऋषभ मरुदेवी को पैदा हुए थे, भरत ऋषभ को पैदा हुए थे,
- भारतवर्ष भरत से उगा और सुमति भरत से उगी।
- ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयते
- भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम् ॥ - विष्णु पुराण (2, 1, 32)
- यह भूमि तब से भारतवर्ष के रूप में जानी जाती है
- जब से पिता अपने पुत्र भरत को राज्य सौंप कर तपस्या के लिए जंगल में गए
आदिपुराण
7 वी सदी में लिखे गए आदिपुराण में ऋषभदेव, भरत और बाहुबली के दस जन्मों के बारे में बताया गया है। [१][२]
जन्म और बचपन
भरत के जन्म से पूर्व उनकी माता ने ६ स्वप्न देखे। ऋषभदेव ने उन्हें इनका अर्थ समझाया और बताया कि बालक प्रथम चक्रवर्ती बनेगा।[३][४] भरत की बहन हुई ब्राह्मी।[५] भरत को मुख्य रूप से न्याय की शिक्षा मिली।[६]
चक्रवर्ती
जैन कालचक्र के अनुसार हर काल में ६३ सलाकापुरुष जन्म लेते है। इनमे से १२ चक्रवर्ती होते है, जो सम्पूर्ण विश्व पर राज करते है। चक्रवर्ती सबके आदर्श माने जाते है।[७] भरत अवसर्पिणी (वर्तमान काल) के प्रथम चक्रवर्ती थे।[८]
सप्त रत्न
जैन ग्रंथों के अनुसार चक्रवर्ती के पास सात रत्न होते है-
- सुदर्शन चक्र
- रानी
- रथों की विशाल सेना
- आभूषण
- अपार सम्पदा
- घोड़ों की विशाल सेना
- हाथियों की विशाल सेना
राज
जब ऋषभदेव ने मुनि बनने का निश्चय किया, तब उन्होंने अपना साम्राज्य अपने १०० पुत्रों में बाँट दिया |[९][१०] इसके पश्चात् भरत ने विश्व विजेता बनने का निश्चय किया। सम्पूर्ण विश्व पर विजय करने के पश्चात् चक्रवर्ती बनने के लिए उन्होंने अपने भाइयों से अधीनता स्वीकारने को कहा। ९८ भाइयों ने अपने पुत्रों को राज्य सौंप कर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली, परंतु बाहुबली ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा।[११] झगड़ा सुलझाने के लिए तीन तरह के युद्ध हुए:
- दृष्टि युद्ध
- जल युद्ध
- मल युद्ध
बाहुबली युद्ध में जीत गए पर उन्हें संसार से वैराग्य हो गया और वह मुनि बन गए।[१२][१३]
भरत ने कर्म युग में नीति राज की शुरुआत की।[१४] उन्होंने चार तरह के दंड निश्चित किए।[१५] आदिपुराण के अनुसार उन्होंने ब्राह्मण वर्ण की शुरुआत की[१६], पर यह ब्राह्मण वर्ण आज की ब्राह्मण जाति से बहुत भिन्न है ।[१७] भरत के पास पास अवधि ज्ञान था|[१८] सभी चक्रवर्तियों की तरह भरत भी संसार की असारता जान मुनि बन गए और अंत में मोक्ष गए।
मंदिर
- श्रवणबेलगोला में भरत का एक मंदिर है।
इरिंजालकूदा (कूदलमणिचकाम) भरत मन्दिर असल में एक जैन मन्दिर था जिसके मूलनायक सिद्ध भरत थे।
- वर्तमान मे श्री.भरत भगवान का एक तीर्थ बना जिसका नाम है श्री क्षेत्र भरत का भारत यह मंगलगिरी सगर मे है।[१९]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 90.
- ↑ Shah 1987, पृ॰ 112.
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 92.
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 93.
- ↑ Nagraj, पृ॰ 203.
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 66.
- ↑ Titze 1998, पृ॰ 8.
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 143.
- ↑ Jain 2008, पृ॰ 105.
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 145.
- ↑ Jain 2008, पृ॰ 110.
- ↑ Glasenapp 1999, पृ॰ 365.
- ↑ Jain 1929, पृ॰ 101.
- ↑ Jain 2008, पृ॰ 111.
- ↑ Jain 2008, पृ॰ 115.
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।