बाजीराव मस्तानी (फ़िल्म)
बाजीराव मस्तानी | |
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चित्र:Bajirao Mastani.jpg पोस्टर | |
निर्देशक | संजय लीला भंसाली |
निर्माता | रविशंकर कुमार |
अभिनेता |
रणवीर सिंह दीपिका पादुकोण प्रियंका चोपड़ा |
संगीतकार | संजय लीला भंसाली |
स्टूडियो | एसएलबी फिल्म्स |
वितरक | एरोस इंटरनेशनल[१][२] |
प्रदर्शन साँचा:nowrap |
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देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
'बाजीराव मस्तानी' एक भारतीय ऐतिहासिक (मराठा युग) रोमांस फ़िल्म है जिसका निर्देशन और निर्माण संजय लीला भंसाली ने किया है। फ़िल्म मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव और उसकी दूसरी पत्नी मस्तानी के बारे में बताती है। रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण ने ये दोनों मुख्य किरदार निभाए हैं, प्रियंका चोपड़ा ने बाजीराव की पहली पत्नी का व तन्वी आज़मी ने बाजीराव की माँ का किरदार निभाया है। बाजीराव मस्तानी १८ दिसम्बर २०१५ को रिलीज़ हुई है।[३][४]
पात्र
- रणवीर सिंह: मराठा साम्राज्य का योद्धा बाजीराव[५]
- प्रियंका चोपड़ा: बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई
- दीपिका पादुकोण : बाजीराव की दूसरी पत्नी मस्तानी
- तन्वी आज़मी : बाजीराव की माँ राधाबाई[६]
- सुखदा खांडकेकर (Sukhada Khandkekar) : बाजीराव की बहन अनुबाई [७]
- अनुजा गोखले : बाजीराव की बहन भिऊबाई[७]
- वैभव तत्ववादी - चिमाजी अप्पा: बाजीराव का छोटा भाई[८]
- महेश मांजरेकर[९]
- मिलिंद सोमण[१०]
- आयुष टंडन
कहानी
बाजीराव मस्तानी फ़िल्म की शुरुआत नए पेशवा बनाने से शुरू होती है इसके लिए बाजीराव (रणवीर सिंह ) को चुना जाता है इसके बाद इस खुशी में सभी साम्राज्य के लोग खुशी मनाते हैं। फिर अचानक बुंदेलखण्ड से मस्तानी (दीपिका पादुकोण ) सहायता के लिए आती है और बाजीराव के सैनिकों से लड़कर सीधे बाजीराव से मिलती है और उनको मनाकर बुंदेलखण्ड ले जाती है वहां वो वहां पर प्रतिद्विन्दीयों से दोनों मिलकर युद्ध करते है और वहां पर विजय प्राप्त करते हैं। इसके बाद बाजीराव बुंदेलखण्ड में होली मनाते है इसी बीच बाजीराव और मस्तानी में प्यार हो जाता है। दूसरे दिन बाजीराव वापस पुणे चले जाते हैं। इसी बीच जाते वक़्त बाजीराव मस्तानी को अपनी कटार दे के जाते हैं इस कारण बुंदेलखण्ड में कटार से विवाह हो जाता है इस परम्परा के तहत मस्तानी पुणे जाती है। वहां पर वो बाजीराव की माता राधाबाई (तन्वी आज़मी ) से मिलती है। राधाबाई मस्तानी को नहीं चाहती है इस कारण वो नफ़रत करने लगती है। इसके बाद चिमाजी अप्पा शनिवारवाड़ा दिखाते है तथा इसमें अद्भुत आईनामहल भी दिखाते हैं। मस्तानी जब राधाबाई से रिश्ते को मानने लिए कहती है तो वो घुंघरू देकर कहती है कि अब से तुम्हारा रिश्ता हो गया है अब से तुम महफ़िल में नाचोगी। फिर सातारा से छत्रपति साहू का बुलावा आता है तब बाजीराव वहां जाते है फिर राधाबाई एक नई चाल चलती है और मस्तानी को घुंघरू देकर भेज देती है लेकिन मस्तानी वहां पहुंचकर घुंघरू छत्रपति साहू के सामने घुंघरू रख देती है इस कारण पंत प्रतिनिधि (आदित्य पंचोली ) महफ़िल का अपमान मानते है लेकिन जब छत्रपति साहू को पता चलता है कि वो राजा छत्रसाल की बेटी है तो वो इन्हें वापस जाने के लिए ख देते है और बोलते है कि तुम्हें क्या चाहिए तब मस्तानी बोलती है कि मैंने बाजीराव से इश्क़ किया है बाजीराव चाहिए। इसके पश्चात मस्तानी बाजीराव की प्रतीक्षा करती है उस वक़्त तूफान आ जाता है और बाजीराव वहां आकर मस्तानी से विवाह कर देता है। इसी बीच काशीबाई (प्रियंका चोपड़ा ) को भी पता चल जाता है और वो भी नाराज़ हो जाती है। फिर काशीबाई और मस्तानी के पुत्र होते है और उनका नामकरण किया जाता है। काशीबाई के पुत्र का नाम रघुनाथ रखते है जबकि मस्तानी के पुत्र का नाम समशेर बहादुर नाम रख देते हैं। इसी बीच बाजीराव और चिमाजी अप्पा के बीच लड़ाई हो जाती है। बाजीराव सभी से कहता है कि वो सप्तमी के दिन मस्तानी को शनिवारवाड़ा लाएंगे परन्तु कृष्णभट और राधाबाई ये नहीं करने को कहते हैं।
कहानी का आधार एवं ऐतिहासिकता
यह फिल्म सुप्रसिद्ध मराठी उपन्यासकार नागनाथ इनामदार के उत्कृष्ट ऐतिहासिक उपन्यास राऊ (हिंदी अनुवाद - राऊ स्वामी के नाम से प्रकाशित) पर आधारित है। यह उपन्यास मराठी ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय भाषाओं के सफलतम ऐतिहासिक उपन्यासों में से एक है। इसमें इतिहास एवं इतिहास-रस दोनों की रक्षा करते हुए उत्कृष्ट सर्जनात्मकता का परिचय दिया गया है। इस उपन्यास में स्वाभाविक रूप से भरपूर नाटकीयता विद्यमान है और पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे कोई उत्तम धारावाहिक देख रहे हों। इसके वर्णनात्मक दृश्य भी चलचित्र के दृश्यों की तरह मानस-पटल पर अंकित रह जाते हैं। ऐसे उपन्यास पर आधारित होने से फिल्म में अनेक विशेषताएँ स्वाभाविक रूप से आ गयी हैं। संजय लीला भंसाली जैसे सिद्धहस्त निर्देशक के द्वारा यह कहानी और भी चमक उठी है। फिल्म में पाठ्य रचना से कुछ अंतर आ जाना तो स्वाभाविक ही रहता है क्योंकि दोनों के माध्यम भिन्न होते हैं, परंतु इस फिल्म में कुछ अंतर जानबूझकर फिल्मी लटकों-झटकों के रूप में लाये गये हैं, जिससे इतिहास-बोध को धक्का पहुंचा है। आरंभिक दृश्यों में बाजीराव को पेशवा नियुक्त करने वाला दृश्य तो बहुत ही उत्तम एवं उपयुक्त भी है, और उपन्यास से बाहर का होते हुए भी ऐतिहासिकता एवं इतिहास-बोध के सर्वथा अनुरूप है; परंतु जिस दृश्य में काशीबाई की पुरानी सहेली आती है, जिसका पति पेशवा बाजीराव के कारण मारा गया है और इसलिए वह अपने पति की राख वहां छोड़ कर एक तरह से शाप देती है, वहां स्पष्ट अंतर आ गया है। उपन्यास में काशीबाई की कुशल गृहिणी के रूप में गरिमामयी उपस्थिति है, जबकि फिल्म में काशीबाई को चंचल किशोरी की तरफ उछलते दिखलाकर इतिहास बोध को खंडित कर दिया गया है। फिल्मकार यह भी भूल गया है कि जिस काशीबाई का वह ऐसा फिल्मांकन कर रहा है उसका बेटा (नाना साहब) जवान हो रहा है और वही उस उत्सव का मुख्य कर्ता-धर्ता था। यहाँ काशीबाई पेशवा की पत्नी (एक तरह से रानी) न लग कर फिल्मी हिरोइन 'प्रियंका चोपड़ा' ही लगती है।
छत्रसाल की सहायता के लिए बाजीराव को मस्तानी के द्वारा सेना सहित ले जाना भी बिल्कुल अनैतिहासिक रूप वाला हो गया है। देखने में बहुत रोचक है, लेकिन मस्तानी के द्वारा ऐसा न तो हुआ था, न हो सकता था। इस प्रकार के छोटे-मोटे दृश्यों को छोड़ भी दें तब भी दो अक्षम्य भूलें फिल्मकार ने की हैं-- श्रीमंत बाजीराव पेशवा और काशीबाई दोनों को अलग अलग समय में नचवा डाला है। उस युग में और पेशवा परिवार में काशीबाई जैसी स्त्री, जो एक तरह से रानी ही थी, यदि नाचती होती तो नर्तकियों को विशेष रूप से रखने की आवश्यकता ही नहीं होती। उसमें भी खास बात यह है कि जिस समय फिल्म में काशीबाई को मस्तानी के साथ नचाया गया है, उन दिनों उसके पैर में बराबर रहने वाला दर्द और भी बढ़ा हुआ था।[११] मस्तानी से काशीबाई की भेंट भी बिलकुल भिन्न तरीके की और फिल्मी लटकों-झटकों वाली हो गयी है। अतः ऐतिहासिकता के साथ रचनात्मक आनंद के लिए तो उक्त उपन्यास ही पढ़ना होगा, परंतु महान् बाजीराव पेशवा एवं मस्तानी की अपूर्व प्रेमगाथा एवं दुर्धर्ष जीवन को महाराष्ट्र से बाहर भी जन-जन तक पहुँचाने का कार्य इस फिल्म ने प्रबल रूप से किया है, इसके लिए फिल्मकार अवश्य धन्यवाद के पात्र हैं। लगभग सभी कलाकारों का अभिनय भी जीवन्त एवं प्रशंसनीय है, जो फिल्म को बार-बार देखने के लिए प्रेरित करता है।
निर्माण
पात्र चुनाव (कास्टिंग)
वर्ष 2003 में संजय लीला भंसाली ने इस फिल्म के मुख्य किरदार के लिए सलमान खान और ऐश्वर्या राय को चुना था। जो उनकी फिल्म हम दिल दे चुके सनम में भी मुख्य किरदार में थे। पर बाद में उन्हें उन दोनों के बीच हुए मतभेद के कारण बदलना पड़ा।[१२] इसके बाद जुलाई 2003 में उन्होने करीना कपूर और रानी मुखर्जी को बाजीराव की पत्नी के पात्र के लिए चुना।[१३] भंसाली जी ने कॉफी विद करन में यह बताया की वे सलमान खान और करीना कपूर को इसलिए नहीं ले पाए क्योंकि वे पहले ही किसी अन्य फिल्म में कार्य कर रहे थे।[१४] कुछ लोगों में यह भी अफवाह थी की अजय देवगन की जगह शाहरुख ख़ान यह किरदार निभायेंगे।[१५] इसके अलावा इसमें ऋतिक रोशन और दीपिका पादुकोण[१६] रणवीर सिंह[१७] और कैटरीना कैफ के रहने की संभावना थी।[१८]
जुलाई 2014 में भंसाली जी ने सत्यापित किया की इस परियोजना में रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण (जो गोलियों की रासलीला रामलीला में भी थे।) को इस फिल्म में मुख्य किरदार चुना। साथ ही प्रियंका चोपड़ा भी बाजीराव की पत्नी का किरदार निभाएँगी। भंसाली जी ने दक्षा सेठ को उन्हे तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी। रणवीर सिंह इस फिल्म के लिए मराठी भाषा और घुड़सवारी सीखेंगे।[१९] इस फिल्म में अपने दमदार किरदार के लिए रणवीर अपना वजन भी बढ़ाएँगे।[२०] इसी के साथ प्रियंका चोपड़ा भी 15 दिनों तक मराठी शिक्षा ग्रहण करेंगी।[२१]
सितम्बर 2014 में भंसाली जी ने सत्यापित किया की तन्वी आज़मी बाजीराव की माँ की भूमिका निभाएँगी।[२२] इसमें सुखदा खंडकेकर बाजीराव की बहन के किरदार और महेश मांजरेकर मराठा राजा की भूमिका निभायेंगे।[२३] जनवरी 2015 में वैभव तत्ववादी बाजीराव के छोटे भाई के किरदार के लिए चुने गए।
फिल्मांकन
23 सितम्बर 2014 से इस फिल्म को फिल्माना शुरू किया गया।[५][२४] दीपिका पादुकोण ने फिल्म ने निर्माण में 8 मार्च 2015 को राजस्थान में जुड़ी।[२५] वह इस फिल्म के फिल्माने के दौरान 20 किलो ग्राम का लोहे का कवच भी बहाना[२६] इससे पहले दीपिका ने अपने पिछले कार्यों को दिसम्बर 2014 के अंत तक किया और मार्च 2015 में अपने सभी कार्यों को समाप्त कर इस फिल्म के कार्य में लग गई।[२७] इसका मुख्य हिस्सा मुंबई के फिल्म सिटी स्टुडियो में बनाया गया।[२८] अन्य हिस्सा मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और वाई में किया गया।[२९]
संगीत
फ़िल्म का संगीत संजय लीला भंसाली द्वारा निर्माण किया गया।[३०]
गीतों की सूची | |||||
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क्र॰ | शीर्षक | गीतकार | संगीतकार | गायक | अवधि |
1. | "दीवानी मस्तानी" | सिद्धार्थ-गरिमा | संजय लीला भंसाली | श्रेया घोषाल, गणेश चंदनशीवे, मुज्तबा अज़ीज़ नज़ा | 05:40 |
2. | "आयत" | ए. एम. तुराज़ | संजय लीला भंसाली | अरिजीत सिंह | 04:22 |
3. | "मल्हारी" | प्रशांत इंगोले | संजय लीला भंसाली | विशाल दादलानी | 04:05 |
4. | "मोहे रंग दो लाल" | सिद्धार्थ-गरिमा | संजय लीला भंसाली | पंडित बिरजू महाराज, श्रेया घोषाल | 03:52 |
5. | "अलबेला सजन" | सिद्धार्थ-गरिमा | संजय लीला भंसाली | शशि सुमन, कुनाल पंडित, पृथ्वी गान्धर्व, कनिका जोशी, राशि रग्गा, गीतिका मांजरेकर | 03:29 |
6. | "अब तोहे जाने ना दूँगी" | ए. एम. तुराज़ | संजय लीला भंसाली | पायल देव, श्रेयास पुराणिक | 03:54 |
7. | "पिंगा" | सिद्धार्थ-गरिमा | संजय लीला भंसाली | श्रेया घोषाल, वैशाली म्हाड़े | 04:16 |
8. | "आज इबादत" | ए. एम. तुराज़ | संजय लीला भंसाली | जावेद बशीर | 04:45 |
9. | "फितूरी" | प्रशांत इंगोले | संजय लीला भंसाली | वैशाली म्हाड़े, गणेश चंदनशीवे | 03:56 |
10. | "गजानना" | प्रशांत इंगोले | संजय लीला भंसाली, श्रेयस पुराणिक | सुखविंदर सिंह | 03:34 |
कुल अवधि: | Error: 'h' and 'm' values must be integers. |
सन्दर्भ
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- ↑ अ आ साँचा:cite web
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- ↑ अ आ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ राऊ स्वामी, नागनाथ इनामदार, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, संस्करण- 2007, पृष्ठ- 350.
- ↑ साँचा:cite web
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- ↑ साँचा:cite episode
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