ज्ञानसागर
साँचा:sidebar with collapsible lists आचार्य ज्ञानसागर एक दिगम्बर साधु थे। वह २०वीं सदी के महान जैन आचार्य थे जिन्होंने कई संस्कृत महाकाव्यों की रचना की थी। वह आचार्य विद्यासागर के गुरु थे।
जीवनी
इनका दीक्षा से पूर्व का नाम पंडित भूरामल था। इनके पिता का नाम चतुरभुज और माँ का नाम घृतबहारी देवी था। वह पांच भाइयों में दूसरे थे। छगनलाल ज्येष्ठ और गंगा प्रसाद, गौरीलाल और देवदत्त छोटे भाई थे।
अपने गांव में प्राथमिक अध्ययन पूरा करने के बाद, उन्होंने संस्कृत का अध्ययन बनारस के प्रसिद्ध स्यादवाद महाविद्यालय में किया। यह महाविद्यालय गणेशप्रसाद वर्णी द्वारा स्थापित किया था।
व्रती जीवन
आचार्य शांतिसागर के शिष्य आचार्य वीरसागर द्वारा क्षुल्लक दीक्षा प्रदान की गयी थी और क्षुल्लक ज्ञानभूषण नाम रखा गया। लगभग दो वर्ष क्षुल्लक रहने के बाद और 2 साल से कुछ अधिक समय ऐलक के रूप में रहने के बाद वह मुनि बन गए।
आचार्य वीरसागर के शिष्य आचार्य शिवसागर जी के द्वारा Khaniya जी, जयपुर में 1959 में उन्हें मुनि दीक्षा प्रदान की गयी।। उन्होंने 1968 में नसीराबाद, अजमेर, राजस्थान में आचार्य पद ग्रहण किया।
आचार्य श्री की सल्लेखना पूर्वक समाधी 1 जून, 1973 को नसीराबाद, अजमेर में हुई थी।[१]
रचनायें
संस्कृत के एक विशेषज्ञ के रूप में वह एक महान रचयता थे। कम से कम 30 शोधकर्ताओं ने उनकी रचनाओं का अध्ययन किया है जिन्हें डॉक्टरेट की डिग्री से सम्मानित किया गया है। कम से कम 300 विद्वानों ने उन पर शोध पत्र प्रस्तुत किये हैं। उनकी रचनाओं मे 4 संस्कृत महाकाव्य और 3 से अधिक जैन ग्रंथ शामिल है। वह भी उस समय में जब संस्कृत रचना लगभग अप्रचलित थी। इन कृतियों ने हमेशा आधुनिक संस्कृत विद्वानों ने हैरान किया है।[२]
परंपरा
आचार्य ज्ञानसागर आचार्य शांति सागर जी की परंपरा के थे:
- आचार्य शांतिसागर
- आचार्य वीरसागर
- आचार्य शिवसागर
- आचार्य ज्ञानसागर
- आचार्य विद्यासागर (वर्तमान आचार्य)