मीना कुमारी
मीना कुमारी | |
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चित्र:Meena Kumari.jpg मीना कुमारी | |
जन्म |
महजबीं बानो साँचा:birth date मीठावाला चाॅल बंबई, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु |
साँचा:death date and age मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
मृत्यु का कारण | लिवर का कैंसर |
स्मारक समाधि | रहमताबाद कब्रिस्तान, मुम्बई |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
अन्य नाम | ट्रेजडी क्वीन, मीनाजी, मंजू, भारतीय सिनेमा की सिंड्रेला, नाज़ (तखल्लुस) |
व्यवसाय | अभिनेत्री, पार्श्वगायिका, शायरा, कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर |
ऊंचाई | 5'3" |
जीवनसाथी | साँचा:marriage (अलगाव) |
संबंधी | महमूद (जीजा) |
अंतिम स्थान | रहमताबाद कब्रिस्तान, मुम्बई |
पुरस्कार |
फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार 1958: शारदा 1963: आरती 1965: दिल एक मंदिर 1973: पाक़ीज़ा (मरणोपरांत) |
मीना कुमारी (1 अगस्त, 1933[१][२][३] - 31 मार्च, 1972) (अस्ल नाम-महज़बीं बानो) भारत की एक मशहूर हिन्दी फिल्मों की अभिनेत्री थीं। इन्हें खासकर दुखांत फ़िल्मों में इनकी यादगार भूमिकाओं के लिये याद किया जाता है। मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रैजेडी क्वीन (शोकान्त महारानी) भी कहा जाता है। अभिनेत्री होने के साथ-साथ मीना कुमारी एक उम्दा शायारा एवम् पार्श्वगायिका भी थीं। इन्होंने वर्ष 1939 से 1972 तक फ़िल्मी पर्दे पर काम किया।[४][५][६]
जन्म व बचपन
मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था और ये बंबई में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के एक मँझे हुए कलाकार थे और उन्होंने फ़िल्म "शाही लुटेरे" में संगीत भी दिया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी। मीना कुमारी की बड़ी बहन खुर्शीद जुनियर और छोटी बहन मधु (बेबी माधुरी) भी फिल्म अभिनेत्री थीं। कहा जाता है कि दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे चूँकि वे उनके डाॅक्टर श्रीमान गड्रे को उनकी फ़ीस देने में असमर्थ थे।हालांकि अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम की ओर चल पड़े।पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियाँ काट रहीं थीं।अनाथाश्रम का दरवाज़ा बंद था, शायद अंदर सब सो गए थे।यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई,आँखों से आँसु बह निकले।झट से अपनी नन्हीं-सी जान को साफ़ किया और अपने दिल से लगा लिया।अली बक़्श अपनी चंद दिनों की बेटी को घर ले आए।समय के साथ-साथ शरीर के वो घाव तो ठीक हो गए किंतु मन में लगे बदकिस्मती के घावों ने अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा।
टैगोर परिवार से संबंध
मीना कुमारी की नानी हेमसुन्दरी मुखर्जी पारसी रंगमंच से जुड़ी हुईं थी। बंगाल के प्रतिष्ठित टैगोर परिवार के पुत्र जदुनंदन टैगोर (1840-62) ने परिवार की इच्छा के विरूद्ध हेमसुन्दरी से विवाह कर लिया। 1862 में दुर्भाग्य से जदुनंदन का देहांत होने के बाद हेमसुन्दरी को बंगाल छोड़कर मेरठ आना पड़ा। यहां अस्पताल में नर्स की नौकरी करते हुए उन्होंने एक उर्दू के पत्रकार प्यारेलाल शंकर मेरठी (जो कि ईसाई था) से शादी करके ईसाई धर्म अपना लिया। हेमसुन्दरी की दो पुत्री हुईं जिनमें से एक प्रभावती, मीना कुमारी की माँ थीं।
फ़िल्मी सफर
शुरुआती फिल्में (1939-52)
महजबीं पहली बार 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म "लैदरफेस" में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं। 1940 की फिल्म "एक ही भूल" में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया। 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 13 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं। मार्च 1947 में लम्बे समय तक बीमार रहने के कारण उनकी माँ की मृत्यु हो गई। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं जिनमें हनुमान पाताल विजय, वीर घटोत्कच व श्री गणेश महिमा प्रमुख हैं।
उभरती सितारा (1952-56)
1952 में आई फिल्म बैजू बावरा ने मीना कुमारी के फिल्मी सफ़र को नई उड़ान दी। मीना कुमारी द्वारा अभिनीत गौरी के किरदार ने उन्हें घर-घर में प्रसिद्धि दिलाई। फिल्म 100 हफ्तों तक परदे पर रही और 1954 में उन्हें इसके लिए पहले फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1953 तक मीना कुमारी की तीन फिल्में आ चुकी थीं जिनमें : दायरा, दो बीघा ज़मीन और परिणीता शामिल थीं। परिणीता से मीना कुमारी के लिये एक नया युग शुरु हुआ। परिणीता में उनकी भूमिका ने भारतीय महिलाओं को खास प्रभावित किया था चूँकि इस फिल्म में भारतीय नारी की आम जिंदगी की कठिनाइयों का चित्रण करने की कोशिश की गयी थी। उनके अभिनय की खास शैली और मोहक आवाज़ का जादू छाया रहा और लगातार दूसरी बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए चयनित किया गया।
1954 से 1956 के बीच मीना कुमारी ने विभिन्न प्रकार की फिल्मों में काम किया। जहाँ चाँदनी चौक (1954) और एक ही रास्ता (1956) जैसी फिल्में समाज की कुरीतियों पर प्रहार करती थीं, वहीं अद्ल-ए-जहांगीर (1955) और हलाकू (1956) जैसी फिल्में तारीख़ी किरदारों पर आधारित थीं। 1955 की फ़िल्म आज़ाद, दिलीप कुमार के साथ मीना कुमारी की दूसरी फिल्म थी। ट्रेजेडी किंग और ट्रेजेडी क्वीन के नाम से प्रसिद्ध दिलीप और मीना के इस हास्य प्रधान फ़िल्म ने दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी। मीना कुमारी के उम्दा अभिनय ने उन्हें फ़िल्मफ़ेयर ने फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया। फ़िल्म आज़ाद के गाने "अपलम चपलम" और "ना बोले ना बोले" आज भी प्रचलित हैं।
ट्रैजेडी क्वीन
1957 में मीना कुमारी दो फिल्मों में पर्दे पर नज़र आईं। प्रसाद द्वारा कृत पहली फ़िल्म मिस मैरी में कुमारी ने दक्षिण भारत के मशहूर अभिनेता जेमिनी गणेशन और किशोर कुमार के साथ काम किया। प्रसाद द्वारा कृत दूसरी फ़िल्म शारदा ने मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन बना दिया। यह उनकी राज कपूर के साथ की हुई पहली फ़िल्म थी। जब उस ज़माने की सभी अदाकाराओं ने इस रोल को करने से मन कर दिया था तब केवल मीना कुमारी ने ही इस रोल को स्वीकार किया था और इसी फिल्म ने उन्हें उनका पहला बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का खिताब दिलवाया।
1958:फिल्म सहारा के लिए (लेखराज भाखरी द्वारा निर्देशित), मीना कुमारी को फिल्मफेयर नामांकन मिला। फ़िल्म यहूदी, बिमल रॉय द्वारा निर्देशित थी जिसमें मीना कुमारी, दिलीप कुमार, सोहराब मोदी, नजीर हुसैन और निगार सुल्ताना ने अभिनय किया। यह रोमन साम्राज्य में यहूदियों के उत्पीड़न के बारे में, पारसी - उर्दू रंगमंच में एक क्लासिक, आगा हाशर कश्मीरी द्वारा यहूदी की लड़की पर आधारित थी। यह फ़िल्म मुकेश द्वारा गाए गए प्रसिद्ध गीत "ये मेरा दीवानापन है" के साथ बॉक्स ऑफिस पर हिट रही। फरिश्ता - मुख्य नायक के रूप में अशोक कुमार और मीना कुमारी ने अभिनय किया। फिल्म को औसत से ऊपर दर्जा दिया गया था। फ़िल्म सवेरा सत्येन बोस द्वारा निर्देशित की गई, जिसमें मीना कुमारी और अशोक कुमार प्रमुख भूमिकाओं में थे।
1959: देवेन्द्र गोयल द्वारा निर्देशित और निर्मित, चिराग कहाँ रोशनी कहाँ में राजेंद्र कुमार और हनी ईरानी के साथ मीना कुमारी दिखीं। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही और मीना कुमारी को उनके अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर नामांकन मिला। चार दिल चार राहें का निर्देशन ख्वाजा अहमद अब्बास ने किया, जिसमें स्टार मीना कुमारी, राज कपूर, शम्मी कपूर, कुमकुम और निम्मी थे। फिल्म को आलोचकों से गर्म समीक्षा मिली। शरारात - एक 1959 की रोमांटिक ड्रामा फिल्म थी, जिसे हरनाम सिंह रवैल द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया था, जिसमें मीना कुमारी, किशोर कुमार, राज कुमार और कुमकुम मुख्य भूमिकाओं में थे। किशोर कुमार द्वारा गाए गया यादगार गीत "हम मतवाले नौजवान" आज भी याद किया जाता है।
1960: दिल अपना और प्रीत पराई, किशोर साहू द्वारा लिखित और निर्देशित एक हिंदी रोमांटिक ड्रामा थी। इस फिल्म में मीना कुमारी, राज कुमार और नादिरा ने मुख्य भूमिका निभाई। फिल्म एक सर्जन की कहानी बताती है जो एक पारिवारिक मित्र की बेटी से शादी करने के लिए बाध्य है, जबकि उसे एक सहकर्मी नर्स से प्यार है, जिसे मीना कुमारी ने निभाया है। यह मीना कुमारी के करियर के प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन द्वारा दिया गया है, और हिट गीत, "अजीब दास्तान है ये" लता मंगेशकर द्वारा गाया गया है। 1961 के फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स में इसने सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक श्रेणी के लिए नौशाद के लोकप्रिय संगीत महाकाव्य मुग़ल-ए-आज़म को हराकर खलबली मचा दी। बहाना - कुमार द्वारा निर्देशित, मीना कुमारी, सज्जन, अनवर की स्टार कास्ट थी। कोहिनूर - एस. यू. सनी द्वारा निर्देशित मीना कुमारी, दिलीप कुमार, लीला चिटनिस और कुमकुम के साथ बनाई गई फ़िल्म थी। यह एक मज़ाइया फ़िल्म थी और काफी हिट रही। 1961: भाभी की चूड़ीयां एक पारिवारिक ड्रामा थी जिसका निर्देशन सदाशिव कवि ने मीना कुमारी और बलराज साहनी के साथ किया था। यह मीना कुमारी के प्रसिद्ध फिल्मों में से एक है। यह फिल्म लता मंगेशकर के प्रसिद्ध गीत "ज्योति कलश छलके" के साथ भारतीय बॉक्स ऑफिस पर वर्ष की सबसे अधिक कमाई वाली फिल्मों में से एक थी। ज़िन्दगी और ख्वाब - मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार अभिनीत एस. बनर्जी निर्देशित भारतीय बॉक्स ऑफ़िस पर हिट रही। प्यार का सागर का निर्देशन मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार के साथ देवेंद्र गोयल ने किया था।
1962 और उसके बाद
1962: साहिब बीबी और गुलाम, गुरु दत्त द्वारा निर्मित और अबरार अल्वी द्वारा निर्देशित फिल्म थी। यह बिमल मित्र के बंगाली उपन्यास "साहेब बीबी गोलम" पर आधारित है। फिल्म में मीना कुमारी, गुरु दत्त, रहमान, वहीदा रहमान और नाज़िर हुसैन हैं। इसका संगीत हेमंत कुमार का है और गीत शकील बदायुनी के हैं। इस फिल्म को वी. के. मूर्ति और गीता दत्त द्वारा गाए गए प्रसिद्ध गीत "ना जाओ सईयां छुड़ा के बइयां" और "पिया ऐसो जिया में" के लिए भी जाना जाता है। फिल्म ने चार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जिसमें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी शामिल है। इस फिल्म को 13 वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में गोल्डन बियर के लिए नामित किया गया था, जहाँ मीना कुमारी को एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था। साहिब बीबी और गुलाम को ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया था। फणी मजूमदार द्वारा निर्देशित आरती में मीना कुमारी, अशोक कुमार, प्रदीप कुमार और शशिकला निर्णायक भूमिका में हैं। कुमारी को इस फिल्म के लिए बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। मैं चुप रहुंगी - ए. भीमसिंह द्वारा निर्देशित मीना कुमारी और सुनील दत्त के साथ मुख्य भूमिका में, वर्ष की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी और मीना कुमारी को उनके प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर नामांकन मिला।
1963: दिल एक मंदिर, सी. वी. श्रीधर द्वारा निर्देशित थी जिसमें मीना कुमारी, राजेंद्र कुमार, राज कुमार और महमूद मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का संगीत शंकर जयकिशन द्वारा दिया गया है। यह बॉक्स ऑफिस पर एक बड़ी हिट थी। फ़िल्म अकेली मत जाइयो को नंदलाल जसवंतलाल ने निर्देशित किया था। यह मीना कुमारी और राजेंद्र कुमार के साथ एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है। किनारे किनारे को चेतन आनंद ने निर्देशित किया था और इसमें मीना कुमारी, देव आनंद और चेतन आनंद ने मुख्य भूमिकाओं थे।
1964: सांझ और सवेरा - हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म है, जिसमें मीना कुमारी, गुरुदत्त और महमूद ने अभिनय किया था। यह फ़िल्म गुरु दत्त की अंतिम फ़िल्म थी। बेनज़ीर - एस. खलील द्वारा निर्देशित एक मुस्लिम सामाजिक फिल्म थी, जिसमें मीना कुमारी, अशोक कुमार, शशि कपूर और तनुजा ने अभिनय किया था। मीरा कुमारी, अशोक कुमार और प्रदीप कुमार द्वारा अभिनीत और किदार शर्मा द्वारा निर्देशित चित्रलेखा 1934 के हिंदी उपन्यास पर आधारित थी, जो इसी नाम से भगवती चरण वर्मा द्वारा मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले बीजगुप्त और राजा चंद्रगुप्त मौर्य (340 ईसा पूर्व -298 ईसा पूर्व) के बारे में थी। फिल्म का संगीत और बोल रोशन और साहिर लुधियानवी के थे और "संसार से भीगे फिरते हो" और "मन रे तू कहे" जैसे गीतों के लिए प्रसिद्ध थे। मीना कुमारी और सुनील दत्त द्वारा अभिनीत वेद-मदन द्वारा निर्देशित गजल एक मुस्लिम सामाजिक फिल्म थी, इसमें साहिर लुधियानवी के गीतों के साथ मदन मोहन का संगीत था, जिसमें मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाए गए "रंग और नूर की बारात", लता मंगेशकर द्वारा गाया गया "नगमा ओ शेर की सौगात" जैसे उल्लेखनीय फ़िल्म-ग़ज़ल शामिल हैं। मैं भी लड़की हूँ का निर्देशन ए. सी. तिरूलोकचंदर ने किया था। फिल्म में मीना कुमारी नवोदित अभिनेता धर्मेंद्र के साथ हैं।
1965: काजल ने राम माहेश्वरी द्वारा निर्देशित जिसमें मीना कुमारी, धर्मेंद्र, राज कुमार, पद्मिनी, हेलेन, महमूद और मुमताज़ हैं। यह फिल्म 1965 की शीर्ष 20 फिल्मों में सूचीबद्ध थी। मीना कुमारी ने काजल के लिए अपना चौथा और आखिरी फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। फिल्म मूल रूप से गुलशन नंदा के उपन्यास "माधवी" पर आधारित थी। मीना कुमारी, अशोक कुमार और प्रदीप कुमार के साथ कालिदास के निर्देशन में बनी भीगी रात, लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी द्वारा दो अलग-अलग संस्करणों में गाए गए प्रसिद्ध गीत "दिल जो ना कह सका" के साथ वर्ष की सबसे बड़ी हिट में से एक थी। । नरेंद्र सूरी द्वारा निर्देशित फिल्म पूर्णिमा में मुख्य भूमिकाओं में मीना कुमारी और धर्मेंद्र थे।
1966: फूल और पत्थर, ओ. पी. रल्हन द्वारा निर्देशित फ़िल्म, जिसमें मीना कुमारी और धर्मेंद्र ने मुख्य भूमिकाओं में अभिनय किया। यह फिल्म एक स्वर्ण जयंती हिट बन गई और धर्मेंद्र के फिल्मी सफर में मील का पत्थर साबित हुई यह फ़िल्म उस वर्ष की सबसे अधिक कमाई वाली फिल्म थी। फिल्म में मीना कुमारी के प्रदर्शन ने उन्हें उस वर्ष के लिए फिल्मफेयर पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री की श्रेणी में नामांकित किया। फिल्म पिंजरे की पंछी का निर्देशन सलिल चौधरी ने किया था, जिसमें मुख्य भूमिकाओं में मीना कुमारी, बलराज साहनी और महमूद थे।
1967: मझली दीदी का निर्देशन हृषिकेश मुखर्जी और मीना कुमारी के साथ धर्मेंद्र ने अभिनय किया। यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए 41 वें अकादमी पुरस्कारों में भारत की प्रविष्टि थी। फिल्म बहू बेगम का निर्देशन एम. सादिक ने किया था, जिसमें मीना कुमारी, प्रदीप कुमार और अशोक कुमार थे। फिल्म में संगीत रोशन और गीत साहिर लुधियानवी द्वारा दिया गया है। नूरजहाँ, मोहम्मद सादिक द्वारा निर्देशित, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार अभिनीत एक ऐतिहासिक फिल्म थी, जिसमें हेलन और जॉनी वॉकर छोटी भूमिकाओं में थे। इसमें महारानी नूरजहाँ और उनके पति, मुगल सम्राट जहाँगीर की महाकाव्य प्रेम कहानी का वर्णन किया गया है। फिल्म चंदन का पलना इस्माइल मेमन द्वारा निर्देशित किया गया, जिसमें मीना कुमारी और धर्मेंद्र ने अभिनय किया। ग्रहण के बाद (English: After the Eclipse), एस सुखदेव द्वारा निर्देशित 37 मिनट की एक रंगीन डॉक्यूमेंट्री थी जो वाराणसी के उपनगरीय इलाके में शूट की गई, इसमें अभिनेता शशि कपूर की आवाज के साथ मीना कुमारी की आवाज भी थी।
1968: बहारों की मंज़िल एक सस्पेंस थ्रिलर है जिसका निर्देशन याकूब हसन रिज़वी ने किया, जिसमें मीना कुमारी, धर्मेंद्र, रहमान और फरीदा जलाल शामिल हैं। यह फिल्म साल की प्रमुख हिट फिल्मों में से एक थी। फिल्म अभिलाषा का निर्देशन अमित बोस ने किया था। कलाकारों में मीना कुमारी, संजय खान और नंदा शामिल हैं।
70 का दशक
70 के दशक की शुरुआत में, मीना कुमारी ने अंततः अपना ध्यान अधिक 'अभिनय उन्मुख' या चरित्र भूमिकाओं पर केन्द्रित कर दिया। उनकी अंतिम छह फिल्में- जबाव, सात फेरे, मेरे अपने, दुश्मन, पाकीज़ा और गोमती के किनारे में से केवल पाकीज़ा में उनकी मुख्य भूमिका थी। मेरे अपने और गोमती के किनारे में, हालांकि उन्होंने एक मुख्य नायिका की भूमिका नहीं निभाई, लेकिन उनकी भूमिका वास्तव में कहानी का केंद्रीय चरित्र थी।
1970: फ़िल्म जवाब मीना कुमारी, जीतेंद्र, लीना चंदावरकर और अशोक कुमार द्वारा अभिनीत, रमन्ना द्वारा निर्देशित फिल्म थी। सात फेरे का निर्देशन सुधीर सेन ने किया था, जिसमें मीना कुमारी, प्रदीप कुमार और मुकरी मुख्य भूमिकाओं में थे।
1971: गुलज़ार द्वारा लिखित और निर्देशित, मेरे अपने में मीना कुमारी, विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के साथ देवेन वर्मा, पेंटाल, असित सेन, असरानी, डैनी डेन्जोंगपा, केश्टो मुखर्जी, ए. के. हंगल, दिनेश ठाकुर, महमूद और योगिता बाली हैं। दुलाल गुहा द्वारा निर्देशित दुश्मन, जिसमें मुख्य भूमिकाओं में मुमताज के साथ मीना कुमारी, रहमान और राजेश खन्ना हैं। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर "सुपर-हिट" रही।
1972: सावन कुमार टाक द्वारा निर्देशित गोमती के किनारे में मीना कुमारी, संजय खान और मुमताज़ ने अभिनय किया। यह फ़िल्म मीना कुमारी की मृत्यु के बाद 22 नवंबर 1972 को रिलीज हुई।
पाकीज़ा का समापन (1956-72) 1954 में, फ़िल्म आज़ाद की शूटिंग के दौरान, मीना कुमारी और कमाल अमरोही दक्षिण भारत में थे, और यहाँ कमाल अमरोही ने अपनी पत्नी के साथ अपनी अगली फिल्म के कथानक की रूपरेखा तैयार करना शुरू किया और इसे पाकीज़ा कहने का फैसला किया। मीना कुमारी ने फिल्म को पूरा करने के लिए ठान लिया था और वह अपने जीने के लिए सीमित समय से अच्छी तरह वाकिफ थी, अपने तेजी से बिगड़ते स्वास्थ्य के बावजूद, उन्होंने अपने प्रदर्शन को अंतिम रूप दिया। पाकीज़ा का 3 फरवरी 1972 को मध्य बॉम्बे के मराठा मंदिर थिएटर में एक भव्य प्रीमियर हुआ, और प्रिंट एक अलंकृत पालकी पर रखे जा रहे थे। प्रीमियर के दौरान मीना कुमारी कमाल अमरोही के बगल में बैठी थीं. जब मोहम्मद ज़हूर खय्याम ने मीना कुमारी को "शाहकर बन गया" (यह अनमोल है) के साथ बधाई दी, तो वह रो पड़ी। पूरी फिल्म देखने के बाद, कुमारी ने एक दोस्त से कहा कि उन्हें यकीन है कि उनके पति भारत में सबसे बेहतरीन फिल्म निर्माता हैं। फ़िल्म अंततः अगले दिन, 4 फरवरी 1972 को रिलीज़ हुई। पाकीज़ा ने 33 सप्ताह तक सफलतापूर्वक चलने का आनंद लिया और अपनी रजत जयंती भी मनाई। मीना कुमारी ने मरणोपरांत पाकीज़ा के लिए अपना बारहवां और अंतिम फिल्मफेयर नामांकन प्राप्त किया। बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स ने 1973 में मीना कुमारी को पाकीज़ा के लिए विशेष पुरस्कार प्रदान किया।
पार्श्वगायक के रूप में करियर
मीना कुमारी एक पार्श्व गायिका भी थीं। उन्होंने 1945 तक बहन जैसी फिल्मों के लिए एक बाल कलाकार के रूप में गाया। एक नायिका के रूप में, उन्होंने दुनिया एक सराय (1946), पिया घर आजा (1948), बिछड़े बालम (1948) और पिंजरे के पंछी (1966) जैसी फिल्मों के गीतों को अपनी आवाज दी। उन्होंने पाकीज़ा (1972) के लिए भी गाया, हालांकि, इस गाने का फिल्म में इस्तेमाल नहीं किया गया था और बाद में इसे पाकीज़ा-रंग बा रंग (1977) एल्बम में रिलीज़ किया गया था।
निजी जीवन
कमाल अमरोही से विवाह
वर्ष 1951 में फिल्म तमाशा के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात उस ज़माने के जाने-माने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई जो फिल्म महल की सफलता के बाद निर्माता के तौर पर अपनी अगली फिल्म अनारकली के लिए नायिका की तलाश कर रहे थे।मीना का अभिनय देख वे उन्हें मुख्य नायिका के किरदार में लेने के लिए राज़ी हो गए।दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वरम के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं जिससे उनके बाहिने हाथ की छोटी अंगुली सदा के लिए मुड़ गई। मीना अगले दो माह तक बम्बई के ससून अस्पताल में भर्ती रहीं और दुर्घटना के दूसरे ही दिन कमाल अमरोही उनका हालचाल पूछने पहुँचे। मीना इस दुर्घटना से बेहद दुखी थीं क्योंकि अब वो अनारकली में काम नहीं कर सकती थीं। इस दुविधा का हल कमाल अमरोही ने निकाला, मीना के पूछने पर कमाल ने उनके हाथ पर अनारकली के आगे 'मेरी' लिख डाला।इस तरह कमाल मीना से मिलते रहे और दोनों में प्रेम संबंध स्थापित हो गया।
14 फरवरी 1952 को हमेशा की तरह मीना कुमारी के पिता अली बख़्श उन्हें व उनकी छोटी बहन मधु को रात्रि 8 बजे पास के एक भौतिक चिकित्सकालय (फिज़्योथेरेपी क्लीनिक) छोड़ गए। पिताजी अक्सर रात्रि 10 बजे दोनों बहनों को लेने आया करते थे।उस दिन उनके जाते ही कमाल अमरोही अपने मित्र बाक़र अली, क़ाज़ी और उसके दो बेटों के साथ चिकित्सालय में दाखिल हो गए और 19 वर्षीय मीना कुमारी ने पहले से दो बार शादीशुदा 34 वर्षीय कमाल अमरोही से अपनी बहन मधु, बाक़र अली, क़ाज़ी और गवाह के तौर पर उसके दो बेटों की उपस्थिति में निक़ाह कर लिया। 10 बजते ही कमाल के जाने के बाद, इस निक़ाह से अपरिचित पिताजी मीना को घर ले आए।इसके बाद दोनों पति-पत्नी रात-रात भर बातें करने लगे जिसे एक दिन एक नौकर ने सुन लिया।बस फिर क्या था, मीना कुमारी पर पिता ने कमाल से तलाक लेने का दबाव डालना शुरू कर दिया। मीना ने फैसला कर लिया की तबतक कमाल के साथ नहीं रहेंगी जबतक पिता को दो लाख रुपये न दे दें।पिता अली बक़्श ने फिल्मकार महबूब खान को उनकी फिल्म अमर के लिए मीना की डेट्स दे दीं परंतु मीना अमर की जगह पति कमाल अमरोही की फिल्म दायरा में काम करना चाहतीं थीं।इसपर पिता ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे पति की फिल्म में काम करने जाएँगी तो उनके घर के दरवाज़े मीना के लिए सदा के लिए बंद हो जाएँगे। 5 दिन अमर की शूटिंग के बाद मीना ने फिल्म छोड़ दी और दायरा की शूटिंग करने चलीं गईं।उस रात पिता ने मीना को घर में नहीं आने दिया और मजबूरी में मीना पति के घर रवाना हो गईं। अगले दिन के अखबारों में इस डेढ़ वर्ष से छुपी शादी की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरीं।
पति से अलगाव और शराब की लत
अपनी शादी के बाद, कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को अपने फ़िल्मी करियर को जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन इस शर्त पर कि वे अपने मेकअप रूम में उनके मेकअप आर्टिस्ट के अलावा किसी और पुरूष को नहीं बुलाएंगी और हर शाम 6:30 बजे तक केवल अपनी कार में ही घर लौटेंगी| मीना कुमारी सभी शर्तों से सहमत थीं, लेकिन समय बीतने के साथ वे उन्हें तोड़ती रहीं। साहिब बीबी और गुलाम के निर्देशक अबरार अल्वी ने सुनाया कि कैसे कमाल अमरोही अपने जासूस और दाएं हाथ के आदमी बाकर अली को मेकअप रूम में मीना पर निगाह रखने के लिए रखते थे, और एक शाम जब एक शॉट पूरा करने के लिए शेड्यूल से परे काम कर रही थी, तब उन्हें बिलखती हुई मीना का सामना करना पड़ा था।
1963 में, साहिब बीबी और गुलाम को बर्लिन फिल्म समारोह में भारतीय प्रविष्टि के रूप में चुना गया और मीना कुमारी को एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया। तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री सत्य नारायण सिन्हा ने दो टिकटों की व्यवस्था की, एक मीना कुमारी के लिए और दूसरा उनके पति के लिए, लेकिन कमाल अमरोही ने अपनी पत्नी के साथ जाने से इनकार कर दिया जिस कारण बर्लिन की यात्रा कभी नहीं हुई। इरोस सिनेमा में एक प्रीमियर के दौरान, सोहराब मोदी ने मीना कुमारी और कमाल अमरोही को महाराष्ट्र के राज्यपाल से मिलवाया। सोहराब मोदी ने कहा "यह प्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी हैं, और यह उनके पति कमाल अमरोही हैं"। बधाई देने से पहले, कमाल अमरोही ने कहा, "नहीं, मैं कमाल अमरोही हूं और यह मेरी पत्नी, प्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी हैं"। यह कहते हुए कमाल अमरोही सभागार से चले गए। मीना कुमारी ने अकेले प्रीमियर देखा। मीना कुमारी को उनकी शादी में शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ा। उनकी जीवनी के लेखक विनोद मेहता बताते हैं कि हालांकि अमरोही ने इस तरह के आरोपों से बार-बार इनकार किया, उन्होंने छह अलग-अलग स्रोतों से जाना कि वह वास्तव में एक पीड़ित थी। 1972 में उनकी मृत्यु के बाद, साथी अभिनेत्री नरगिस ने उनके बारे में एक निबंध लिखा, जो एक उर्दू पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। नरगिस ने उल्लेख किया कि मैं चुप राहुंगी के एक आउटडोर शूट पर, जब वे दोनों बगल के कमरे साझा कर रहीं थीं, उन्होंने स्वयं भी बगल के कमरे से शोर सुना। अगले दिन, वह एक सूजी हुई आंखों वाली कुमारी से मिली, जो शायद पूरी रात रोई थी। इस तरह की अफवाहों को फ़िल्म पिंजरे के पंछी के मूहर्त पर उनका आधार मिला। 5 मार्च 1964 को, कमाल अमरोही के सहायक, बाकर अली ने मीना कुमारी को थप्पड़ मार दिया जब उन्होंने गुलज़ार को अपने मेकअप रूम में प्रवेश करने की अनुमति दी। कुमारी ने तुरंत अमरोही को फिल्म के सेट पर आने के लिए बुलाया लेकिन वह कभी नहीं आए। इसके बजाय, अमरोही ने मीना को घर आने के लिए कहा ताकि वे तय कर सकें के आगे क्या करना है। इसने न केवल मीना कुमारी को नाराज़ किया बल्कि उनके पहले से तनावपूर्ण संबंधों में अंतिम तिनके के रूप में भी काम किया। मीना सीधे अपनी बहन मधु के घर गईं। जब कमाल अमरोही उन्हें वापस लाने के लिए वहां गए, तो बार-बार मनाने के बाद भी उन्होंने अमरोही से बात करने से इनकार कर दिया। उसके बाद, न तो अमरोही ने मीना को वापस लाने की कोशिश की और न ही मीना कुमारी वापस लौटीं। कुमारी की मृत्यु के बाद अपने कार्यक्रम फूल खिले हैं गुलशन गुलशन पर जब तबस्सुम ने कमाल अमरोही से मीना कुमारी के बारे में पूछा तब अमरोही ने मीना को "एक अच्छी पत्नी नहीं बल्कि एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में याद किया, जो खुद को घर पर भी एक अभिनेत्री मानती थी।"
स्वछंद प्रवृति की मीना अमरोही से 1964 में अलग हो गयीं। उनकी फ़िल्म पाक़ीज़ा को और उसमें उनके रोल को आज भी सराहा जाता है। शर्मीली मीना के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कवियित्री भी थीं लेकिन कभी भी उन्होंने अपनी कवितायें छपवाने की कोशिश नहीं की। उनकी लिखी कुछ उर्दू की कवितायें नाज़ के नाम से बाद में छपी।
मृत्यु
फ़िल्म पाक़ीज़ा के रिलीज़ होने के तीन हफ़्ते बाद मीना कुमारी की तबीयत बिगड़ने लगी। 28 मार्च 1972 को उन्हें बम्बई के सेंट एलिज़ाबेथ अस्पताल में दाखिल करवाया गया।
31 मार्च 1972, गुड फ्राइडे वाले दिन दोपहर 3 बजकर 25 मिनट पर महज़ 38 वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने अंतिम सांस ली। पति कमाल अमरोही की इच्छानुसार उन्हें बम्बई के मज़गांव स्थित रहमताबाद कब्रिस्तान में दफनाया गया। मीना कुमारी इस लेख को अपनी कब्र पर लिखवाना चाहती थीं:
"वो अपनी ज़िन्दगी कोएक अधूरे साज़,
एक अधूरे गीत,
एक टूटे दिल,
परंतु बिना किसी अफसोस
के साथ समाप्त कर गई" (अंग्रेज़ी से अनुवादित)
मीना के पति कमाल अमरोही की 11 फरवरी 1993 को मृत्यु हुई और उनकी इच्छनुसार उन्हें मीना के बगल में दफनाया गया।
सम्मान और श्रद्धांजलि
उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद, साथी अभिनेत्री नरगिस ने एक उर्दू पत्रिका में एक निजी निबंध लिखा - शमा , जिसका शीर्षक है मीना - मौत मुबारक हो । अक्टूबर 1973 में, उन्होंने मीनाजी की याद में मीना कुमारी मेमोरियल फॉर द ब्लाइंड की स्थापना की और इस ट्रस्ट की वे अध्यक्ष भी थीं।
1979 में, मीना कुमारी की अमर कहानी , दिवंगत अभिनेत्री को समर्पित एक फिल्म थी। सोहराब मोदी द्वारा इसे निर्देशित किया गया था और राज कपूर और राजेंद्र कुमार जैसे विभिन्न फिल्मी हस्तियों के विशेष साक्षात्कार लिए गए थे। फिल्म के लिए संगीत खय्याम द्वारा संगीतबद्ध किया गया था।
अगले वर्ष, शायरा (वैकल्पिक रूप से साहिरा शीर्षक) जारी की गई थी। यह मीना कुमारी पर एक लघु वृत्तचित्र थी और एस सुख देव द्वारा गुलज़ार के साथ निर्देशित की गई थी। इस डॉक्यूमेंट्री का निर्माण कांता सुखदेव ने किया था।
उनके सम्मान में अंकित मूल्य 500 पैसे का एक डाक टिकट 13 फरवरी 2011 को भारतीय डाक द्वारा जारी किया गया था।
2010 में, फिल्मफेयर ने साहिब बीबी और गुलाम और पाकीज़ा में कुमारी के प्रदर्शन को बॉलीवुड की "80 प्रतिष्ठित प्रदर्शनों" की सूची में शामिल किया। उनकी दो फिल्में बैजू बावरा और दो बीघा जमीन को ब्रिटिश फिल्म संस्थान के एक सर्वेक्षण में सबसे महान फिल्मों में माना गया है। भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष के अवसर पर, सीएनएन-आईबीएन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, पाकीज़ा, साहिब बीबी और गुलाम और दो बीघा ज़मीन को अब तक की 100 सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों की सूची में शामिल किया गया। हिंदुस्तान टाइम्स सहित विभिन्न प्रकाशनों ने उन्हें बॉलीवुड के शीर्षतम सेक्स प्रतीकों में से एक का उल्लेख किया।
2012 में, बांद्रा, मुंबई में बैंडस्टैंड प्रोमेनेड का एक खंड, वॉक ऑफ द स्टार्स, हिंदी फिल्म उद्योग के फिल्म कलाकारों को सम्मानित करने के लिए खोला गया था। मीना कुमारी के ऑटोग्राफ के साथ-साथ अन्य कलाकारों की मूर्तियों, हस्त-चिह्नों और ऑटोग्राफ को भी चित्रित किया गया था। हालांकि, वॉक ऑफ द स्टार्स को 2014 में भंग कर दिया गया था।
मई 2018 में, जयपुर के जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में, मीना कुमारी के जीवन को दर्शाने वाले नाटक, अजीब दास्तां है ये का मंचन किया गया था।
1 अगस्त 2018 को, सर्च इंजन Google ने मीना कुमारी को उनकी 85 वीं जयंती पर डूडल के साथ याद किया।
जीवनियाँ
- मीना कुमारी पर पहली जीवनी अक्टूबर 1972 में विनोद मेहता द्वारा उनकी मृत्यु के बाद लिखी गई थी। कुमारी की आधिकारिक जीवनी, इसे मीना कुमारी - द क्लासिक बायोग्राफी शीर्षक दिया गया था। जीवनी मई 2013 में फिर से प्रकाशित हुई थी।
- मोहन दीप द्वारा लिखा गया निंदनीय सिम्पली सकेन्डलॉस लेख 1998 में प्रकाशित एक अनौपचारिक जीवनी थी। यह मुंबई के हिंदी दैनिक दोपहर का सामना में एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित किया गया था।
- मीना कुमारी की एक और जीवनी, आखरी अधाई दिन को मधुप शर्मा ने हिंदी में लिखा था। पुस्तक 2006 में प्रकाशित हुई थी।
फिल्म में
मीना कुमारी हमेशा बड़े पैमाने पर फिल्म निर्माताओं के बीच रुचि का विषय रही हैं। 2004 में, उनकी फिल्म साहिब बीबी और गुलाम का एक आधुनिक रूपांतर प्रीतीश नंदी कम्युनिकेशंस द्वारा किया जाना था, जिसमें ऐश्वर्या राय और बाद में प्रियंका चोपड़ा को उनकी छोटी बहू की भूमिका को चित्रित करना था। हालांकि, फिल्म को निर्देशक ऋतुपॉर्नो घोष द्वारा बाद में इसे एक धारावाहिक के रूप में बनाया गया, जिसमें अभिनेत्री रवीना टंडन ने इस भूमिका को निभाया।
2015 में, यह बताया गया कि तिग्मांशु धूलिया को हिंदी सिनेमा की ट्रेजेडी क्वीन पर एक फिल्म बनानी थी, जो विनोद मेहता की किताब "मीना कुमारी - द क्लासिक बायोग्राफी" का स्क्रीन रूपांतरण होना था। अभिनेत्री कंगना रनौत को कुमारी को चित्रित करने के लिए संपर्क किया गया था, लेकिन प्रामाणिक तथ्यों की कमी और मीना कुमारी के सौतेले बेटे ताजदार अमरोही के कड़े विरोध के बाद फिल्म को फिर से रोक दिया गया था।
2017 में, निर्देशक करण राजदान ने भी उन पर एक आधिकारिक बायोपिक निर्देशित करने का फैसला किया। इसके लिए, उन्होंने माधुरी दीक्षित और विद्या बालन से फ़िल्मी पर्दे पर मीना कुमारी की भूमिका निभाने के लिए संपर्क किया, लेकिन कई कारणों के कारण, दोनों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। बाद में उन्होंने अभिनेत्री सन्नी लियोन की ओर रुख किया, जिन्होंने इस किरदार में बहुत दिलचस्पी दिखाई। ऋचा चड्ढा, जया प्रदा और जान्हवी कपूर सहित कई अन्य अभिनेत्रियों ने भी शानदार आइकन की भूमिका निभाने की इच्छा व्यक्त की।
2018 में, निर्माता और पूर्व बाल कलाकार कुट्टी पद्मिनी ने गायक मोहम्मद रफ़ी और अभिनेता-निर्देशक जे पी चंद्रबाबू के साथ एक वेब श्रृंखला के रूप में मीना कुमारी पर एक बायोपिक बनाने की घोषणा की। पद्मिनी ने मीना कुमारी के साथ फिल्म दिल एक मंदिर में काम किया है और इस बायोपिक के साथ दिवंगत अभिनेत्री को सम्मानित करना चाहती हैं।
2019 में, संजय लीला भंसाली ने कुमारी की 1952 की क्लासिक बैजू बावरा के रीमेक की घोषणा की, जिसमें आलिया भट्ट ने गौरी के चरित्र को दोहराया, एक भूमिका जो मूल रूप से कुमारी द्वारा निभाई गई थी। अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने भी उसी फिल्म में कुमारी की भूमिका निभाने की इच्छा व्यक्त की। फिल्म की शूटिंग जो अक्टूबर 2021 से शुरू होनी थी, अभी तक शुरू नहीं हुई है।
2020 में, ऑलमाइटी मोशन पिक्चर्स ने मीना कुमारी के जीवन पर एक वेब श्रृंखला की घोषणा की, जो पत्रकार अश्विनी भटनागर द्वारा लिखित स्टारिंग.. महजबीन के रूप में मीना कुमारी पर आधारित है। इसके बाद ताजदार अमरोही की आपत्ति आई जिन्होंने पत्रकार पर दिवंगत अभिनेत्री की जीवनी न केवल उनकी सहमति के बिना लिखने का आरोप लगाया बल्कि कमाल अमरोही को एक पीड़ा के रूप में चित्रित करने का भी आरोप लगाया। भटनागर ने बाद में स्पष्ट किया कि पुस्तक में कभी भी अमरोही का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा और यह मुख्य रूप से मीना कुमारी के पेशेवर जीवन पर केंद्रित थी। बाद में उन्होंने तर्क दिया कि कुमारी एक सार्वजनिक हस्ती थीं और कोई भी कला का एक काम बनाने की अनुमति देने के अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। श्रृंखला जिसके बाद एक फीचर फिल्म होगी, निर्माता प्रभलीन कौर संधू द्वारा निर्देशित की जाएगी। 2021 में, हीरामंडी की कास्टिंग के दौरान, फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली ने स्पष्ट रूप से मीना कुमारी की पाकीज़ा को इस वेब श्रृंखला के निर्माण के पीछे अपनी प्रेरणा बताया, जो लाहौर के दरबारियों के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। अभिनेत्री आलिया भट्ट ने गंगूबाई काठियावाड़ी में एक वेश्या की भूमिका की तैयारी के लिए मीना कुमारी की फिल्में देखने का भी उल्लेख किया।
फरवरी 2022 में, म्यूजिक लेबल सारेगामा और अभिनेता बिलाल अमरोही (कमल अमरोही के पोते) ने फिल्म पाकीजा के निर्माण की पृष्ठभूमि में कुमारी और उनके फिल्म निर्माता पति कमाल अमरोही की प्रेम कहानी पर एक वेब श्रृंखला की घोषणा की। यूडली फिल्मों द्वारा निर्देशित श्रृंखला के 2023 में शूरु होने की उम्मीद है। अगले महीने, यह बताया गया कि कृति सैनॉन को टी-सीरीज़ द्वारा नियोजित एक बायोपिक में कुमारी की भूमिका निभाने के लिए संपर्क किया गया है। हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।
मीना की फ़िल्में
वर्ष | फ़िल्म | भूमिका | तथ्य |
---|---|---|---|
1939 | लैदरफ़ेस | बेबी महजबीं | |
अधुरी कहानी | बेबी महजबीं | ||
1940 | पूजा | बीना | |
एक ही भूल | बेबी मीना | बेबी महजबीं से बदलकर बेबी मीना नाम रखा गया | |
1941 | नई रोशनी | मुन्नी | |
बहन | बीना | ||
कसौटी | बेबी मीना | ||
विजय | बेबी मीना | ||
1942 | गरीब | बेबी मीना | |
1943 | प्रतिज्ञा | बेबी मीना | |
1944 | लाल हवेली | मुक्ता | |
1946 | बच्चों का खेल | अनुराधा | 13 वर्ष की आयु में बेबी मीना मीना कुमारी बनीं |
दुनिया एक सराय | तारा | ||
1948 | पिया घर आजा | ||
बिछड़े बालम | |||
1949 | वीर घटोत्कच | सुरेखा | |
1950 | श्री गणेश महिमा | सत्याभामा | |
मगरूर | मीनू राय | ||
हमारा घर | |||
1951 | सनम | रानी | |
मदहोश | सोनी | ||
लक्ष्मी नारायण | देवी लक्ष्मी | ||
हनुमान पाताल विजय | मकरी | ||
1952 | अलादीन और जादुई चिराग | राजकुमारी बदर | |
तमाशा | किरण | ||
बैजू बावरा | गौरी | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
1953 | परिणीता | ललिता | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार |
फुटपाथ | माला | ||
दो भीगा ज़मीन | ठकुराइन | भारत की पहली फ़िल्म जिसे कांन्स फ़िल्म समारोह-1954 में पुरस्कृत किया गया। | |
दाना पानी | |||
दायरा | शीतल | ||
नौलखा हार | बिजमा | ||
1954 | इल्ज़ाम | कमली | |
चाँदनी चौक | ज़रीना बेगम | ||
बादबाँ | |||
1955 | रुखसाना | ||
बंदिश | ऊषा सेन | ||
आज़ाद | शोभा | नामांकित – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
अद्ल-ए-जहांगीर | ज़रीना | ||
1956 | नया अंदाज़ | माला | |
शतरंज | संध्या | ||
मेम साहिब | मीना | ||
हलाकू | नीलोफर नादिर | ||
एक ही रास्ता | मालती | ||
बंधन | बानी | ||
1957 | शारदा | शारदा राम शरण | विजेता – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार |
मिस मैरी | मिस मैरी/लक्ष्मी | ||
1958 | यहूदी | हन्ना | |
सवेरा | शांति | ||
सहारा | लीला | नामांकित – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
फरिश्ता | शोभा | ||
1959 | सट्टा बाज़ार | जमुना | |
शरारत | शभनम | ||
मधु | मधु | ||
जागीर | ज्योति | ||
चिराग कहाँ रोशनी कहाँ | रत्ना | नामांकित - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
चाँद | बिमला | ||
चार दिल चार राहें | चवली | ||
अर्द्धांगिनी | छाया | ||
1960 | दिल अपना और प्रीत पराई | करूणा | |
बहाना | |||
कोहिनूर | राजकुमारी चंद्रमुखी | ||
1961 | ज़िंदगी और ख्वाब | शांति | |
भाभी की चूड़ियाँ | गीता | ||
प्यार का सागर | राधा / रानी गुप्ता | ||
1962 | साहिब बीबी और ग़ुलाम | छोटी बहू (सती लक्ष्मी) | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
फ़िल्म को 13वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में नामांकित किया गया जहाँ मीना कुमारी को प्रतिनिधि के तौर पर चुना गया। यह फ़िल्म 36वें अकादमी पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ विदेशीय भाषा वर्ग में भारत द्वारा भेजी गई थी। |
मैं चुप रहूंगी | गायत्री | नामांकित-फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
आरती | आरती गुप्ता | विजेता – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार | |
1963 | किनारे किनारे | नीलू | |
दिल एक मन्दिर | सीता | विजेता – सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार | |
अकेली मत जाइयो | सीमा | ||
1964 | सांझ और सवेरा | गौरी | |
गज़ल | नाज़ आरा बेगम | ||
चित्रलेखा | चित्रलेखा | मीना कुमारी की पहली रंगीन फ़िल्म। | |
बेनज़ीर | बेनज़ीर | ||
मैं भी लड़की हूँ | रजनी | ||
1965 | भीगी रात | नीलिमा | |
पूर्णिमा | पूर्णिमा लाल | ||
काजल | माधवी | विजेता – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
1966 | पिंजरे के पंछी | हीना शर्मा | |
फूल और पत्थर | शांति | नामांकित – फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार | |
1967 | मझली दीदी | हेमांगिनी | 41वें अकादमी पुरस्कार के सर्वश्रेष्ठ विदेशीय भाषा वर्ग में भारत द्वारा भेजी गई फ़िल्म। |
नूरजहाँ | मिहर-उन-निसा (नूरजहाँ) | ||
चन्दन का पालना | शोभा राय | ||
बहू बेगम | ज़ीनत जहां बेगम | ||
1968 | बहारों की मंज़िल | नंदा रॉय / राधा शुक्ला | |
अभिलाषा | मीना सिंह | ||
1970 | जवाब | विद्या | |
सात फेरे | |||
1971 | मेरे अपने | आनंदी देवी | |
1972 | दुश्मन | मालती | |
पाकीज़ा | नरगिस / साहिबजान | विजेता - विशेष बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार
नामांकित - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार (मरणोपरांत) इस फ़िल्म की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भी थीं। | |
गोमती के किनारे | गंगा | आखिरी फ़िल्म |
नामांकन और पुरस्कार
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
वर्ष | फ़िल्म | भूमिका | परिणाम |
---|---|---|---|
1954 | बैजू बावरा | गौरी | साँचा:won |
1955 | परिणीता | ललिता | साँचा:won |
1956 | आज़ाद | शोभा | Nominated |
1959 | सहारा | Leela | Nominated |
1960 | चिराग कहां रोशनी कहां | रत्ना | Nominated |
1963 | साहिब बीबी और ग़ुलाम | छोटी बहू | साँचा:won |
आरती | आरती गुप्ता | Nominated | |
मैं चुप रहुंगी | गायत्री | Nominated | |
1964 | दिल एक मंदिर | सीता | Nominated |
1966 | काजल | माधवी | साँचा:won |
1967 | फूल और पत्थर | शांति | Nominated |
1973 | पाक़ीज़ा | नरगिस / साहिबजान | Nominated (मरणोपरांत) |
बंगाल फ़िल्म पत्रकार संगठन पुरस्कार
वर्ष | श्रेणी | फ़िल्म | भूमिका | परिणाम |
---|---|---|---|---|
1958 | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (हिंदी) | शारदा | शारदा राम शरण | साँचा:won |
1963 | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (हिंदी) | आरती | आरती गुप्ता | साँचा:won |
1965 | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (हिंदी) | दिल एक मंदिर | सीता | Won |
1973 | विशेष पुरस्कार | पाक़ीज़ा | नरगिस/ साहिबजान | साँचा:won (मरणोपरांत) |
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ साँचा:cite web