विदिशा की वन संपदा
विदिशा भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। प्राचीन नगर विदिशा तथा उसके आस- पास के क्षेत्र को अपनी भौगोलिक विशिष्टता के कारण एक साथ दशान या दशार्ण (दस किलो वाला) क्षेत्र की संज्ञा दी गई है। यह नाम छठी शताब्दी ई. पू. से ही चला आ रहा है। इस नाम की स्मृति अब भी बेतवा की सहायक नदी धसान नदी के नाम में अवशिष्ट है। कुछ विद्वान इसका नामाकरण दशार्ण (धसान) नदी के कारण मानते हैं, जो दस छोटी- बड़ी नदियों के समवाय- रूप में बहती थी। विदिशा इसकी सुसंस्कृत राजधानी हुआ करती थी। यह स्थान कर्क रेखा पर २३#ं३१' अक्षांश तथा ७७"५१' देशान्तर पर देश के मध्य भाग में स्थित है। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई १५४६ फीट है।
क्षेत्र
विदिशा मालवा के उपजाऊ पठारी क्षेत्र के उत्तर- पुरब हिस्से में अवस्थित है तथा पश्चिम में मुख्य पठार से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है। नगर से दो मील उत्तर में जहाँ इस समय बेसनगर नामक एक छोटा- सा गाँव है, प्राचीन विदिशा बसी हुई है। यह नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी- सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है।
वन संपदा
विंध्य पर्वत के आसपास चारों तरफ सैकड़ों मीलों तक उपजाऊ कृषि भूमि है, जो बहुत उपजाऊ मानी जाती है। यहाँ प्राप्त होने वाली उपजाऊ काली मिट्टी की सतह तो कहीं- कहीं ३०- ४० फीट तक गहरी है। यहाँ गेहूँ तथा चना का उत्पादन विशेष रूप से होता है, लेकिन धान, कपास व बाजरा बिल्कुल नहीं उपजाए जाते।
वनसंप्रदा के दृष्टिकोण से भी यह क्षेत्र बहुत धनी है। यहाँ तेलिया व पीला दोनों किस्म के सागौन मिलते हैं। खजूर व पशाल के वृक्ष विशेष महत्व के माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त आम, महुआ, जामुन, करंज, नीम, बड़, पीपल, अर्जुन वृक्ष, खैर, बेर, तेंदू व बाँस के वृक्ष भी प्रचुरता मे पाये जाते है। पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक वृक्ष औषधीय महत्व के हैं। इनमें दमाविनाशक अड़ूसा व हृदय रोग में लाभदायक पीली कनेर महत्वपूर्ण है। पुष्पों में कमल, केतकी, पारिजात, हर- श्रृंगार, मौलिश्री, सुगंधरा, मेंहदी, चमेली, मोगरा, गेंदा, अमलतास, गुलमास, कदंब, गुलतारा आदि प्रमुख है।