अपरिग्रह
साँचा:sidebar with collapsible lists अपरिग्रह गैर-अधिकार की भावना, गैर लोभी या गैर लोभ की अवधारणा है, जिसमें अधिकारात्मकता से मुक्ति पाई जाती है।। यह विचार मुख्य रूप से जैन धर्म तथा हिन्दू धर्म के राज योग का हिस्सा है। जैन धर्म के अनुसार "अहिंसा और अपरिग्रह जीवन के आधार हैं"।[१] अपरिग्रह का अर्थ है कोई भी वस्तु संचित ना करना होता है।
जैन धर्म
अहिंसा के बाद, अपरिग्रह जैन धर्म में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण गुण है। अपरिग्रह एक जैन श्रावक के पांच मूल व्रतों में से एक है| जैन मुनि के २८ मूल गुणों में से यह एक है| यह जैन व्रत एक श्रावक की इच्छाओं और संपत्ति को सिमित करने के सिद्धांत है। जैन धर्म में सांसारिक धन संचय को लालच, ईर्ष्या, स्वार्थ और बढ़ती वासना के एक संभावित स्रोत के रूप में माना जाता है। जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन करना, दिखावे या अहंकार के लिए खाने से ज्यादा महान माना जाता है|[२]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ Aparigraha - non-acquisition स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Jainism, BBC Religions