आचार्य विद्यासागर

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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आचार्य विद्यासागर
नाम (आधिकारिक) आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म नाम विद्याधर
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निर्वाण साँचा:br separated entries
माता-पिता मल्लप्पा और श्री मंती
शुरूआत
सर्जक आचार्य ज्ञानसागर
दीक्षा के बाद
पूर्ववर्ती आचार्य ज्ञानसागर

साँचा:sidebar with collapsible lists आचार्य विद्यासागर (कन्नड़:ಆಚಾರ್ಯ ವಿದ್ಯಾಸಾಗರ್) एक प्रख्यात दिगम्बर जैन आचार्य हैं।[१] उन्हें उनकी विद्वत्ता और तप के लिए जाना जाता है। आचार्य श्री हिन्दी, अंग्रेजी आदि 8 भाषाओं के ज्ञाता हैं ।[२]

जीवनी

उनका जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।

विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे। आचार्य विद्यासागर जी को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था।साँचा:sfn केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है।साँचा:sfn उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये।साँचा:sfn

आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।[३] उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।[२][३] विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।[४] आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।[५][६]

आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।साँचा:sfn मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

साहित्य सर्जन

हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि मे एक दर्जन से अधिक मौलिक रचनाएँ प्रकाशित- 'नर्मदा का नरम कंकर', 'डूबा मत लगाओ डुबकी' , 'तोता रोता क्यों ?' , 'मूक माटी' आदि काव्य कृतियां ; गुरुवाणी , प्रवचन परिजात, प्रवचन प्रमेय आदि प्रवचन संग्रह; आचार्य कुंदकुंद के समयासार, नियमसार , प्रवचनसार और जैन गीता आदि ग्रंथों का पद्य अनुवाद |[७]

शिष्य गण

आचार्य श्री द्वारा 130 मुनिराजो , 172 आर्यिकाओं व 20 ऐलक जी ,14 क्षुल्लकगणों को दीक्षित किया गया है |[७] मुनिश्री समयसागर जी,मुनिश्री योगसागर जी, मुनिश्री नियमसागर जी,मुनिश्री सुधासागर जी, मुनिश्री प्रमाणसागर जी, मुनिश्री चिन्मयसागर जी,मुनिश्री अभयसागर जी, मुनि क्षमासागर जी,मुनि प्रणम्यसागर जीआदि प्रसिध्द संत है | 2001 के आँकड़ों के अनुसार उनके लगभग 21% दिगम्बर साधु आचार्य विद्यासागर के आज्ञा से चर्या करते हैं।[८][९]

सन्दर्भ्

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  2. साँचा:harvnb
  3. साँचा:cite web
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अन्य पठनीय सामग्री

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बाहरी कड़ियाँ