अहमद तृतीय
साँचा:infobox अहमद तृतीय (उस्मानी तुर्कीयाई: احمد ثالث, अहमद-इ सालिस, 30/31 दिसंबर 1673साँचा:snd1 जुलाई 1736) उस्मानी साम्राज्य के सुल्तान रहे थे। वे महमद चतुर्थ (शासनकाल. 1648–87) के बेटे थे। उनकी माँ अमतुल्लाह राबिया गुलनुश सुल्तान थीं, जिनका मूल नाम एवमानिया वोरिया था, उनकी नस्ल यूनानी थी।[१][२][३][४][५] उनका जन्म हाजीओलु पाज़ारजक, दोब्रुजा में हुआ था। वे 1703 में तख़्तनशीन हो गए, जब उनके भाई मुस्तफ़ा द्वितीय (1695–1703) ने तख़्त को त्याग दिया था।[६] वज़ीर-ए-आज़म नौशहरी दामाद इब्राहीम पाशा और सुल्तान की बेटी फ़ातिमा सुल्तान (जो नौशहरी की बीवी भी थी) ने 1718 से 1730 तक असल हकूमत संभाली, यह दौर ट्यूलिप युग कहा जाता है।
जीवनी
फ़्रांस के साथ अहमद तृतीय के अच्छे ताल्लुक़ात थे जिसने रूस की नाराज़गी को उकसाया। उस्मानिया ने स्वीडन के शार्ल्स सप्तम (1682–1718) को पनाह दिया जब रूस के पीटर महान (1672–1725) ने स्वीडों को पोल्तावा की लड़ाई (1709) में हराया था।साँचा:sfn सुल्तान अहमद तृतीय ने 1710 में, शार्ल्सा सप्तम के कहने पर, रूस पर जंग का ऐलान किया। बालाताज महमद पाशा की अगुवाई में उस्मानी सेना ने प्रुत की लड़ाई में एक बड़ी जीत हासिल की थी। बाद में रूसियों ने अज़ोव के क्षेत्र उस्मानियों को दिया और रूसियों ने तागानरोग के क़िले और उनके बाक़ी नज़दीकी क़िल्लों को ध्वस्त किया। पोलिश-लिथुआनियन राष्ट्रमंडल में रूस की दख़लअंदाज़ी भी समाप्त हो गई।[६] रूसियों पर उस्मानियों के बाद की जीतें इतनी विशाल थीं कि अगर सुल्तान चाहता था, उस्मानी सेना रूसी राजधानी मोस्को पर क़ब्ज़ा कर सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि सफ़वियों ने उस्मानिया पर हमला किया। इस कारण से सुल्तान के ध्यान सफ़वी हमलों की ओर चलाना पड़ा।
उनकी और उनके क़रीबी वज़ीरों की महंगी और बड़ी शानोशौक़त से भरी हुई जीवनशैलियों की वजह से सुल्तान अहमद तृतीय आवाम के मध्य अप्रिय हो गया। अल्बानियाई पात्रोना ख़लील की अगुवाई में, सत्रह यनीचरियों ने कुछ नागरिकों की सहायता से, 20 सितंबर पर विद्रोह किया। इस विद्रोह के कारण से सुल्तान तख़्त त्यागने के लिए मजबूर कर दिया गया था।
अहमद ने स्वेच्छा से अपने भतीजा, महमूद प्रथम (1730–54) को तख़्त पर बिठाया था। इसके बाद वे कफ़स में सेवानिवृत्त हुए और छः माह के पश्चात उनकी मृत्यु हुई।
मुग़ल साम्राज्य के साथ संबंध
जहांदार शाह
1712 में मुग़ल बादशाह जहांदार शाह, जो औरंगज़ेब के पोते थे, ने उस्मानी सुल्तान अहमद तृतीय को तोहफ़े भेजे थे और उन्होंने अपने आप को "उस्मानी सुल्तान के समर्पित प्रशंसक" के रूप में वर्णित किया।[७]
फ़र्रुख़ सियर
मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़ सियर, औरंगज़ेब के एक और पोते, ने उस्मानियों को ख़त भेजा। इस बार उस्मानी वज़ीर-ए-आज़म नौशहरी इब्राहीम पाशा ने ख़त मिला था। ख़त में मुग़ल सिपहसालार सैयद हसन अली ख़ान बरहा द्वारा राजपूत और मराठा विद्रोहों को ख़त्म करने की कोशिशों का वर्णन था।[८]