यपनिय
यपनिय पश्चिमी कर्नाटक में एक जैन संप्रदाय था जो कि अब विलुप्त हो चुका है। उनके बारे में पहला वर्णन 475-490 ई॰ में पलासिका के, कदंब के राजा मृग्सवर्मन के शिलालेखों में मिलता है, जिन्होंने जैन मंदिर के लिए दान दिया था और यपनियों, निर्ग्रंथियों (दिगम्बरों के रूप में पहचान) तथा कुर्चकों को अनुदान दिया।[१]
शक 1316 (1394 ई॰पू॰) का अंतिम शिलालेख जिसमें यपनियों के बारे में वर्णन है, दक्षिण पश्चिम कर्नाटक के तुलुव इलाके में मिला है। [२]
दर्शन-सारा के अनुसार वे शेवताम्बर संप्रदाय की एक शाखा थे। हालाँकि श्वेताम्बर लेखकों द्वारा उनको दिगम्बर के तौर पर देखा गया है। यपनिय साधू नग्न रहते थे लेकिन साथ ही साथ कुछ श्वेताम्बर दृष्टिकोण को भी अनुसरण करते थे। उनके पास श्वेताम्बर रीतियों की अपनी खुद की व्याख्या थी।
मलयगिर ने अपने ग्रन्थ नंदीसूत्र में लिखा है कि महान व्याकरणाचर्या श्कतायन, जो कि राष्ट्रकूट के राजा अमोघवर्ष नृपतुंग (817-877) के सम-सामयिक थे, एक यापनिय थे।
पतन
यपनिय दूसरी शताब्दी में अपने प्रभुत्व की ओर अग्रसर हुए और दक्कन की ओर प्रस्थान के बाद दिगम्बरों और श्वेताम्बरों के साथ विलय के पश्चात् उनका पतन हो गया।[3]
इन्हें भी देखें
- कर्नाटक में जैन धर्म
- जैन धर्म में तुलु नाडू
नोट
- ↑ "Yapaniyas" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।.
- ↑ जैन धर्म में दक्षिण भारत और कुछ जैन Epigraphs द्वारा पांडुरंग Bhimarao देसाई, 1957, द्वारा प्रकाशित Gulabchand Hirachand दोशी, जैन Saṁskṛti Saṁrakshaka संघा
सन्दर्भ
- Jaini, पद्मनाभ एस (1991), लिंग और मोक्ष: जैन पर बहस आध्यात्मिक मुक्ति की महिलाओं, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रेस, ISBN 0-520-06820-3