शांतिनाथ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(शांतिनाथ जी से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
शांतिनाथ
सोलहवें तीर्थंकर
Seated image of Shantinatha with old Kannada inscription on pedestal in Shantinatha Basadi.JPG
शांतिनाथ की प्रतिमा
गृहस्थ जीवन
वंश इक्ष्वाकु
पिता विश्वसेन
माता अचिरा देवी
पंचकल्याणक
च्यवन भादवा कृष्ण ७
जन्म धर्मनाथ भगवान के मोक्ष जाने के पौन पल्य कम तीन सागर के बाद (ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी)
जन्म स्थान हस्तिनापुर
दीक्षा ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी
दीक्षा स्थान हस्तिनापुर
केवल ज्ञान पौष शुक्ला दशमी
केवल ज्ञान स्थान हस्तिनापुर
मोक्ष ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी
मोक्ष स्थान सम्मेद शिखरजी
लक्षण
रंग स्वर्ण
चिन्ह हिरण
ऊंचाई ४० धनुष (१२० मीटर)
आयु ७,००,००० वर्ष साँचा:sfn
वृक्ष नंदी वृक्ष
शासक देव
यक्ष गरुड़
यक्षिणी निर्वाणी
गणधर
प्रथम गणधर चक्रयुध स्वामी
गणधरों की संख्य ३६

शांतिनाथ जैन घर्म में माने गए २४ तीर्थकरों में से अवसर्पिणी काल के सोलहवे तीर्थंकर थे।[१] माना जाता हैं कि शांतिनाथ के संग ९०० साधू मोक्ष गए थे।

जीवन

शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था। तब भरणी नक्षत्र था। उनके पिता का नाम विश्वसेन था, जो हस्तिनापुर के राजा थे और माता का नाम महारानी ऐरा था।[२]
जैन ग्रंथो में शांतिनाथ को कामदेव जैसा स्वरुपवान बताया गया है। पिता के बाद शांतिनाथ हस्तिनापुर के राजा बने। जैन ग्रन्थो के अनुसार उनकी ९६ हजार रानियां थीं। उनके पास ८४ लाख हाथी, ३६० रसोइए, ८४ करोड़ सैनिक, २८ हजार वन, १८ हजार मंडलिक राज्य, ३६० राजवैद्य, ३२ हजार अंगरक्षक देव, ३२ चमर ढोलने वाले, ३२ हजार मुकुटबंध राजा, ३२ हजार सेवक देव, १६ हजार खेत, ५६ हजार अंतर्दीप, ४ हजार मठ, ३२ हजार देश, ९६ करोड़ ग्राम, १ करोड़ हंडे, ३ करोड़ गायें, ३ करोड़ ५० लाख बंधु-बांधव, १० प्रकार के दिव्य भोग, ९ निधियां और २४ रत्न, ३ करोड़ थालियां आदि संपदा थीं एसा माना जाता है। [३]
वैराग्य आने पर इन्होने ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को दीक्षा प्राप्त की। बारह माह की छ्दमस्थ अवस्था की साधना से शांतिनाथ ने पौष शुक्ल नवमी को ‘कैवल्य’ प्राप्त किया। ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी के दिन सम्मेद शिखर पर भगवान शान्तिनाथ ने पार्थिव शरीर का त्याग किया था।

चिन्ह का महत्व

हरिण शान्तिनाथ भगवान का चिन्ह है। जैनधर्म की मान्यता अनुसार हरिण की यह शिक्षा है कि 'तुम भी संसार में संगीत के समान प्रिय लगने वाले चापलूसों / चमचों की दिल -लुभाने वाली बातों में न फ़ंसना, अन्यथा बाद में पछताना पडेगा। यदि तनाव -मुक्ति चाहते हो तो मेरे समान सरल -सीधा तथा पापों से बचों, चौकन्ना रहो।'[४]

शांतिनाथ के मन्दिर

[६]

राजस्थान के पाली जिले के नाडोल गांव में स्थित है अति प्राचीन मंदिर जहा उन्होंने लघु शांति पुस्तक की रचना की थी

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. karnatakaitihasaacademy.org/2014/09/17/shantinatha-jinalaya-at-nittur
  7. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।

ग्रन्थ