निर्जरा
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
निर्जरा जैन दर्शन के अनुसार एक तत्त्व हैं।साँचा:sfn इसका अर्थ होता है आत्मा के साथ जुड़े कर्मों का क्षय करना। यह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए आवश्यक हैं। आचार्य उमास्वामी द्वारा विरचित जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र का ९ अध्याय इस विषय पर हैं। निर्जरा संवर के पश्चात् होती हैं। जैन ग्रन्थ द्रव्यसंग्रह के अनुसार कर्म आत्मा को धूमिल करते देते हैं, निर्जरा से आत्मा फिर निर्मलता को प्राप्त होती हैं।[१]
भेद
निर्जरा के दो भेद हैं:साँचा:sfn
- भाव निर्जरा
- द्रव्य निर्जरा
माध्यम
जैन ग्रंथों के अनुसार तप से निर्जरा होती हैं।[२] तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार निर्जरा के लिए बाईस परिषह सहने योग्य हैं।[३]
बाह्य तप
- सम्यक् अनशन
- सम्यक् अल्पआहार
- सम्यक् रसपरित्याग
- सम्यक् काय कलेश
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
ग्रन्थ
- साँचा:citation
- स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- साँचा:citation