मैत्रेय बुद्ध

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बैठे हुए मैत्रेय बुद्ध, छठवीं सदी की एक कांस्य प्रतिमा, यह मूर्ति कोरियाई ख़जाने का हिस्सा है।

मैत्रेय (संस्कृत), मेत्तेय्य (पालि), या मैथरि (सिंहली), बौद्ध मान्यताओं के अनुसार भविष्य के बुद्ध हैं। कतिपय बौद्ध ग्रन्थों, जैसे अमिताभ सूत्र और सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र में इनका नाम अजित भी वर्णित है।

बौद्ध परम्पराओं के अनुसार, मैत्रेय एक बोधिसत्व हैं जो पृथ्वी पर भविष्य में अवतरित होंगे और बुद्धत्व प्राप्त करेंगे तथा विशुद्ध धर्म की शिक्षा देंगे। ग्रन्थों के अनुसार, मैत्रेय वर्तमान बुद्ध, गौतम बुद्ध (जिन्हें शाक्यमुनि भी कहा जाता है) के उत्तराधिकारी होंगे।[१][२] मैत्रेय के आगमन की भविष्यवाणी एक ऐसे समय में इनके आने की बात कहती है जब धरती के लोग धर्म को विस्मृत कर चुके होंगे।

बौद्ध परम्परा की यह अवधारणा समय के साथ अन्य कई मतावलम्बियों की कथाओं में भी स्थान प्राप्त कर चुकी है।

स्रोत

गंधार कला में मैत्रेय का निरूपण

"मैत्रेय" शब्द संस्कृत के "मित्र" अथवा "मित्रता" से निकला है। पालि भाषा में यह "मेत्तेय" है और पालि शाखा के दीघ निकाय (अध्याय 26) और बुद्धवंश (अध्याय 28) में इसका उल्लेख मिलता है।[१][२] पालि शाखा के अधिकतर हिस्से प्रश्नोत्तर के रूप में मिलते हैं, हालाँकि, यह सुत्त बिलकुल ही अलग सन्दर्भों में शिष्यों से वार्ता करते हुए मिलता है। इसी कारण कतिपय विद्वानों का मत है कि यह बाद में जोड़ा हुआ अथवा कुछ परिवर्तित किया हुआ हो सकता है।[३]

उत्तरी भारत में पहली सदी के आसपास अपने उत्कर्ष पर रही ग्रीक-बौद्ध गांधार कला में मैत्रेय एक बहुप्रचलित विषय के रूप में निरूपित किये गए हैं। गौतम बुद्ध (शाक्यमुनि) के साथ मैत्रेय का चित्रण विविध रूपों में हुआ है और इन कलाकृतियों में गौतम और मैत्रेय में भिन्नता का निरूपण एक प्रमुख विषय रहा है। चौथी से छठीं शताब्दी के काल में चीन में गौतम बुद्ध और मैत्रेय बुद्ध के एक दूसरे के समानार्थी के रूप में भी प्रयोग मिलते हैं हालाँकि इन दोनों के चीनी निरूपण की पूर्ण व्यख्या और समीक्षा अभी तक नहीं हुई है।[४] मैत्रेय बुद्ध के निरूपण का एक उदाहरण किंगझाऊ (शानडोंग) से प्राप्त हुआ है जिसका काल 529 ईसवी निर्धारित किया गया है। यह माना जाता है कि मैत्रेय की धार्मिक प्रतिष्ठा लगभग उसी काल में हुई जब अमिताभ की प्रतिष्ठा, लगभग तीसरी सदी में, हुई।[५]

विवरण

आमतौर पर मैत्रेय बुद्ध को बैठी हुई अवस्था में निरूपित किया जाता रहा है। उन्हें सिंहासन पर, या तो दोनों पाँव धरती पर रखे हुए अथवा एक पाँव घुटने से मुड़ा हुआ दूसरे पाँव पर रखे हुए, अपने समय की प्रतीक्षा में बैठा हुआ निरूपित किया जाता है। एक बोधिसत्व के रूप में इन्हें सीधा खड़ा रहने की मुद्रा में और आभूषणों से सुसज्जित प्रदर्शित किया जाना चाहिए। किन्तु यह कुछ ही गांधार कला की मूर्तियों में दीखता है जहाँ इन्हें खड़ा निरूपित किया गया है।

निरूपणों में इन्हें सर पर स्तूपाकार मुकुट धारण किये हुए दिखाया जाता है। माना जाता है कि यह स्तूप गौतम बुद्ध के अवशेषों का निरूपण करता है जिनके द्वारा मैत्रेय अपने उत्तराधिकारी होने की पहचान साबित करेंगे और श्वेत कमल पर रखे धर्मचक्र को पुनः प्राप्त करेंगे।

ग्रीक-बौद्ध कला में उन्हें अपने बायें हाथ में कुंभ (जलपात्र) धारण किये हुए भी प्रदर्शित किया गया है। तिब्बती परंपरा इसे ज्ञानपात्र के रूप में भी देखती है। कुछ जगहों पर, उनके दोनों ओर असंग और वसुबन्धु को निरूपित किया गया है।

तुषित स्वर्ग

तुषित स्वर्ग में बैठे हुए मैत्रेय, नालंदा, बिहार

बौद्ध परम्परा में माना जाता है कि मैत्रेय वर्तमान में तुषित (पालि में "तुसित") नामक स्वर्ग में निवास करते हैं और अपने प्राकट्य के समय की प्रतीक्षा में हैं। यह भी माना जाता है कि गौतम बुद्ध भी अपने जन्म से पहले इस स्वर्ग में निवास कर चुके हैं। सभी बोधिसत्व धरती पर अपने अवतरण से पूर्व इस स्वर्ग में निवास करते हैं।

हालाँकि, बौद्ध धर्म की हीनयान और महायान शाखाओं में बोधिसत्व की संकल्पना अलग-अलग है। थेरवाद (हीनयान) मानता है कि बोदिसत्व वे हैं जो बुद्धत्व की प्राप्ति की और अग्रसर हैं। जबकि महायान यह मानता है कि बोधिसत्व पहले ही बुद्धत्व की दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं और उन्होंने अपने निर्वाण को स्वयं ही रोक रखा है ताकि धरती के अन्य प्राणियों की मदद कर सकें।

महायान शाखा में, बुद्ध लोग पवित्र भूमियों के स्वामी होते हैं, जैसे अमिताभ बुद्ध को सुखवती नामक भूमि का स्वामी माना जाता है। इसी प्रकार इस शाखा के अनुसार, मैत्रेय अपने समय में केतुमती नामक भूमि के स्वामी होंगे। इस केतुमती की भौतिक अवस्थिति वर्त्तमान बनारस से भी जोड़ी जाती है।[६]

ग़ैर-बौद्ध मत

नुब्रा घाटी में मैत्रेय बुद्ध की प्रतिमा

थियोसोफी

थियोसोफिकल परंपरा में, मैत्रेय के कई पहलू हैं, मात्र भविष्य के बुद्ध के रूप में ही नहीं अपितु, इसमें अन्य पराभौतिक संकल्पनाओं का समावेश मिलता है।[७]

बीसवीं सदी की शुरूआत में, थियोसोफी के ध्वजवाहकों को यह विश्वास हो चला था कि एक वैश्विक गुरु के रूप में मैत्रेय बुद्ध का आगमन अवश्यंभावी है। "जिद्दु कृष्णमूर्ति" नामक एक बालक को इसके लिए अर्ह के रूप में भी स्वीकार किया गया था। [८]

अहमदिया

अहमदिया धर्म के लोगों का मानना रहा है कि उन्नीसवी सदी के मिर्जा गुलाम अहमद उन अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं और वे संभवतः मैत्रेय बुद्ध हैं।[९]

बहाई सम्प्रदाय में

बहाई मत का मानना है कि बहाउल्लाह उन सभी लक्षणों पर खरे उतरते हैं जो मैत्रेय बुद्ध के आगमन की भविष्यवाणी में हैं।[१०][११] बहाई मत के लोग यह मानते हैं कि मैत्रेय बुद्ध की भविष्यवाणी में सहिष्णुता और प्रेम को फैलाने वाले जिस मार्गदर्शक के आगमन की बात कही गयी थी, बहाउल्लाह के द्वारा दिए गए विश्व शांति के संदेशों में वे साफ़ तौर पर देखी जा सकती हैं।[१०]

चित्र दीर्घा

इन्हें भी देखें

टिप्पणियाँ

  1. होर्नर (1975), The minor anthologies of the Pali canon [पालि ग्रंथों की लघु कथायें], p. 97. मैत्रेय के संदर्भ में, XXVII, 19 में कथित: " मैं [गौतम बुद्ध] वर्तमान में बुद्धत्व प्राप्त हूँ, भविष्य में मैत्रेय होंगे..."
  2. साँचा:cite web
  3. रिचार्ड गोम्ब्रिच, Theravada Buddhism: A Social History from Ancient Benares to Modern Colombo. "[थेरवाद बौद्ध धर्म: प्राचीन बनारस से आधुनिक कोलम्बो तक एक सामाजिक इतिहास]". रूल्टेज एंड कीगन पॉल, 1988, पृष्ठ 83–85.
  4. एंजेला फाल्को हॉवर्ड (संप॰), Chinese Sculpture "[चीनी मूर्तिकला]", येल युनिवर्सिट प्रेस, 2006, पृष्ठ 228
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  7. चार्ल्स डब्ल्यू॰ लीडबीटर (2007) [मूल रूप में प्रकाशित 1925. अड्डयार, भारत: थियोसोफिकल प्रकाशन गृह]. The Masters and the Path गुरु और उनका मार्ग (पुनर्मुद्रित और संपादित). न्यू यॉर्क: कॉसिमो क्लासिक. ISBN 978-1-60206-333-4. पृष्ठ 4–5, 10, 31–32, 34, 36, 74
  8. मैरी लुटियंस (1975). en:Krishnamurti: The Years of Awakening. न्यू यॉर्क: फ़रार स्ट्रॉस एंड ज़िरोक्स. ISBN 0-374-18222-1.
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  10. साँचा:cite book
  11. साँचा:cite book

सन्दर्भ स्रोत

बाहरी कड़ियाँ