अमजद ख़ान

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साँचा:otherpeople

अमजद ख़ान
चित्र:AmjadKhan.jpg
जन्म साँचा:birth date
बम्बई, ब्रिटिश भारत[१]
मृत्यु साँचा:death date and age
मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
व्यवसाय फिल्म अभिनेता, निर्देशक
कार्यकाल १९६५-१९९२
प्रसिद्धि कारण गब्बर सिंह

अमजद ख़ान (जन्म: 21 अक्टुबर, 1943 निधन: 27 जुलाई, 1992) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे।

अमजद खान का जन्म 1943 में (विभाजन से पूर्व) लाहौर में हुआ था | वह भारतीय फिल्मो में जाने-माने अभिनेता जयंत के पुत्र थे | अभिनेता के रूप में उनकी पहली फिल्म “शोले” थी और यह फिल्म अमजद (Amjad Khan) को शत्रुघ्न सिन्हा के कारण मिली थी , वास्तव में शोले के गब्बर सिंह की भूमिका पहले शत्रु को ही दी गयी थी परन्तु समयाभाव के कारण इनकार कर दिया तो यह भूमिका अमजद खान को मिल गयी |

अभिनय की दुनिया में आने से पूर्व अमजद , के.आसिफ के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम कर रहे थे  | सहायक के रूप में काम करने के साथ ही उन्होंने पहली बार कैमरे का सामना किया और के.आसिफ की फिल्म “लव एंड गॉड” के बाद अमजद खान (Amjad Khan) ने चेतन आनन्द की फिल्म “हिंदुस्तान की कसम” में एक पाकिस्तानी पायलट की भूमिका की | ये दोनों ही भूमिकाये ऐसी थी जो न दर्शको को याद रही और न स्वयं अमजद खान को | अंतत “शोले” को ही अमजद की पहली फिल्म मानते है |

शोले के अलावा अमजद खान (Amjad Khan) ने “कुर्बानी” “लव स्टोरी”  “चरस” “हम किसी से कम नही ” “इनकार”  “परवरिश” “शतरंज के खिलाड़ी”  “देस-परदेस”  “दादा"“ गंगा की सौगंध ” “कसमे-वादे” “मुक्कदर का सिकन्दर” “लावारिस” “हमारे तुम्हारे ” “मिस्टर नटवरलाल”  “सुहाग ” “कालिया” “लेडीस टेलर” “नसीब” “रॉकी” “यातना” “सम्राट” “बगावत” “सत्ते पे सत्ता”  “जोश”  “हिम्मतवाला” आदि सैकंडो फिल्मो में यादगार भूमिकाये की | अमजद खान शराब और अन्य बुरी आद्तो से दूर थे |

निर्देशन भी किया

अमजद खान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फिल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फिल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फिल्म निर्देशित नहीं की।

पिता को माना गुरु

अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे।

दरियादिल अमजद

पर्दे पर खलनायकी के तेवर दिखाने वाले अमजद निजी जीवन में बेहद दरियादिल और शांति प्रिय इंसान थे। अमिताभ बच्चन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि अमजद बहुत दयालु इंसान थे। हमेशा दूसरों की मदद को तैयार रहते थे। यदि फिल्म निर्माता के पास पैसे की कमी देखते, तो उसकी मदद कर देते या फिर अपना पारिश्रमिक नहीं लेते थे। उन्हें नए-नए चुटकुले बनाकर सुनाने का बेहद शौक था। अमिताभ को वे अक्सर फोन कर लतीफे सुनाया करते थे।

निधन

एक कार दुर्घटना में अमजद बुरी तरह घायल हो गए। एक फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में लोकेशन पर जा रहे थे। ऐसे समय में अमिताभ बच्चन ने उनकी बहुत मदद की। अमजद ख़ान तेजी से ठीक होने लगे। लेकिन डॉक्टरों की बताई दवा के सेवन से उनका वजन और मोटापा इतनी तेजी से बढ़ा कि वे चलने-फिरने और अभिनय करने में कठिनाई महसूस करने लगे। वैसे अमजद मोटापे की वजह खुद को मानते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि- "फ़िल्म ‘शोले’ की रिलीज के पहले उन्होंने अल्लाह से कहा था कि यदि फ़िल्म सु‍परहिट होती है तो वे फ़िल्मों में काम करना छोड़ देंगे।" फ़िल्म सुपरहिट हुई, लेकिन अमजद ने अपना वादा नहीं निभाते हुए काम करना जारी रखा। ऊपर वाले ने मोटापे के रूप में उन्हें सजा दे दी। इसके अलावा वे चाय के भी शौकीन थे। एक घंटे में दस कप तक वे पी जाते थे। इससे भी वे बीमारियों का शिकार बने। मोटापे के कारण उनके हाथ से कई फ़िल्में फिसलती गई। 27 जुलाई, 1992 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और दहाड़ता गब्बर हमेशा के लिए सो गया। अमजद ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की इमेज के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।

डिम्पल कपाड़िया और राखी अभिनीत फ़िल्म 'रुदाली' अमजद ख़ान की आखिरी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उन्होंने एक मरने की हालात में पहुंचे एक ठाकुर की भूमिका निभाई थी, जिसकी जान निकलते-निकलते नहीं निकलती। ठाकुर यह जानता है कि उसकी मौत पर उसके परिवार के लोग नहीं रोएंगे। इसलिए वह मातम मनाने और रोने के लिए रुपये लेकर रोने वाली रुदाली को बुलाता है।


फिल्मी सफर

पुरस्कार

फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार

व्यक्तिगत जीवन

प्रमुख फिल्में

वर्ष फ़िल्म चरित्र टिप्पणी
1996 आतंक
1994 दो फंटूश
1993 रुदाली
1992 दिल ही तो है
1992 आसमान से गिरा
1992 वक्त का बादशाह
1992 विरोधी जज
1991 लव
1990 लेकिन
1990 महासंग्राम
1990 पति पत्नी और तवायफ़
1989 संतोष
1989 मेरी ज़बान
1989 दोस्त
1988 पीछा करो
1988 पाँच फौलादी दिलावर ख़ान
1988 दो वक्त की रोटी
1988 इन्तकाम
1988 मालामाल
1988 बीस साल बाद
1988 कंवरलाल
1988 कब्रस्तान
1987 एहसान
1987 इंसानियत के दुश्मन प्रताप सिंह
1986 जीवा
1986 चमेली की शादी वकील हरीश
1986 नसीहत
1986 ज़िन्दगानी भोला
1986 सिंहासन
1986 लव एंड गॉड
1985 पाताल भैरवी
1985 माँ कसम
1985 मोहब्बत
1985 मेरा साथी
1985 अमीर आदमी गरीब आदमी अकरम
1984 उत्सव
1984 कामयाब
1984 मोहन जोशी हाज़िर हो
1984 माटी माँगे खून
1984 मकसद बिरजू
1984 पेट प्यार और पाप
1983 अच्छा बुरा
1983 चोर पुलिस
1983 बड़े दिल वाला
1983 नास्तिक टाइगर
1983 जानी दोस्त
1983 महान विक्रम सिंह
1983 हिम्मतवाला
1983 हमसे ना जीता कोई
1983 हम से है ज़माना
1982 इंसान
1982 तेरी माँग सितारों से भर दूँ
1982 भागवत
1982 सत्ते पे सत्ता
1982 तकदीर का बादशाह
1982 सम्राट
1982 दौलत
1982 धर्म काँटा
1982 देश प्रेमी
1981 कमांडर
1981 लावारिस रणवीर सिंह
1981 लव स्टोरी हवलदार शेर सिंह
1981 लेडीज़ टेलर
1981 जमाने को दिखाना है
1981 बरसात की एक रात
1981 जय यात्रा
1981 कालिया
1981 मान गये उस्ताद
1981 रॉकी रॉबर्ट डिसूजा
1981 खून का रिश्ता
1981 वक्त की दीवार
1981 नसीब
1981 याराना
1981 हम से बढ़कर कौन
1981 चेहरे पे चेहरा
1980 ख़ंजर प्रिंस/स्वामीजी
1980 यारी दुश्मनी बिरजू
1980 कुर्बानी
1980 बॉम्बे 405 मील वीर सिंह
1980 लूटमार विक्रम
1980 राम बलराम सुलेमान सेठ
1980 चम्बल की कसम
1979 हमारे तुम्हारे
1979 सरकारी मेहमान
1979 दो शिकारी
1979 एहसास
1979 हम तेरे आशिक हैं
1979 सुहाग
1979 मीरा शहंशाह अकबर
1978 सावन के गीत
1978 गंगा की सौगन्ध
1978 मुकद्दर
1978 खून की पुकार
1978 फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
1978 बेशरम दिग्विजय सिंह/धर्मदास
1978 अपना कानून
1978 मुकद्दर का सिकन्दर
1978 हीरालाल पन्नालाल
1978 देस परदेस भूत सिंह/अवतार सिंह
1978 राम कसम
1977 इंकार
1977 आखिरी गोली
1977 परवरिश
1977 कसम कानून की
1977 चक्कर पे चक्कर
1977 पलकों की छाँव में
1976 चरस रॉबर्ट
1975 शोले गब्बर सिंह
1973 हिन्दुस्तान की कसम

बतौर निर्देशक

वर्ष फ़िल्म टिप्पणी
1985 अमीर आदमी गरीब आदमी
1983 चोर पुलिस

सन्दर्भ