अब्दुल हमीद द्वितीय

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अबुल हमीद द्वितीय (साँचा:lang-ota, `Abdü’l-Ḥamīd-i sânî; साँचा:lang-tr; 21 सितम्बर 1842 - 10 फ़रवरी 1918) उस्मानी साम्राज्य के 34वें सुल्तान और आख़िरी शासक थे जिन्होंने बिगड़ती जा रही उस्मानी हुकूमत पर प्रभावी नियंत्रण रखा।[३] उनके दौर में उस्मानिया का पतन किया जा रहा था, ख़ासकर बालक़न के इलाक़ों में; रूस के साथ भी एक असफल युद्ध हुआ था। उन्होंने 31 आगस्त 1876 से 27 अप्रैल 1909 तक शासन किया, जब तक जवान तुर्क आंदोलन ने उनका तख़्त पलट कर दिया था। जवान उस्मानी आंलोलन की वजह से उन्होंने 1876 में प्रथम उस्मानी संविधान का प्रख्यापन किया।[४] यह उनके शुरूआती दौर में प्रगतिशील चिंतन की निशानी थी। लेकिन बाद में उस्मानी मामलों में पश्चिमी शक्तियों की दख़लअंदाज़ी को देखकर, उन्होंने 1878 में दोनों संसद और संविधान का विघटन किया।[४]

उनके दौर में उस्मानी साम्राज्य का आधुनिकीकरण हुआ था। रुमेलिया रेलवे और अनातोलिया रेलवे का विस्तार हुआ था और बग़दाद और हिजाज़ रेलवे का निर्माण किया गया था। आबादी पंजीकरण के लिए एक प्रणाली की स्थापना की गई थी और साथ ही साथ 1898 में प्रथम आधुनिक क़ानून विद्यालय की शुरूआत हुई। सबसे महत्वपूर्ण यह था कि बहुत सारे पेशेवर विद्यालय स्थापित हुए - जैसे कि क़ानून विद्यालय, कला विद्यालय, व्यापार विद्यालय, सिविल इंजीनियरिंग विद्यालय, पशुचिकित्सा विद्यालय, खेतीबाड़ी विद्यालय, भाषा विगज्ञान विद्यालय, इत्यादि। इस्तांबुल विश्वविद्यालय अब्दुल हमीद द्वारा 1881 में बंद किये जाने के बावजूद, फिर से 1900 में खोला गया और पूरे साम्राज्य में माध्यमिक, प्राथमिक, और सैन्य पाठशालाओं की स्थापना हुई।[४] रेलवे और टेलीग्राफ़ प्रणालियाँ आम तौर पर जर्मन कंपनियों द्वारा विकसित हुए थे। उनके दौर में उस्मानी साम्राज्य दिवालिया हो गया और 1881 में उस्मानी लोक ऋण प्रशासन की स्थापना हुई।

विदेश में अब्दुल हमीद को "लाल सुल्तान" या "शापित अब्दुल" के नामों से जाना जाता था क्योंकि उनके दौर में कई मौक़ों पर अल्पसंख्यकों का संहार किया जा रहा था और असंतुष्टि और गणतंत्रवाद को ख़ामोश करने के लिए ख़ुफ़िया पुलिस का इस्तेमाल किया जा रहा था।[५][६] 1905 में किसी ने इनकी हत्या करने का प्रयास किया था। इसकी वजह से आहिस्ता-आहिस्ता अब्दुल हमीद की मानसिक सेहत बिगड़ने लगी थी, जब तक आख़िर में वह तख़्त से हटा दिया गया था।[७]जब सुलतान अबदुल हमीद ने ये सुना के फ्रांस के एक थिएटर में हुजूर की शान में गुस्ताखी का ड्रामा पेश किया जाएगा तो....

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खलीफा ने हुकूमती ओहदेदार से फ्रांस के अखबार का पेज लेकर ऊंची आवाज में पढ़ना शुरु कर दिया। निहायत जलाल और गुस्से की हालत में सुल्तान का जिस्म कांप रहा था। जबकि आपका चेहरा लाल हो चुका था। आप वहां मौजूद हुकूमत के ओहदेदारों को मुखातिब करके अखबार में इश्तिहार से मुताल्लिक बता रहे थे कि फ्रांस के इस अखबार में इश्तिहार छपा है कि एक शख्स ने एक ड्रामा लिखा है उसमें हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का किरदार भी बनाया है यह ड्रामा आज रात पेरिस के थिएटर में चलेगा। उस ड्रामे में हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखियां है वह फख्र ए कौनैन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखियां करेंगे। अगर वह मेरे बारे में बकवास करते तो मुझे कोई गम नहीं होता। लेकिन अगर वह मेरे दीन और मेरे रसूल की शान में गुस्ताखी करें तो मैं जीते जी मर जाऊं। मैं तलवार उठा लूंगा। यहां तक कि अपनी जान उन पर फ़िदा कर दूंगा। चाहे मेरी गर्दन कट जाए या मेरे जिस्म के टुकड़े टुकड़े हो जाएं। ताकि कल बरोज कयामत रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने शर्मिंदगी ना हो। मैं उन्हें बर्बाद कर दूंगा। यह बर्बाद हो जाएंगे राख हो जाएंगे। यह आग और तबाही हर जलील इंसान दुश्मन के लिए निशाने इबरत होगी। हम जंग करेंगे। उनकी तरह बेगैरत नहीं हो सकते। और यह भी मुमकिन नहीं कि हम अपने दिफ़ा से पीछे हट जाएं।

हम उनसे जंग करेंगे। खलीफा निहायत जलाल में बाआवाज बुलंद गुस्ताख ए रसूल के खिलाफ जंग का ऐलान कर रहे थे। इसी बीच में सुल्तान ने फ्रांसीसी सफीर को तलब करने के अहकामात जारी कर दिए। कुछ ही देर में खलीफा दरबार में रिवायती लिबास फाखराना जो शायद फ्रांसीसी सफीर पर हैबत डालने के लिए जेबतन किया था। निहायत जलाल और बेचैनी की हालत में बजाए बैठने के उसके सामने खड़े थे। और फ्रांसीसी सफ़ीर उनके सामने हाजिर था।

सुल्तान की हालत से उसे अंदाजा हो रहा था कि उसे बिलावजह तलब नहीं किया गया है। उसके माथे पर पसीना आ चुका था। जबकि जिस्म पर कपकपी तारी थी। और टांगे सुल्तान के खौफ से कांप रही थी। सुल्तान ने फ्रांसीसी सफ़ीर को मुखातिब किया। सफ़ीर साहब हम मुसलमान हैं, अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बहुत ज्यादा मोहब्बत करते हैं। इसी वजह से उनसे मोहब्बत करने वाले पर अपनी जान को कुर्बान करते हैं। और मुझे भी कोई तरद्दुद नहीं कि मैं भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जान कुर्बान करता हूं।

हमने सुना है कि आपने एक थिएटर ड्रामा बनाया है। जो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तौहीन पर मुसतमिल है। यह कहकर खलीफा ने फ्रांसीसी सफ़ीर की तरफ कदम बढ़ाया बढ़ाना शुरू किया। खलीफा कहते जा रहे थे मैं बादशाह हूं मलकान का, इराक का ,शाम का, लेबनान का, हज्जाज का, काफकाज़ का, एजेंसी का और दारुलहुकूमत का मैं खलीफतुल इस्लाम अब्दुल हमीद खान हूं।

यहां तक कि खलीफा फ्रांसीसी सफ़ीर के करीब पहुंच गए। और फासला निहायत कम हो गया। फ्रांसीसी सफीर के जिस्म पर लरजा तारी था। वह खलीफा के जलाल के सामने बहुत मुश्किल से खड़ा था। खलीफा ने फ्रांसीसी सफ़ीर की आंखों में आंखें डालकर निहायत शफाकाना लहजे में उससे कहा कि अगर तुमने इस ड्रामे को ना रोका तो मैं तुम्हारी दुनिया तबाह कर दूंगा। यह कहकर खलीफा अब्दुल हमीद सानी ने ड्रामे के इश्तिहार वाला अखबार फ्रांसीसी सफीर को दिया। और निहायत तेजी से दरबार से निकल गए।

फ्रांसीसी सफीर ने उस अखबार को उठाया, फौरी तौर पर डगमगाता हुआ दरबार से खलीफा के जाने के बाद दीवारों और फर्नीचर का सहारा लेते हुए बाहर निकला। और सीधा सफारतखाने पहुंचा और एक निहायत तेज़रफ्तार पैगाम अपनी हुकूमत को भेज दिया। कहा अगर यूरोप को अपनी आंखों से जलता हुआ नहीं देखना चाहते और फ्रांस की फसीलो पर इस्लामी परचम नहीं देखना चाहते, तो फौरी तौर पर गुस्ताखाना ड्रामे को रोक दो।

उस्मानी लश्कर हुक्म के इंतेजार में खड़े हैं उनके जहाज बंदरगाह पर हुक्म के इंतजार में हैं। और पैदल फौज और तोपखाने छावनियों से निकल चुका है। खलीफा अब्दुल हमीद सानी फ्रांसीसी सफ़ीर को दरबार में तलब करने और जंग का ऐलान करने के बाद चुप नहीं रहे। उन्होंने फौरी तौर पर अपने मुशीर खास को अपने दफ्तर में तलब कर लिया। और उसे फौरी तौर पर पूरी खिलाफत में एक सर्कूलर जारी करने का हुक्म दिया। यह सर्कुलर खलीफा ने खुद अपनी ज़बानी लिखवाया जो कुछ ऐसा था। फ्रांसीसियों की इस्लाम के खिलाफ कार्रवाइयां हद से आगे बढ़ चुकी है। हम फिर भी पास अदब रखे हुए हैं। लेकिन अब हमारे सब्र का पैमाना लबरेज़ हो चुका है। अब हम खिलाफत का परचम बुलंद करने जा रहे हैं। और फ्रांसीसीयों से एक फैसला कुंन जंग करने जा रहे हैं।

यह हुक्म है खलीफतूल अर्द जलालतूल मलिक अब्दुल हमीद खान का, अब हम उनसे उनकी जबान में बात करेंगे। मुशीर खुसूसी खलीफा अब्दुल हमीद के लहजे में तलवार की काट साफ महसूस कर रहा था। उसकी रीड की हड्डी में एक सनसनी की लहर दौड़ गई। खलीफा अब्दुल हमीद की फ्रांसीसी सफीर की दरबार में तलबी और जंग हुक्मनामा के साथ फौजों को तैयार रहने के अहकाम ने ही इस्लाम दुश्मनों पर खौफ तारी कर दिया। पूरी दुनिया मुंतज़िर थी कि अब क्या होगा? यूरोप कांप उठा फ्रांस ने घुटने टेक दिए।

खलीफा अपने खास कमरे में मौजूद थे। जहां वह हुकूमत के कामकाज से मुतल्लिक और फैसले लिया करते थे। अचानक एक हुकूमत का ओहदेदार हंसता हुआ कमरे में बगैर इजाजत ही दाखिल हुआ। और बोला जनाब एक खुशखबरी है। खलीफा वह क्या है ? हुजूर फ्रांसीसियों ने उस ड्रामे को ही नहीं रोका बल्कि उस थेयटर को हमेशा के लिए बंद कर दिया है। जिसने नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की शान में गुस्ताखी का इरादा किया था।

खलीफा अब्दुल हमीद हुकूमत के ओहदेदार की बात करने के दौरान ही नमनाक हो चुके थे। आप की जबान से फर्त जज्बात से सिर्फ अलहमदुलिल्ला ही निकल सका।

हुकूमती ओहदेदार ने खलीफा को बताया कि पूरे आलम ए इस्लाम से उनके लिए शुक्रिया के पैगाम आ रहे हैं।

इंग्लिशतान लीवर पोल के एक इस्लामी तंजीम ने उस ड्रामे के रोके जाने की खबर दी है। गैर मुस्लिम भी सड़कों पर निकल आए कि हम मुसलमानों के रसूल की गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं कर सकते। वह आपके लिए सेहत व आफ़ियत की दुआएं कर रहे हैं। मिस्र व अल ज्ज़ायरा में लोग खुशी के मारे सड़कों पर निकल आए हैं। मेरे सरदार अल्लाह आप से राजी हो। यह कहकर हुकूमती ओहदेदार खामोश हुआ। और मोअद्दब हो गया।

खलीफा अब्दुल हमीद की गर्दन अल्लाह की बारगाह में सजदा ब सजूद हो चुकी थी। आंखों से आंसू जारी। कुछ देर बाद सुल्तान ने हिम्मत इकठ्ठा की और गर्दन उठाई और उस हुकूमती ओहदेदार से मुखातिब हुए। ऐ! पाशा मुझे इज्जत सिर्फ इसलिए मिली है कि मैं उसी दीन का अदना सा खादिम हूं मुझे किसी बड़े लक़ब की जरूरत नहीं। यह कहकर सुल्तान ने हाथ पीछे को बांध लिए और महल के दौरे पर निकल खड़े हुए।

वह वक्त था जब खिलाफत उस्मानिया की हैबत और जलालत से यूरोप और कुफ्फार के मरकज हिल जाया करते थे।

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite encyclopedia
  2. Some sources state that his birth date was on 22 September.
  3. Overy, Richard pp. 252, 253 (2010)
  4. साँचा:cite web
  5. साँचा:cite news
  6. साँचा:cite book
  7. साँचा:cite book