योगाचार
साँचा:asbox साँचा:multiple image योगाचार बौद्ध दर्शन एवं मनोविज्ञान का एक प्रमुख शाखा है। यह भारतीय महायान की उपशाखा है। इस सम्प्रदाय की स्थापाना ईसा की तीसरी शताब्दी में मैत्रेय या मैत्रेयनाथ ने की थी। इस दर्शन का विकास असंग एवं वसुबन्धु ने किया। योग तथा आचार पर विशेष बल देने के कारण इसे योगाचार कहते हैं। योगाचार को 'विज्ञानवाद', विज्ञप्तिवाद, या विज्ञप्तिमात्रतावाद भी कहते हैं।
योगाचार्य इस बात की व्याख्या करता है कि हमारा मन किस प्रकार हमारे अनुभवों की रचना करता है। योगाचार दर्शन के अनुसार मन से बाहर संवेदना का कोई स्रोत नहीं है।
इस सम्प्रदाय मत के अनुसार चित्त (मन) या विज्ञान के अतिरिक्त संसार के किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। समस्त ब्राह्य पदार्थ, जिन्हें हम देखते हैं वे विज्ञान मात्र हैं। योगाचार द्वारा आलय विज्ञान को वश में करके विषय ज्ञान की उत्पत्ति को रोका जा सकता है, ऐसा हो जाने पर व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त करता है।
इस संप्रदाय का मत हे कि पदार्थ (बाह्य) जो दिखाई पड़ते हैं, वे शून्य हैं । वे केवल अन्दर ज्ञान में भासते हैं, बाहर कुछ नहीं हैं । जैसे, 'घट' का ज्ञान भीतर आत्मा में है, तभी बाहर भासता है, और लोग कहते हैं कि यह घट है । यदि यह ज्ञान अंदर न हो तो बाहर किसी वस्तु का बोध न हो। अतः सब पदार्थ अन्दर ज्ञान में भासते हैं और बाह्य शून्य है। इनका यह भी मत है कि जो कुछ है, वह सब दुःख स्वरूप है, क्योंकि प्राप्ति में संतोष नहीं होता, इच्छा बनी रहती है ।
सन्दर्भ
योगाचार या विज्ञानवाद ?
साइंस शब्द के कारण इसकेेेे बारे में संशय
कायम है !
आधुनिक उदाहरण ~
जैसे किसी को कहा जाए कि आपके पीछे "घाउंचबेबरा " है ! इस शब्द का पूर्व अनुभव न होने के कारण वह समझ नहीं सकेगा ! यदि उसे कहा जाए आपके पीछे घाउंचबेबरा 'खड़ा' है , तो व्यक्ति "किसी सजीव वस्तु " की कल्पना करेगा ! यदि उसे कहा जाए, कि आपके पीछे घाउंचबेबरा भरा "पड़ा " है, तो वह "किसी निर्जीव वस्तु " की कल्पना करेगा !
क्योंकि उसे 'घाउंचबेबरा' का "विज्ञान " नहीं है; "पूर्व अनुभव " नहीं है !
यही 'विज्ञानवाद' या 'योगाचार' है !
ManglaRam Bishnoie , 19-8-21
वर्तमान व्यवहार के उदाहरणों से इसे स्पष्ट करने की जरूरत है!
बाहरी कड़ियाँ
- योगाचार का विज्ञानवाद
- "Early Yogaacaara and Its Relationship with the Madhyamaka School", Richard King, Philosophy East & West, vol. 44 no. 4, October 1994, pp. 659–683
- "Vijnaptimatrata and the Abhidharma context of early Yogacara", Richard King, Asian Philosophy, vol. 8 no. 1, March 1998, pp. 5–18
- "The mind-only teaching of Ching-ying Hui-Yuan" (subtitle) "An early interpretation of Yogaacaara thought in China", Ming-Wood Liu, Philosophy East & West, vol. 35 no. 4, October 1985, pp. 351–375
- Yogacara Buddhism Research Association; articles, bibliographies, and links to other relevant sites.