कुमार सानु
कुमार सानु | |||||
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पृष्ठभूमि की जानकारी | |||||
जन्मनाम | केदारनाथ भट्टाचार्य | ||||
अन्य नाम | कुमार सानु | ||||
जन्म | साँचा:br separated entries | ||||
मूल | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत | ||||
मृत्यु | साँचा:br separated entries | ||||
शैलियां | पार्श्व गायन | ||||
गायक संगीत निर्देशक | |||||
वाद्ययंत्र | तबला | ||||
सक्रिय वर्ष | 1984–वर्तमान | ||||
लेबल | सोनी म्यूज़िक टी- सीरीज़ टिप्स सारेगामा | ||||
जालस्थल | kumarsanuworld | ||||
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कुमार सानु (पूरा नाम केदारनाथ भट्टाचार्य) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गायक हैं। इन्होंने अपने गाने की शुरुआत वर्ष 1989 में शुरू की। 2009 में इन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री भी मिल चुका है भारत के प्रसिद्ध गायकों में एक हैं ।[१]
करियर
कुमार सानू हिंदी सिनेमा के एक जानेमाने पार्श्व गायक हैं। कोलकता में जन्मे कुमार सानू का मूल नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है। उनके पिताजी स्वयं एक अच्छे गायक और संगीतकार थे। उन्होंने ही कुमार सानू को गायकी और तबला वादन सिखाया था। गायक किशोर कुमार को अपना आदर्श मानने वाले सानू ने गायकी में अपना खुद का अलग अंदाज़ बनाये रखा है। उनको पहला ब्रेक जगजीत सिंह ने दिया था। उन्होंने उन्हें कल्याणजी आनंद जी से मिलवाया जिन्होंने 1989 में आई फिल्म 'जादूगर' के लिए कुमार सानू से गीत गवाया।
एक दिन में 28 गाने रिकॉर्ड करवाने वाले वह एकमात्र गायक हैं। उन्होंने बीस हज़ार गाने गाये हैं। कुमार सानू का आज के दौर के संगीत के बारे में कहना है कि 'आज के संगीत से मेलोडी, सुर, ताल आदि कहीं गुम होता जा रहा है और उसकी जगह शोर ले रहा है। यही वजह है कि आज के अधिकतर गीत यादगार प्रतीत नहीं होते।' उनकी चाहत हमेशा रही कि काश उन्होंने सचिन देव बर्मन के साथ कोई गाना गाया होता।
बहुत समय से वे बंगाली फिल्मों में सक्रिय हैं और हिंदी फिल्मों में कम। सन् 2009 में उनके अभूतपूर्व संगीत योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा गया और देश के चौथे सबसे सम्मानित नागरिक के तौर पर मनोनीत भी हुए। फिल्म राउडी राठौर में गीत 'छम्मक-छल्लो छैल छबीली' के साथ दोबारा वापसी की। फिर सन् 2014 की रिलीज यशराज फिल्म निर्मित दम लगा के हईशा फिल्म में गीत 'दर्द करारा' गाया।
कुमार सानु को अधिकतर 1990 के दशक की फ़िल्मों में दिये गए पार्श्व गायन के लिये जाना जाता है। ज़ुर्म फिल्म के "जब कोई बात बिगड़ जाए" से उन्हें पहली सफलता मिली। लेकिन उन्हें आशिकी ने सुपरस्टार बना दिया। इस फिल्म से उन्होंने शुरुआत कर लगातार पाँच सालों तक, 1991 से लेकर 1995 तक फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार जीता। जो कि एक कीर्तिमान है।[२] उन्होंने उस समय के लगभग सभी संगीतकार के लिये गीत गाए हैं:- आनंद-मिलिंद, जतिन-ललित और अनु मलिक। लेकिन वो नदीम-श्रवण है जिनके साथ उनकी सफलता की शुरुआत हुई और उन्हें सर्वाधिक कामयाबी प्राप्त हुई।
राजनीति
वह 2004 में तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष वेंकैया नायडू की अध्यक्षता में एक समारोह में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए, लेकिन बाद में उन्होंने गायन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इस्तीफा दे दिया। [३] वह 2 दिसंबर 2014 को अमित शाह द्वारा शामिल किए गए भाजपा में फिर से शामिल हो गए।[४]
पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
वर्ष | गीत | फिल्म | संगीत निर्देशक | गीतकार |
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1991 | "अब तेरे बिन" | आशिकी | नदीम-श्रवण | समीर |
1992 | "मेरा दिल भी कितना पागल है" | साजन | नदीम-श्रवण | समीर |
1993 | "सोचेंगे तुम्हे प्यार" | दीवाना | नदीम-श्रवण | समीर |
1994 | "ये काली काली आँखें" | बाज़ीगर | अनु मलिक | देव कोहली |
1995 | "एक लड़की को देखा" | 1942: अ लव स्टोरी | आर॰ डी॰ बर्मन | जावेद अख्तर |
अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फ़िल्म अकादमी पुरस्कार
- 2000 - आई आई एफ ए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार - हम दिल दे चुके सनम – आँखों की गुस्ताखियाँ
सन्दर्भ
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