सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड

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अनसूया मंदिर
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अनसूया मंदिर का बाहरी दृश्य
धर्म संबंधी जानकारी
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देवताअनसूया देवी
त्यौहारअनसूया मेला, दत्तात्रेय जयंती, नौदि मेला
अवस्थिति जानकारी
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ज़िलाचमोली
राज्यउत्तराखण्ड
देशभारत
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भौगोलिक निर्देशांकसाँचा:coord
वास्तु विवरण
प्रकारकत्यूरी शैली
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सती माता अनसूइया मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले के मण्डल नामक स्थान में स्थित है। नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों ऋषिकुल पर्वत की तलहटी पर स्थित इस स्थान तक पहुँचने में आस्था की वास्तविक परीक्षा तो होती ही है, साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। यह मन्दिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहडियो पर स्थित है इसलिये यहाँ तक पहुँचने के लिये पैदल चढाई करनी पड़ती है।

मन्दिर तक पहुँचने के लिए चमोली के मण्डल नामक स्थान तक मोटर मार्ग है। ऋषिकेश तक आप रेल या बस से पहुँच सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर और गोपेश्वर होते हुए मण्डल पहुँचा जा सकता है। मण्डल से माता के मन्दिर तक पांच किलोमीटर की खडी चढाई है जिस पर श्रद्धालुओं को पैदल ही जाना होता है। मन्दिर तक जाने वाले रास्ते के आरंभ में पडने वाला मण्डल गांव फलदार पेडों से भरा हुआ है। यहां पर पहाडी फल संतरा बहुतायत में होता है। गाँव के पास बहती कल-कल छल-छल करती नदी अमृत गंगा पदयात्री को पर्वत शिखर तक पहुँचने को उत्साहित करती रहती है। अनसूइया मन्दिर तक पहुँचने के रास्ते में बांज, बुरांस और देवदार के वन मुग्ध कर देते हैं। मार्ग में उचित दूरियों पर विश्राम स्थल और पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता है जो यात्री की थकान मिटाने के लिए काफी हैं।

यात्री जब मन्दिर के करीब पहुँचता है, तो सबसे पहले उसे गणेश जी की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो एक शिला पर बनी है। कहा जाता है कि यह शिला यहां पर प्राकृतिक रूप से है। इसे देखकर लगता है जैसे गणेश जी यहां पर आराम की मुद्रा में दायीं ओर झुककर बैठे हों। यहां पर अनसूइया नामक एक छोटा सा गांव है, जहां पर भव्य मन्दिर है। मन्दिर कत्यूरी शैली में बना है।

पौराणिक कथाएँ

ऐसा कहा जाता है जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था।कविंदती है कि, देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को विवश कर दिया। पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुँचें और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने पण (शर्त) रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खडे दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनके पण के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद मुनि के कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व रूप में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।

अनुसूया मेला

प्रत्येक वर्ष यहाँ दत्तात्रेय जयन्ती पर अनसूया मेला लगता है, जो की मार्गशिष महीने की चतुर्दशी एवं पूर्णिमा को लगता है। मन्दिर के गर्भ गृह में अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है, जिसके ऊपर चाँदी का छत्र रखा है। मन्दिर परिसर में शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। मन्दिर से कुछ ही दूरी पर अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय की त्रिमुखी पाषाण मू्र्ति स्थापित है। अब यहां पर एक छोटा सा मन्दिर बनाया गया है।

मण्डल गाँव में माता की रथ डोली का एक छोटा सा मंदिर है जहाँ से देवी प्रति वर्ष दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर अनुसूया सिद्धपीठ के लिए प्रस्थान करती है। साथ में माँ ज्वाला की रथ डोली बणद्वारा गांव से मेले के लिए प्रस्थान करती हैं। देव डोलियों का मिलन अद्भुत एवं अविस्मरणीय होता है।

चित्र दीर्घा

मन्दिर से कुछ ही दूर लगभग 3 किमी. उत्तर की ओर महर्षि अत्रि की गुफा और अमृत गंगा नामक जल प्रपात का विहंगम दृश्य श्रदलुओं और साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र है क्योंकि गुफा तक पहुँचने के लिए सांकल पकडकर रॉक क्लाइम्बिंग भी करनी पडती है। गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है। गुफा के बाहर अमृत गंगा और जल प्रपात का दृश्य मन मोह लेता है। यहां का जलप्रपात शायद देश का अकेला ऐसा जल प्रपात है जिसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही अमृत गंगा को बिना लांघे ही उसकी परिक्रमा की जाती है।

ठहरने के लिए यहां पर अनेक छोटे छोटे लॉज उपलब्ध है। आधुनिक पर्यटन की चकाचौंध से दूर यह इलाका इको-फ्रैंडली पर्यटन का अद्वितिय उदाहरण भी है। यहां भवन पारंपरिक पत्थर और लकडियों के बने हैं। हर वर्ष दिसंबर के महीने में अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय के जन्म अवसर पर यहाँ दत्तात्रेय जयंती (मेले) का आयोजन किया जाता है, जो कि मार्गशिष (हिंदी पंचांग) (सामान्य रूप से दिसम्बर) के महीने की चतुर्दशी और पूर्णिमा को लगता है।

मेले में आसपास के गांव के लोग अपनी-अपनी डोली लेकर पहुँचते हैं। वैसे पूरे वर्षभर यहां की यात्रा की जाती है। इसी स्थान से पंच केदारों में से एक तुंगनाथ रुद्रनाथ के लिए भी रास्ता जाता है। यहां से रुद्रनाथ मन्दिर की दूरी लगभग ७-८ किलोमीटर है। प्रकृति के बीच शांत और भक्तिमय माहौल में श्रद्धालु और पर्यटक अपनी सुधबुध खो बैठता है।

कैसे पहुँचें

यहां पहुँचने के लिए आपको सबसे पहले देश के किसी भी कोने से ऋषिकेश पहुँचना होगा। ऋषिकेश तक आप बस या ट्रेन से पहुँच सकते हैं। निकट ही जौलीग्रांट हवाई अड्डा भी है जहां पर आप हवाई मार्ग से पहुँच सकते है। ऋषिकेश से लगभग २१७ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गोपेश्वर पहुँचा जाता है। गोपेश्वर में रहने-खाने के लिए सस्ते और साफ-सुथरे होटल बहुतायत में उपलब्ध हो जाते हैं।

गोपेश्वर से १३ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मण्डल नामक स्थान आता है। बस या टैक्सी से आप सुगमता से मण्डल पहुँच सकते हैं और मण्डल से लगभग ५-६ किलोमीटर की खडी चढाई चढने के बाद आप अनसूइया देवी मन्दिर मे पहुँच सकते हैं। पहाड़ का मौसम है इसलिए सदैव गर्म कपड़े साथ होने चाहिएं। साथ ही हल्की-फुल्की दवाइयाँ भी अपने साथ होनी आवश्यक है।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ


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