बडे गणेशजी का मंदिर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

विश्व की सबसे ऊँची और विशाल गणेश प्रतिमा के बतौर बड़े गणपति की ख्याति है। शहर के पश्चिम क्षेत्र में मल्हारगंज के आखिरी छोर पर ये गणेश विराजमान हैं। इन्हें उज्जैन के चिंतामण गणेश की प्रेरणा से नारायण दाधीच ने 120 वर्ष पूर्व बनवाया था।

श्री गणेश के इस अनन्य भक्त को 16 साल की आयु में स्वप्न में विराट गणेश के दर्शन हुए और वह मनोहारी विराट रूप उनके मन में बस गया और एक धुन लग गई उसे साकार करने की।

इसी साधना के सिद्धि की उम्मीद लिए नारायणजी हर बुधवार को उज्जैन से चार किलोमीटर दूर पैदल चलकर चिंतामण गणेश जाकर भगवान से याचना करते रहे। उन्हें इंदौर आना पड़ा जहाँ उनका यह स्वप्न साकार हुआ। बोंदरजी पटेल ने सौ वर्गफुट भूमि की रजिस्ट्री 42 रुपए 2 आने में करवा दी।

यह विशाल गणेश प्रतिमा सीमेंट की नहीं वरन ईंट, चूने, रेत और बालू रेत में गुड़ व मैथीदाने का मसाला मिलाकर बनाई गई है। इसमें समस्त तीर्थों का जल और अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, काँची, उज्जैन और द्वारका इन सात मोक्षपुरियों की माटी मिलाई गई। निर्माण लगभग ढाई वर्ष में पूर्ण हुआ।

संवत 1961 माघ सुदी चतुर्थी (संकष्टी) को मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा की गई। मूर्ति की ऊँचाई चरणों से मुकुट तक 25 फुट और चौड़ाई 16 फुट है। मूर्ति चार फुट ऊँची चौकी पर विराजमान है। इस मूर्ति के दर्शन करने देश-विदेश से लोग आते हैं। गणेश चतुर्थी पर तो इस मंदिर में खासी भीड़ देखी जा सकती है। दिलों को सुकून देने वाली यह गणेश प्रतिमा सभी की चिंताओं का हरण करके लोगों को सुख‍ी और समृद्ध बनाती है।