जैन प्रतीक चिन्ह

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
जैन प्रतीक चिन्ह

साँचा:sidebar with collapsible lists वर्ष १९७५ में भगवान महावीरस्वामी जी के २५००वें निर्वाण वर्ष अवसर पर समस्त जैन समुदायों ने जैन धर्म के प्रतीक चिह्न का एक स्वरूप बनाकर उस पर सहमति प्रकट की थी। आजकल लगभग सभी जैन पत्र-पत्रिकाओं, वैवाहिक कार्ड, क्षमावाणी कार्ड,धर्म अनुष्ठानों की पत्रिका, भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस, दीपावली आमंत्रण-पत्र एवं अन्य कार्यक्रमों की पत्रिकाओं में इस प्रतीक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

संरचना

जैन प्रतीक चिह्न कई मूल भावनाओं को अपने में समाहित करता है।

प्रतीक चिह्न

इस प्रतीक चिह्न का रूप जैन शास्त्रों में वर्णित तीन लोक के आकार जैसा है। इसका निचला भाग अधोलोक, बीच का भाग- मध्य लोक एवं ऊपर का भाग- उर्ध्वलोक का प्रतीक है। इसके सबसे ऊपर भाग में चंद्राकार सिद्ध शिला है। अनन्तान्त सिद्ध परमेष्ठी भगवान इस सिद्ध शिला पर अनन्त काल से अनन्त काल तक के लिए विराजमान हैं।

जैन प्रतीक चिन्ह्

हाथ

चिह्न के निचले भाग में प्रदर्शित हाथ 'अभय' और लोक के सभी जीवों के प्रति अहिंसा का भाव रखने का प्रतीक है।

चक्र

हाथ के बीच में २४ आरों वाला चक्र चौबीस तीर्थंकरों द्वारा प्रणीत जिन धर्म को दर्शाता है, जिसका मूल भाव अहिंसा है,

स्वस्तिक

ऊपरी भाग में प्रदर्शित स्वस्तिक की चार भुजाएँ चार गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। प्रत्येक संसारी प्राणी जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होना चाहता है।

तीन बिंदु चिन्ह

स्वस्तिक के ऊपर प्रदर्शित तीन बिंदु सम्यक रत्नत्रय-सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चरित्र को दर्शाते हैं और संदेश देते हैं कि सम्यक रत्नत्रय के बिना प्राणी मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता है। सम्यक रत्नत्रय की उपलब्धता जैनागम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए परम आवश्यक है।

सूत्र वाक्य

सबसे नीचे लिखे गए सूत्र 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्‌' का अर्थ प्रत्येक जीवन परस्पर एक दूसरे का उपकार करें, यही जीवन का लक्षण है।

मूल भावनाएँ

संक्षेप में जैन प्रतीक चिह्न संसारी प्राणी मात्र की वर्तमान दशा एवं इससे मुक्त होकर सिद्ध शिला तक पहुँचने का मार्ग दर्शाता है।

उपयोग निर्देश

जैन प्रतीक चिह्न किसी भी विचारधारा, दर्शन या दल के ध्वज के समान है, जिसको देखने मात्र से पता लग जाता है कि यह किससे संबंधित है, परंतु इसके लिए किसी भी प्रतीक चिह्न का विशिष्ट (यूनीक) होना एवं सभी स्थानों पर समानुपाती होना बहुत ही आवश्यक है। यह भी आवश्यक है कि प्रतीक ध्वज का प्रारूप बनाते समय जो मूल भावनाएँ इसमें समाहित की गई थीं, उन सभी मूल भावनाओं को यह चिह्न अच्छी तरह से प्रकट करता है।

इस प्रतीक चिह्न को एक रूप छापने के लिए अब इसके फॉरमेट का विकास कर लिया गया है। इस फॉरमेट के उपयोग से इसे सही स्वरूप में छापा जा सकेगा। सुनिश्चित कर लें कि इसके सही फॉरमेट का उपयोग हो रहा है। यह फॉरमेट जैन वेबसाइट से साँचा:plainlink भी किया जा सकता है।

देखें

जैन धर्म प्रवेशद्वार:जैन धर्म

बाहरी कड़ियां