राजस्थान के वन्य-जीव अभयारण्य
देश का सबसे अधिक दुर्लभ पक्षी गोडावण है जो राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर और जैसलमेर जिले में अधिक संख्या में मिलता है राजस्थान में 5 राष्ट्रीय उद्यान, 27 वन्य जीव अभ्यारण्य एवं 33 आखेट निषेद क्षेत्र घोषित किए जा चुके हैं। भारतीय वन्यजीव कानून १९७२ देश के सभी राज्यों में लागू है। राज्य में वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास को जानने के लिए भू-संरचना के अनुसार प्रदेश को चार मुख्य भागों में बांटा जा सकता है- १ मरुस्थलीय क्षेत्र, २ पर्वतीय क्षेत्र, ३ पूर्वी तथा मैदानी क्षेत्र और 4 दक्षिणी क्षेत्र। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान जो कि भरतपुर में स्थित है यह एक राष्ट्रीय उद्यान है अर्थात एक अंतर्राष्ट्रीय पार्क जिसे पक्षियों का स्वर्ग भी कहा जाता है। धार्मिक स्थलों के साथ जुड़े ओरण सदैव ही पशुओं के शरणस्थल रहे हैं केंद्र सरकार द्वारा स्थापित पशु-पक्षियों का स्थल राष्ट्रीय उद्यान व राज्य सरकार द्वारा स्थापित स्थल अभ्यारण्य
राष्ट्रीय उद्यान
रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान
यह राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है जो सवाई माधोपुर जिले में 39,200 हैक्टेयर क्षेत्र में सन 1955 में अभ्यारण्य के रुप में स्थापित किया गया था। वर्तमान में इसका नाम "राजीव गांधी राष्ट्रीय उधान" कर दिया । सन 1949 में विश्व वन्य जीव कोष द्वारा चलाए गए प्रोजेक्ट टाइगर' में से सम्मिलित किया गया है। राज्य में सबसे पहले बाघ बचाओ परियोजना में इस राष्ट्रीय उद्यान में प्रारंभ की गई थी। इस अभयारण्य को १ नवंबर १९८० को राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया। इस उद्यान में प्रमुख रूप से बाघ इसके अलावा सांभर, चीतल, नीलगाय रीछ, जरख एवं चिंकारा पाए जाते हैं यह भारत का सबसे छोटा बाघ अभयारण्य है लेकिन इसे भारतीय बाघों का घर कहा जाता है। राजस्थान में सर्वाधिक प्रकार के वन्य जीव अभयारण्य में पाए जाते हैं। इस अभयारण्य में त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर तथा जोगी महल स्थित है जोगी महल से पर्यटक सामान्यतया बाघों को देखते हैं। इस अभयारण्य में राज बाग, गिलाई सागर पदमला, तालाब, मलिक तालाब, लाहपुर एवं मानसरोवर इत्यादि सरोवर है। अभयारण्य के वनों में मिश्रित वनस्पति के साथ सर्वाधिक धोंक मुख्य रूप से पाई जाती है। रणथंभौर बाघ परियोजना के अंतर्गत विश्व बैंक एवं वैश्विक पर्यावरण सुविधा की सहायता से १९९६ - ९७ से इंडिया ईको डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान या केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान राज्य के भरतपुर ज़िले में स्थित एक विख्यात पक्षी अभयारण्य है। इसको पहले भरतपुर पक्षी विहार के नाम से जाना जाता था। इसमें हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी पाए जाते हैं, जैसे साईबेरिया से आये सारस, जो यहाँ सर्दियों के मौसम में आते हैं। यहाँ 230 प्रजाति के पक्षियों ने भारत के राष्ट्रीय उद्यान में अपना घर बनाया है। अब यह एक बहुत बड़ा पर्यटन स्थल और केन्द्र बन गया है, जहाँ पर बहुतायत में प शीत ऋतु में आते हैं। इसको 1961 में संरक्षित पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था और बाद में 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया तथा 1985 में इसे 'विश्व धरोहर' भी घोषित किया गया है। इस पक्षीविहार का निर्माण 250 वर्ष पहले किया गया था और इसका नाम केवलादेव (शिव) मंदिर के नाम पर रखा गया था। यह मंदिर इसी पक्षी विहार में स्थित है। यहाँ प्राकृतिक ढ़लान होने के कारण, अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। भरतपुर के शासक महाराज सूरजमल (1824 से 1763) ने यहाँ अजान बाँध का निर्माण करवाया, यह बाँध दो नदियों गँभीर और बाणगंगा के संगम पर बनाया गया था। यह पक्षीशाला शीत ऋतु में दुर्लभ जाति के पक्षियों का 'दूसरा घर' बन जाती है। साईबेरियाई सारस, घोमरा, उत्तरी शाह चकवा, जलपक्षी, लालसर बत्तख आदि जैसे विलुप्तप्राय जाति के अनेकानेक पक्षी यहाँ अपना बसेरा करते हैं।[१]
दर्राह राष्ट्रीय उद्यान
दर्राह राष्ट्रीय उद्यान या राष्ट्रीय चम्बल वन्य जीव अभयारण्य भारत के राजस्थान राज्य में [२]कोटा से 50 कि॰मी॰ दूर है जो घड़ियालों [३] (पतले मुंह वाले मगरमच्छ) के लिए बहुत लोकप्रिय है। यहां जंगली सुअर, तेंदुए और हिरन पाए जाते हैं। बहुत कम जगह दिखाई देने वाला दुर्लभ कराकल यहां देखा जा सकता है।[४]
अन्य अभयारण्य
मुकुन्दरा हिल्स नेशनल पार्क
यह राज्य के कोटा ज़िले से ५० किलोमीटर दूर कोटा-झालावाड़ मार्ग पर स्थित है। यह १९९.५५ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। जंतुओं के अवलोकन स्तंभों को रियासती जमाने मेंऔदिया कहा जाता था। दर्रा अभयारण्य [५] की मुकुंदरा पहाड़ियों में आदिमानव के शैलाश्रय एवं उनके चित्र चित्रांकित शैलचित्र मिलते हैं। दर्रा अभयारण्य एवं जवाहर सागर अभयारण्य को मिलाकर मुकुंदरा हिल्स नेशनल पार्क घोषित किया गया है। इसके पास में सांभर, नीलगाय, चीतल हिरण जंगली सूअर पाए जाते हैं १० अप्रैल २०१३ को मुकुंदरा हिल्स में कोटा, झालावाड़, बूंदी तथा चित्तौड़गढ़ जिले का क्षेत्र मिलाकर बाघ बचाओ परियोजना लागू कर दी गई है।[६]
मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान
मरुभूमि उद्यान है जो राज्य के जैसलमेर जिले में स्थित है इसकी स्थापना 8 मई 1981 को की गई थी। 3162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत यह फैला हुआ है जिनका राष्ट्र संघ अकलेरा एवं गोडावण आदि पशु पक्षियों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें काले रंग के चिंकारा को संरक्षण दिया गया है। राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण (ग्रेट इंडियन बर्ड) यहां बहुत पाया जाता है। इस अभयारण्य में रेगिस्तानी सांपों में पीवणा कोबरा रसल्स वाइपर स्केल्डवाइपर इत्यादि पाए जाते हैं।
ताल छापर अभयारण्य
यह अभयारण्य काले हिरणों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है यह चूरु जिले में छापर गांव के पास 7.19 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित है। प्रतिवर्ष शीतकाल में हजारों कुरजा पक्षी तथा क्रोमन क्रेन [७] यहां शरण लेने आते हैं। वर्षा के मौसम में इस अभयारण्य में एक विशेष नरम घास उत्पन्न होती है जिसे मोबिया साइप्रस रोटदंश कहते हैं। ताल छापर अभयारण्य की क्षारीय भूमि में लाना नामक झाड़ी उत्पन्न होती है। इस अभयारण्य में भैसोलाव तथा डूगोलाव इत्यादि प्राचीन तलैया है। [८]
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य(बूंदी)
यह अभयारण्य 307 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है तथा बूंदी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसमें बाघ, बघेरे रीछ ,गीदड़, चीतल, चिंकारा, नीलगाय ,जंगली सूअर, नेवला, खरगोश और भेड़िया तथा कई प्रकार के रंग बिरंगी पक्षी अभयारण्य में पाए जाते हैं। रामगढ विषधारी अभयारण्य को हाल ही 2021 में देश का 52 वां एवं राजस्थान का चौथा टाइगर रिजर्व बनाया गया है|
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
कुंभलगढ़ अभयारण्य उदयपुर से 84 किलोमीटर दूर स्थित है। रीछ,भेड़ियों एवं [९] जंगली सूअर, मुर्गों के लिए यह बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां लगभग 25 वुड फॉसिल्स [१०] स्थित है। कुंभलगढ़ अभयारण्य राजसमंद एवं पाली जिले की सीमा में विस्तृत है। भेड़िए प्रजनन के लिए यह देश भर में एक प्रसिद्ध अभयारण्य है प्रसिद्ध रणकपुर का जैन मंदिर इसी अभयारण्य में स्थित है। इसके अलावा परशुराम महादेव, मुछाला महावीर आदि स्थल भी यहां पर है।[११]
सीतामाता अभयारण्य
सीतामाता वन्यजीव अभयारण्य ४२२.९५ वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो जिला मुख्यालय प्रतापगढ़, राजस्थान से केवल ४० किलोमीटर, उदयपुर से १०० और चित्तौड़गढ़ से करीब ६० किलोमीटर दूर है। यह अद्वितीय अभयारण्य प्रतापगढ़ जिले में, राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में अवस्थित है, जहाँ भारत की तीन पर्वतमालाएं- अरावली, विन्ध्याचल और मालवा का पठार आपस में मिल कर ऊंचे सागवान वनों की उत्तर-पश्चिमी सीमा बनाते हैं। आकर्षक जाखम नदी, जिसका पानी गर्मियों में भी नहीं सूखता, इस वन की जीवन-रेखा है।
यहां की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वन्यजीव प्रजातियों में उड़न गिलहरी और चौसिंघा (four Horned Antelope) हिरण उल्लेखनीय हैं। यहां स्तनधारी जीवों की ५०, उभयचरों की ४० और पक्षियों की ३०० से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां आते हैं।
वृक्षों, घासों, लताओं और झाड़ियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की विशेषता हैं, वहीं अनेकानेक दुर्लभ औषधि वृक्ष और अनगिनत जड़ी-बूटियाँ अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय हैं। वनों के उजड़ने से अब वन्यजीवों की संख्या में कमी आती जा रही है।
माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य
माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य माउंट आबू का[१२] प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। [१३] यहाँ मुख्य रूप से तेंदुए, स्लोथबियर, वाइल्ड बोर, साँभर, चिंकारा और लंगूर पाए जाते हैं। २८८ वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य की स्थापना १९६० में की गई थी। सन 2006 में राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया ने माउंट आबू को वन्य जीव अभ्यारण से हटा दिया गया।
फुलवारी की नाल
उदयपुर के पश्चिम में 107 किलोमीटर दूरी पर आदिवासी बहुल क्षेत्र में स्थित इस [१५] अभयारण्य की पहाड़ी से मानसी जाखम नदी का उद्गम होता है इसमें बाघ, बघेरे, चीतल, सांभर आदि पाए जाते हैं। [१६]
भैंसरोडगढ़ अभयारण्य
भैंसरोड़गढ़ अभयारण्य राज्य के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है। चित्तौड़गढ़ रावतभाटा मार्ग पर स्थित 5 फरवरी 1983 को इस अभ्यारण्य की स्थापना की गई थी। घड़ियाल इसकी अनुपम धरोहर है। यहां तेंदुआ, चिंकारा और चीतल काफी संख्या में है इसकी विशेषता इसका वन क्षेत्र एक लंबी पट्टी के रूप में चंबल नदी एवं ब्रम्हाणी नदी के साथ फैला हुआ है।
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
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19. राजस्थान के वन्य-जीव अभयारण्य gk Rajasthan ke abhyaranya gk