विश्वनाथ मन्दिर, खजुराहो
शिव मंदिरों में अत्यंत महत्वपूर्ण विश्वनाम मंदिर का निर्माण काल सन् १००२- १००३ ई. है। पश्चिम समूह की जगती पर स्थित यह मंदिर अति सुंदरों में से एक है। इस मंदिर का नामाकरण शिव के एक और नाम विश्वनाथ पर किया गया है। मंदिर की लंबाई ८९' और चौड़ाई ४५' है। पंचायतन शैली का संधार प्रासाद यह शिव भगवान को समर्पित है। गर्भगृह में शिवलिंग के साथ-साथ गर्भगृह के केंद्र में नंदी पर आरोहित शिव प्रतिमा स्थापित की गयी है।
खजुराहो परिचायक
खजुराहो प्रतिमाओं का प्रथम परिचय इसी मंदिर को देखने से मिलता है, क्योंकि सामने की ओर से आते हुए यह मंदिर पहले आता है। इस मंदिर में ६२० प्रतिमाएँ हैं। इन प्रतिमाओं का आकार २' से २', ६' तक ऊँचा है। मंदिर के भीतर की प्रतिमाएँ भव्यता एवं सुदरता का प्रतीक है। मंदिर की सुंदरता देखनेवालों को प्रभावित करती है। यहाँ की आमंत्रण देती अप्सराएँ मन मोह लेती है। कुछ प्रतिमाएँ मन्मथ- अति का शिकार हैं। प्रतिमाओं में मन्मथ गोपनीय है। कंदरिया मंदिर के पूर्ववर्ती के उपनाम से जाना जाने वालों इस मंदिर में दो उप मंदिर, उत्तर- पूर्वी दक्षिण मुखी तथा दक्षिण पश्चिमी पूर्वोन्मुखी है। इन दोनों उप मंदिरों पर भी पट्टिका पर मिथुन प्रतिमाएँ अंकित की गयी है। इन मंदिरों के भीतर ही अर्द्धमंडप, मंडप, अंतराल, गर्भगृह तथा प्रदक्षिणापथ निर्मित है। मंदिर के वितान तोरण तथा वातायण उत्कृष्ठ हैं। वृक्षिका मूलतः ७८ थी। जिसमें अब केवल नीचे की छः ही बच पायी है। पार्श्व अलिंदों की अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय है। वह सभी प्रेम की पात्र हैं। त्रिभंग मुद्राओं में त्रिआयामी यौवन से भरपुर रसमयी अप्सराएँ अत्यंत उत्कृष्टता से अंकित की गयी है। इन प्रतिमाओं को देखकर ऐसा लगता है कि ये अप्सराएँ सारे विश्व की सुंदरियों को मुकाबला के लिए नियंत्रण दे रही है।
कालिदास की शकुंतला से भी बढ़कर जीवंत और शोखी इन सुंदर प्रतिमाओं में दिखाई देती है। इनके पाँव की थिरकन, जैसे मानव कानों में प्रतिध्वनित हो रही हो, जैसे घुंघरों से कान हृदय में आनंद भर रहे हो। चपलता ऐसी कि बाहों में भरने को मन चाह उठे। मंदिर की ये प्रतिमाएँ देव- संयम और मानव धैर्य की परीक्षा लेती दिखती है।
मंदिर के द्वार शाखों पर मिथुन जागृतावस्था में है। इनके जागृतावस्था एवं सुप्तावस्था में कोई अंतर ही नहीं दिखाई देता है। मानव क्या रात भी इस सौंदर्य की झलक मात्र से स्तब्ध है, क्योंकि यहाँ समाधि की अद्भूत स्थिति है। मंदिर की रथिकाओं की तीन पंक्तियाँ मूर्तिमयी होकर नाच रही है। सभी प्रतिमाएँ दृश्यमय हैं तथा मंच पर कलाकारों की तरह अपना-अपना अभिनय कर रही है और स्वयं ही दर्शक बन रही है। देवांगनाएँ मिथुन रुपों को देखकर, आधुनिक पेरिस की नारी मिस वर्ल्ड सुंदरी प्रतियोगिता का आभास होता है।
विश्वनाथ मंदिर का स्थाप्य त्रयंग मंदिर प्रतिरथ और करणयुक्त है। प्रमुख नौ रथिकाएँ अधिष्ठान के ऊपरी बाह्य भाग पर अंकित है। सात रथिकाओं में गणेश की प्रतिमा दिखाई देती है। एक रथिका पर वीरभद्र विराजमान हैं। छोटी राथिकाओं पर मिथुन है। इनमें भ्रष्ट मिथुनों का अधिक्य पाया जाता है। मंदिर के उरु: श्रृंग की संख्या चार है तथा उपश्रृंग की संख्या सोलह है।
द्वार अभिलेख
मंडप की दीवार पर लगा अभिलेख चंदेल वंश के महान शासक धंग का है। इसमें संस्कृत में तैंतीस पंक्तियाँ हैं। यहाँ मंदिर में राजा धंग के समय से ही शिव मर्कटेश्वर प्राण प्रतिष्ठित हैं। मंदिर का अधिष्ठान उन्नत है। प्रमुख रथिकाओं पर चंद्रावलोकन है। इनमें सातदेव मातृ प्रतिमाएँ सुंदरता के साथ अंकित की गयी है। जंघा भाग कक्षासन्न युक्त है। आसन्न पट्टिका पुष्प चक्रों से सुसज्जित हैं। जंघा भाग पर तीन पालियों में प्रतिमाएँ अंकित की गई है। भूमि और श्रृंगों पर आम्लक, चंद्रिका तथा कलश अंकित किया गया है। अंतराल की छत छः मंजिला बनी हुई है। प्रत्येक मंजिलों रथिकाएँ हैं, जोकि उद्गम युक्त हैं। ऊपरी उद्गम पर शुकनासक है। महामण्डप पिरामिड प्रकृति की है, जो पंद्रह पीढ़ों से बनी है। इसके अतिरिक्त यहाँ उप- पिरामिड भी हैं। मुख पिरामिड सोलह पीढ़ों से बनी है। यह छोटा है और रथिकायुक्त है। मुखमंडप के भीतर भरणी टोड़ायुक्त है। आमलकों पर कीर्तिमुख है। मंडप के स्तंभ मुखमंडप के स्तंभों से मेल खाते हैं। शाल मंजिकाएँ तथा मिथुन प्रतिमाएँ, इस मंदिर की विशेषता है। मंडप के स्तंभ वर्द्यमानक प्रतिकृति के हैं। यहाँ की अप्सराएँ अपनी छटा बिखेरती हैं। कुल मिलाकर यह मंदिर अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर है और मिथुनों के लिए प्रसिद्ध है